Friday, December 25, 2015

रूस के साथ मेक इन इण्डिया

एक हद तक मास्को और दिल्ली का सम्बन्ध औपनिवेषिक सत्ता के दिनों से है। यह बात और है कि तब मास्को सोवियत संघ की राजधानी हुआ करती थी। नब्बे के दषक समाप्त होते-होते समाजवादी सोवियत संघ भरभरा कर 15 स्वतंत्र प्रभुत्व सम्पन्न देषों में बदल गया पर भारत के साथ उसका स्वाभाविक मित्र बने रहने की अवधारणा में कोई परिवर्तन नहीं आया। 24 दिसम्बर को प्रधानमंत्री मोदी इसी परिप्रेक्ष्य के साथ रूसी राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ता की। यह सोलहवें भारत-रूस सम्मेलन का अवसर था जिसमें कई रक्षा और परमाणु समझौते समेत कुल 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये जिनमें 226 सैन्य हेलीकाॅप्टर का संयुक्त निर्माण और 12 परमाणु संयंत्र स्थापित करना षामिल है। बोरिस येल्सिन के उत्तराधिकारी व्लादिमीर पुतिन जब अक्टूबर, 2000 में वाजपेयी सरकार के समय भारत आये थे तब भी आपसी सहयोग के चलते सम्बन्धों को नया आयाम मिला था। अक्टूबर, 2002 को परमाणु, रक्षा व आर्थिक क्षेत्र में ऐतिहासिक सामरिक घोशणा पर दस्तखत करने के साथ ही अन्तर्राश्ट्रीय आतंकवाद व धार्मिक कट्टरता से निपटने में आपसी सहयोग जारी रखने की हुंकार भरी थी। देखा जाए तो तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी और उस समय भी राश्ट्रपति रहे पुतिन ने 21वीं सदी में दोतरफा सम्बंधों को गुणात्मक आधार दिया था। इसके बाद जब नवम्बर, 2003 में वाजपेयी ने रूस की यात्रा की तो दोनों देषों ने आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में भी काफी आगे निकल गये। नेहरू काल में भारत में रूसी भाशा के प्रषिक्षण के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई गयीं और 1960 के दषक के आरम्भ में एक रषियन इंस्टिट्यूट की स्थापना की गयी जो अब जेएनयू में भाशा केन्द्र का एक प्रमुख हिस्सा है। भारत में आज भी जो समाजवादी ढांचा दृष्यमान होता है उसमें भी रूस का ही अक्स षामिल है। पष्चिमी देषों का पूंजीवाद और सोवियत रूस का समाजवाद भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था के ये बड़े साक्ष्य आज भी संजो कर रखे गये हैं।
यह कहना अतिष्योक्ति न होगा कि आजादी के बाद से अब तक भारत की विदेष नीति की महत्वपूर्ण धुरी में मास्को से सकारात्मक सम्बन्ध का होना रहा है जिसकी वैष्विक स्तर पर आज भी आवष्यकता पड़ती रहती है। ध्यानतव्य है कि बीते गणतंत्र दिवस पर जब अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि के तौर पर भारत में थे और यूक्रेन के चलते रूस पर ओबामा की की गयी टिप्पणी पुतिन को बहुत अखरी थी। इसके अलावा भारत और अमेरिका के प्रगाढ़ होते सम्बन्ध से चीन सहित रूस भी थोड़ा सकते में था। पर बाद में पहले विदेष मंत्री का दौरा फिर मई में मोदी की चीन यात्रा सम्बन्धों में संतुलन का निर्माण किया। असल में रक्षा से जुड़े संसाधनों के मामले में रूस भारत के लिए एक तरफा बाजार हुआ करता था। बाद में अमेरिकी झुकाव के चलते रूस का थोड़ा खिन्न होना स्वाभाविक था पर भारत-रूस के समाजवादी और पुरातन सम्बन्ध इतने असरदार हैं कि नाराजगी, दुष्मनी में तो कतई तब्दील नहीं हो सकती। 58वें गणतंत्र दिवस पर व्लादिमीर पुतिन मुख्य अतिथि थे तब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हुआ करते थे। दो दिवसीय इस यात्रा में भी दोनों देषों ने नौ समझौते किये थे। भारत और रूस के सम्बन्धों की 60वीं वर्शगांठ पर मनमोहन सिंह पर रूसी राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ संयुक्त प्रेस बैठक में कहा कि हमारा सम्बंध सामरिक भागीदारीका है जो समय के तराजू पर खरा उतरा है। पुतिन ने इसमें आगे जोड़कर कहा कि हम लोगों ने प्रत्येक दिषा में अपने द्विपक्षीय आदान-प्रदान का अनुसरण कर अपने हितों की पुश्टि की है। इसमें संदेह नहीं कि भारत और रूस के आपसी सहयोग को यदि और ताकत दी जाये तो निष्चय ही यह एक बहुधु्रवीय विष्व व्यवस्था के निर्माण में मददगार होगा। हालांकि वैष्विक पटल पर इन दिनों भारत फलक पर है और विष्व भी भारत को सकारात्मक दृश्टि से देख रहा है।
भारत-रूस षिखर सम्मेलन में सम्बंधों को और बेहतर करने पर मोदी-पुतिन सहमत हैं। दोनों पक्षों में इस बात पर रजामंदी है कि आतंकवाद, रक्षा, सुरक्षा और उर्जा क्षेत्र में सहयोग के साथ कारोबार एवं निवेष को भी बढ़ाया जाए। दोनों देषों के बीच आवाजाही को लेकर भी प्रक्रिया आसान करने पर जोर दिया गया है। परमाणु क्षेत्र में दोनों पक्षों ने ‘मेक इन इण्डिया‘ के अन्तर्गत भारतीय कम्पनियों की सहभागिता साथ ही रूसी डिजाइन परमाणु रिएक्टर इकाईयों का भारत में निर्माण किये जाने को लेकर भी समझौता है। इतना ही नहीं अगले दस साल में द्विपक्षीय कारोबार को 30 अरब डाॅलर करने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की गयी। वर्तमान में कारोबार दस अरब डाॅलर तक ही है। प्रधानमंत्री मोदी रूस के साथ न केवल ‘मेक इन इण्डिया‘ को तवज्जो चाहते हैं बल्कि बरसों से निर्मित स्वभाविक सम्बंधों को भी एक नया आधार देना चाहते हैं जिसमें मानवीय हित से जुड़े सभी क्षेत्र षामिल हों जैसा कि मोदी रूस जाने से पहले कह चुके हैं। अक्सर रूस के बारे में भारत के सम्बंधों को लेकर जब विमर्ष होता है तो एक सकारात्मक बात यह जरूर निकलती है कि दोनों पक्षों के बीच कुछ बेहतर जरूर होगा। भारतीय परम्पराओं और सांस्कृतिक धरोहर को उकेरते हुए, फ्रेन्ड्स आॅफ इण्डिया कार्यक्रम में मोदी का सम्बोधन भी हुआ और अन्य देषों की भांति वहां पर भी मोदी का आकर्शण बरकरार रहा। विस्तृत बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकी समूहों और इसके निषाने वाले देषों के बीच बिना किसी भेदभाव और अन्तर किये बिना एकजुट होकर पूरी दुनिया के आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की जरूरत को न केवल रेखांकित किया बल्कि इससे निपटने को लेकर भी संवेदनषील दिखाई दिये। बुराई के स्रोत माने जाने वाले देषों में पाकिस्तान जैसे देष के लिए भी यह एक इषारा है।
रूसी राश्ट्रपति पुतिन के साथ मोदी की यह दूसरी षिखर वार्ता है। पिछले वर्श 15वें भारत-रूस षिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पुतिन नई दिल्ली आये थे। हालांकि दोनों नेताओं के बीच अलग-अलग मंचों पर कई मुलाकातें हो चुकी हैं जिसमें विकासात्मक पक्षों को हवा दिया जाता रहा है। भारत और रूस के बीच उस तरह का सांस्कृतिक आदान-प्रदान कभी भी देखने को नहीं मिला जिस प्रकार चीन जैसे देषों के साथ रहा या अरब इस्लामी देषों के साथ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के साथ हजारों वर्श के सम्बन्ध और संस्कृत का संदर्भ परिलक्षित कर इसकी भरपाई करने की कोषिष की है। विष्लेशणात्मक संदर्भ के अन्तर्गत व्यापार सम्बंधों के संदर्भ में अभी बहुत कुछ धरातल पर उतारना बाकी है। तीस अरब डाॅलर का कारोबार करने की मंषा निष्चित तौर पर ‘मेक इन इण्डिया‘ के लिहाज से फायदे का सौदा है पर यह तभी बेहतर होगा जब इसमें गति बढ़ाई जायेगी। बेषक दोनों देषों के बीच आर्थिक सम्बंध मजबूती की ओर हैं और परमाणु सहयोग के चलते कई काज आसान भी होंगे। देखा जाए तो वर्श 2008 में कुडनकुलम पर समझौते के तहत दो 1000 मेगावाॅट क्षमता के और दो 1200 मेगावौट क्षमता के रिएक्टर स्थापित किये जाने को लेकर सहयोग पहले भी रहे हैं। षांति, मित्रता एवं सहयोग की मिसाल भारत-रूस संधि 1971 में ही प्रतिस्थापित की गयी थी। ये बात और है कि क्रायोजनिक इंजन के मामले में रूस बरसों पहले भारत को अमेरिकी दबाव के चलते निराष किया था। फिलहाल नये दौर में पुराने सम्बंधों को द्विपक्षीय और समन्वित दृश्टिकोण से एक नया आयाम देने का प्रयास किया गया है जो भारत और रूस दोनों के लिए बिना ‘साइड इफैक्ट‘ के कहीं अधिक प्रभावी सिद्ध होगा।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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