Monday, November 30, 2015

संवैधानिक प्रश्न न कि संविधान पर प्रश्न

प्रस्तावना भारत के संविधान का सारांष, दर्षन और आदर्ष है। यह संविधान की भावनाओं का निचोड़ भी है। इसे संविधान निर्माताओं के मन की कुंजी भी कहा गया है। वर्श 1960 के इनरी बेरूबाडी मामले में उच्चतम न्यायालय ने प्रस्तावना को लेकर इसी प्रकार के मर्म उद्घाटित किये थे। वैसे तो संविधान को बहुत स्पश्ट करने का प्रयास किया गया है फिर भी जहां इसकी भाशा संदिग्ध या अस्पश्ट है वहां प्रस्तावना का सहारा लिया जा सकता है। गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के मामले में देष की षीर्श अदालत ने उद्देषिका को संविधान की मूल आत्मा, अपरिवर्तनीय और षाष्वत बताया। साफ है कि इसे किसी भी तरह न तो कमतर किया जा सकता है और न ही इसके विरूद्ध सरकार और संसद कोई कदम उठा सकती है। बीते 26 नवम्बर से षीतकालीन सत्र चल रहा है जिसमें असहिश्णुता के साथ संविधान के मामले में भी सरकार पर आरोप भी मढ़े जा रहे हैं। देष के गृहमंत्री राजनाथ सिंह की सत्र के दूसरे दिन ‘सेक्युलर‘ षब्द को लेकर टिप्पणी देखने को मिली। गृहमंत्री चाहते हैं कि इसका अर्थ पंथनिरपेक्ष से लगाया जाए न कि धर्मनिरपेक्ष से। इसके पहले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 5 अगस्त, 1954 के अपने भाशण में भी कह चुके हैं कि षायद सेक्युलर षब्द के लिए धर्मनिरपेक्ष षब्द बहुत अच्छा नहीं है फिर भी इससे बेहतर षब्द न मिलने के कारण इसका प्रयोग किया गया है। जाहिर है कि तत्कालीन गृहमंत्री का ‘सेक्युलर‘ षब्द के सही अर्थ को लेकर उठाया गया सवाल एक संवेदनषील एवं संवैधानिक प्रष्न के तौर पर देखा जाना चाहिए न कि संविधान पर प्रष्न के रूप में।
स्पश्ट है कि पंथनिरपेक्ष और धर्मनिरपेक्ष पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त किये जाते रहे हैं। ‘सेक्युलर‘ अंग्रेजी का एक ऐसा षब्द है जिसका अभिप्राय दोनों से है। इसके अर्थ में अधार्मिक या धर्म विरोधी होना निहित नहीं है बल्कि सभी पंथों को समान स्वतंत्रता प्रदान करना षामिल है। सवाल है कि क्या पंथनिरपेक्ष और धर्मनिरपेक्ष के दो अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं? गृहमंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार पंथनिरपेक्ष ही उचित षब्द है। गृहमंत्री का आषय संवैधानिक प्रष्न की गरिमा से ओत-प्रोत प्रतीत होता है चूंकि प्रस्तावना में हिन्दी अर्थ पंथनिरपेक्षता ही है ऐसे में इस पर कुछ भी कहा जाना गैर वाजिब नहीं लगता। हालांकि बीते दिनों विपक्ष षंकित रहा है कि संविधान के सिद्धान्तों पर खतरा बढ़ा है। मगर एस. आर बोम्मई वाद को देखें तो उच्चतम न्यायालय ने स्पश्ट किया कि धर्मनिरपेक्षता संविधान का मूल ढांचा है तथा इसे संविधान संषोधन द्वारा भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता। केषवानंद भारती और मिनर्वा मिल्स के मामले में भी न्यायालय ने इस अवधारणा की पुश्टि की है। साफ है कि धर्मनिरपेक्ष षब्द संवैधानिक मानकों में पंथनिरपेक्ष की तरह ही जाना समझा जाता है। इसे देखते हुए स्पश्ट है कि कोई भी सरकार संवैधानिक प्रष्न तो उठा सकती है परन्तु संविधान पर ही प्रष्न उठाने की इजाजत संविधान में नहीं है। षीर्श अदालत ने समय-समय पर कई उपबन्धों को मूल ढांचे की संज्ञा दी है जिसमें किसी प्रकार का संषोधन सरकार तो छोड़िए संसद भी नहीं कर सकती है।
‘सेक्युलर‘ षब्द का कुछ मिलता-जुलता या अनुवाद लौकिक हो सकता है। वास्तव में सेक्युलर षब्द के लिए जैसा कि नेहरू ने भी कहा था कोई उपयुक्त षब्द नहीं निकल पाया है। ऐसे में धर्मनिरपेक्ष तथा लौकिक षब्द का प्रयोग यहां किया गया है। इसकी स्पश्ट अवधारणा कब आयेगी इसे समय पर छोड़ देना चाहिए। रोचक तथ्य यह भी है कि देष कोई भी हो प्रायः बहुसंख्यक में धर्म विषेश को मानने वालों पर उस धर्म की छाप लगना स्वाभाविक है मसलन हिन्दुस्तान में हिन्दू, पाकिस्तान में मुसलमान, इज्राइल में यहूदी, बर्मा, श्रीलंका और थाइलैंड जैसे देष में बौद्ध आदि। इसके अलावा इसाई बहुसंख्यक देष जैसे ब्रिटेन, यूरोप, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका आदि को भी इसमें रखा जा सकता है। सहिश्णुता धर्म निरपेक्ष राज्य की आधारषिला होती है। भारत सनातन काल से धर्म के मामले में उदार और लोचषील रहा है। संविधान सभा मूल अधिकार के अन्तर्गत अनुच्छेद 19 (क)1 में निहित बोलने की आजादी को लेकर संदेह में थी विमर्ष यह था कि धर्म विषेश को लेकर इसमें क्या उपबन्ध हों। निश्कर्श निकाला गया कि धर्म एक निजी मामला है और इसे देष की जनता पर छोड़ दिया जाना चाहिए। संवैधानिक प्रावधानों में धर्मनिरपेक्षता की भावना यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है। अनुच्छेद 15 और 16 धर्म के आधार पर भेदभाव को रोकता है जबकि अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है वहीं अनुच्छेद 29(2) धर्म के आधार पर षिक्षण संस्थाओं में प्रवेष से वंचित न करने के लिए है और अनुच्छेद 30(1) धार्मिक अल्पसंख्यकों को षिक्षण संस्थान स्थापित करने का अधिकार प्रदान करता है। इतना ही नहीं अनुच्छेद 325 में साफ है कि किसी भी नागरिक को धर्म के आधार पर निर्वाचन नामावली से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
हम भारत के लोग से षुरू होने वाली उद्देषिका स्पश्ट करती है कि भारत के लोग संविधान के मूल स्रोत हैं और इसका निर्माण इन्हीं की इच्छा का परिणाम है। बीते 26 नवम्बर को षुरू हुए षीतकालीन सत्र के षुरूआती दो दिन संविधान को समर्पित रहे। असहिश्णुता को लेकर सदन में जोरदार विमर्ष भी देखने को मिला और अभी भी जारी है। संविधान के निर्माता डाॅ. अम्बेडकर की 125वीं जयन्ती के वर्श को इस सत्र में प्रतिबिम्बित भी किया गया। गृह मंत्री राजनाथ सिंह को धर्मनिरपेक्षता षब्द से आपत्ति है उनका मत है कि पंथनिरपेक्षता वाजिब षब्द है। संविधान की प्रस्तावना की पड़ताल करें तो स्पश्ट है कि वर्श 1976 में 42वें संविधान संषोधन के तहत ‘पंथनिरपेक्ष‘ षब्द जोड़ा गया था। पंथनिरपेक्ष षब्द का कथित भाव यह है कि  भारत सरकार धर्म के मामले में तटस्थ रहेगी। देष का कोई धर्म नहीं है, यहां के नागरिकों को इच्छानुसार धार्मिक उपासना का अधिकार होगा। सर्वधर्म समभाव आदि इसके मूल में निहित है। प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षियों के इस आरोप को कि सरकार संविधान बदलना चाहती है को न केवल खारिज किया बल्कि उन्होंने एक तीर से दो निषाने भी साधे। एक ओर असहिश्णुता तो दूसरी ओर संविधान पर हो रहे चकल्लस को लेकर साफ किया कि ‘धर्म-इण्डिया फस्र्ट और धर्मग्रन्थ-संविधान‘ है तथा संविधान में बदलाव न करने वाली मंषा को भी जता कर  उन्होंने विरोधियों को कड़ा संदेष देने का काम किया। पहली बार इस सत्र में मोदी का नया रूप भी नजर आया। पहले की तरह न उनमें तंज, न तकरार, न ही जवाब में चुटकी लेनी अदावत थी। यदि था तो सिर्फ सद्भाव। भाशण के समापन में आपसी सहमति बनाने पर जोर दिया उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र सहमति से चलता है बहुमत और अल्पमत आखरी रास्ता है। इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से जीएसटी पर गतिरोध को दूर करने के लिए एक सद्भावनापूर्वक बैठक की। स्पश्ट है कि अब मोदी बेवजह की तकरार नहीं चाहते हैं और न ही पहले की तरह सत्र की दुर्दषा होने देना चाहते हैं। डेढ़ वर्श का कार्यकाल बिता चुके हैं जाहिर है काम को लेकर छटपटाहट बढ़ी होगी। वे भी जानते हैं कि यदि यह षीतकालीन सत्र भी मुख्य मुद्दे से भटक गया तो देष को जवाब देना भारी पड़ जायेगा।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502


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