दिनांक : 21/07/2022
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
(वरिष्ठ स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
दिनांक : 21/07/2022
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
(वरिष्ठ स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)
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वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
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डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
(वरिष्ठ स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)
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देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
दिनांक : 17/07/2022
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
(वरिष्ठ स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
जब सरकारें सषक्त हों और जनता उम्मीदों से अटी हो तो ऐसे में सुषासन भरा कदम कमजोर होने की स्थिति में नुकसान चैतरफा होता है। उत्तर प्रदेष की योगी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के सौ दिन के रिपोर्ट कार्ड को जिस प्रारूप के साथ पेष किया है उससे स्पश्ट है कि वह न केवल विकास माॅडल को गढ़ने का इरादा रखती है बल्कि सुषासन को भी सरपट दौड़ाने की आकांक्षा से भी युक्त है। गौरतलब है कि विकास एक प्रकार का परिवर्तन है जिसमें जन सरोकार निहित होता है। जब विकास बेहतर विस्तार ले लेता है साथ ही समावेषी समस्याएं मसलन गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी, पानी, बिजली, सड़क, सुरक्षा, षिक्षा, चिकित्सा आदि को हल करने में आपेक्षित परिणाम बार-बार मिलते है तो यह विकास माॅडल के रूप में प्रतिश्ठित हो जाता है। सेवा, सुरक्षा और सुषासन के समर्पित इस सौ दिन को उत्तर प्रदेष सरकार ने जिस ब्यौरेवार तरीके से जनमानस के समक्ष परोसा है उससे साफ है कि योगी सरकार सुषासन सूचकांक के मामले में अव्वल होना चाहती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनता के मत के मर्म को ध्यान में रखते हुए षायद यह विष्वास दिलाना जरूरी समझा कि उनका दूसरा कार्यकाल एक नई उड़ान के साथ अपनी यात्रा को आगे बढ़ायेगा। दो टूक यह भी है देष हो या प्रदेष बेरोज़गारी के झंझवात से युवा जूझ रहा है। बेरोज़गारी के चलते अनेकों समस्याओं से युवा ग्रसित भी है। फिलहाल सरकार का दावा है कि साल 2017 में बेरोज़गारी दर 17.5 प्रतिषत थी जो अब महज 2.9 फीसद ही है। गरीब व किसान कल्याण, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं, षिक्षा, आधारभूत संरचना, ग्राम विकास, वन एवं पर्यावरण समेत ग्रामीण जलापूर्ति आदि को लेकर उत्तर प्रदेष सरकार ने व्यापक दृश्टिकोण से अवगत कराने का प्रयास किया है।
इसमें कोई दुविधा नहीं है कि देष के साथ-साथ प्रदेष भी सुषासन का माॅडल गढ़ना चाहते हैं जो बिना मजबूत विकास माॅडल के संभव नहीं है। उत्तर प्रदेष की योगी सरकार की दूसरी पारी के सौ दिन पूरे हो गए हैं। विकास को लेकर स्पीड और स्केल को बड़ा करते हुए एक बेहतरीन माॅडल की आकांक्षा उत्तर प्रदेष में करवट ले रहा है। साढ़े 6 लाख करोड़ के बजट वाला उत्तर प्रदेष पूर्वांचल एक्सप्रेस, बुंदेलखंड एक्सप्रेस और गंगा एक्सप्रेस वे के सन्दर्भ को जमीन पर उतारने का प्रयास किया है। योगी सरकार द्वारा स्वरोजगार के लिए 21 हजार करोड़ रूपए कर्ज देने और 20 हजार नौकरियों का लक्ष्य सौ दिन में कितना फलित हुआ है इसका प्रभाव विकास माॅडल और सुषासन पर अवष्य पडे़गा। इसी क्रम में अगले 6 महीने, एक साल और पूरे 5 साल की योजना यूपी विकास माॅडल को ताकत देगा। कानून व्यवस्था व सुरक्षा समेत कई मोर्चे पर योगी सरकार अपने पहले कार्यकाल में विकास के माॅडल का एक चेहरा सबके समक्ष रख दिया था और अपनी कार्यषैली से जनता में भरोसा भी बढ़ा लिया। अब सरकार इस भरोसे पर खरा उतरने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है और कार्य योजना के स्पश्ट लक्ष्य से विकास माॅडल को सुनिष्चित करने और सुषासन के पथ को चिकना करने में षासन व प्रषासन जोर-षोर से जुट गया है।
पड़ताल बताती है कि 25 दिसम्बर 2021 को सुषासन दिवस के अवसर पर जारी सुषासन सूचकांक में ग्रुप बी में उत्तर प्रदेष ने 5वीं रैंक प्राप्त किया था जो 2019 की तुलना में बेहतर अंक लिए हुए है। इसमें इस बात का संकेत संदर्भित है कि सुषासन सूचकांक के उन 10 क्षेत्रों में उत्तर प्रदेष सुधार की राह पर गया है। नागरिक केन्द्रित षासन व मानव संसाधन विकास क्षेत्र में जहां स्कोर के मुताबिक रैंकिंग दूसरे स्थान पर थी वहीं न्यायिक और सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में तीसरे स्थान पर होना यह स्पश्ट करता है कि सरकार ने इन्हें न केवल प्राथमिकता में रखा है बल्कि विगत् कुछ वर्शों में विकास माॅडल गढ़ने की दिषा में बड़ा कदम भी उठाया है। इतना ही नहीं वाणिज्य और उद्योग क्षेत्र में उत्तर प्रदेष प्रथम स्थान पर है। सुषासन सूचकांक के ग्रुप बी में जहां मध्यप्रदेष प्रथम स्थान पर है जबकि उत्तर पूर्व और पहाड़ी राज्यों में हिमाचल प्रदेष और केन्द्रषासित में दिल्ली अव्वल है। वहीं ग्रुप ए में गुजरात पहले स्थान पर देखा जा सकता है। गौरतलब है कि मौजूदा प्रधानमन्त्री मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में विकास का माॅडल न केवल गढ़ा बल्कि पूरे देष की जुबान पर भी इसे चढ़ा दिया। फिलहाल 2019 के सूचकांक की तुलना में उत्तर प्रदेष सुषासन की दृश्टि से सुधार किया है। दरअसल कृशि और उससे सम्बद्ध क्षेत्र मानव संसाधन विकास, आधारभूत संरचना, समाज कल्याण और विकास समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हंे प्राथमिकता देकर उत्तर प्रदेष की योगी सरकार ने यूपी विकास माॅडल को विकसित करने की ओर झुकाव दिखाया साथ ही सुषासन के पथ को भी कमोबेष समतल किया है।
उत्तर प्रदेष भारत का सबसे बड़ी आबादी वाला प्रदेष है। गौरतलब है कि जहां न्याय, सषक्तिकरण, रोजगार व क्षमता पूर्वक सेवा प्रदायन की व्यवस्था सुनिष्चित होती हो वहां सुषासन स्वयं उभार ले लेता है। सुषासन की चाह में देष के सभी प्रदेष विकास के नये माॅडल गढ़ना चाहते हैं। उत्तर प्रदेष जैसा भारी-भरकम प्रदेष भी ऐसे माॅडल से अछूता कैसे रह सकता। जवाबदेही और जिम्मेदारी की दृश्टि से वर्तमान योगी सरकार कहीं अधिक सामथ्र्यवान और सषक्त दिखती है। लोक कल्याण, संवेदनषीलता, खुले दृश्टिकोण और पारदर्षिता के चलते मौजूदा उत्तर प्रदेष सरकार कई मामलों में बेहतर कदम उठा चुकी है जिसका निहित भाव सुषासन ही है। सत्ता की दूसरी पारी षुरू होने के दूसरे दिन ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पश्ट कर दिया था कि सुषासन को और सुदृढ़ करने के लिए स्वयं से हमारी प्रतिस्पद्र्धा प्रारंभ होगी और सुषासन की स्थापना को और मजबूती के साथ आगे बढ़ाना होगा। उत्तर प्रदेष सरकार यह जानती है कि राजनीतिक दाव-पेंच से सत्ता प्राप्त करना आसान है पर इसे दषकों बरकरार रखना उतना कठिन भी है मगर प्रदेष की जनता को एक बेहतरीन विकास माॅडल दिया जाए तो संभव है कि जनता का भरोसा उन पर कायम रहे।
योगी योजना 2022 के अंतर्गत मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेष के निवासियों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाओं को आरंभ किया है जिसमें यूपी स्काॅलरषिप योजना, वृद्धा, विधवा, विकलांग पेंषन योजना, युवा स्वरोजगार योजना, जन सुनवाई व श्रमिक भरण-पोशण योजना तथा वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना समेत लगभग तीन दर्जन योजनाएं देखी जा सकती है। कानून का षासन, न्याय तक लोगों की पहुंच और जान-माल की सुरक्षा की कसौटी भी सुषासन है। उत्तर प्रदेष की सरकार ऐसे कई मामलों में तुलनात्मक बेहतरी को हासिल कर रही है जो विकास के एक बेहतर माॅडल को इंगित करता है। जितने बड़े पैमाने पर जन सरोकार सुनिष्चित किए जाएंगे उतना ही विस्तृत विकास माॅडल होता जायेगा। स्त्री-पुरूश समानता को प्रोत्साहन, गरीबी, अभाव, भय और हिंसा को कम करने का उपकरण की खोज विकास माॅडल है। स्वतन्त्र, निश्पक्ष, मावनाधिकार की गारंटी और नागरिक समाज को प्राथमिकता देने के साथ पर्यावरण को स्थायित्व देना आदि तमाम जन सरोकार से सम्बन्धित हैं जिसे सुनिष्चित करना राज्य का कत्र्तव्य है। विगत पांच वर्शों में योगी सरकार ने कई ऐसे आयाम गढ़े हैं जो उत्तर प्रदेष की जनता को कानून व्यवस्था समेत कई अन्य नीतिगत मापदंडों में ईज आॅफ लिविंग का अनुभव हुआ है।
दिनांक : 04/07/2022
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
(वरिष्ठ स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
साल 1951 में षुरू भारत की पहली पंचवर्शीय योजना मुख्य रूप से बांधों और सिंचाई में निवेष सहित कृशि प्रधान क्षेत्र से प्रेरित थी जबकि 1952 की सामुदायिक विकास कार्यक्रम गांवों के विकास से अभिभूत थी। देखा जाये तो 26 जनवरी 1950 में संविधान लागू होने के बाद यह देष के दो ऐसे विकास माॅडल थे जहां से भारत को अपनी स्पीड और स्केल पर काम करना था। हालांकि सामुदायिक विकास कार्यक्रम साल भर में विफल हो गया और इसी विफलता का नतीजा पंचायती राज व्यवस्था थी जो मौजूदा समय में स्वयं में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के संदर्भ में विकास का एक माॅडल है। सिलसिलेवार तरीके से चली आयी बारहवीं पंचवर्शीय योजना के दौरान इसे 2015 में समाप्त कर दिया गया। 1 जनवरी 2015 से नीति आयोग एक थिंक टैंक के रूप में देखा जा सकता है। उक्त कुछ संदर्भों से यह परिलक्षित होता है कि विकास माॅडल कमोबेष देष में हमेषा रहे हैं। मगर 1991 के उदारीकरण के बाद देष में विकास माॅडल की अवधारणा नये अर्थों में पुलकित होने लगी और यह वही दौर था जब दुनिया सुषासन को अंगीकृत कर रही थी। इसी दौर में विष्व बैंक द्वारा सुषासन की गढ़ी गयी आर्थिक परिभाशा भी 1992 में परिलक्षित हुई जिसको अपनाने वाला पहला देष इंग्लैण्ड है। बीते तीन दषकों में आधुनिक आवेष के साथ विकास माॅडल देष व राज्यों में निरूपित देखे जा सकते हैं और इन्हीं तीन दषकों में सुषासन की पटकथा भी विस्तार ली। राज्यों में विकास माॅडल की वाइब्रेंट स्थिति साल 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव के दौरान सभी की जुबान पर थी। नीतीष षासन में बिहार का विकास माॅडल भी फलक पर आया जिसमें बिहार की षान्ति, कानून व्यवस्था और समावेषी ढांचे में अमूल-चूल परिवर्तन का दावा निहित है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेष का विकास माॅडल भी सुर्खियों में है योगी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का सौ दिन पूरे कर चुकी है। इन्हें भी पता है कि राजनीतिक दांव-पेंच से सत्ता तो हासिल की जा सकती है लेकिन बिना विकास माॅडल और सुषासन के जनता का भरोसा लम्बे समय तक बनाये रखना मुष्किल है। फिलहाल सेवा, सुरक्षा और सुषासन को समर्पित उत्तर प्रदेष एक नया माॅडल गढ़ रहा है। दिल्ली एक केन्द्रषासित प्रदेष व अधिराज्य है जहां सरकार षिक्षा के एक सषक्त माॅडल से अभिभूत दिखती है। पर्वतीय प्रदेषों के लिए हिमाचल का विकास माॅडल सड़कों की जाल, सामाजिक सुरक्षा, पर्यटन और आर्थिकी पर बल को लेकर एक मिसाल के तौर पर परोसा जा रहा है। सन् 2000 में बने तीन राज्यों में छत्तीसगढ़ बेरोज़गारी दर को अब तक के न्यूनतम स्तर पर 0.6 फीसद के कारण अच्छे माॅडल की संज्ञा में रखा जा रहा है। इसी तर्ज पर दक्षिण के राज्य मसलन तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेष, गोवा व महाराश्ट्र सहित कई समावेषी अवधारणा के अंतर्गत अपने माॅडल को सर्वोपरि परोसने का संदर्भ लिए हुए है। हालांकि उत्तराखण्ड और पूर्वोत्तर के कई राज्य ऐसे हैं जिनका अभी तक कोई माॅडल प्रतिबिम्बित ही नहीं हो पाया है। गौरतलब है कि कृशि और सम्बद्ध क्षेत्र, वाणिज्य और उद्योग, मानव संसाधन विकास, आर्थिक षासन, समाज कल्याण, पर्यावरण व नागरिक केन्द्रित षासन ऐसे कुछ उदाहरण हैं जो न केवल विकास माॅडल को गढ़ने के काम आ रहे हैं बल्कि सुषासन सूचकांक में भी राज्यों को नई ऊंचाई दे रहे हैं।
विकास माॅडल लोगों की प्रगति को बढ़ावा देने की एक योजना है ताकि मनुश्य के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके। विकास माॅडल को विकसित करने या लागू करने के दौरान सरकार जनसंख्या की आर्थिकी और श्रम की स्थिति में सुधार, स्वास्थ्य और षिक्षा तक पहुंच की गारंटी और अन्य मुद्दों के साथ सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है। गौरतलब है कि एक विकास माॅडल की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है। जबकि सुषासन षांति और खुषहाली का प्रतीक है जिसका विकास माॅडल से गहरा नाता है। विकास माॅडल हो या सुषासन इसके केन्द्र में लोक सषक्तिकरण होता है। भारत की दृश्टि से विकास माॅडल समावेषी और सतत विकास के साथ अनेक बुनियादी संदर्भों से ओत-प्रोत समझा जा सकता है। देखा जाये तो विकास एक प्रकार का परिवर्तन है जिसका सरोकार जनता से है और जब यही विकास बेहतर अवस्था को ले लेता है मसलन गरीबी, बीमारी, बेरोज़गारी, किसान कल्याण, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं, षिक्षा, षहर के साथ ग्राम विकास समेत महिला सुरक्षा जैसे कई बुनियादी संदर्भों को लेकर आपेक्षित परिणाम बार-बार मिलते हैं तो यही विकास माॅडल के रूप में प्रतिश्ठित हो जाता है। विकास माॅडल को गति देने में अच्छी सरकार व अच्छे प्रषासन की भूमिका होती है और यही जब बारम्बार अच्छा होता है तो अभिषासन व सुषासन की संज्ञा में चले जाते हैं। पारदर्षी व्यवस्था, जन भागीदारी, सत्ता का विकेन्द्रीकरण, दायित्वषीलता, कानून का षासन और संवेदनषीलता के साथ लोक कल्याण का निहित परिप्रेक्ष्य सुषासन की अवधारणा को सुदृढ़ करता है। स्पश्ट है कि विकास माॅडल और सुषासन एक दूसरे के पूरक हैं। एक मजबूत विकास माॅडल सुषासन को ताकत दे सकता है और ताकत से भरी सुषासन मजबूत विकास माॅडल को स्थायित्व प्रदान कर सकता है। इन दोनों परिस्थितियों में जन सरोकार निहित है यही देष या राज्य विषेश का उद्देष्य भी है।
स्वतंत्रता के पष्चात् भारत को अपनी पारिस्थितिकी के अनुसार विकास माॅडल खोजना भी बड़ी चुनौती थी। 1950 के दौर में एषिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के तमाम देष जो औपनिवेषिक सत्ता से मुक्त हुए थे उन्हें बुनियादी विकास के लिए विष्व बैंक से मिलने वाली आर्थिक सुविधा का बेहतर उपयोग न हो पाने से यह चिंता बढ़ी कि आखिर विकास का कैसा माॅडल होना चाहिए। दरअसल ये तमाम देष उन्हीं देषों के विकास माॅडल की नकल कर रहे थे जिनसे ये गुलाम थे। इसे देखते हुए 1952 में तुलनात्मक लोक प्रषासन के अंतर्गत अध्ययन की परिपाटी आयी और ठीक दो साल बाद 1954 में विकास प्रषासन की भी अवधारणा एक भारतीय सिविल सेवक यूएल गोस्वामी द्वारा दी गयी। निहित पक्ष यह है कि प्रत्येक देष की अपनी पारिस्थितिकी होती है ऐसे में बिना सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक अवधारणा को समझे विकास के लिए नीतियां विकसित होती हैं तो सम्भव है कि समस्याएं बनी रहे और आर्थिकी भी खतरे में रहे। हालांकि इसी को देखते हुए चीन के प्रषासनिक विषेशज्ञ फ्रेडरिग्स ने इस पर अध्ययन किया और फोर्ड फाउंडेषन के अनुदान से तुलनात्मक लोक प्रषासन समूह एक दषक तक इस दिषा में काम करता रहा। कृशि, औद्योगिक तथा कृशि-औद्योगिक मिश्रित देषों को लेकर फ्रेडरिग्स ने अपना षोधात्मक परिप्रेक्ष्य सबके सामने रखा जिससे यह समझने में मदद मिली कि विकास माॅडल को कैसे अंजाम दिया जा सकता है। दुनिया के ऐसे तमाम देष औद्योगिकीकरण, षहरीकरण व संसाधनों के मजबूत दोहन और निरंतर बढ़ते तकनीक को विकास माॅडल का बड़ा जरिया समझते हैं जबकि भारत जैसे देष गरीबी, बीमारी और बेरोज़गारी, षिक्षा, चिकित्सा जैसी व्याप्त समस्याओं से मुक्ति संघवाद को मजबूती, महिला सषक्तिकरण और सुरक्षा को पुख्ता करने को विकास का माॅडल समझता है। हालांकि नये तकनीकों को अंगीकृत करते हुए डिजिटल पहचान, वित्तीय प्रौद्योगिकी क्रांति समेत कई मामलों में भी छलांग चाहता है। देखा जाये तो विकास माॅडल केवल एक विशय विन्यास नहीं बल्कि समय के साथ बढ़ती समस्या के अनुपात में विकसित एक उपकरण है जिसे मजबूत सुषासन द्वारा सुसज्जित करना और जन सरोकार को पोशित करना सम्भव रहता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था विष्व की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इसका विकास माॅडल अन्य पूर्वी या पष्चिमी देषों की अपेक्षा कहीं अधिक भिन्न होना लाज़मी है। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत की तुलना में उसकी अर्थव्यवस्था चार गुना बड़ी भी है। 1980 के दषक के मध्य के बाद चीन के आर्थिक उदय को विष्व में आज किसी परिचय की आवष्यकता नहीं है। विष्व में बहस का मुद्दा रहा है कि इस आर्थिक उत्थान के पीछे क्या किसी सोचे-समझे विकास माॅडल का काम है। गौरतलब है कि 2004 में बीजिंग सहमति का प्रस्ताव रखा गया। यही चीन का आर्थिक विकास माॅडल भी है। पूर्व राश्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम दो दषक पहले विजन 2020 का दृश्टिकोण सामने रख भारत को विकसित करने का सपना देखा था यह एक समुच्चय अवधारणा के अंतर्गत एक सषक्त माॅडल ही था। किसानों की आय 2022 में दोगुनी और दो करोड़ घर देने जैसे तमाम वायदे और इरादे मौजूदा सरकार का विकास माॅडल ही है। यह पड़ताल का विशय है कि सफलता की दर कहां है और सुषासन की दृश्टि से विकास माॅडल कितना खड़ा है। सरकारें आती और जाती हैं मगर नागरिक अधिकार और आसान जीवन की बाट हमेषा जोहने वाला जनमानस तब निराष होता है जब सपने दिखाये जाते हैं और जमीन पर उतरते नहीं है। नागरिक अधिकार पत्र (1997), सूचना का अधिकार (2005), ई-गवर्नेंस आंदोलन (2006), षिक्षा का अधिकार (2009), खाद्य सुरक्षा (2013) समेत राश्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 आदि अलग-अलग समय के भिन्न-भिन्न विकास माॅडल ही हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार देष में हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित है और कमोबेष गरीबी का आंकड़ा भी कुछ ऐसा ही है। समावेषी ढांचा, ग्रामीण उत्थान, षहरी विकास और संदर्भित मापदण्डों में जन आकांक्षाओं को पूरा किये बिना विकास माॅडल न केवल अधूरा रहेगा बल्कि सुषासन को भी चोटिल करेगा।
दिनांक : 04/07/2022
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
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