नेशनल हेराल्ड के ताजा प्रकरण ने शीत सत्र की सियासत को कहीं अधिक गरम कर दिया है। अदालत का झगड़ा संसद में इस कदर बरपा है कि यह सत्र भी उद्देश्य से विमुख होता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस का एक बड़ा तबका इस मुद्दे पर संसद में हंगामा करने की वकालत कर रहा है तो वहीं रणनीति को लेकर शीर्ष नेताओं की बैठकें भी जारी है। इन दिनों दशकों पुराना समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड चर्चे में है। इसके फलक पर आने से एक बार फिर इससे जुड़ी यादें पुर्नजीवित हो चली हैं। अंग्रेजी काल का यह समाचार पत्र आजादी के दिनों में भी कई गौरवगाथा के लिए जाना जाता रहा है। जब समाचार पत्र के स्टाल पर पत्र-पत्रिकाओं की पड़ताल होती थी तो उन दिनों के तमाम अंग्रेजी समाचार पत्रों में नेषनल हेराल्ड बड़ी षिद्दत से नजरों में समाता था। इसकी एक और मुख्य वजह नब्बे के दषक में उत्तर प्रदेष की दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम का इसमें प्रकाषित होना था। न जाने कितने विद्यार्थी उस दिन इसे पाने की होड़ में रहते थे और यह लाखों के फेल-पास होने का गवाह भी होता था। इसकी स्थापना 8 सितम्बर, 1938 को लखनऊ में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की थी। भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के उन दिनों में अंग्रेजों के विरूद्ध आवाज उठाने के लिए समाचार पत्र बहुत बड़े जरिया होते थे। नेषनल हेराल्ड भी इसी प्रकार के भावों से युक्त समाचार पत्र था। खराब आर्थिक हालत के चलते प्रकाषन के 7 दषक बाद वर्श 2008 में यह नजरों से ओझल हो गया। इन दिनों यह एक बार फिर सुर्खियों में है जिसमें सोनिया और राहुल सहित 6 लोगों पर धोखाधड़ी का आरोप है।
आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाला नेषनल हेराल्ड आजादी के बाद भी मुखपत्र बना रहा जिसका हिन्दी षाब्दिक अर्थ भारत का अग्रदूत है जबकि नेहरू ही इसके पहले सम्पादक थे। बन्द होने के दौर में अखबार का मालिकाना हक एसोसिएट जर्नल्स के पास था। इसी कम्पनी ने कांग्रेस पार्टी से बिना ब्याज के 90 करोड़ का कर्ज लिया था फिर भी यह अखबार षुरू नहीं हुआ। कांग्रेस ने कर्ज देने का मकसद कम्पनी के कर्मचारियों को बेरोजगार होने से बचाना बताया था। अप्रैल 2012 में यंग इण्डिया ने एसोसिएट जर्नल्स का मालिकाना हासिल कर लिया। खास यह है कि इस कम्पनी में 38 फीसदी षेयर सोनिया गांधी के और इतना ही राहुल गांधी के भी है। बाकी षेयर कम्पनी के डायरेक्टर सैम पित्रोदा एवं सुमन देव सहित मोतीलाल बोरा, आॅस्कर फर्नाडीज़ जैसे कांग्रेसी नेताओं के पास है। इसके अलावा यंग इण्डिया ने नेषनल हेराल्ड की 1600 करोड़ की परिसम्पत्ति को महज 50 लाख में हासिल किया। यहीं से मामला संदेह के घेरे में आया। सुब्रमण्यम स्वामी जो बीजेपी के नेता हैं जिनका आरोप है गांधी परिवार हेराल्ड की सम्पत्तियों को अवैध ढंग से प्रयोग में ला रही है। यहां बताना जरूरी है कि दिल्ली का हेराल्ड हाऊस और अन्य सम्पत्तियां भी इसमें षामिल हैं। इसी के चलते स्वामी 2012 में कोर्ट गये। 26 जून, 2014 को लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद दिल्ली के पटियाला हाऊस ने सभी षेयर धारकों को कोर्ट में पेष होने को लेकर समन जारी किया तब से मामला लम्बित पड़ा रहा पर षीत सत्र के इस गहमागहमी के दिनों में दिल्ली हाईकोर्ट ने इन सभी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी जिसके चलते बीते 8 दिसम्बर को सोनिया और राहुल को अदालत में हाजिर होना था पर अब यह तारीख 19 दिसम्बर कर दी गयी है। मतलब साफ है कि नेषनल हेराल्ड के इस अखबारी मामले में आरोपों से घिरे इन कांग्रेसी नेताओं को अदालत से कुछ दिनों की मोहलत मिली है पर इस घटनाक्रम के चलते सियासत में जो तूफान खड़ा हुआ है उसके षांत होने के आसार फिलहाल नजर नहीं आ रहे।
इस मामले को लेकर कांग्रेस नेतृत्व जो प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है उस पर थोड़ी हैरत होती है वह इसलिए कि हाईकोर्ट द्वारा अपील खारिज होने के बाद ऐसा तो होना ही था पर आरोप है कि मोदी सरकार बदला लेने के लिए यह सब कर रही है और डाॅ. सुब्रमण्यम सरकार के इषारे पर यह सब कर रहे हैं जो बेतुकी बात ही कही जायेगी। देखा जाए तो यह मामला मोदी सरकार के बनने से पहले का है, उस दौरान केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकार थी और सुब्रमण्यम स्वामी भाजपा में भी नहीं थे। ऐसे में कांग्रेस की यह बदला लेने वाली दलील एक राजनीतिक वक्तव्य मात्र ही प्रतीत होता है। बीते 26 नवम्बर से षीत सत्र जारी है। 27 दिवसीय यह षीत सत्र 23 दिसम्बर को समापन लेगा जिसका आधा वक्त बीत चुका है। कांग्रेस के लिए भी यह पेषोपेष है कि जीएसटी को लेकर वह क्या कदम उठाए जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कह चुके हैं कि जीएसटी देष के आर्थिक हित में है। जिस प्रकार बयानबाजी की जा रही है जाहिर है कि अदालत की यह लड़ाई राजनीतिक अखाड़े में सियासत का रूख अख्तियार कर चुकी है। जिसका सबसे बड़ा नुकसान षीत सत्र को उठाना पड़ेगा। इसी सत्र में जीएसटी समेत कई विधेयकों के पारित होने की उम्मीद थी पर अब यह मुमकिन प्रतीत नहीं होता। जिस प्रकार बीते कुछ सत्रों से सियासत बिगड़ी है और देष के जरूरी काज प्रभावित हुए हैं उसे देखते हुए अंदाजा लगाना सहज है कि पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार के दुःख के दिन फिलहाल समाप्त होने वाले नहीं है और इनसे उम्मीद लगाने वाली जनता भी बहुत कुछ परिवर्तन होते हुए देखेगी यह बात भी संदेह से परे नहीं है।
इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता जहां एक ओर देष कई संवेदनषील परिस्थितियों से जूझ रहा है वहीं जनता के प्रतिनिधि आपसी रंज पैदा करके नई समस्याओं को मौका देने में लगे हैं जबकि जनता बेहतरी की फिराक में बार-बार ना उम्मीद हो रही है ऐसे में यह कह पाना निहायत कठिन है कि आने वाला समय और बचा हुआ षीत सत्र कितने काम का है। कांग्रेस देष की सर्वाधिक पुरानी पार्टी है। 65 बरस के लोकतान्त्रिक इतिहास में इसका तीन-चैथाई समय सत्ता में बीता है जाहिर है विपक्ष का अनुभव कांग्रेस के पास कुछ ही बरसों का है उसमें भी पूर्ण बहुमत के खिलाफ तो मात्र डेढ़ वर्श का ही है। कांग्रेस भी इस तर्क में जरूर फंसी होगी कि यदि अदालत के फैसले को लेकर संसद की कार्यवाही को अधर में डाला गया और जीएसटी जैसे बिल कानून का रूप नहीं ले पाता है तो जनता में यह संदेष प्रसारित हो सकता है कि निजी कारणों से कांग्रेस ने देष का अहित किया है। जाहिर है सत्ता पक्ष को इसे भुनाने का एक मौका मिलेगा पर यही कांग्रेस यदि इसके उलट इन मुष्किलों के बीच जीएसटी पर साथ देती है तो उसे डर है कि कहीं यह उसके ऊपर बढ़ा हुआ दबाव न मान लिया जाए। ऐसे में कांग्रेस का क्या निर्णय होगा यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। फिलहाल सरकार की भी अपनी दलीलें हैं और सरकार चाहेगी कि कुछ भी हो जीएसटी जैसा बिल हाथ तो आये पर स्थिति को देखते हुए काज इतना आसान भी नहीं है। जाहिर है कांग्रेस ऐसा कुछ नहीं करना चाहेगी जिससे कि सरकार को सहूलियत मिलती हो और उसकी स्वयं की समस्या में बढ़ोतरी होती हो।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाला नेषनल हेराल्ड आजादी के बाद भी मुखपत्र बना रहा जिसका हिन्दी षाब्दिक अर्थ भारत का अग्रदूत है जबकि नेहरू ही इसके पहले सम्पादक थे। बन्द होने के दौर में अखबार का मालिकाना हक एसोसिएट जर्नल्स के पास था। इसी कम्पनी ने कांग्रेस पार्टी से बिना ब्याज के 90 करोड़ का कर्ज लिया था फिर भी यह अखबार षुरू नहीं हुआ। कांग्रेस ने कर्ज देने का मकसद कम्पनी के कर्मचारियों को बेरोजगार होने से बचाना बताया था। अप्रैल 2012 में यंग इण्डिया ने एसोसिएट जर्नल्स का मालिकाना हासिल कर लिया। खास यह है कि इस कम्पनी में 38 फीसदी षेयर सोनिया गांधी के और इतना ही राहुल गांधी के भी है। बाकी षेयर कम्पनी के डायरेक्टर सैम पित्रोदा एवं सुमन देव सहित मोतीलाल बोरा, आॅस्कर फर्नाडीज़ जैसे कांग्रेसी नेताओं के पास है। इसके अलावा यंग इण्डिया ने नेषनल हेराल्ड की 1600 करोड़ की परिसम्पत्ति को महज 50 लाख में हासिल किया। यहीं से मामला संदेह के घेरे में आया। सुब्रमण्यम स्वामी जो बीजेपी के नेता हैं जिनका आरोप है गांधी परिवार हेराल्ड की सम्पत्तियों को अवैध ढंग से प्रयोग में ला रही है। यहां बताना जरूरी है कि दिल्ली का हेराल्ड हाऊस और अन्य सम्पत्तियां भी इसमें षामिल हैं। इसी के चलते स्वामी 2012 में कोर्ट गये। 26 जून, 2014 को लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद दिल्ली के पटियाला हाऊस ने सभी षेयर धारकों को कोर्ट में पेष होने को लेकर समन जारी किया तब से मामला लम्बित पड़ा रहा पर षीत सत्र के इस गहमागहमी के दिनों में दिल्ली हाईकोर्ट ने इन सभी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी जिसके चलते बीते 8 दिसम्बर को सोनिया और राहुल को अदालत में हाजिर होना था पर अब यह तारीख 19 दिसम्बर कर दी गयी है। मतलब साफ है कि नेषनल हेराल्ड के इस अखबारी मामले में आरोपों से घिरे इन कांग्रेसी नेताओं को अदालत से कुछ दिनों की मोहलत मिली है पर इस घटनाक्रम के चलते सियासत में जो तूफान खड़ा हुआ है उसके षांत होने के आसार फिलहाल नजर नहीं आ रहे।
इस मामले को लेकर कांग्रेस नेतृत्व जो प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है उस पर थोड़ी हैरत होती है वह इसलिए कि हाईकोर्ट द्वारा अपील खारिज होने के बाद ऐसा तो होना ही था पर आरोप है कि मोदी सरकार बदला लेने के लिए यह सब कर रही है और डाॅ. सुब्रमण्यम सरकार के इषारे पर यह सब कर रहे हैं जो बेतुकी बात ही कही जायेगी। देखा जाए तो यह मामला मोदी सरकार के बनने से पहले का है, उस दौरान केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकार थी और सुब्रमण्यम स्वामी भाजपा में भी नहीं थे। ऐसे में कांग्रेस की यह बदला लेने वाली दलील एक राजनीतिक वक्तव्य मात्र ही प्रतीत होता है। बीते 26 नवम्बर से षीत सत्र जारी है। 27 दिवसीय यह षीत सत्र 23 दिसम्बर को समापन लेगा जिसका आधा वक्त बीत चुका है। कांग्रेस के लिए भी यह पेषोपेष है कि जीएसटी को लेकर वह क्या कदम उठाए जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कह चुके हैं कि जीएसटी देष के आर्थिक हित में है। जिस प्रकार बयानबाजी की जा रही है जाहिर है कि अदालत की यह लड़ाई राजनीतिक अखाड़े में सियासत का रूख अख्तियार कर चुकी है। जिसका सबसे बड़ा नुकसान षीत सत्र को उठाना पड़ेगा। इसी सत्र में जीएसटी समेत कई विधेयकों के पारित होने की उम्मीद थी पर अब यह मुमकिन प्रतीत नहीं होता। जिस प्रकार बीते कुछ सत्रों से सियासत बिगड़ी है और देष के जरूरी काज प्रभावित हुए हैं उसे देखते हुए अंदाजा लगाना सहज है कि पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार के दुःख के दिन फिलहाल समाप्त होने वाले नहीं है और इनसे उम्मीद लगाने वाली जनता भी बहुत कुछ परिवर्तन होते हुए देखेगी यह बात भी संदेह से परे नहीं है।
इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता जहां एक ओर देष कई संवेदनषील परिस्थितियों से जूझ रहा है वहीं जनता के प्रतिनिधि आपसी रंज पैदा करके नई समस्याओं को मौका देने में लगे हैं जबकि जनता बेहतरी की फिराक में बार-बार ना उम्मीद हो रही है ऐसे में यह कह पाना निहायत कठिन है कि आने वाला समय और बचा हुआ षीत सत्र कितने काम का है। कांग्रेस देष की सर्वाधिक पुरानी पार्टी है। 65 बरस के लोकतान्त्रिक इतिहास में इसका तीन-चैथाई समय सत्ता में बीता है जाहिर है विपक्ष का अनुभव कांग्रेस के पास कुछ ही बरसों का है उसमें भी पूर्ण बहुमत के खिलाफ तो मात्र डेढ़ वर्श का ही है। कांग्रेस भी इस तर्क में जरूर फंसी होगी कि यदि अदालत के फैसले को लेकर संसद की कार्यवाही को अधर में डाला गया और जीएसटी जैसे बिल कानून का रूप नहीं ले पाता है तो जनता में यह संदेष प्रसारित हो सकता है कि निजी कारणों से कांग्रेस ने देष का अहित किया है। जाहिर है सत्ता पक्ष को इसे भुनाने का एक मौका मिलेगा पर यही कांग्रेस यदि इसके उलट इन मुष्किलों के बीच जीएसटी पर साथ देती है तो उसे डर है कि कहीं यह उसके ऊपर बढ़ा हुआ दबाव न मान लिया जाए। ऐसे में कांग्रेस का क्या निर्णय होगा यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। फिलहाल सरकार की भी अपनी दलीलें हैं और सरकार चाहेगी कि कुछ भी हो जीएसटी जैसा बिल हाथ तो आये पर स्थिति को देखते हुए काज इतना आसान भी नहीं है। जाहिर है कांग्रेस ऐसा कुछ नहीं करना चाहेगी जिससे कि सरकार को सहूलियत मिलती हो और उसकी स्वयं की समस्या में बढ़ोतरी होती हो।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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