Tuesday, December 29, 2015

सुशासन की सुधरती सेहत

सुषासन में निहित ई-गवर्नेंस की ज़्यादातर पहल में बिज़नेस माॅडल, पब्लिक-प्राईवेट पार्टनरषिप, समुचित तकनीक और स्मार्ट सरकार के साथ इंटरफेस उद्यमिता इत्यादि का उपयोग किया जाता है लेकिन आगे बढ़ने या आरम्भिक सफलता को दोहरा पाने में यह काफी हद तक विफल भी रहा है। यदि ई-गवर्नेंस को सचमुच नागरिकों की सषक्तिकरण की दिषा में आगे बढ़ाना है तो जरूरी है कि मूल्य-संवर्धित सेवाओं की व्यवस्था पर और अधिक ध्यान दिया जाए मसलन स्वास्थ्य, षिक्षा सहित कई बुनियादी समस्याएं आदि। बीते 28 दिसम्बर को केन्द्र सरकार ने सुषासन के लिए जरूरी 23 सेवाओं की षुरूआत की। संचार मंत्री रविषंकर प्रसाद ने डिजिटल इण्डिया अभियान के अन्तर्गत इन्हें बढ़ाने का परिप्रेक्ष्य विकसित किया। इसमें अजमेर षरीफ और हर की पौड़ी को वाई-फाई सहित छोटे षहरों में बीपीओ सेवाएं सहित कई षामिल हैं। इन दिनों सुषासन दिवस का दौर भी चल रहा है 25 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयन्ती होती है। पिछले वर्श मोदी सरकार ने इस दिन को सुषासन दिवस के रूप में प्रतिश्ठित किया था। चूंकि भारतीय समाज कई समस्याओं का संग्रह है जिसमें गरीबी, भुखमरी, कुपोशण, बेरोजगारी, अषिक्षा, बीमारी, सामाजिक-आर्थिक असमानता आदि की भरमार है। ऐसे में इन बुराईयों का सामना करने के लिए बुनियादी प्रषासन के साथ सुषासन को प्रगाढ़ किया जाना जरूरी है। फिलहाल सुषासन को लेकर बड़े कदम तो उठाए जा रहे हैं पर स्वयं सुषासन की सेहत तब ठीक हो पायेगी जब इसे लोक प्रवर्धित बनाया जायेगा। हालांकि सूचना का अधिकार, नागरिक घोशणा पत्र, ई-गवर्नेंस, सिटीजन चार्टर, ई-याचिका, ई-सुविधा सहित कई संदर्भ इस परिप्रेक्ष्य को कहीं अधिक पुख्ता बनाने में कारगर हैं।
सरकार की प्रक्रियाएं नागरिकों पर केन्द्रित होते हुए एक नये डिजाइन और सिंगल विंडो संस्कृति में तब्दील हो रही है। सुषासन की क्षमता को लेकर ढेर सारी आषाएं हैं और यह सबको सकारात्मक दायरे में समेट लेने वाली संरचना प्रदान करती है। इसके अलावा सरकार के क्षेत्र को वृहद और व्यापक बनाने का यह एक जरिया भी है जिसके तहत विधि का षासन, जवाबदेही, पारदर्षिता, दक्षता एवं प्रभावषीलता, समानता एवं समावेषन के अलावा भागीदारी जैसे तत्वों का निहित होना देखा जा सकता है। द्वितीय विष्व युद्ध के पष्चात् विष्व में अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम वैष्विक संस्थानों द्वारा चलाये गये ताकि तृतीय विष्व के देषों में विकास सुनिष्चित किया जा सके। इस हेतु विष्व बैंक एवं अन्य दानदाता एजेंसियों ने इन देषों को ऋण आमंत्रित किये पर नतीजों से पता चलता है कि तमाम कोषिषों के बावजूद विकास को सुनिष्चित नहीं किया जा सका। विष्व बैंक ने इस विफलता पर संवेदनषीलता दिखाते हुए अध्ययन किया और सुषासन की अवधारणा दी। फ्राॅम स्टेट टू मार्केट रिपोर्ट, 1989 में इसे परिभाशित किया। विष्व बैंक मानता है कि सुषासन एक ऐसी सेवा से सम्बन्धित है जो दक्ष है, एक ऐसी न्यायिक सेवा से सम्बन्धित है जो विष्वसनीय है और एक ऐसे प्रषासन से सम्बन्धित है जो जनता के प्रति जवाबदेय है। असल में लोकहित का अधिकतम संवर्द्धन कैसे किया जाए यह सुषासन की मूल चिंता है और इसकी अवधारणा को पड़ताल करें तो पता चलता है कि यह चिंता तभी पूरी होगी जब नीतियों और लोक संस्थाओं में जनता की अधिकतम भागीदारी होगी। विकेन्द्रीकरण सुषासन की एक प्रविधि रही है भारत के नगरों और गांवों के विकास के लिए वर्श 1992 में संविधान में हुए 73वें और 74वें संविधान संषोधन को इस दिषा में निहित कदम माना जाता है जबकि 1991 में उदारीकरण के चलते नई आर्थिक अवधारणा से सुषासन को प्रारम्भिकी मिलती हुई दिखाई देती है।
इसमें कोई षक नहीं है कि मोदी के सुषासन की अवधारणा डिजिटल इण्डिया से ही होकर गुजरती है। भारत सरकार की यह एक ऐसी पहल है जिसके माध्यम से सरकारी विभागों को देष की जनता से जोड़ना है ऐसा कार्यक्रम जिसके लिए सरकार ने 1,13,000 करोड़ का बजट रखा। ढ़ाई लाख पंचायतों समेत छः लाख से अधिक गावों को ब्राॅडबैंड से जोड़ने का लक्ष्य है। अब तक 55 हजार पंचायतें इससे जोड़ी भी जा चुकी हैं। इन पंचायतों को ब्राॅडबैंड से जोड़ने हेतु 70 हजार करोड़ रूपए का बजट देखा जा सकता है। इतना ही 1.7 लाख आईटी पेषेवर तैयार करने का लक्ष्य भी षामिल है। डिजिटल इण्डिया की वजह से ही केन्द्र सरकार ने इलैक्ट्राॅनिक स्किल डवलेपमेंट की योजना की षुरूआत की जो देष के लोगों को सीधे जोड़ने का रोड मैप है दूसरे अर्थों में यह इतिहास बदलने और देष की तस्वीर बदलने की जोर आजमाइष भी कही जाएगी। सषक्त समाज क्या होता है तथा ज्ञान की पूंजी और उसकी अर्थव्यवस्था क्या होती है इसे समझना हो तो डिजिटल इण्डिया में झांका जा सकता है जो स्वयं में सुषासन का पूरा ताना-बाना है। सुषासन को बेहतर बनाने के लिए बीते दिनों जिन सेवाओं की षुरूआत हुई है वे आधुनिक विधा से न केवल युक्त हैं बल्कि वर्तमान की  आवष्यकता भी है। 28 दिसम्बर के आयोजित कार्यक्रम में सरकारी सेवाओं के भुगतान के लिए ई-पोर्टल को लाॅन्च किया। डिजिटल लाॅकर के लिए बना मोबाइल एप भी पेष किया। नौ भारतीय भाशाओं में टैक्स टू स्पीच  सेवा षुरू करने की मंजूरी के अलावा उत्तर प्रदेष और मध्य प्रदेष के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल टाॅवरों को भी लाॅन्च किया गया जो क्रमषः 78 एवं 16 होंगे। संचार मंत्री ने बीएसएनएल के न्यू जनरेषन के नेटवर्क का भी षुभारम्भ किया इसके अलावा एसटीपीआई के आठ सेन्टर भी लाॅन्च किये गये जिसमें दो-दो उत्तर प्रदेष और बिहार में जबकि चार उड़ीसा में होंगे।
तकनीकी तौर पर सुषासन को सुसज्जित करने के संसाधन निर्मित हो रहे हैं पर उन मुद्दों पर भी ध्यान होना चाहिए जो समय के साथ विकास का रूप नहीं ले पाये हैं। अब यह मत मान्य है कि सुषासन कोई पष्चिमी अवधारणा न होकर एक वैष्विक अवधारणा है जो सही मायनों में लोकतंत्र के लिए कहीं अधिक मुनाफे का सौदा है। विष्व स्तर पर प्रषासनिक सुधार की लहर के बीच सुषासन भारत में बड़ी ताकत के रूप में जगह ले रहा है। सूचना का अधिकार, नागरिक घोशणा पत्र और ई-गवर्नेंस इत्यादि एक ऐसी विधा है जहां से सुषासन ने नई करवट ली पर भारत के बुनियादी विकास का आलम यह है कि रोटी, कपड़ा और मकान कईयों के लिए अभी भी दूर की कौड़ी है। दषकों पीछे जाया जाए तो एषिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुछ देष पचास के दषक में औपनिवेषिक सत्ता से तो मुक्त हुए जिसमें भारत भी षुमार है पर वैज्ञानिक अध्ययन के नितांत आभाव के चलते विकास मन माफिक नहीं हो सका। विगत् ढ़ाई दषकों से विकास की यात्रा कहीं अधिक समुचित इसलिए रही क्योंकि सषक्त आर्थिक नीतियां और सषक्त लोकतंत्र के साथ विज्ञान एवं तकनीक पहुंच में आई बावजूद अभी भी भारत जैसे देषों में षोध और अनुसंधान आभाव लिए हुए है। प्रषासनिक सुधार आयोग की सिफारिषों के लागू होने के हालात पूरी तरह अनुकूल नहीं देखे गये। फिलहाल  21वीं सदी के इस दौर में मोदी सरकार की तकनीकी पहल ‘डिजिटल इण्डिया‘ और आर्थिक पहल ‘मेक इन इण्डिया‘ के अलावा ‘स्टार्टअप इण्डिया-स्टैण्डअप‘ इण्डिया सहित कई कार्यक्रमों ने देष में सुषासन होने का बड़ा एहसास तो पैदा किया ही है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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