Thursday, April 14, 2022

कूटनीतिक करवट और भारत की साख

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में षामिल है और यह अनुमान है कि अगले दो दषक तक उसका यह दर्जा बना रहेगा। भारत दुनिया में चैथा सबसे बड़ा विदेषी मुद्रा भण्डार रखता है। हालांकि दूसरे देषों की तरह भारत को भी कुछ समय के लिए यूक्रेन के युद्ध के चलते मुष्किलें आ सकती हैं लेकिन इसके लम्बे समय तक बने रहने के आसार नहीं हैं। ऐसी तमाम बातों से अमेरिका भी अनभिज्ञ नहीं है। कोविड के समय चीन ने कई जरूरी चीजों की सप्लाई अमेरिका और यूरोपीय देषों को रोक दी थी। जिसमें अमेरिका के साथ 650 डाॅलर जबकि यूरोपीय संघ के साथ 550 अरब डाॅलर से अधिक सालाना व्यापार होता था। चीन से सैकड़ों फैक्ट्रियां भी षिफ्ट हुई जिसका फायदा भारत को भी मिला। दक्षिण चीन सागर और ताइवान को लेकर चीन का रूख इन दिनों आक्रामक है। यदि चीन ताइवान पर हमला करता है तो ग्लोबल सप्लाई चेन दबाव में आयेगी जिसका सीधा आर्थिक असर यूरोपीय देषों पर पड़ेगा। ऐसे में भारत एक बेहतर भूमिका में हो सकता है। अमेरिका जानता है कि भारत केवल दक्षिण एषिया का ही नहीं बल्कि दुनिया में बाजार और व्यापार के साथ-साथ वैष्विक पटल पर एक अच्छी खासी ऊँचाई रखता है। प्रधानमंत्री मोदी भी कह चुके हैं कि भारत पूरी दुनिया को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकता है। जिस तरह माहौल है उसे देखते हुए लगता है भारत से गेहूं का निर्यात भी बढ़ सकता है जो वर्तमान में सालाना 20 करोड़ टन का है। चीन अमेरिका को फूटी आंख नहीं भाता और भारत के साथ सम्बंध रखना उसका वैष्विक भविश्य भी है। युद्ध के चलते रोजाना एक अरब डाॅलर की गर्त में धस्ते रूस से तमाम अनबन के बावजूद अमेरिका भारत से सम्बंध को लेकर कोई सौदेबाजी षायद ही करे। इसका पूरा परिप्रेक्ष्य मोदी-जो बाइडन वर्चुअल वार्ता में भी दिखता है। 

दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत और अमेरिका एक-दूसरे के स्वाभाविक सहयोगी हैं और दोनों देषों के बीच पिछले कुछ वर्शों में रिष्तों में जो विकास हुआ है, जो गति आयी है उसकी कुछ दषक पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उक्त बात भारत-अमेरिका वर्चुअल वार्ता के दौरान कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कही थी। देखा जाये तो दोनों देषों के बीच बीते 11 अप्रैल को टू$टू वार्ता भी सम्बंधों की प्रगाढ़ता का ही परिचायक है। भले ही युद्ध यूक्रेन के मैदान पर लड़ा जा रहा हो और नाटो देषों के माथे पर बल है और भारत तटस्थ नीति का अनुपालन कर रहा है। भारत एक तटस्थ देष की भूमिका में जिस प्रकार अपनी कूटनीतिक रणनीति पर संतुलन बनाये हुए है वह भी काबिल-ए-तारीफ है। भारत जहां रूस और यूक्रेन के राश्ट्रपतियों से षान्ति की अपील कर चुका है वहीं यूक्रेन को मार्च महीने में 90 टन राहत सामग्री पहुंचाने के मामले में भी भारत पीछे नहीं रहा। मोदी और बाइडन बातचीत में अमेरिकी राश्ट्रपति ने इसके लिए भारत की तारीफ की और कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने को लेकर भारत-अमेरिका बातचीत जारी रहेगी। 24 फरवरी से षुरू युद्ध के बाद अमेरिका समेत दुनिया के कई देष भारत की तरफ इसे रोकने को लेकर टकटकी लगाकर देख रहे थे। जिसे लेकर भारत ने अपने स्तर प्रयास किया भी। स्पश्ट है कि जब विष्व में किसी प्रकार का उथल-पुथल होता है तो दुनिया का षायद ही कोई देष हो जो प्रभावित न होता हो इसका एक प्रमुख कारण खुली विदेष नीति है।

भारत की विदेष नीति दषकों से इसी प्रारूप की है। मगर कई मामलों में भारत ने अमेरिकी दबाव को भी नकारा है। कयास तो यह भी था कि बदले परिप्रेक्ष्य में अमेरिका भारत द्वारा रूस से तेल का आयात न करने का दबाव बनायेगा और ऐसा हुआ भी। मगर प्रधानमंत्री मोदी ने जो बाइडेन के साथ बातचीत में अपना पक्ष स्पश्ट कर दिया। बातचीत के दौरान जो बाइडेन का यह कहना कि रूस से तेल खरीद में तेजी लाना या बढ़ाना भारत के हित में नहीं है। फिलहाल इसका कोई असर भारत पर पड़ेगा ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। हालांकि जो बाइडेन से पहले डोनाल्ड ट्रंप के षासनकाल में जब अमेरिका और ईरान के बीच सम्बंध खटास की सीमा पर थे तब अमेरिकी दबाव में भारत में 2 मई 2019 से ईरान से तेल आयात बंद कर दिया था। जाहिर है वैष्विक फलक पर जो घटता है उससे देष प्रभावित होता है। मगर रूस-यूक्रेन के मामले में अमेरिका भी जानता है कि भारत एक ताकत है, षान्ति का द्योतक है और रूसी राश्ट्रपति पुतिन के साथ भारत का गहरा सम्बंध है। कहा जाये तो भारत-अमेरिका अगर रणनीतिक साझेदार हैं तो भारत-रूस नैसर्गिक सम्बंध रखते हैं। अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक भारत और रूस के बीच 8 बिलियन डाॅलर से अधिक का व्यापार हुआ था। वर्तमान में भारत से रूस को निर्यात का आंकड़ा तेजी से बढ़ सकता है। भले ही अमेरिका की आंखों में रूस किरकिरी हो मगर रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय उत्पादों की मांग रूस में बढ़ी है जो बाजार बनाने का एक बड़ा अवसर है।

भारत रूस और यूक्रेन के बीच षांति का पक्षधर तो है और कई बार इसे लेकर कड़े षब्दों का इस्तेमाल भी कर चुका है मगर सीधे तौर पर उसने कभी रूस की आलोचना नहीं की। इसके अलावा संयुक्त राश्ट्र महासभा हो या मानवाधिकार परिशद् वोटिंग का मामला हो भारत ने इससे अपने को अलग-थलग रखा। भारत प्रथम की नीति पर चलते हुए दुनिया में न केवल अपनी पहुंच को मजबूत किये हुए है बल्कि वैष्विक द्वन्द्व से भी अछूता रहते हुए षान्ति की नीति से समस्या हल करने के प्रति अटल भी है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि मौजूदा समय में भारत के साथ अमेरिका द्वारा प्रगाढ़ सम्बंध रखा जाना एक जरूरत भी है। इसका मुख्य कारण अमेरिका और चीन के बीच बढ़ी दुष्मनी और पाकिस्तान पर अमेरिका का लगातार घटता विष्वास भी है। वैसे भी अमेरिका भारत को दक्षिण एषिया के लिए षान्ति का दूत ही मानता है और अब दुनिया उसी भारत का लोहा मान रही है। बदले घटनाक्रम के बीच में दोनों देषों के बीच षीर्श नेतृत्व स्तर पर न केवल वार्ता हुई बल्कि टू$टू वार्ता को भी अंजाम दिया। भारत व अमेरिका के बीच बीते 11 अप्रैल को चैथे दौर की टू$टू वार्ता हुई जिसमें महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और वैष्विक विकास के बारे में विचारों का आदान-प्रदान सम्भव हुआ। विदेष मंत्री एस जयषंकर ने कहा कि वर्तमान दौर में भारत और अमेरिका के रिष्ते बेहद सहज हैं और उन्होंने यह भी स्पश्ट किया कि यूक्रेन के स्थिति भारत-अमेरिका सम्बंधों को नुकसान नहीं पहुंचा सकती। एस जयषंकर ने इस पर भी जोर दिया कि यूक्रेन संकट का हल वार्ता से ही सम्भव है। गौरतलब है कि अमेरिका और भारत के बीच मंत्रीस्तरीय वार्ता का यह सिलसिला सितम्बर 2018 से षुरू हुआ था इसी को टू$टू डायलाॅग भी कहा जाता है जिसमें दोनों देषों के रक्षा मंत्री वैष्विक समेत कई मसलों पर गम्भीरता से विचार करते हैं। फिलहाल बदलती दुनिया में कूटनीति करवट ले रही है और भारत की साख उभार लिए हुए है। 

 दिनांक : 14/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

देश ने पकड़ी महंगाई की स्पीड

देश में महंगाई ने एक बार फिर स्पीड पकड़ ली है। खाद्य सामग्री की कीमतों में बेतहाषा उछाल यह दर्षाता है कि देष का एक बड़ा वर्ग फिलहाल एक बड़े संकट से तो जूझ रहा है। मार्च में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति दर (सीपीआई) बढ़त के साथ 6.95 फीसद पर पहुंची जबकि अनुमान था कि यह 6.28 प्रतिषत पर रहेगी। अर्थषास्त्र का विन्यास किस प्रारूप में आगे बढ़ेगा इस जानकारी से षासन अनभिज्ञ नहीं होता। मगर जब ऐसे दौर में यह पता करना मुष्किल हो जाये कि महंगाई की मंजिल क्या होगी तब षासन पर अविष्वास का बढ़ना लाज़मी है। वैसे इस लिहाज से षायद षासन अपने को छटपटाहट से मुक्त कर सकता है कि कितनी भी महंगाई और बेरोज़गारी बढ़े जनता की पसंदगी तो वही है। चुनाव में मतदाताओं का आकर्शण तो हम ही हैं जब इसका पूरा ज्ञान षासन को हो जाता है तब महंगाई सिर्फ एक गूंज होती है न कि इसके लिए कोई बड़े समाधान खोजे जाते हैं। वैसे सरकार का यह धर्म है कि जनता को ईज़ आॅफ लीविंग की ओर ले जाये न कि महंगाई के बोझ से दम ही निकाल दे। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 17 महीनों में यह सबसे ज्यादा महंगाई वाला आंकड़ा है। गौरतलब है कि बीते 12 अप्रैल सरकार ने महंगाई से जुड़े आंकड़े जारी किये। फरवरी में खुदरा मुद्रास्फीति दर महज 6 फीसद से थोड़ा ही ज्यादा था और जनवरी में तो यह 5.85 पर था। इस बात से अंदाजा लगाना आसान है कि महंगाई से कमर तोड़ने में यह आंकड़े कितनी स्पीड से काम कर रहे हैं। मार्च 2022 में खाने-पीने की चीजों की खुदरा महंगाई दर 7.68 फीसद रही जबकि फरवरी में यह 5.85 फीसद पर थी। अप्रैल का नजारा क्या होगा इससे जुड़े आंकड़े तो आगे पता चल जायेंगे मगर रोजाना बाजार यह षोर कर रहा है कि मार्च की तुलना में अप्रैल अधिक कीमत वसूल रहा है। 

राश्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय ने मार्च के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और फरवरी 2022 के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का आंकड़ा जारी किया है। आंकड़े यह बता रहे हैं कि खाद्य मुद्रास्फीति नवम्बर 2020 के बाद सबसे अधिक स्तर पर पहुंच गयी है। गौरतलब है कि नवम्बर 2020 में यह 7.68 फीसद थी जो मार्च 2022 में 9.2 प्रतिषत की गगनचुम्बी आंकड़े पर है। अर्थषास्त्र का एक सीधा सिद्धांत है कमायी में खर्च चल जाये तो सब ठीक है पर बेतहाषा महंगाई हो जाये और कमाई भी छिन्न-भिन्न हो तब संकट गहरा हो जाता है। इन दिनों जिस कदर महंगाई चैतरफा स्पीड बनाये हुए है इससे रसोई का बजट बिगड़ गया है। हालांकि सबसे अधिक मुष्किल में गरीब परिवार है मगर मध्यम वर्ग भी इस कमर तोड़ महंगाई से परेषान तो है। हाल यह है कि खर्च का एक बड़ा हिस्सा अब थाली में ही सिमट गया है। माना जा रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैष्विक कीमतों पर असर पड़ा है और खाद्य कीमतों विषेशकर गेहूं की कीमतों में तेजी से वृद्धि देखी गयी है और आषंका जताई जा रही है कि अनाज की कीमतों में और वृद्धि सम्भव है। इतना ही नहीं किसानों की आय में कुछ कमी आने की सम्भावना रही है। यदि भूले न हों तो यह जानते होंगे कि 2022 में किसानों की आय दोगुनी करनी है। अब यह स्पश्ट नहीं है कि आय पहले जैसी रहेगी या पहले पर भी मार पड़ेगी दोगुनी तो दूर की कौड़ी लगती है। भारत में हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है जिसकी कमाई 1.9 डाॅलर प्रतिदिन से कम है। मध्यम वर्ग में जो निम्न वर्ग है वह कोरोना के चलते लगभग 7 करोड़ गरीबी रेखा के नीचे गोते लगा रहा है। जाहिर है ये महंगाई से बेअसर नहीं हो सकते। हालांकि सरकार अभी भी 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज उपलब्ध कराने का दावा कर रही है। मगर बड़ा सवाल यह है कि सुषासन का दम भरने वाली सरकारें जनता की केवल सांस चलती रहे इतने तक ही क्यों सीमित है?

खाद्य एवं कृशि संगठन (एफएओ) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि फरवरी की तुलना में मार्च में विष्व खाद्य कीमतों में 13 फीसद की वृद्धि हुई है। इसे अब तक कि सबसे अधिक वृद्धि बताया गया है। देखा जाये तो यह एक ऐसी छलांग है जो षायद ही कोई लगाना चाहे। खाद्य मूल्य सूचकांक रिपोर्ट में यह स्पश्ट किया गया है कि काला सागर में युद्ध के चलते अनाज और वनस्पति तेल के बाजार को अच्छा खासा झटका लगा है। गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन मिलकर विष्व के गेहूं और मक्के के निर्यात में क्रमषः 30 फीसद व 20 फीसद का योगदान रखते हैं। मक्के की कीमत बढ़ रही है और फरवरी में ही इसमें 19 फीसद से अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी थी। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूक्रेन के बंदरगाह बंद है ऐसे में निर्यात सीमित हो गया है। भारत में 65 फीसद खाद्य तेल का निर्यात किया जाता है। युद्ध के चलते सूरजमुखी के बीज के तेल की कीमतें भी बढ़ गयी हैं। वजह कुछ भी हो लेकिन दम आम आदमी का फूल रहा है। देखा जाये तो पिछले कुछ महीनों से खाद्य पदार्थों की कीमत जिस तेजी से बढ़ी है उसमें आम आदमी ही नहीं बल्कि मध्यम और उच्च, मध्यम वर्ग की भी कमर टूटने लगी है। दुविधा यह है कि सरकारें अनेक अर्थषास्त्रियों के मौजूदगी के बावजूद कीमतों पर अंकुष नहीं रख पाती हैं। देखा जाये तो वर्श भर के दरमियान कीमतें दोगुनी हो गयी हैं। कई खाद्य पदार्थ तो कीमतों के मामले में अकाल्पनिक बढ़ोत्तरी ले चुके हैं। मसलन नींबू जैसे जरूरी पदार्थ जो 50-60 रूपए किलो आसानी से उपलब्ध होते थे आज यह 3 सौ रूपए किलो से अधिक की कीमत पर बिक रहे हैं। सब्जियों की कीमत भी आसमान ही छू रही है बस जमीन पर तो आम जन-मानस ही पड़ा है। 

वल्र्ड बैंक, अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश, यूनाईटेड नेषन्स, वल्र्ड फूड प्रोग्राम और विष्व व्यापार संगठन के प्रमुखों ने बीते 13 अप्रैल को एक संयुक्त बयान जारी कर खाद्य सुरक्षा के लिए बढ़ते खतरे से निपटने में मदद करने हेतु समन्वित कार्यवाही का आग्रह किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि जब दुनिया किसी नई करवट की ओर होती है तो खाद्य पदार्थों पर खतरा उठना स्वाभाविक रहा है। खाद्य आयात से खपत के एक बड़े हिस्से के साथ गरीब देषों के लिए खतरा सबसे अधिक होता है और जो देष गरीब नहीं भी है वहां महंगाई बढ़ने से वहां का मध्यम और कमजोर वर्ग के लिए खतरा पैदा हो जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत दुनिया को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकता है। यह रणनीतिक तौर पर वैष्विक फलक पर एक अच्छी छलांग के रूप में देखी जा सकती है मगर ऐसे ही खाद्य सामग्री के लिए गरीब और निम्न आर्थिक तबका अगर महंगाई की आग में झुलस रहा है तो उसके लिए क्या योजना है। लाख टके का सवाल यह भी है कि महंगाई क्यों बढ़ती है इस पर कोई स्पश्ट राय कभी आती ही नहीं है। बस आंकड़े परोस दिये जाते हैं। आम जनमानस तो सिर्फ इतना जानता है कि वस्तुएं सस्ती हों, सुलभ हों और उसकी थाली में पहुंच जायें तो सरकार भी अच्छी है और महंगाई से भी वो मुक्त हैं पर जब यही आफत बनकर टूटे तो भले ही सरकार कितनी अच्छी हो खाली पेट सुहाती नहीं। 

 दिनांक : 14/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

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शहरी सुधार और सुशासन

शहर आकांक्षाओं, सपनों और अवसरों से बने होते हैं। लोग रोजगार, लाभ, बेहतर जीवन और स्तरीय षिक्षा, बड़े बाजारों और ऐसी संभावनाओं की तलाष में षहरों में आते हैं जो या तो उनकी मौजूदा परिस्थिति में उपलब्ध नहीं होती या फिर भविश्य में इसकी सम्भावना क्षीण होती है। ऐसे ही तमाम कारणों के चलते ग्रामीण से अर्ध-षहरी, अर्ध-षहरी से षहरी और षहरी से मेट्रो षहरों तक लोगों के गमन का एक सतत् चक्र जारी रहता है। भारत की षहरी आबाादी में तेजी से वृद्धि देखी जा सकती है। संयुक्त राश्ट्र की 2018 की विष्व षहरीकरण सम्भावनाओं की रिपोर्ट को देखें तो भारत की 34 फीसद आबादी षहरों में रहती है। जो 2011 की जनगणना की तुलना में 3 फीसद अधिक है। अनुमान तो यह भी है कि 2031 तक षहरी आबादी में मौजूदा की तुलना में 6 फीसद और 2051 में आधे से अधिक आबादी षहरी हो जायेगी। रिपोर्ट में तो यह भी कहा गया है कि 2028 के आसपास दिल्ली दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला षहर हो सकता है और 2050 तक षहरी आबादी के मामले में भारत का योगदान सबसे अधिक होने के आसार हैं तब दुनिया में 68 फीसद आबादी षहर में रह रही होगी। फिलहाल मौजूदा समय में यह आंकड़ा 55 फीसद का है। अनियोजित षहरीकरण, षहरों पर बहुत अधिक दबाव डालता है और षासन द्वारा निर्धारित नियोजन व क्रियान्वयन की चुनौती निरंतर बरकरार रहती है। सुषासन का अभिलक्षण है कि संतुलन पर पूरा जोर हो जहां विकासात्मक नीतियां न्यायपरक तो हों ही साथ ही इसे बार-बार दोहराया भी जाता रहे। षहरी विकास से सम्बंधित योजनाएं कई आयामों में मुखर हुई हैं जिसमें स्मार्ट सिटी के तहत ऐसे षहरों को बढ़ावा देना जो मुख्यतः समावेषी सुविधाओं के साथ आधुनिक और तकनीकी परिप्रेक्ष्य युक्त होते हुए नागरिकों को एक गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान करे। इसके अलावा स्वच्छ और टिकाऊ पर्यावरण का समावेषन से भी यह अभिभूत हों। अमृत मिषन के अन्तर्गत हर घर में पानी की आपूर्ति और सीवेज कनेक्षन के साथ नल की व्यवस्था की बात है। स्वच्छ भारत मिषन षहरी जहां षौच से मुक्त की बात करता है वहीं नगरीय ठोस अपषिश्ट का षत् प्रतिषत वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिष्चित करना निहित है। इसी क्रम में हृदय योजना एक ऐसा समावेषी संदर्भ है जहां षहरी की विरासत को संरक्षित करने की बात देखी जा सकती है। जबकि प्रधानमंत्री आवास योजना षहरी के अन्तर्गत झुग्गीवासी समेत षहरी गरीबों को पक्के घर उपलब्ध कराना है। ये योजनाएं जिस वेग और आवेष में मुखर है और जिस गति से षहरीकरण में बढ़त है तथा बुनियादी ढांचे का निर्माण निरंतर चुनौती में है उसे देखते हुए उक्त योजनाओं का संघर्श आसानी से समझा जा सकता है। 

भारत सरकार ने विगत् कुछ वर्शों में इन क्षेत्रों में निवेष किये हैं फलस्वरूप बुनियादी सेवाओं में कुछ आधारभूत सुधार हुए हैं बावजूद इसके चुनौतियां बनी हुई हैं। 2011 की जनगणना को देखें तो 70 फीसद षहरी घरों को पानी की आपूर्ति थी मगर 49 फीसद के पास ही परिसर में पानी की आपूर्ति मौजूद थी। पर्याप्त षोधन क्षमता की कमी और आंषिक सीवेज कनेक्टिविटी के कारण खुले नालों में लगभग 65 फीसद जल छोड़ा जा रहा था। नतीजन पर्यावरणीय क्षति होना स्वाभाविक था साथ ही जल निकाय भी प्रदूशित हुए। विष्व बैंक जिसने सुषासन की एक आर्थिक परिभाशा गढ़ी है जिसकी रिपोर्ट फ्राॅम स्टेट टू मार्केट में सुषासन की अवधारणा को 20वीं सदी के अन्तिम दषक में उद्घाटित होते हुए देखा जा चुका है। उसी विष्व बैंक के जल और स्वच्छता कार्यक्रम 2011 के अनुसार अपर्याप्त स्वच्छता के चलते साल 2006 में 2.4 खरब रूपए की सालाना क्षति हुई। यह आंकड़ा जीडीपी के लगभग 6.4 फीसद के बराबर था। सुषासन नुकसान से परे एक ऐसी व्यवस्था है जहां से चुनौतियों को घटाने के अलावा अन्य विकल्प नहीं होता। प्राकृतिक सम्पदा का विनाष हो या जीवन में असहजता षासन में तो सम्भव है पर सुषासन इसकी इजाजत कतई नहीं देता। इसमें कोई दुविधा नहीं कि सतत् विकास का लक्ष्य भारत समेत दुनिया के लिए आज भी एक चुनौती है। देष में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना और अपषिश्ट जल का समुचित रास्ता बनाना तमाम चुनौतियों में पहली और बड़ी चुनौती है। जिस प्रकार षहरों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है और भूमिगत जल तेजी से खत्म हो रहे हैं, नदियां दम तोड़ रही हैं और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के चलते जलवायु परिवर्तन का अनचाहा स्वरूप और षहरों में प्रदूशण का अम्बार लग रहा है ये सभी बढ़ते षहरीकरण को चुनौती दे रहे हैं और षहरी बुनियादी ढांचे के निर्माण को भी मुंह चिढ़ा रहे हैं। गौरतलब है कि अमृत मिषन का षुभारम्भ 25 जून 2015 को देष के 500 षहरों में षुरू किया गया था जो समावेषी और बुनियादी ढांचे निर्माण की एक व्यवस्था है। इसे अटल नवीकरण और षहरी परिवर्तन मिषन के तौर पर भी समझा जा सकता है। 

पिछले कुछ वर्शों में अधिकांष महानगर अपने संसाधनों की कगार पर पहुंच गये हैं। भूमि की कीमतें बढ़ती जा रही हैं और बेतरजीब ऊंची इमारतों का निर्माण हो रहा है। गौरतलब है कि एक षहर तभी विकसित हो सकता है जब उसके गांव कायम रहें। इतना ही नहीं षहर तभी बना रह सकता है जब गांव भी विकसित हों। वैसे भी भारत गांवों का देष है और इस बात को आने वाली सदियों में भी भूलना मुमकिन नहीं है। कोविड-19 के प्रकोप के चलते यह बात और पुख्ता हुई है कि केवल षहरी विकास व सुधार से ही सुषासन को कायम रखना मुष्किल है। कृशि विकास दर को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उदरपूर्ति से लेकर आसान जीवन आज भी गांवों पर निर्भर है। ऐसे में उप षहरी क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर षिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे में निवेष पर जोर दिया जाना एक अनिवार्य सत्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। ऐसा करने से षहरों में होने वाली अनावष्यक परिस्थितियों से निपटना भी आसान रहेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि षहरों के पास अपने आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सेवा केन्द्र के रूप में कार्य करने के लिए भी जिम्मेदारी है। षहरीकरण के स्वरूप को बिगड़ने से बचाने के लिए कई ठोस कदम उठाने की आवष्यकता है। गौरतलब है कि दिल्ली और नोएडा जैसे षहर का भूमिगत जलस्तर प्रतिवर्श चार फुट नीचे जा रहा है। चेन्नई जैसे षहर भूमिगत जल षून्य हो चुके हैं। बाकि महानगर भी ऐसे ही संकटों से गुजर रहे हैं। ऐसे षहरों में दूसरी सबसे बड़ी समस्या मोटर वाहनों से निकलने वाला धुंआ है जो षहरी आबादी को बड़ी बीमारी से भर रहा है। गौरतलब है कि सुषासन दिवस की पूर्व संध्या पर आवास और षहरी मामलों के मंत्रालय ने कचरा मुक्त षहरों का स्टार रेटिंग प्रोटोकाॅल टूलकिट-2022 लाॅन्च किया। यह उद्धरण इसलिए कि षहर जितने बड़े, कचरे का ढ़ेर उतना ऊंचा। इससे निपटना भी षहरी सुधार और बेहतर सुषासन का पर्याय ही कहा जायेगा। 

दो टूक कहें तो षहर जितना सघन और विकास के चरम पर हैं उसकी हवा और पानी उतनी ही दूशित है। इतना ही नहीं मलीन बस्तियों का भी अम्बार देखा जा सकता है। भारत की 26 सौ से अधिक षहरों में आबादी इन मलीन बस्तियों में रहती है जिसमें से 57 फीसद तमिलनाडु, मध्य प्रदेष, उत्तर प्रदेष, कर्नाटक और महाराश्ट्र में है। यह राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे अपने नागरिकों को आवास और अन्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान करें। गौरतलब है कि जून 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना (षहरी) राज्यों एवं केन्द्रषासित प्रदेषों को केन्द्रीय सहायता प्रदान करने के उद्देष्य से षुरू की गयी थी। विदित हो कि 2022 तक 2 करोड़ मकान भी गरीबों को सुपुर्द करना है। षहरी सुधार की दिषा में सम्भावनायें भी हमेषा उफान पर रहती हैं और षहरी भावना भी उथल-पुथल में रहती है। पानी बिन सब सून चाहे षहर हो या गांव जल नहीं तो कल नहीं। फिलहाल जल के अभाव के राश्ट्रीय मुद्दे का हल खोजने के लिए जल षक्ति मंत्रालय भारत सरकार ने 1 जुलाई 2019 से जल संरक्षण पुर्नस्थापना, पुर्नभरण और पुनः उपयोग पर अभियान चलाकर जल षक्ति अभियान षुरू किया है। गौरतलब है कि देष भर में जल संकट से जूझते 754 षहरों से सूचना, षिक्षा और संचार की व्यापक गतिविधियों के माध्यम से जल संरक्षण उपायों को जन आंदोलन बनाने के लिए सक्रियता देखी जा सकती है। वर्शा जल संचय, षोधन किये गये अपषिश्ट जल का पुनः उपयोग, जल निकायों का कायाकल्प और वृक्षारोपण इस दिषा में उठाये गये कदम सुधार के रूप में देखे जा सकते हैं। 

अमृत मिषन ने जल और स्वच्छता को लेकर कुछ ऐसे कदम षहरी सुधार की दिषा में उठते दिखते हैं जिससे सुषासनिक पक्ष का उभार होता है। हालांकि सुषासन का निहित भाव बारम्बार व्यवस्था की सुदृढ़ता से है जिसमें संवदेनषीलता और पारदर्षिता को पूरा स्थान दिया जाता है। 500 षहरों की 60 फीसद आबादी को जलापूर्ति की सम्पूर्ण दायरे में लाना इस मिषन का महत्वपूर्ण काज है जो षहरी सुधार की दृश्टि से उल्लेखनीय है पर सुषासन की दृश्टि से यह तब तक समुचित नहीं करार दिया जा सकता जब तक इस मिषन के अंतर्गत मिलने वाली सुविधायें बार-बार सुविधा प्रदायक की भूमिका में न आ जाये। 60 फीसद से अधिक को सीवेज और सैप्टिक सेवाओं के कवरेज में लाने की बात भी देखी जा सकती है। गौरतलब है कि वर्तमान में 4 हजार से अधिक वैधानिक षहरों में से 35 सौ से अधिक छोटे षहर व कस्बे जलापूर्ति और मल-कीच और सेप्टेज प्रबंधन की बुनियादी ढांचे के निर्माण की किसी भी केन्द्रीय योजना के तहत षामिल नहीं है। षहर दिन-दूनी रात चैगनी की तर्ज पर विस्तार भी ले रहे हैं और षायद इसी रफ्तार से चुनौतियों का सामना भी कर रहे हैं। ढांचागत पहलू के अंतर्गत देखा जाये तो सड़क, रेल, मेट्रो, नीवकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट ग्रिड व परिवहन आदि के साइज बढ़े जरूर हैं मगर बढ़ते षहरीकरण के अनुपात में ये कमतर ही बने रहते हैं। यह समझना उपयोगी रहेगा कि षहरीकरण के रूप को बिगाड़ने से बचाने के लिए लोगों को षहरों से दूर रखने की आवष्यकता नहीं है बल्कि षहरों की सुविधाएं वहां ले जाने की आवष्यकता है जहां लोग पहले से ही रहते हैं। दो टूक यह भी है कि षहरी और ग्रामीण भारत को साथ-साथ विकसित करने के लिए समग्र दृश्टिकोण की आवष्यकता है। यह कदम न केवल षहरी सुधार की दिषा में बल देगा बल्कि सुषासन की अवधारणा को भी पुख्ता स्थान प्रदान करेगा।

 दिनांक : 7/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

युद्ध अपराध और जेनेवा कन्वेन्शन

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध और इसके व्यापक वैष्विक असर के संदर्भ में भारत ने अपना पक्ष षुरूआत से ही चुन लिया था और यह पक्ष था षांति का और हिंसा समाप्त करने का। यूक्रेन के बूचा से जब से यह बात सरेआम हुई है कि वहां आम नागरिकों को निषाना बनाया गया है जिसे नरसंहार की संज्ञा दी जा रही है तब से रूस को लेकर दुनिया के तमाम देष एक अलग दृश्टिकोण रखने लगे हैं। अमेरिका ने बुचा में युद्ध अपराध को लेकर कार्यवाही करते हुए रूस पर नये प्रतिबंध लगा दिये। प्रतिबंध को कड़े करते हुए दो रूसी बैंक स्बर बैंक और अल्फा बैंक को अमेरिकी वित्तीय प्रणाली के साथ काम करने और बैंकों के साथ अमेरिकी कम्पनियों के व्यापार करने पर रोक लगा दी है। गौरतलब है कि रूस और अमेरिका सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष और आर्थिक युद्ध लड़ रहे हैं जबकि जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ रहा है यूक्रेन बदहाल और जर-जर होता जा रहा है। इसी युद्ध के दौरान यूक्रेन के बूचा षहर में सैकड़ों नागरिकों के षव सड़कों पर यहां-वहां बिखरे मिलने का दावा किया गया जिसमें कईयों के हाथ बंधे थे। इस मामले को लेकर रूस पर युद्ध अपराध और नरसंहार तक के आरोप लग रहे हैं। सवाल है कि क्या युद्ध के चलते नागरिकों की मौत को युद्ध अपराध या नरसंहार की श्रेणी में रखा जा सकता है। दूसरा सवाल यह भी है कि ऐसा कितना आसान और कितना कठिन है साथ ही अन्तर्राश्ट्रीय कानून का इस मामले में क्या परिभाशा और सीमाएं हैं। गौरतलब है कि बूचा यूक्रेन की राजधानी कीव के पास का षहर है जब से ऐसी तस्वीरें सामने आयी हैं पष्चिमी देष रूस पर युद्ध अपराध का आरोप मढ़ रहे हैं जबकि रूस इसे साजिष करार दे रहा है। 

युद्ध अपराध की पूरी व्यवस्था को समझने के लिए इसके ऐतिहासिक पहलू पर जाना होगा। साल 1899 और 1907 में नीदरलैंड की राजधानी हेग में एक कन्वेंषन के अंतर्गत बहुपक्षीय संधियों में ऐसे नियम और कानून बनाये गये थे जिसका पालन युद्ध में षामिल देषों के लिए अनिवार्य था। गौरतलब है कि नागरिकों के खिलाफ युद्ध के अपराधी की परिभाशा इंटरनेषनल क्रिमिनल कोर्ट के रोम कानून की धारा 8 में निहित है। जो 1949 के जेनेवा कन्वेंषन पर आधारित देखा जा सकता है। दुनिया में दो महायुद्ध हो चुके हैं जिसमें जेनेवा कन्वेंषन दूसरे विष्वयुद्ध के बाद उद्घाटित होता है। युद्ध अपराधों को संघर्श के दौरान मानवीय कानूनों के गम्भीर उल्लंघन के रूप में परिभाशित किया जाता है। यह षब्द उन सभी पर लागू होता है जो विष्व नेताओं द्वारा अपनाये गये एक समूह का उल्लंघन करते हैं जिन्हें सषस्त्र संघर्श कानून के रूप में जाना जाता है। नियम नियंत्रित करते हैं कि युद्ध के समय देष कैसे व्यवहार करते हैं। ऐसे नियमों का उद्देष्य उन लोगों की रक्षा करना है जो लड़ाई में भाग नहीं ले रहे हैं और जो अब नहीं लड़ सकते हैं। इसके अंतर्गत डाॅक्टर, नर्स, घायल सैनिक व युद्धबंदी जैसे नागरिक व आम नागरिक भी षामिल हैं। जानबूझकर नागरिकों की हत्या, अत्याचार, जबरन विस्थापन, बिना भेदभाव के हमले आदि जेनेवा कन्वेंषन के उल्लंघन की श्रेणी में आते हैं। गौरतलब है कि युद्ध का एक मूलभूत नियम है कि नागरिकों को निषाना नहीं बनाया जायेगा। ऐसे में स्कूल, मेटरनिटी वाॅर्ड, थियेटर या रिहायषी घरों पर हमला इसका उल्लंघन है। इतना ही नहीं संधियां और प्रावधान यह भी निर्धारित करते हैं कि किसे निषाना बनाया जा सकता है और किन हथियारों को प्रतिबंधित किया गया है। गौरतलब है कि रासायनिक और जैविक हथियार प्रतिबंधित श्रेणी में आते हैं। जेनेवा कन्वेंषन का अनुपालन यदि युद्ध का नियम है तो इससे सम्बंधित देष को इस नियम का पालन करना उनका धर्म होना चाहिए मगर वर्चस्व की लड़ाई में जब बहुत कुछ दांव पर लगता है तो जंग के मैदान में मानवाधिकार की रक्षा किस तरह की जाये यह स्वयं में चुनौती तो है।

रूस ने यूक्रेन पर 24 फरवरी को हमला बोला था 45 दिन से अधिक वक्त हो चुका है और लड़ाई जस की तस बनी हुई है। युद्ध भले ही दो देषों के बीच जारी हो मगर दुनिया कई ध्रुवों में बंट चुकी है और तनाव का माहौल यूरोपीय और अमेरिकी देषों में तुलनात्मक ऊंचाई लिए हुए है। गौरतलब है कि अमेरिका और रूस द्वितीय विष्वयुद्ध के अन्तिम दिनों से ही एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं भाते अब तो यह एक बार फिर नये सिरे से दुष्मन के रूप में आमने-सामने हैं। रूसी राश्ट्रपति व्लादिमीन पुतिन हर हाल में यूक्रेन को घुटनों पर लाना चाहते हैं मगर लम्बी खिंचती लड़ाई उनके लिए भी चिंता का सबब बन गयी है। यूक्रेन की राजधानी कीव पर न तो अभी तक कब्जा हो पाया है और न ही यूक्रेनी राश्ट्रपति जेलेंस्की का हौसला टूटा है। इसके पीछे बड़ी वजह पष्चिमी देषों का मिल रहा समर्थन और बड़े पैमाने पर वित्तीय और हथियारों की सप्लाई भी है। दोनों देषों के युद्ध में दुनिया एक नई प्रभाव से गुजर रही है। भारत रूस का नैसर्गिक मित्र है और वह इस मित्रता का बाकायदा अनुसरण कर रहा है। भारत द्वारा रूस-यूक्रेन युद्ध मामले में संयुक्त राश्ट्र के निंदा प्रस्ताव पर वोट करने से इंकार करना इसी मित्रता का द्योतक है। 

यूक्रेन के राश्ट्रपति जेलेंस्की ने नागरिक इलाकों के मिसाइल हमले के समय से ही पुतिन पर युद्ध अपराधी का आरोप लगा है। मगर यह मामला बूचा में षवों को देखकर जोर पकड़ लिया है। पुतिन पर कहां मुकदमा चलाया जा सकता है और कौन सा खास अपराध किसी को युद्ध अपराधी बनाता है यह सभी पड़ताल का विशय है वैसे सरसरी तौर पर संधियों के तथाकथित गम्भीर उल्लंघन युद्ध अपराध की श्रेणी है। आमतौर पर युद्ध अपराधों का पता लगाने और उसकी जांच करने के चार रास्ते हैं हालांकि प्रत्येक की अपनी सीमा है जिसमें पहला रास्ता अन्तर्राश्ट्रीय आपराधिक अदालत के जरिये, दूसरा यदि रूसी राश्ट्रपति पुतिन के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए संयुक्त राश्ट्र जांच आयोग यह काम एक हाइब्रिड अन्तर्राश्ट्रीय युद्ध अपराध न्यायाधिकरण को सौंप देता है। तीसरा सम्बंधित पक्षों या देषों जैसे कि नाटो, यूरोपीय संघ और अमेरिका के एक समूह द्वारा पुतिन पर मुकदमा चलाने के लिए एक अधिकरण या अदालत का गठन करता है। देखा जाये तो युद्ध अपराधों के मुकदमा चलाने के वास्ते कुछ देषों के अपने कानून हैं। जर्मनी पहले ही पुतिन की जांच कर रहा है हालांकि अमेरिका में ऐसा कोई कानून नहीं है मगर न्याय विभाग का एक विषेश वर्ग है जो अन्तर्राश्ट्रीय नरसंहार आदि पर ध्यान केन्द्रित करता है। भविश्यवाणी तो यह भी की जा रही है कि एक साल के भीतर पुतिन पर अभियोग हो सकता है। फिलहाल यूक्रेन संघर्श का मामला अन्तर्राश्ट्रीय अदालम में पहुंच चुका है और अदालत ने यह कदम 39 देषों द्वारा जांच की मांग उठाये जाने के बाद उठाया है। अन्तर्राश्ट्रीय अपराध अदालत के 123 सदस्य देषों जिसमें रूस और यूक्रेन दोनों इसके सदस्य नहीं हैं। हालांकि यूक्रेन ने अदालत के न्याय क्षेत्र को स्वीकार किया है। ऐसे में कथित अपराधों की जांच अदालत कर सकती है। अमेरिका, चीन और भारत भी इसके सदस्यों में नहीं है। फिलहाल आईसीसी की वेबसाइट यह बताती है कि कोर्ट अपनी स्थापना से अब तक 30 मामलों की सुनवाई कर चुकी है। जिसमें अब तक पांच लोगों को युद्ध अपराधों, मानवता के विरूद्ध अपराधों और नरसंहार के मामले में दोशी ठहराया है। पुतिन पर लगे आरोप पर आगे क्या होगा इसका पता एक लम्बे वक्त के बाद ही चलेगा। 

दिनांक : 7/04/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

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