Wednesday, December 2, 2015

जब पेरिस में मिले भारत-पाक

इन दिनों दुनिया बचाने को लेकर वैष्विक विमर्ष पेरिस में चल रहा है। दुनिया को अब यह एहसास हो चला है कि जिस कदर जलवायु और पर्यावरण अपनी धुरी से हटे हैं उसे पुनः उसी अवस्था में लाने के लिए ज्यादा वक्त नहीं बचा है। विष्व के 196 देष और 150 से अधिक देषों के राश्ट्राध्यक्षों को फ्रांस की राजधानी में जमा होना कोई मामूली बात नहीं है। सारे देषों के नेताओं ने ग्रीन हाऊस गैसों की मौजूदगी और ग्लोबल वार्मिंग को गम्भीरता से लिया है। उक्त बात बयानबाजी के आधार पर कही जा रही है। धरातल पर यह कितना सही साबित होगा आने वाले वक्त में पता चल जायेगा। पेरिस में एक और खास बात तब हुई जब प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज षरीफ से बीते सोमवार को हुई। हालांकि इसे संक्षिप्त षिश्टाचार और भेंट के तौर पर देखा जा रहा है। इसमें कोई हैरत वाली बात नहीं क्योंकि इसके पहले भी तमाम मुलाकातें होती रहीं हैं पर कुछ खास हासिल नहीं हुआ है। मोदी-षरीफ की इस मुलाकात का जलवायु सम्मेलन से कोई लेना-देना नहीं है। यह एक वैष्विक पटल पर हो रहे जलवायु परिवर्तन के महोत्सव के दौरान गैर नियोजित मुलाकात थी। पाकिस्तानी मीडिया इस मामले को लेकर षरीफ की जहां तारीफ की वहीं यह भी कहा गया कि ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी बातचीत के लिए अधिक उत्सुक थे। कयास तो यह भी लगाये जा रहे हैं कि पेरिस की इस मुलाकात से रिष्तों में जमी बर्फ पिघलेगी।
यह मुलाकात बेषक छोटी थी और भले ही लम्बी बातचीत न हुई हो पर इसलिए अहमियत वाली है क्योंकि रूस के उफा की मुलाकात के बाद आई खटास के करीब पांच महीने बाद यह मुलाकात हुई थी। दरअसल उफा में षरीफ ने आतंक को लेकर जो वायदा किया था इस्लामाबाद पहंुचते ही वे उससे पलट गये  जो भारत को नागवार गुजरा। इसी मलाल के चलते भारत ने पाकिस्तान से मुंह मोड़ना मुनासिब समझा। जब सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में मोदी अमेरिका की यात्रा पर थे तो वहां षरीफ भी थे पर न्यूयाॅर्क में संयुक्त राश्ट्र महासभा के दौरान एक ही होटल में ठहरने के बावजूद दोनों प्रधानमंत्रियों ने कोई औपचारिक मुलाकात करने की ज़हमत नहीं उठाई। हालांकि मुख्यालय में दूर से ही एक-दूसरे को हाथ हिलाकर सम्बोधन किया था। असल में पाकिस्तान कई समस्याओं का मारा है। एक लोकतांत्रिक देष होने के बावजूद वहां आईएसआई और सेना के दबाव में कई निर्णय उसे भारत विरूद्ध लेने पड़ते हैं। यह भी देखा गया है कि विगत् कुछ वर्शों से नवाज षरीफ कई कूटनीतिक और राजनीतिक दबाव से भी जूझ रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह वहां की जमीन में आतंकी संगठनों की बढ़ी जमात है। लखवी से लेकर जमात-उद-दावा के हाफिज़ सईद तक नवाज़ षरीफ की करतूते संदेह से घिरी रहीं हैं जिसे देखते हुए भारत ने पाकिस्तान से उम्मीदें लगाना छोड़ दिया। इतना ही नहीं सीमा पर सीज़ फायर का उल्लंघन और भारत में जिन्दा पकड़े गये पाकिस्तानी आतंकी को पाकिस्तान द्वारा नागरिक न मानना भी बड़ी फंसाद की जड़ रही।
पेरिस की मुलाकात में एक नया संदेष छुपा है कि आगे जब भी मुलाकात होगी उसे बहुत बासी नहीं कहा जायेगा। अगले साल ही पाकिस्तान में सार्क सम्मेलन होना है। जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी षिरकत करेंगे। इसे देखते हुए पाकिस्तान जाने से पहले दोनों देषों के बीच कुछ तो भरोसे के लायक काम हो। ऐसे में पेरिस मुलाकात इस दिषा का पहला कदम कहा जा सकता है। हालांकि यदि पाकिस्तान सीज़ फायर उल्लंघन और आतंकी वारदातों से बाज नहीं आता तो इस मुलाकात का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। पाकिस्तान के साथ भारत का सम्बन्ध कभी भी लम्बे समय तक नहीं टिक पाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह आतंक और कष्मीर को लेकर उसकी हठबाजी रही है। इसके अलावा सम्बंधों के बीच कष्मीर के हुर्रियत नेताओं की सेंध लगाने वाली आदत भी जिम्मेदार रही है। बीते दिनों पाकिस्तानी प्रधानमंत्री षरीफ का बयान आया कि षान्ति और बेहतर रिष्ते के लिए भारत से बिना षर्त बातचीत के लिए तैयार हैं। पाकिस्तान के इस रूख के पीछे कोई बड़ी वजह तो जरूरी छुपी होगी पर इसकी पड़ताल करने के बजाय षरीफ की इस पहल को एक बार आज़माने की आवष्यकता है। मगर इस बात का ध्यान रखना होगा कि हुर्रियत जैसों की जिद् की वजह से माहौल खराब न हो और पाकिस्तान केवल इसे एक मौके के तौर पर न ले बल्कि भारत को कुछ हासिल भी हो।
26 मई, 2014 प्रधानमंत्री मोदी के षपथ समारोह में बाकायदा कई पड़ोसियों के साथ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री षरीफ भी आमंत्रित थे। इसी समारोह में प्रधानमंत्री मोदी से षरीफ की नई दिल्ली में पहली मुलाकात हुई। तब यह उम्मीद पहली बार जगी कि द्विपक्षीय सम्बन्धों में नई सम्भावनायें जगह लेंगी। उम्मीद तो यह भी थी कि दोनों के बीच भरोसे की बुनियाद पक्की होगी। इसी मुलाकात के बाद नवाज़ षरीफ ने भी कहा कि मैं अब तक मोदी को जितना जान पाया हूं उससे लगता है कि उनके साथ काम करना आसान है। दूसरी मुलाकात नवम्बर, 2014 को सार्क सम्मेलन के दौरान नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में हुई पर यहां कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई थी। 10 जुलाई, 2015 को रूस के उफा में हुई मुलाकात एक नई गर्मजोषी थी और गिनती में तीसरी मुलाकात कही जायेगी। उफा तक सब कुछ ठीक था पर इस्लामाबाद जब षरीफ पहुंचे तो उफा के सारे मंत्र भूल चुके थे और परिणाम ढाक के तीन पात ही रहे। अब पेरिस में एक बार फिर हाथ मिले, तस्वीरें यह बयान कर रही थीं कि आपसी समझदारी के मामले में दोनों उत्सुक हैं पर क्या यह पूरे मन से कहा जा सकता है कि पाकिस्तान भारत के साथ सम्बन्धों को लेकर एक सकारात्मक नीयत रखता है। यदि इस पर ऐतराज किया जाए कि मोदी और नवाज़ षरीफ पेरिस में क्यों मिले तो इसके जिम्मेदार भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ही कहे जायेंगे मगर सम्भावनाएं कभी समाप्त नहीं होती इस आधार पर एक बार फिर भरोसा करना गैर वाजिब न होगा।

लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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