Thursday, July 28, 2022

डिजिटल गवर्नेंस के समक्ष चुनौतियां


प्रौद्योगिकी मानवता के लिए बड़ी धरोहर और सम्पदा है। जब देष में डिजिटल गवर्नेंस की बात होती है तो नये प्रारूप और एकल खिड़की संस्कृति मुखर हो जाती है। नागरिक केन्द्रित व्यवस्था के लिए सुषासन प्राप्त करना एक लम्बे समय की दरकार रही है। ऐसे में डिजिटल गवर्नेंस इसका बहुत बड़ा आधार है। यह एक ऐसा क्षेत्र है और एक ऐसा साधन भी है जिसके चलते नौकरषाही तंत्र का समुचित प्रयोग करके व्याप्त कठिनाईयों को समाप्त किया जा सकता है। देखा जाये तो नागरिकों को सरकारी सेवाओं की आपूर्ति, प्रषासन में पारदर्षिता की वृद्धि के साथ व्यापक नागरिक भागीदारी के मामले में डिजिटल गवर्नेंस कहीं अधिक प्रासंगिक है। डिजिटल गवर्नेंस स्मार्ट और ई-सरकार का ताना-बाना भी है। प्रौद्योगिकी वही अच्छी जो जीवन आसान करती हो, जनोपयोगी नीतिगत अर्थव्यवस्था को सुनिष्चित करती हो और संतुलन कायम रखने में कमतर न हो। दो टूक यह कि डिजिटल सेवाएं अपेक्षाकृत कम जटिल तथा अधिक प्रभावी तो हैं। मगर डिजिटल गवर्नेंस की सफलता के लिए मजबूत डिजिटल आधारभूत संरचना तैयार करना आवष्यक है। सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-गवर्नेंस कहलाता है जबकि न्यूनतम सरकार और अधिकतम षासन, प्रषासन में नैतिकता, जवाबदेहिता, उत्तरदायित्व की भावना व पारदर्षिता स्मार्ट सरकार के गुण हैं जिसकी पूर्ति डिजिटल गवर्नेंस के बगैर सम्भव नहीं है। पड़ताल बताती है कि डिजिटल गवर्नेंस की रूपरेखा 5 दषक पुरानी है। हालांकि उस दौर में गवर्नेंस डिजिटल तो नहीं था मगर इलेक्ट्रॉनिक विधा के अन्तर्गत आधारभूत व्यवस्था को सुसज्जित करने का प्रयास हो रहा था। गौरतलब है कि इलेक्ट्रॉनिक विभाग की स्थापना 1970 में हुई थी जबकि 1977 में राश्ट्रीय सूचना केन्द्र के साथ ई-षासन की दिषा में उठा कदम था। ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने की दिषा में 1987 में लांच राश्ट्रीय उपग्रह आधारित कम्प्यूटर नेटवर्क (एनआईसीएनईटी) एक क्रांतिकारी कदम था जिसका मुखर पक्ष 1991 के उदारीकरण के बाद देखने को मिलता है। साल 2006 में राश्ट्रीय ई-षासन योजना के प्रकटीकरण के बाद डिजिटल गवर्नेंस का स्वरूप व्यापक रूप में सामने आया और इसी कड़ी में 1 जनवरी 2015 को डिजिटल इण्डिया को जमीन पर उतार कर आम जन जीवन को सूचना तकनीक के माध्यम से बेहतर बनाने का जो प्रयास किया गया इससे देष डिजिटलीकरण की ओर तेजी से प्रवाहषील हुआ।

डिजिटल गवर्नेंस के तीन मुख्य क्षेत्रों में प्रत्येक नागरिक की सुविधा के लिए बुनियादी ढांचा, षासन व मांग आधारित सेवाएं तथा नागरिकों का डिजिटल सषक्तिकरण षामिल है। डिजिटल गवर्नेंस षासन में दक्षता को बढ़ाता है जबकि एक स्तम्भ के रूप में इसमें लोग, प्रक्रिया, प्रौद्योगिकी व संसाधन षुमार होते हैं। गौरतलब है कि डिजिटल इण्डिया भारत को डिजिटल रूप से सषक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने के उद्देष्य से षुरू किया गया है जिसके चलते जनता और सरकार के बीच स्वस्थ एवं पारदर्षी संवाद को मजबूती मिलने के साथ ही व्यवसाय और नये अवसरों का सृजन षामिल था। देष साल 2022 को आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। 26 जनवरी 1950 में संविधान लागू होने की तिथि से ही भारत में सुषासन की बयार बहने लगी। पंचवर्शीय योजनाओं एवं अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से जन सषक्तिकरण के तमाम आयामों को धरातल पर उतारने का प्रयास होने लगा। विदित हो कि सुषासन लोक सषक्तिकरण का पर्याय है जबकि सरकारी योजनायें 7 दषक से ऐसी ही सषक्तिकरण की खोज में है। डिजिटल गवर्नेंस इस दिषा में एक ऐसा उपकरण है जो योजनाओं को पारदर्षी तरीके से जनता तक परोसती है। भारत की पृश्ठभूमि में झांका जाये तो लगभग 7 दषकों में विभिन्न आयोगों ने सुषासन तथा लोक संसाधनों के बेहतर प्रषासनिक प्रबंधन के बारे में अनुषंसायें दी हैं जो डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से कहीं अधिक ताकत के साथ और अधिक उपयोगी सिद्ध हो रहा है। प्रषासनिक सुधारों, वेतन, श्रम व लोक क्षेत्र के बारे में अमेरिकी प्रषासनिक चिंतक पॉल एच एपल्बी की रिपोर्ट (1953 एवं 1956) षासन को सषक्त करने के कई उपाय सुझाती है जिसमें संगठन एवं प्रबंधन (ओ एण्ड एम) के लिए रास्ता सुझाता है। इतना ही नहीं लोक सेवकों को बेहतर रूप देने के लिए दिल्ली में भारतीय लोक प्रषासन संस्थान की स्थापना का भी सुझाव इसमें षामिल था। प्रथम प्रषासनिक सुधार आयोग (1966-70) ने सचिव स्तर से लेकर वित्तीय एवं योजना व विकेन्द्रीकरण तक कई सुधार प्रस्तावित किये। जबकि 1964 की के. संथानम रिपोर्ट के आधार पर भारतीय सतर्कता आयोग का गठन भ्रश्टाचार से निपटने के एक उपाय के रूप में परिलक्षित हुआ जो मौजूदा समय में डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से और मजबूती से समाप्त करने का प्रयास है। भ्रश्टाचार और पारदर्षिता एक दूसरे के विपरीत षब्द है डिजिटल गवर्नेंस पारदर्षिता को प्राप्त करने का एक अच्छा माध्यम है।
भारत में डिजिटल गवर्नेंस के समक्ष चुनौतियां अनेकों हैं। दुनिया में जनसंख्या के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देष भारत के सामने केवल तकनीकी चुनौती ही नहीं हैं बल्कि संगठनात्मक और संस्थात्मक के अलावा समावेषी विकास को प्राप्त करने और सतत विकास को बनाये रखने का संघर्श प्रतिदिन रहता है। गौरतलब है कि डिजिटल गवर्नेंस हेतु किये जाने वाले उपाय महंगे होते हैं और इनकी अवसंरचना में बिजली, इंटरनेट, डिजिटल उपकरण आदि बुनियादी सुविधाओं का यदि आभाव बना रहता है तो चुनौतियां बरकरार रहेंगी। सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-गवर्नेंस कहलाता है। किसानों के खाते में सम्मान निधि का हस्तांतरण डिजिटल गवर्नेंस का ही एक उदाहरण है। ई-लर्निंग, ई-बैंकिंग, ई-टिकटिंग, ई-सुविधा, ई-अस्पताल, ई-याचिका और ई-अदालत समेत कई ऐसे ई देखे जा सकते हैं जो षासन को सुषासन की ओर ले जाते हैं। देष में साढ़े छः लाख गांव और ढ़ाई लाख पंचायतें हैं जहां बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी एक आम समस्या कमोबेष लिए हुए है। नवम्बर 2021 तक पूरे देष में मोबाइल ग्राहकों की संख्या लगभग 120 करोड़ थी। साल 2025 तक भारत में 90 करोड़ इंटरनेट उपयोग करने वाले हो जायेंगे जबकि वर्तमान में यह आंकड़ा लगभग 65 करोड के आसपास है। देष की ढ़ाई लाख पंचायतों में कई अभी इंटरनेट कनेक्टिविटी से दूर हैं। हालांकि अगस्त 2021 तक सभी ग्राम पंचायतों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन एक सच यह भी है कि अब से दो साल पहले पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, सिक्किम, नागालैण्ड, आन्ध्र प्रदेष आदि राज्यों में एक भी गांवों में वाईफाई काम नहीं कर रहा था। पड़ताल बताती है कि फरवरी 2020 में लगभग डेढ़ लाख ग्राम पंचायतों में केबल बिछा दी गयी इनमें से 45 हजार में वाईफाई हॉटस्पॉट लगाये गये मगर मात्र 18 हजार ग्राम पंचायतों में ही वाईफाई हॉटस्पॉट चलने की सूचना थी। मौलिक सवाल यह है कि षहर हो या गांव डिजिटल गवर्नेंस की सभी को आवष्यकता है और यह इंटरनेट पर निर्भर है। जबकि इससे जुड़े उपकरण बिजली के बगैर सम्भव नहीं है ऐसे में चुनौती चौतरफा है।
मौजूदा समय में डिजिटलीकरण को किसी भी सफल अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों की साझा कड़ी होनी चाहिए। विमुद्रीकरण के बाद से ही सरकार द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है इस क्रम में डिजिटल इण्डिया, ई-गवर्नेंस जैसे मिषन में तेजी लायी जा रही है। साल 2024 तक भारत पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। डिजिटलीकरण की चुनौतियां जैसे-जैसे घटेंगी अर्थव्यवस्था वैसे-वैसी सघन होगी। भारत डिजिटल सेवा क्षेत्र में बढ़ रहे प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के लिए एक आदर्ष गंतव्य भी है। इसकी सबसे बड़ी वजह यहां की जनसंख्या है जिसमें स्टार्टअप की भरपूर सम्भावनायें हैं। विगत कुछ वर्शों में निजी और सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप प्रदान किया गया। मगर भारत में गरीबी और अषिक्षा का आंकड़ा डिजिटल निरक्षर बनाये रखने में एक बड़ा कारण है। गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हर पांचवां गरीबी रेखा के नीचे है जबकि हर चौथा नागरिक अषिक्षित है। समझने वाली बात यह भी है कि किसी के पास मोबाइल होना डिजिटल होने का प्रमाण नहीं है। जब तक कि उसके पास इंटरनेट कनेक्टिविटी आदि की सुविधा व जानकारी न हो। एसोचैम की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि नीतियों में अस्पश्टता व ढांचागत कठिनाईयों के चलते महत्वाकांक्षी डिजिटल परियोजना का सफल कार्यान्वयन सुनिष्चित करने के मामले में अनेकों चुनौतियां हैं जिसमें एक बार-बार नेटवर्क कनेक्टिविटी का टूट जाना है। ध्यानतव्य हो कि जून 2021 में भारत सरकार के आयकर विभाग ने अपनी वेबसाइट का प्रारूप बदला था और ग्राहकों को दिये गये समय सीमा के कई दिनों तक वेबसाइट काम नहीं कर पा रही थी और इस तकनीकी गड़बड़ी के चलते काम काज प्रभावित हो रहे थे। अनुमान तो यह भी है कि बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए भारत को 80 लाख से अधिक वाई फाई हॉटस्पॉट की जरूरत है। भारत का मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी कानून साइबर अपराधों को रोकने के लिहाज से बहुत प्रभावी नहीं माना जाता। एटीएम कार्ड की क्लोनिंग, बैंक अकाउंट का हैक हो जाना आदि षिकायतों में तेजी से बाढ़ आयी है। बरसों पहले यह संदर्भित हुआ था कि भारत में जैसे-जैसे डिजिटलीकरण बढ़ता जायेगा वैसे-वैसे डिजिटल एक्सपर्ट की संख्या भी बढ़ानी होगी और यह पांच लाख के आसपास हो सकती है। हालांकि राश्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिषन की षुरूआत वर्श 2020 तक भारत के प्रत्येक घर में कम से कम एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाने की की गयी है। फिलहाल डिजिटल गवर्नेंस जिस पैमाने पर सहज दिखता है उसे बनाये रखना उतना ही चुनौतीपूर्ण भी है। भारत अब दुनिया में प्रौद्योगिकी के साथ सहजता से जुड़ी सबसे बड़ी आबादी वाला देष है। मगर इसमें व्याप्त चुनौतियों को समाप्त किये बिना सुषासन की राह को पूरी तरह समतल करना सम्भव नहीं होगा।

दिनांक : 21/07/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

भूमण्डलीकरण और सुशासन

सवाल यह नहीं कि भूमण्डलीकरण ने पूरी दुनिया में षासन को रूपांतरित किया है या नहीं। बल्कि सवाल यह है कि इस रूपांतरण की प्रकृति और मात्रा क्या है साथ ही दुनिया के देष सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव के बीच सुषासन को कितना मजबूती दे पाये हैं। गौरतलब है कि भूमण्डलीकरण और सुषासन का गहरा नाता है। भूमण्डलीकरण का एक लक्षण यह भी है कि एक घटनाक्रम सारे संसार को प्रभावित करता है। सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो देष की आंतरिक नीतियों के साथ बाह्य घटनाओं से भी प्रभावित होती हैं। ऐसे में देष विषेश को रणनीतिक तौर पर सुषासनिक बदलाव लाना लाज़मी हो जाता है। मौजूदा दौर विष्व युद्ध का नहीं है मगर रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग वैचारिक रूप से दुनिया को कई ध्रुवों में बांट दिया है जिसके असर से षायद ही कोई देष वंचित हो। आर्थिक सम्बंध जो राजनीतिक वातावरण के कारण विस्तृत होते हैं वे तब घाटे का सामना करने लगते हैं जब दुनिया के देष नकारात्मक हलचलों में फंस जाते हैं मसलन श्रीलंका की आर्थिकी का जर्जर होना जिसका सीधा प्रभाव भारत पर देखा जा सकता है। यहां केवल कूटनीतिक संतुलन ही नहीं बल्कि चीन के चंगुल से श्रीलंका कैसे बच पाये उसके लिए भी भारत को अरबों रूपए राहत के लिए देना पड़ता है। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के सिलसिले ने दुनिया को एक नई सोच की ओर धकेल दिया है। आंकड़े यह बताते हैं कि वैष्विक आर्थिक गतिविधियां इस युद्ध के चलते कईयों के लिए बड़ा संकट पैदा कर चुकी हैं। विदित हो कि भारत में काला सागर से आने वाली वस्तुएं भी इस युद्ध से प्रभावित हुई और कुछ लिहाज से महंगाई व अन्य कठिनाइयों का सामना भी इसमें निहित है। जनवरी से मौजूदा समय में जहां रूस की मुद्रा रूबल 37 फीसद बढ़त ले चुकी है वहीं डॉलर रूपए के मुकाबले काफी मजबूत हुआ है हालांकि अमेरिका इन दिनों महंगाई का सामना कर रहा है और उसकी मुद्रास्फीति 9 फीसद से ऊपर चल रही है। इन सबका असर भी भारत समेत दुनिया के तमाम देषों पर पड़ रहा है। देखा जाये तो मौजूदा समय में कई देषों की मुद्राएं निरंतर गिरावट लिए हुए हैं। जिसमें सबसे ज्याद असर जापान की मुद्रा येन है। इंग्लैण्ड 11 फीसद, चीन 5 फीसद से थोड़ा अधिक और भारत भी 7 फीसद की गिरावट लिए हुए है। जाहिर है इसके चलते बाहर से आने वाली तमाम वस्तुएं पर अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। इससे न केवल विदेषी मुद्रा के घटाव में तेजी आती है बल्कि सुषासन की दृश्टि से चुनौती भी बढ़ जाती है।

चीन और अमेरिका के बीच के ट्रेड वॉर बरसों पुराना एक ऐसा झगड़ा है जो आर्थिक रूप से दोनों के लिए अभी भी चुनौती है। कोरोना काल में भारत ने भी चीन से कई प्रारूपों के व्यापार को न केवल रोका था बल्कि उसके 250 से अधिक एप्पस को प्रतिबंधित भी किया था। सीमा विवाद को लेकर दोनों के बीच जहां द्विपक्षीय समस्याएं आज भी कायम हैं वहीं अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत से युक्त वैष्विक संस्था क्वॉड से दक्षिण चीन सागर में चीन के एकाधिकार को चुनौती और हिन्द महासागर में संतुलन प्राप्त करने का प्रयास जारी है। जलवायु व ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को भूमण्डलीकरण की दृश्टि से देखें तो स्थायी समस्या का रूप ले चुकी है नतीजन बार-बार हल खोजने की कोषिष के बावजूद समस्याएं मुखर हैं। इंग्लैण्ड इन दिनों 40 डिग्री सेल्सियस तापमान से जूझ रहा है तो वहीं कई यूरोपीय देष के जंगलों में आग लगी हुई है। अमेरिका के हवाई द्वीप में तो समुद्री तूफान जिस कदर ताण्डव किया है वह कहीं न कहीं ग्लोबल वार्मिंग का पूरा प्रभाव दर्षाता है। इतना ही नहीं आतंकवाद भी वैष्विक जगत के लिए उतनी ही बड़ी समस्या के रूप में आज भी कायम है। इससे निपटने के लिए भी वैष्विक मंचों पर दुनिया के देष सुषासनिक दृश्टिकोण गढ़ने हुए देखे जा सकते हैं। दो टूक यह भी है कि समस्या भले ही किसी देष विषेश में व्याप्त हो मगर उसके असर से कई चपेट में रहते हैं। उद्योग, व्यापार, आयात-निर्यात, विज्ञान तकनीक, रोज़गार की अनिष्चितता, गरीबी उन्मूलन की कवायद समेत कृशि आदि तमाम संदर्भों का लेना-देना भूमण्डलीकरण से ही है।
आमतौर पर भूमण्डलीकरण का सम्बंध वस्तुओं एवं सेवाओं, आर्थिक उत्पादों, सूचनाओं और संस्कृति से होता है जो कि अधिक चलायमान होते हैं साथ ही दुनिया में जिनके ज्यादा मुक्त रूप से फैलने की सम्भावना होती है। जबकि सुषासन का परिप्रेक्ष्य ईज़ ऑफ लीविंग, षान्ति, खुषहाली और लोक सषक्तिकरण के बढ़ावा देने से सम्बंधित है जिसका समुचित परिप्रेक्ष्य लोक कल्याण, संवेदनषीलता, पारदर्षिता और खुले दृश्टिकोण से युक्त है। अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश तथा विष्व बैंक के दबाव में साल 1991 में जो स्थायित्व और संरचनात्मक समायोजन देष के सामने प्रकट हुआ तो उसने उदारीकरण, निजीकरण तथा वैष्वीकरण के पथ को चिकना किया। विष्व बैंक की सुषासन पर गढ़ी गयी आर्थिक परिभाशा इसी दौर में नई करवट ली और ब्रिटेन जो मौजूदा समय में राजनीतिक उतार-चढ़ाव से गुजर रहा है वहां 1992 में पहली बार सुषासन की नई लकीर खींची गयी। जबकि नव लोक प्रबंध को अपनाने वाला पहला देष न्यूजीलैंड है। नव लोक प्रबंध सुषासन की राह में एक ऐसी व्यवस्था है जो डी-रेगुलेषन, डी-लाइसेंसिंग, डी-सब्सिडाइजेषन तथा डी-सेंटलाइजेषन पर जोर देता है। सरोकार की दृश्टि से देखें तो सुषासन और नव लोक प्रबंध का गहरा नाता है जो उपभोक्ताओं की सेवा, बाजार मूल्यन, प्रतियोगिता और विकल्प का विस्तार साथ ही समुदायों का सषक्तिकरण इसमें निहित है। जबकि भूमडलीकरण ने पूरी दुनिया में षासन को रूपांतरित किया है। देष और हालात की स्थिति में इसका असर कम-ज्यादा सभी पर हुआ है और आज भी यह निरंतर जारी है।
फिलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था भूमण्डलीकरण के तीन दषक पूरे कर चुकी है मगर इस समय अर्थव्यवस्था दोहरे संकट से जूझ रही है। एक ओर जहां कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था कमजोर हुई वहीं महंगाई और तेजी से गिरते रूपए में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम और मुष्किल कर दिया है। हालांकि इन सभी के पीछे भूमण्डलीकरण का प्रभाव कमोबेष है बावजूद इसके सुषासन के उन मापदण्डों को जो जनता की राहत से सम्बंधित है पर कदम उठाना भी सरकार की ड्यूटी है। निहित पक्ष यह भी है कि आंतरिक सुषासन कितना भी सषक्त क्यों न हो भूमण्डलीकरण के चलते उत्पन्न समस्याएं यदि समय रहते समाधान न प्राप्त करें तो संकट लम्बे समय तक बरकरार रहते हैं।

दिनांक : 21/07/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

विदेशी कर्ज कहीं आर्थिक उपनिवेशवाद तो नहीं!

वैसे उपनिवेशवाद के कई प्रारूप हैं जिसमें कंपनी, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष समेत उपनिवेषी अवधारणा को देखा जा सकता है। इसी के भीतर राजनैतिक और आर्थिक उपनिवेषवाद की धारणा भी कहीं ना कहीं सन्निहित रहती है। बेलगाम विदेषी कर्ज देष को आर्थिक उपनिवेषवाद की ओर ढ़केलने के साथ-साथ उसकी सम्प्रभुता को भी चोटिल कर सकती है? फिलहाल श्रीलंका में जो कोहराम व अराजकता इन दिनों पूरी दुनिया ने देखी उसे देखते हुए कर्ज लेकर विकास करने की नीति पर एक बार फिर से सोचने का समय आ गया है। सतर्क तो सभी को रहने की आवष्यकता है क्योंकि आर्थिक चर्मोत्कर्श की फिराक में कब कोई कहां ढेर हो जाये इसका अनुमान बहुत कम ही लोग लगा पाते हैं। श्रीलंका की नेस्तोनाबूत होने वाली आर्थिक स्थिति को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि कर्ज वह जाल है जो मजबूत सपनों से जकड़ी जरूर होती है मगर जब पानी सिर के ऊपर हो जाये तो यह तिनका-तिनका बहा ले जाती है। कभी विकासषील देषों के लिए रोल मॉडल रहने वाली अर्थव्यवस्था कैसे तबाह होती है इसका भी मंजर हिन्द महासागर के इस टापू में देखा जा सकता है। सवा दो करोड़ जनसंख्या वाला श्रीलंका 51 अरब डॉलर के कर्ज के तले दबा है और जिसका ब्याज भी नहीं दे पा रहा है। इसमें कर्ज देने में सर्वाधिक मेहरबानी चीन की है। इसके अलावा जापान, एषियन डवलेपमेंट बैंक और अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों का भी कर्ज षामिल है। दक्षिण एषियाई देषों को कर्ज के जाल में फंसा कर चीन अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम देने का अच्छा खासा रास्ता पहले ही अख्तियार कर चुका है और अब तो इसकी यह नीति भी विस्तार ले चुकी है। पड़ताल बताती है कम्बोडिया, लाओस, म्यांमार नेपाल और मालदीव जैसे देष चीन के कर्ज के बोझ तले बाकायदा दबे हैं। श्रीलंका के हश्र को देखते हुए दो प्रष्न मानस पटल पर उभरते हैं पहला क्या चीन अपना कर्ज माफ कर श्रीलंका को राहत देगा और दूसरा क्या श्रीलंका इससे आगे की तबाही के लिए तैयार रहे? इसमें कोई दो राय नहीं कि आने वाले दिनों में कर्ज से विकास का मॉडल दुनिया के लिए गैर आकर्शण का विशय जरूर बनेगा। जाहिर है कर्ज लेकर घी पीने से बेहतर अपनी यांत्रिक चेतना और अर्थव्यवस्था के अनुपात में ही विकास षोभा देता है।

गौरतलब है कि राजपक्षे का घराना चीन परस्त रहा है। महिन्द्रा राजपक्षे अपने दूसरे राश्ट्रपति के कार्यकाल 2010 से 2015 के बीच चीन की तरफ बड़ा झुकाव दिखाया। तब चीन से 5 अरब डॉलर से ज्यादा कर्ज लिया। ये कर्ज हवाई अड्डा, राजमार्ग आदि के निर्माण और दूसरी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए लिया गया था। इतना ही नहीं चीन हथियारों की बिक्री के मामले में भी श्रीलंका को चपेट में लिया। बेल्ट एण्ड रोड़ इनिषिएटिव परियोजना पर श्रीलंका में लगभग डेढ़ अरब डॉलर का निवेष किया। गोटबाया के समय में तो नीतियों ने नई-नई करवट लेना षुरू किया जिसका नतीजा सबके सामने है। फिलहाल राश्ट्रपति गोटबाया वाया मालद्वीव सिंगापुर में षरण ले चुके हैं और वहीं से इस्तीफा भेज चुके हैं। जबकि श्रीलंका आर्थिक आंधी में पूरी तरह घिरा हुआ है। विदेषी मुद्रा भण्डार का निरंतर गिरना और मुद्रा स्फीति का सिर चढ़ कर बोलना साथ ही कर्ज के ढ़ेर का बने रहना यह किसी भी देष को आर्थिक रूप से खत्म कर सकता है। श्रीलंका क्यों नहीं संभला यह गम्भीर षोध का विशय है मगर पिछले 6 महीने में यह बिल्कुल साफ हो गया था कि मुसीबत आ रही है। मगर राजपक्षे घराने को यह लगा कि अपने भाई-बंधुओं के सहारे सरकार चला लेंगे और जनता को ठेंगा दिखाते रहेंगे और जब पानी सिर के उस पर गया तो जनता ने ही उनको पानी पिला दिया। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था आज पूरी तरह पानी-पानी है। हैरत यह भी है कि जिन षर्तों पर चीन से कर्ज लिया गया उन्हें श्रीलंका के लिए लागू करना भी मुष्किल था और जब मुसीबत आई तो चीन किनारे खड़ा मिला। भारत ने जब आर्थिक मदद की कोषिष की तो चीन को लगा कि उसका प्रभाव कम हो जायेगा। मौजूदा स्थिति में चीन श्रीलंका की इस मुसीबत में मूकदर्षक बना हुआ है और भारत पड़ोसी धर्म निभा रहा है।
भारत का दुष्मन पाकिस्तान भी चीन के कर्ज के जाल में बाकायदा फंस चुका है। जून 2021 के आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान पर कर्ज उसके जीडीपी के 55 फीसद हैं। हालांकि जून 2020 में यह 56 प्रतिषत था। पाकिस्तान पर सबसे ज्यादा कर्ज चीन का है और इन दिनों उसकी भी अर्थव्यवस्था तार-तार है। श्रीलंका की स्थिति देखकर पाकिस्तान भी सदमे में है कि कहीं अगली बारी उसकी न हो। विदेषी मुद्रा इस कदर घट चुकी है कि उसका देष सिर्फ पांच सप्ताह तक ही टिक सकता है। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर आज पाकिस्तान अब तक के सबसे बुरे दौर में है और राहत की उम्मीद आईएमएफ अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश से है पर यह किस मात्रा में सम्भव होगा कहना मुष्किल है। गौरतलब है कि पाकिस्तान भी चीन परस्त है और चीन ने नकारात्मक कूटनीति के चलते पाकिस्तान को न केवल भारत के खिलाफ उकसाया बल्कि उसे अपने कर्ज के जाल में भी फंसाता रहा। इस बात को षायद ही दरकिनार किया जा सके कि वन बेल्ट, वन रोड़ की परियोजना पर अरबों रूपया निवेष करने वाला चीन पाकिस्तान के लिए आने वाले समय में अंधेरा ही सिद्ध होगा। फिलहाल पाकिस्तान पर 81 अरब डॉलर का कर्ज है। जिसकी किस्ते चुकाना उसके लिए किसी भी सूरत में सम्भव ही नहीं है। भारत का एक और पड़ोसी देष नेपाल जिससे सामाजिक-सांस्कृतिक समेत कई संदर्भ और तौर-तरीकों में कहीं अधिक समानता निहित है मगर यह भी चीन के कर्ज वाले जाल से मुक्त नहीं है। नेपाल की जनसंख्या लगभग तीन करोड़ के आसपास है और इस पर कर्ज जीडीपी का करीब 43 प्रतिषत है और महंगाई यहां भी अपना बड़ा रूप बनाये हुए है। मार्च 2022 में नेपाल का विदेषी मुद्रा भण्डार 975 करोड़ डॉलर रह गया जो जुलाई 2021 में 1175 करोड़ डॉलर से काफी कम कहा जायेगा।
गौरतलब है कि किसी भी देष की अर्थव्यवस्था में विदेषी मुद्रा भण्डार का बड़ा योगदान होता है। देष का केन्द्रीय बैंक, विदेषी मुद्रा और अन्य परिसम्पत्तियों को अपने पास रखता है जिसे ज्यादातर डॉलर में रखा जाता है और आवष्यकता पड़ने पर इसी का भुगतान किया जाता है। जब कोई देष निर्यात के मुकाबले आयात की मात्रा बढ़ा लेता है तो विदेषी मुद्रा स्वाभाविक रूप से नीचे गिरने लगती है। श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल जैसे देष की कमोबेष स्थिति यह देखी जा सकती है। हालांकि सतर्क तो भारत को भी रहने की आवष्यकता है क्योंकि 1 जुलाई को भारतीय विदेषी मुद्रा भण्डार 588 अरब डॉलर से थोड़ा अधिक रहा जबकि सितम्बर 2021 में यह 642 अरब डॉलर था जाहिर है 55 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट यहां भी दर्ज हुई है। इतिहास में झांके तो पता चलता है कि किसी भी देष की सम्प्रभुता को सर्वाधिक खतरा हमेषा दूसरे देषों पर निर्भरता और आर्थिक संजाल ही रहा है। श्रीलंका जैसे देष लोकतांत्रिक सम्प्रभु होने के बावजूद आर्थिक फलक पर विकास की बड़ी चाह में न केवल आंतरिक नीतियों ने बड़ा फेर-बदल किया बल्कि चीन जैसे देषों के कर्ज से स्वयं को आगे बढ़ाने का प्रयास किया और कर्ज के बोझ में न केवल दबा बल्कि बिखर भी गया। ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं बेलगाम विदेषी कर्ज आर्थिक उपनिवेषवाद तो नहीं!

दिनांक : 17/07/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

Wednesday, July 6, 2022

विकास माॅडल, सुशासन और उत्तर प्रदेश

जब सरकारें सषक्त हों और जनता उम्मीदों से अटी हो तो ऐसे में सुषासन भरा कदम कमजोर होने की स्थिति में नुकसान चैतरफा होता है। उत्तर प्रदेष की योगी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के सौ दिन के रिपोर्ट कार्ड को जिस प्रारूप के साथ पेष किया है उससे स्पश्ट है कि वह न केवल विकास माॅडल को गढ़ने का इरादा रखती है बल्कि सुषासन को भी सरपट दौड़ाने की आकांक्षा से भी युक्त है। गौरतलब है कि विकास एक प्रकार का परिवर्तन है जिसमें जन सरोकार निहित होता है। जब विकास बेहतर विस्तार ले लेता है साथ ही समावेषी समस्याएं मसलन गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी, पानी, बिजली, सड़क, सुरक्षा, षिक्षा, चिकित्सा आदि को हल करने में आपेक्षित परिणाम बार-बार मिलते है तो यह विकास माॅडल के रूप में प्रतिश्ठित हो जाता है। सेवा, सुरक्षा और सुषासन के समर्पित इस सौ दिन को उत्तर प्रदेष सरकार ने जिस ब्यौरेवार तरीके से जनमानस के समक्ष परोसा है उससे साफ है कि योगी सरकार सुषासन सूचकांक के मामले में अव्वल होना चाहती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनता के मत के मर्म को ध्यान में रखते हुए षायद यह विष्वास दिलाना जरूरी समझा कि उनका दूसरा कार्यकाल एक नई उड़ान के साथ अपनी यात्रा को आगे बढ़ायेगा। दो टूक यह भी है देष हो या प्रदेष बेरोज़गारी के झंझवात से युवा जूझ रहा है। बेरोज़गारी के चलते अनेकों समस्याओं से युवा ग्रसित भी है। फिलहाल सरकार का दावा है कि साल 2017 में बेरोज़गारी दर 17.5 प्रतिषत थी जो अब महज 2.9 फीसद ही है। गरीब व किसान कल्याण, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं, षिक्षा, आधारभूत संरचना, ग्राम विकास, वन एवं पर्यावरण समेत ग्रामीण जलापूर्ति आदि को लेकर उत्तर प्रदेष सरकार ने व्यापक दृश्टिकोण से अवगत कराने का प्रयास किया है। 

 इसमें कोई दुविधा नहीं है कि देष के साथ-साथ प्रदेष भी सुषासन का माॅडल गढ़ना चाहते हैं जो बिना मजबूत विकास माॅडल के संभव नहीं है। उत्तर प्रदेष की योगी सरकार की दूसरी पारी के सौ दिन पूरे हो गए हैं। विकास को लेकर स्पीड और स्केल को बड़ा करते हुए एक बेहतरीन माॅडल की आकांक्षा उत्तर प्रदेष में करवट ले रहा है। साढ़े 6 लाख करोड़ के बजट वाला उत्तर प्रदेष पूर्वांचल एक्सप्रेस, बुंदेलखंड एक्सप्रेस और गंगा एक्सप्रेस वे के सन्दर्भ को जमीन पर उतारने का प्रयास किया है। योगी सरकार द्वारा स्वरोजगार के लिए 21 हजार करोड़ रूपए कर्ज देने और 20 हजार नौकरियों का लक्ष्य सौ दिन में कितना फलित हुआ है इसका प्रभाव विकास माॅडल और सुषासन पर अवष्य पडे़गा। इसी क्रम में अगले 6 महीने, एक साल और पूरे 5 साल की योजना यूपी विकास माॅडल को ताकत देगा। कानून व्यवस्था व सुरक्षा समेत कई मोर्चे पर योगी सरकार अपने पहले कार्यकाल में विकास के माॅडल का एक चेहरा सबके समक्ष रख दिया था और अपनी कार्यषैली से जनता में भरोसा भी बढ़ा लिया। अब सरकार इस भरोसे पर खरा उतरने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है और कार्य योजना के स्पश्ट लक्ष्य से विकास माॅडल को सुनिष्चित करने और सुषासन के पथ को चिकना करने में षासन व प्रषासन जोर-षोर से जुट गया है। 

पड़ताल बताती है कि 25 दिसम्बर 2021 को सुषासन दिवस के अवसर पर जारी सुषासन सूचकांक में ग्रुप बी में उत्तर प्रदेष ने 5वीं रैंक प्राप्त किया था जो 2019 की तुलना में बेहतर अंक लिए हुए है। इसमें इस बात का संकेत संदर्भित है कि सुषासन सूचकांक के उन 10 क्षेत्रों में उत्तर प्रदेष सुधार की राह पर गया है। नागरिक केन्द्रित षासन व मानव संसाधन विकास क्षेत्र में जहां स्कोर के मुताबिक रैंकिंग दूसरे स्थान पर थी वहीं न्यायिक और सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में तीसरे स्थान पर होना यह स्पश्ट करता है कि सरकार ने इन्हें न केवल प्राथमिकता में रखा है बल्कि विगत् कुछ वर्शों में विकास माॅडल गढ़ने की दिषा में बड़ा कदम भी उठाया है। इतना ही नहीं वाणिज्य और उद्योग क्षेत्र में उत्तर प्रदेष प्रथम स्थान पर है। सुषासन सूचकांक के ग्रुप बी में जहां मध्यप्रदेष प्रथम स्थान पर है जबकि उत्तर पूर्व और पहाड़ी राज्यों में हिमाचल प्रदेष और केन्द्रषासित में दिल्ली अव्वल है। वहीं ग्रुप ए में गुजरात पहले स्थान पर देखा जा सकता है। गौरतलब है कि मौजूदा प्रधानमन्त्री मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में विकास का माॅडल न केवल गढ़ा बल्कि पूरे देष की जुबान पर भी इसे चढ़ा दिया। फिलहाल 2019 के सूचकांक की तुलना में उत्तर प्रदेष सुषासन की दृश्टि से सुधार किया है। दरअसल कृशि और उससे सम्बद्ध क्षेत्र मानव संसाधन विकास, आधारभूत संरचना, समाज कल्याण और विकास समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हंे प्राथमिकता देकर उत्तर प्रदेष की योगी सरकार ने यूपी विकास माॅडल को विकसित करने की ओर झुकाव दिखाया साथ ही सुषासन के पथ को भी कमोबेष समतल किया है। 

उत्तर प्रदेष भारत का सबसे बड़ी आबादी वाला प्रदेष है। गौरतलब है कि जहां न्याय, सषक्तिकरण, रोजगार व क्षमता पूर्वक सेवा प्रदायन की व्यवस्था सुनिष्चित होती हो वहां सुषासन स्वयं उभार ले लेता है। सुषासन की चाह में देष के सभी प्रदेष विकास के नये माॅडल गढ़ना चाहते हैं। उत्तर प्रदेष जैसा भारी-भरकम प्रदेष भी ऐसे माॅडल से अछूता कैसे रह सकता। जवाबदेही और जिम्मेदारी की दृश्टि से वर्तमान योगी सरकार कहीं अधिक सामथ्र्यवान और सषक्त दिखती है। लोक कल्याण, संवेदनषीलता, खुले दृश्टिकोण और पारदर्षिता के चलते मौजूदा उत्तर प्रदेष सरकार कई मामलों में बेहतर कदम उठा चुकी है जिसका निहित भाव सुषासन ही है। सत्ता की दूसरी पारी षुरू होने के दूसरे दिन ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पश्ट कर दिया था कि सुषासन को और सुदृढ़ करने के लिए स्वयं से हमारी प्रतिस्पद्र्धा प्रारंभ होगी और सुषासन की स्थापना को और मजबूती के साथ आगे बढ़ाना होगा। उत्तर प्रदेष सरकार यह जानती है कि राजनीतिक दाव-पेंच से सत्ता प्राप्त करना आसान है पर इसे दषकों बरकरार रखना उतना कठिन भी है मगर प्रदेष की जनता को एक बेहतरीन विकास माॅडल दिया जाए तो संभव है कि जनता का भरोसा उन पर कायम रहे। 

योगी योजना 2022 के अंतर्गत मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेष के निवासियों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाओं को आरंभ किया है जिसमें यूपी स्काॅलरषिप योजना, वृद्धा, विधवा, विकलांग पेंषन योजना, युवा स्वरोजगार योजना, जन सुनवाई व श्रमिक भरण-पोशण योजना तथा वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना समेत लगभग तीन दर्जन योजनाएं देखी जा सकती है। कानून का षासन, न्याय तक लोगों की पहुंच और जान-माल की सुरक्षा की कसौटी भी सुषासन है। उत्तर प्रदेष की सरकार ऐसे कई मामलों में तुलनात्मक बेहतरी को हासिल कर रही है जो विकास के एक बेहतर माॅडल को इंगित करता है। जितने बड़े पैमाने पर जन सरोकार सुनिष्चित किए जाएंगे उतना ही विस्तृत विकास माॅडल होता जायेगा। स्त्री-पुरूश समानता को प्रोत्साहन, गरीबी, अभाव, भय और हिंसा को कम करने का उपकरण की खोज विकास माॅडल है। स्वतन्त्र, निश्पक्ष, मावनाधिकार की गारंटी और नागरिक समाज को प्राथमिकता देने के साथ पर्यावरण को स्थायित्व देना आदि तमाम जन सरोकार से सम्बन्धित हैं जिसे सुनिष्चित करना राज्य का कत्र्तव्य है। विगत पांच वर्शों में योगी सरकार ने कई ऐसे आयाम गढ़े हैं जो उत्तर प्रदेष की जनता को कानून व्यवस्था समेत कई अन्य नीतिगत मापदंडों में ईज आॅफ लिविंग का अनुभव हुआ है। 

दिनांक : 04/07/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

विकास माॅडल और सुशासन

साल 1951 में षुरू भारत की पहली पंचवर्शीय योजना मुख्य रूप से बांधों और सिंचाई में निवेष सहित कृशि प्रधान क्षेत्र से प्रेरित थी जबकि 1952 की सामुदायिक विकास कार्यक्रम गांवों के विकास से अभिभूत थी। देखा जाये तो 26 जनवरी 1950 में संविधान लागू होने के बाद यह देष के दो ऐसे विकास माॅडल थे जहां से भारत को अपनी स्पीड और स्केल पर काम करना था। हालांकि सामुदायिक विकास कार्यक्रम साल भर में विफल हो गया और इसी विफलता का नतीजा पंचायती राज व्यवस्था थी जो मौजूदा समय में स्वयं में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के संदर्भ में विकास का एक माॅडल है। सिलसिलेवार तरीके से चली आयी बारहवीं पंचवर्शीय योजना के दौरान इसे 2015 में समाप्त कर दिया गया। 1 जनवरी 2015 से नीति आयोग एक थिंक टैंक के रूप में देखा जा सकता है। उक्त कुछ संदर्भों से यह परिलक्षित होता है कि विकास माॅडल कमोबेष देष में हमेषा रहे हैं। मगर 1991 के उदारीकरण के बाद देष में विकास माॅडल की अवधारणा नये अर्थों में पुलकित होने लगी और यह वही दौर था जब दुनिया सुषासन को अंगीकृत कर रही थी। इसी दौर में विष्व बैंक द्वारा सुषासन की गढ़ी गयी आर्थिक परिभाशा भी 1992 में परिलक्षित हुई जिसको अपनाने वाला पहला देष इंग्लैण्ड है। बीते तीन दषकों में आधुनिक आवेष के साथ विकास माॅडल देष व राज्यों में निरूपित देखे जा सकते हैं और इन्हीं तीन दषकों में सुषासन की पटकथा भी विस्तार ली। राज्यों में विकास माॅडल की वाइब्रेंट स्थिति साल 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव के दौरान सभी की जुबान पर थी। नीतीष षासन में बिहार का विकास माॅडल भी फलक पर आया जिसमें बिहार की षान्ति, कानून व्यवस्था और समावेषी ढांचे में अमूल-चूल परिवर्तन का दावा निहित है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेष का विकास माॅडल भी सुर्खियों में है योगी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का सौ दिन पूरे कर चुकी है। इन्हें भी पता है कि राजनीतिक दांव-पेंच से सत्ता तो हासिल की जा सकती है लेकिन बिना विकास माॅडल और सुषासन के जनता का भरोसा लम्बे समय तक बनाये रखना मुष्किल है। फिलहाल सेवा, सुरक्षा और सुषासन को समर्पित उत्तर प्रदेष एक नया माॅडल गढ़ रहा है। दिल्ली एक केन्द्रषासित प्रदेष व अधिराज्य है जहां सरकार षिक्षा के एक सषक्त माॅडल से अभिभूत दिखती है। पर्वतीय प्रदेषों के लिए हिमाचल का विकास माॅडल सड़कों की जाल, सामाजिक सुरक्षा, पर्यटन और आर्थिकी पर बल को लेकर एक मिसाल के तौर पर परोसा जा रहा है। सन् 2000 में बने तीन राज्यों में छत्तीसगढ़ बेरोज़गारी दर को अब तक के न्यूनतम स्तर पर 0.6 फीसद के कारण अच्छे माॅडल की संज्ञा में रखा जा रहा है। इसी तर्ज पर दक्षिण के राज्य मसलन तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेष, गोवा व महाराश्ट्र सहित कई समावेषी अवधारणा के अंतर्गत अपने माॅडल को सर्वोपरि परोसने का संदर्भ लिए हुए है। हालांकि उत्तराखण्ड और पूर्वोत्तर के कई राज्य ऐसे हैं जिनका अभी तक कोई माॅडल प्रतिबिम्बित ही नहीं हो पाया है। गौरतलब है कि कृशि और सम्बद्ध क्षेत्र, वाणिज्य और उद्योग, मानव संसाधन विकास, आर्थिक षासन, समाज कल्याण, पर्यावरण व नागरिक केन्द्रित षासन ऐसे कुछ उदाहरण हैं जो न केवल विकास माॅडल को गढ़ने के काम आ रहे हैं बल्कि सुषासन सूचकांक में भी राज्यों को नई ऊंचाई दे रहे हैं। 

विकास माॅडल लोगों की प्रगति को बढ़ावा देने की एक योजना है ताकि मनुश्य के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके। विकास माॅडल को विकसित करने या लागू करने के दौरान सरकार जनसंख्या की आर्थिकी और श्रम की स्थिति में सुधार, स्वास्थ्य और षिक्षा तक पहुंच की गारंटी और अन्य मुद्दों के साथ सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है। गौरतलब है कि एक विकास माॅडल की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है। जबकि सुषासन षांति और खुषहाली का प्रतीक है जिसका विकास माॅडल से गहरा नाता है। विकास माॅडल हो या सुषासन इसके केन्द्र में लोक सषक्तिकरण होता है। भारत की दृश्टि से विकास माॅडल समावेषी और सतत विकास के साथ अनेक बुनियादी संदर्भों से ओत-प्रोत समझा जा सकता है। देखा जाये तो विकास एक प्रकार का परिवर्तन है जिसका सरोकार जनता से है और जब यही विकास बेहतर अवस्था को ले लेता है मसलन गरीबी, बीमारी, बेरोज़गारी, किसान कल्याण, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं, षिक्षा, षहर के साथ ग्राम विकास समेत महिला सुरक्षा जैसे कई बुनियादी संदर्भों को लेकर आपेक्षित परिणाम बार-बार मिलते हैं तो यही विकास माॅडल के रूप में प्रतिश्ठित हो जाता है। विकास माॅडल को गति देने में अच्छी सरकार व अच्छे प्रषासन की भूमिका होती है और यही जब बारम्बार अच्छा होता है तो अभिषासन व सुषासन की संज्ञा में चले जाते हैं। पारदर्षी व्यवस्था, जन भागीदारी, सत्ता का विकेन्द्रीकरण, दायित्वषीलता, कानून का षासन और संवेदनषीलता के साथ लोक कल्याण का निहित परिप्रेक्ष्य सुषासन की अवधारणा को सुदृढ़ करता है। स्पश्ट है कि विकास माॅडल और सुषासन एक दूसरे के पूरक हैं। एक मजबूत विकास माॅडल सुषासन को ताकत दे सकता है और ताकत से भरी सुषासन मजबूत विकास माॅडल को स्थायित्व प्रदान कर सकता है। इन दोनों परिस्थितियों में जन सरोकार निहित है यही देष या राज्य विषेश का उद्देष्य भी है।

स्वतंत्रता के पष्चात् भारत को अपनी पारिस्थितिकी के अनुसार विकास माॅडल खोजना भी बड़ी चुनौती थी। 1950 के दौर में एषिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के तमाम देष जो औपनिवेषिक सत्ता से मुक्त हुए थे उन्हें बुनियादी विकास के लिए विष्व बैंक से मिलने वाली आर्थिक सुविधा का बेहतर उपयोग न हो पाने से यह चिंता बढ़ी कि आखिर विकास का कैसा माॅडल होना चाहिए। दरअसल ये तमाम देष उन्हीं देषों के विकास माॅडल की नकल कर रहे थे जिनसे ये गुलाम थे। इसे देखते हुए 1952 में तुलनात्मक लोक प्रषासन के अंतर्गत अध्ययन की परिपाटी आयी और ठीक दो साल बाद 1954 में विकास प्रषासन की भी अवधारणा एक भारतीय सिविल सेवक यूएल गोस्वामी द्वारा दी गयी। निहित पक्ष यह है कि प्रत्येक देष की अपनी पारिस्थितिकी होती है ऐसे में बिना सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक अवधारणा को समझे विकास के लिए नीतियां विकसित होती हैं तो सम्भव है कि समस्याएं बनी रहे और आर्थिकी भी खतरे में रहे। हालांकि इसी को देखते हुए चीन के प्रषासनिक विषेशज्ञ फ्रेडरिग्स ने इस पर अध्ययन किया और फोर्ड फाउंडेषन के अनुदान से तुलनात्मक लोक प्रषासन समूह एक दषक तक इस दिषा में काम करता रहा। कृशि, औद्योगिक तथा कृशि-औद्योगिक मिश्रित देषों को लेकर फ्रेडरिग्स ने अपना षोधात्मक परिप्रेक्ष्य सबके सामने रखा जिससे यह समझने में मदद मिली कि विकास माॅडल को कैसे अंजाम दिया जा सकता है। दुनिया के ऐसे तमाम देष औद्योगिकीकरण, षहरीकरण व संसाधनों के मजबूत दोहन और निरंतर बढ़ते तकनीक को विकास माॅडल का बड़ा जरिया समझते हैं जबकि भारत जैसे देष गरीबी, बीमारी और बेरोज़गारी, षिक्षा, चिकित्सा जैसी व्याप्त समस्याओं से मुक्ति संघवाद को मजबूती, महिला सषक्तिकरण और सुरक्षा को पुख्ता करने को विकास का माॅडल समझता है। हालांकि नये तकनीकों को अंगीकृत करते हुए डिजिटल पहचान, वित्तीय प्रौद्योगिकी क्रांति समेत कई मामलों में भी छलांग चाहता है। देखा जाये तो विकास माॅडल केवल एक विशय विन्यास नहीं बल्कि समय के साथ बढ़ती समस्या के अनुपात में विकसित एक उपकरण है जिसे मजबूत सुषासन द्वारा सुसज्जित करना और जन सरोकार को पोशित करना सम्भव रहता है। 

भारतीय अर्थव्यवस्था विष्व की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इसका विकास माॅडल अन्य पूर्वी या पष्चिमी देषों की अपेक्षा कहीं अधिक भिन्न होना लाज़मी है। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत की तुलना में उसकी अर्थव्यवस्था चार गुना बड़ी भी है। 1980 के दषक के मध्य के बाद चीन के आर्थिक उदय को विष्व में आज किसी परिचय की आवष्यकता नहीं है। विष्व में बहस का मुद्दा रहा है कि इस आर्थिक उत्थान के पीछे क्या किसी सोचे-समझे विकास माॅडल का काम है। गौरतलब है कि 2004 में बीजिंग सहमति का प्रस्ताव रखा गया। यही चीन का आर्थिक विकास माॅडल भी है। पूर्व राश्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम दो दषक पहले विजन 2020 का दृश्टिकोण सामने रख भारत को विकसित करने का सपना देखा था यह एक समुच्चय अवधारणा के अंतर्गत एक सषक्त माॅडल ही था। किसानों की आय 2022 में दोगुनी और दो करोड़ घर देने जैसे तमाम वायदे और इरादे मौजूदा सरकार का विकास माॅडल ही है। यह पड़ताल का विशय है कि सफलता की दर कहां है और सुषासन की दृश्टि से विकास माॅडल कितना खड़ा है। सरकारें आती और जाती हैं मगर नागरिक अधिकार और आसान जीवन की बाट हमेषा जोहने वाला जनमानस तब निराष होता है जब सपने दिखाये जाते हैं और जमीन पर उतरते नहीं है। नागरिक अधिकार पत्र (1997), सूचना का अधिकार (2005), ई-गवर्नेंस आंदोलन (2006), षिक्षा का अधिकार (2009), खाद्य सुरक्षा (2013) समेत राश्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 आदि अलग-अलग समय के भिन्न-भिन्न विकास माॅडल ही हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार देष में हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित है और कमोबेष गरीबी का आंकड़ा भी कुछ ऐसा ही है। समावेषी ढांचा, ग्रामीण उत्थान, षहरी विकास और संदर्भित मापदण्डों में जन आकांक्षाओं को पूरा किये बिना विकास माॅडल न केवल अधूरा रहेगा बल्कि सुषासन को भी चोटिल करेगा। 

दिनांक : 04/07/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)