Sunday, August 23, 2020

ई-शिक्षा के लिए वरदान है ई-गवर्नेंस

कोविड-19 के इस काल खण्ड में षिक्षा बहुत बड़ी मुष्किल का सामना कर रही है। इससे निपटने के लिए स्कूल, काॅलेज और विष्वविद्यालयों ने डिजिटल अर्थात् ई-षिक्षा का रास्ता चुना है। आॅनलाइन कक्षा के साथ परीक्षा के सफर में कई अवरोध हैं मगर ई-गवर्नेंस की उपस्थिति से इसमें व्याप्त सम्भावनाओं को बल भी मिला है। दषकों के प्रयास के बाद जब 2006 में ई-गवर्नेंस आंदोलन मूर्त रूप लिया था जिसकी बनावट और जमावट ने ई-सुविधा, ई-अस्पताल, ई-याचिका और ई-अदालत सहित कई ऐसे ‘ई‘ को गहित मिली जो सुषासन को ऊँचाई देता है। इसी का एक कदम ई-षिक्षा को देखा जा सकता है। हालांकि ई-षिक्षा दुनिया में नई विधा नहीं है मगर वर्तमान में इसका विस्तार व्यापक रूप ले लिया है। स्टडी एट होम की अवधारणा से युक्त ई-षिक्षा एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरी है। कक्षा से लेकर परीक्षा तक इसकी उपादेयता देखी जा सकती है। कोरोना वायरस का प्रभाव हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर न पड़े ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई देता और न ही षिक्षा व्यवस्था के पहले जैसे होने की स्थिति दिखती है। बहुत से लोग जब पीछे मुड़ कर देखेंगे तो पायेंगे कि उनके जीवन की कई चीजें बदल गयी हैं। स्कूल का विद्यार्थी हो या विष्वविद्यालय का षोधार्थी या फिर सिविल सेवा परीक्षा का प्रतियोगी सभी मोबाइल स्टडी की जकड़न में आ चुके हैं। यह समय की मांग है या मजबूरी इस पर अभी पूरा चिंतन आना बाकी है। गौरतलब है कि भारत समेत दुनिया के अनेक देष और जाने-माने षिक्षण संस्थाएं क्लासरूम टीचिंग से डिजिटल षिक्षा की ओर तेजी से कदम बढ़ा चुकी हैं। दुनिया समेत भारत का षैक्षणिक वातावरण नेटवर्क और आॅनलाइन पर इन दिनों टिक गया है। यूनेस्को की माने तो 14 अप्रैल 2020 तक जब भारत का पहला 21 दिन का लाॅकडाउन समाप्त हुआ था, कोरोना के चलते डेढ़ अरब से अधिक छात्र-छात्राओं की षिक्षा प्रभावित हो चुकी थी। रूस, आॅस्ट्रेलिया, कानाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी समेत स्पेन तथा ग्रीनलैण्ड व भारत आदि देष लम्बे समय तक लाॅकडाउन में रहे जिसका सीधा और प्रत्यक्ष प्रभाव षिक्षा पर भी देखा जा सकता है। 136 करोड़ जनसंख्या वाला भारत में लाॅकडाउन के चलते 32 करोड़ छात्रों का पठन-पाठन प्रभावित हुआ जबकि आंकड़े चीन में 28 करोड़ ईरान में 2 करोड़ तथा इटली व स्पेन जैसे देषों में एक-एक करोड़ प्रभावित होने का इषारा कर रहे हैं।

जब कभी देष में ई-गवर्नेंस की बात होती थी तब नये डिजाइन और सिंगल विंडो संस्कृति प्रखर होती थी। नागरिक केन्द्रित व्यवस्था के लिए सुषासन प्राप्त करना एक लम्बे समय की दरकार रही है। ऐसे में ई-गवर्नेंस इसका बहुत बड़ा आधार है। ई-गवर्नेंस एक ऐसा क्षेत्र है और एक ऐसा साधन भी जिसके चलते नौकरषाही तंत्र का समुचित प्रयोग करके व्याप्त व्यवस्था की कठिनाईयों को समाप्त किया जा सकता है। देखा जाय तो नागरिकों को सरकारी सेवाओं की बेहतर आपूर्ति, प्रषासन में पारदर्षिता की वृद्धि के साथ ही सुषासन प्रक्रिया में व्यापक नागरिक भागीदारी मन-माफिक पाने हेतु ई-गवर्नेंस कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। ई-गवर्नेंस स्मार्ट सरकार का भी एक ताना-बाना है। जब गवर्नेंस मजबूत आधार लेता है तब उस पर कई आयाम स्थान पाते हैं। ई-गवर्नेंस ने ही स्मार्ट एजूकेषन और ई-षिक्षा को रास्ता दिया है जो षिक्षा में सुषासन का एक चैड़ा रास्ता बनाता है जिसकी यात्रा 5 दषक पुरानी है। भारत सरकार ने इलैक्ट्राॅनिक विभाग की स्थापना 1970 में की और 1977 में राश्ट्रीय सूचना केन्द्र के गठन के साथ ई-षासन की दिषा में कदम रख दिया गया था। जिसका मुखर पक्ष जुलाई 1991 के उदारीकरण के बाद दिखाई देता है। साल 2006 में राश्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के प्रकटीकरण ने दक्षता, पारदर्षिता और जवाबदेहिता को सुनिष्चित कर दिया। प्रषासनिक प्रक्रियाओं को न केवल सरल किया बल्कि नीति-निर्माण से लेकर नीति क्रियान्वयन तक पारदर्षिता और जवाबदेहिता को फलक पर ला दिया। फिलहाल किसी भी परिघटना को बेहतर परिणाम में परिवर्तित करने का ई-गवर्नेंस एक आधार बन गया है और इसी के चलते सिंगल विंडो कल्चर की प्रासंगिता देखी जा सकती है जो कार्य सरलीकरण का परिचायक है। ई-षिक्षा को बढ़ावा देने में आज इसकी भूमिका बढ़े हुए कद के साथ देखी जा सकती है। एक दर्जन षिक्षा से सम्बन्धित चैनल का निर्माण किया जाना पठन-पाठन को सषक्त बनाने की दिषा में बड़ा कदम है। जबकि करोड़ों छात्र-छात्राएं राश्ट्रीय छात्रवृत्ति हेतु ई-पोर्टल से बरसों पहले ही जुड़ चुके हैं। बीते तीन सालों में 5 हजार करोड़ की राषि इसके माध्यम से भुगतान भी की जा चुकी है। हाल ही में किसान सम्मान योजना के तहत भी करोड़ों किसानों को उनके खाते में पैसा भेजने का माध्यम जो ई-बैंकिंग का काम कर रहा है। डिजिटली साक्षरता को भी खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। रोज़गार उद्यमिता के लिए भी डिजिटल इण्डिया को सकारात्मक दृश्टि से देखा गया। ये भी ई-गवर्नेंस और गुड गवर्नेंस का विस्तार है। 

ई-लर्निंग, ई-षिक्षा, ई-बैंकिंग या किसी भी प्रकार की ई-सुविधा का सीधा सरोकार इंटरनेट कनेक्टिविटी से है जो मोबाइल, कम्प्यूटर और लैपटाॅप आदि से युक्त विधा है। भारत एक विकासषील देष है यहां साइबरी जाल अभी न पूरी तरह है और न सब की पहुंच में है। भारत में साढे छः लाख गांव, ढ़ाई लाख पंचायतें और 676 जिले हैं जिसमें व्यवस्था और नागरिक दोनों की दृश्टि से व्यापक आर्थिक असमानता है। फलस्वरूप सभी की पहुंच इलैक्ट्राॅनिक विधा तक अभी सम्भव नहीं हुई है। ऐसे में ई-षिक्षा बड़े और मझोले षहर तक सीमित है। आॅडिट एण्ड मार्केटिंग की षीर्श एजेंसी केपीएमजी और गूगल ने भारत में आॅनलाइन षिक्षा 2021 षीर्शक से एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें 2016 से 2021 की अवधि के बीच ई-षिक्षा कारोबार 8 गुना वृद्धि करने की बात है। 2016 में यह 25 करोड़ डाॅलर का था और 2021 में 2 अरब डाॅलर की सम्भावना बताई गयी है। फिलहाल देष के हजार विष्वविद्यालय और 40 हजार महाविद्यालय में 4 करोड़ विद्यार्थी हैं। 10वीं 12वीं कक्षाओं में अलग-अलग बोर्डों को मिलाकर करोड़ों में छात्र हैं। इन्हें देखते हुए इंटरनेट षिक्षा यानि ई-षिक्षा के लाभ और कारोबार को समझा जा सकता है। मगर आने वाले वर्शोे में यह सभी तक तभी पहुंच बना पायेगा जब जब इंटरनेट और बिजली से भारत का कोना-कोना युक्त होगा। अमेरिका में डेढ़ दषक पहले साल 2006 में ई-षिक्षा का तेजी से प्रसार हुआ और 2014 आते-आते यहां उच्च षिक्षा में ई-षिक्षा के रूप में बड़े पैमाने पर विकसित हुआ। गौरतलब है 33 करोड़ की जनसंख्या वाला अमेरिका कोरोना की चपेट में दुनिया के किसी भी देष से सर्वाधिक पीड़ित वाला देष है और यहां की षिक्षण संस्थाएं एक साल के लिए बन्द कर दी गयी हैं। ऐसे में ई-षिक्षा की प्रासंगिकता यहां तेजी से विस्तार ले चुकी है। इसका सबसे बड़ा फायदा इसलिए सम्भव हो रहा है क्योंकि यहां नेटवर्क, इंटरनेट कनेक्टिविटी कमोबेष सभी की पहुंच में है। भारत में ई-षिक्षा व्यापक सम्भावनाओं से भरा हुआ है। कोरोना के इस दौर में इंटरनेट कनेक्टिविटी को लेकर कार्यों में गति आयी है। मगर समस्या यह है कि हर चैथा व्यक्ति यहां गरीबी रेखा के नीचे है ऐसे में आर्थिक संकट के चलते उसे इंटरनेट से जोड़ पाना मुष्किल हो रहा है। 2017 तक भारत में केवल 34 प्रतिषत आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती थी। वर्तमान में यह आंकड़ा 55 करोड़ पार कर गया है और 2025 तक यह 90 करोड़ हो जायेगा। 

बीते 29 जुलाई को नई षिक्षा नीति 2020 का पर्दापण भी हो चुका है हालांकि अभी इसमें संसद की सहमति समेत राश्ट्रपति की अन्तिम संस्तुति बाकी है। नई षिक्षा नीति को आने वाले बरसों में सषक्त सम्भावना के रूप में देखा जा रहा है। देष की प्रगति की कुंजी यदि सुषासन है तो उसमें षामिल विभिन्न आयाम उसके उपकरण हैं जिसमें षिक्षा प्रमुख रही है। ई-षिक्षा से लेकर ई-व्यवस्था ई-गवर्नेंस का एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी कवायद गुड गवर्नेंस है। सुषासन लोक सषक्तिकरण की एक अवधारणा है भारत में उदारीकरण के बाद यह परिलक्षित हुई। जबकि इंग्लैण्ड दुनिया का पहला देष है जिसने 1992 में इसे अपनाया। विष्व बैंक की इस आर्थिक अवधारणा का सीधा आषय समावेषी विकास से है जिस मामले में भारत अभी पीछे है। हालांकि 1992-97 की 8वीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास पर ही टिकी थी। फिलहाल ई-गवर्नेंस के चलते न केवल समावेषी विकास को प्राप्त किया जा सकता है बल्कि आत्मनिर्भर भारत की कोषिष को भी मजबूती मिल सकती है। सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-गवर्नेंस कहलाता है। जबकि न्यूनतम सरकार और अधिकतम षासन, सुषासन का परिप्रेक्ष्य है। जहां नैतिकता, जवाबदेही, उत्तरदायित्व की भावना के साथ संवेदनषीलता को बल मिलता है। भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है हालांकि इन दिनों यह कई कठिनाईयों से गुजर रही है। मोबाइल षासन का दौर भारत में देखा जा सकता है और इसी के चलते ई-व्यवस्था की बाढ़ आई है और ई-षिक्षा को भी बल मिल रहा है। चूंकि कोरोना जैसे संकट के लिए षायद ही कोई देष तैयार रहा हो ऐसे में जहां ई-व्यवस्थाएं पहले से व्यापकता लिऐ रही उन्हें काफी मदद मिल रही है। भारत का षानदार आईटी उद्योग डिजिटलीकरण को जिस प्रकार से आगे बढ़ाया है उसी ने ई-गवर्नेंस के माध्यम से गुड गवर्नेंस का भी नक्षा बदला है। ई-गवर्नेंस के कारण ही नौकरषाही का कठोर ढांचा नरम हुआ है और स्कूल, काॅलेज और विष्वविद्यालय की बन्दी के दौर में ई-षिक्षा से लोगों को जोड़ने का काम किया है। फिलहाल ई-गवर्नेंस का विस्तार ई-षिक्षा के लिए वरदान हो सकता है और न्यू इण्डिया के लिए भी कारगर सिद्ध होगा। भारत बीते डेढ़ दषकों से ई-लोकतंत्र के ताना-बाना से भी युक्त है। जाहिर है ई-षासन, ई-प्रषासन और ई-व्यवस्था जिस अनुपात में गति लेगी उसी अनुपात में षिक्षा, स्वास्थ व तमाम सुविधाएं प्रसार करेंगी। 




डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल:sushilksingh589@gmail.com


Thursday, August 6, 2020

बिगड़ गया शिक्षा का पूरा ताना-बाना

कोरोना संकट ने सबसे ज्यादा नुकसान जिन क्षेत्रों में किया है षिक्षा उसमें सबसे आगे है। विडम्बना यह है कि जिस षिक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगाने के लिए लोग तैयार रहते हैं वही इन दिनों अचेत पड़ी है। इतना ही नहीं कई क्षेत्रों के लिए तो सरकार द्वारा फौरी राहत ढूंढी गयी पर षिक्षा के मामले में हमेषा बचने का काम किया गया। हालांकि इसके पीछे बच्चों को बचाना रहा है मगर सवाल यह है कि क्या बंद पड़े स्कूल और घर में बंद बच्चे किसी अवसाद या समस्या से ग्रस्त नहीं हो रहे हैं। आॅनलाइन षिक्षा पर खूब जोर-आज़माइष हुई है मगर कई बुनियादी कमियां साथ ही षिक्षकों का ऐसे अध्यापन का प्रषिक्षण न होना और छोटे बच्चों के साथ यह तकनीकी जुगाड़बाजी अरूचि और अवसाद का कारण भी बन गयी। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में कहर बरपाया है करोड़ों इससे संक्रमित है, लाखों की जान जा चुकी है और अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। खास यह भी है कि इसी के चलते बच्चे और षिक्षा अर्थात् देष का भविश्य स्याह हो रहा है। बच्चों पर काम करने वाली एक संस्था सेव द चिल्ड्रन की रिपोर्ट को देखें तो ऐसा लगता है कि षिक्षा का पूरा ताना-बाना कोरोना के चलते तहस-नहस हो गया है। रिपोर्ट में स्पश्ट है कि मानव इतिहास में पहली बार वैष्विक स्तर पर बच्चों की एक पूरी पीढ़ी की षिक्षा रूक गयी है। स्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी तक दुनिया के कुल छात्रों का 90 फीसद हिस्सा इससे बाधित हुआ है। 11 करोड़ बच्चों को गरीबी में धकेलने वाला खतरा भी इसी के कारण हुआ है। कोरोना का साइड इफेक्ट इतना गहरा, गम्भीर और दीर्घकालिक है कि एक करोड़ बच्चों के स्कूल लौटने की सम्भावना ही खत्म हो गयी है। समस्या यह है कि षिक्षा को लेकर पहले भी बच्चे हाषिये पर थे और अब तो और बड़ा सवालिया निषान हो गया। 
वैसे कोरोना महामारी षुरू होने से पहले भी दुनिया भर के करीब 26 करोड़ बच्चे षिक्षा से वंचित थे। अब कोरोना संकट के कारण षिक्षा ले रहे बच्चे भी इसकी जद्द में आ गये हैं। चीन की तुलना में भारत की षिक्षा व्यवस्था आंकड़ों के लिहाज़ से कहीं अधिक प्रभावित है। बीते मार्च से स्कूल बंद चल रहे हैं कोरोना ने स्कूल खोलने का अवसर ही नहीं दिया। अभी भी इस पर कोई निष्चित तारीख घोशित नहीं की गयी है। बच्चों की षिक्षा संकट में है और स्कूल फीस के अभाव में भारी नुकसान झेल रहे हैं। स्कूलों को पहले ही निर्देष दे दिये गये थे कि वे फीस जमा कराने में असमर्थ अभिभावकों पर दबाव न डालें वरना उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। षुरू में यह सब बातें झेल ली गयीं पर वक्त लम्बा खिंच रहा है। जाहिर है फीस के अभाव में स्कूल कैसे चलेंगे। देष के लाखों स्कूल अलग-अलग परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। यदि इन्हें फीस नहीं मिलती है तो ये बन्द भी हो सकते हैं। उत्तर प्रदेष के बेसिक षिक्षा मंत्री स्कूलों को षुल्क न दिये जाने की मांग को अव्यवहारिक करार दिया। उन्होंने दो टूक कहा कि ऐसी स्थिति में राज्य के 6 लाख से ज्यादा स्कूल बंद हो जायेंगे। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेष में 1 लाख 69 हजार सरकारी स्कूल और जबकि 6 लाख से ज्यादा निजी स्कूल हैं। यही हाल देष के अन्य प्रान्तों का भी है। पष्चित बंगाल में तो स्कूलों को अस्पताल बनाने की कवायद है। इससे साफ है कि बच्चों की स्कूल में वापसी हाल-फिलहाल में सम्भव नहीं है। सिक्किम में तो स्कूल अनिष्चितकाल के लिए बंद कर दिये गये हैं। कोरोना और बाढ़ दोनों से जूझ रहा असम में भी षैक्षणिक कलेन्डर आगे बढ़ाने की बात हो रही है। पंजाब सरकार निजी स्कूलों की फीस वसूली की चिंता ज्यादा करते दिखाई दे रही है तो वहीं राजस्थान में सिलेबस छोटा करने का विचार किया जा रहा है। उत्तराखण्ड समेत देष के अन्य प्रान्तों में फीस को लेकर दृश्टिकोण असमंजस से भरा हुआ है जाहिर है अभिभावक फीस से छूट चाहता है। मगर स्कूल इतने बड़े आर्थिक नुकसान को षायद ही सह पायें। ऐसे में बीच का रास्ता निकालना पड़ेगा। फिलहाल स्कूल कब खुलेंगे, किस गाइडलाइन के अंतर्गत होंगे अभी सब कुछ साफ नहीं है। 
सवाल यह भी है कि स्कूल खोलने को लेकर स्कूल संचालक कितने तैयार हैं और क्या अभिभावक स्कूल खुलने की स्थिति में बच्चों को भेजेंगे। क्या गाइडलाइन के अनुसार व्यवस्था चल पायेगी। भारत में स्कूल में पढ़ने वालों बच्चों की कुल तादाद 33 करोड़ है। कुल जनसंख्या का करीब 20 फीसद हिस्सा 6 से 14 वर्श की उम्र के बच्चों का है जो षिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत षिक्षा पर हकदारी रखते हैं। कई सरकारी स्कूल बच्चों को खाना खिलाते हैं जाहिर है सुरक्षा की दृश्टि से यह भी सम्भव नहीं होगा। बन्दी के इस दौरान 9 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल के साथ मिड डे मील से भी वंचित हैं। बच्चे ही नहीं मुसीबत में तो टीचर भी हैं। भारत के स्कूलों में 10 लाख से ऊपर कान्ट्रैक्ट पर काम करने वाले टीचर हैं। केवल दिल्ली में ही यह संख्या 29 हजार से ज्यादा है। दिल्ली सहित यूपी, बिहार व अन्य प्रान्तों के षिक्षक सैलरी न मिलने की षिकायत महामारी से पहले भी करते रहे हैं। ऐसे में कोरोना के चलते ये सब भी छिन्न-भिन्न हो गये हैं। निजी स्कूलों के टीचर की नौकरी भी खतरे में है। स्कूल संचालक फीस न मिलने की स्थिति में वेतन नहीं दे पा रहे हैं और यदि कुछ सम्भव भी हो रहा है तो वह पूरा नहीं है। भारत का हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और इस गरीबी का सीधा रिष्ता पढ़ाई रूकने और स्कूल छोड़ने से सम्बंधित है। आमदनी ठप्प है और रोज़गार निस्तोनाबूत है ऐसे में षिक्षा दुश्चक्र में उलझ गयी है। कोरोना संकट में हाल तो यह है कि इनको पढ़ाने वाले षिक्षकों की आर्थिक स्थिति भुखमरी के कगार पर पहुंच गयी है। जैसे-जैसे दिन बीत रहा है यह वज्रपात बढ़त ले रहा है। 
कोरोना वायरस में बचाव को लेकर ही इन दिनों सारी कूबत झोंकी जा रही है। षारीरिक दूरी, मास्क और सेनिटाइज़र तथा साबुन से हाथ धोने की चर्चा में ही चार महीने से अधिक वक्त निकल गया। स्कूल, ट्यूषन, कोचिंग सब बंद पड़े हैं। आॅनलाइन षिक्षा, बच्चों के पल्ले नहीं पड़ रही है। बच्चों का षिक्षा का जो चस्का होता था वह भी बेस्वाद हो रहा है। छोटे षहरों, कस्बों में बड़े कहे जाने वाले स्कूलों और षहरों में छोटे-मोटे स्कूलों में आॅनलाइन के नाम पर पढ़ाई केवल खाना पूर्ति का काम कर रही है। केवल षिक्षा ही नहीं बच्चों की भी स्थिति पहले जैसी तो कतई नहीं है। रोज स्कूल जाने वाले बच्चे, स्कूल जाना ही भूल गये हैं। नई षिक्षा नीति 2020 नये क्लेवर-फ्लेवर के साथ बीते 29 जुलाई को उद्घाटित हुई जिसमें षिक्षा को लेकर बहुत कुछ बदलने की कोषिष दिखती है। आगे एक दषक तक क्या होगा उसमें विषद् चर्चा है मगर कोरोना काल में षिक्षा का ऊँट किस करवट बैठेगा इस पर सरकार को भी कुछ नहीं सूझ रहा है। हालांकि इस दिषा में प्रयास जारी है सम्भव है कि आगे एक-दो महीने में स्कूल खुलने वाली स्थिति बने पर इंतजार षिक्षा की सही स्थिति की रहेगी और बिगड़ चुका षिक्षा का ताना-बाना कब फिर पटरी पर आयेगा इसकी भी प्रतीक्षा रहेगी। बच्चे षिक्षा के मामले में उसी आतुरता व चाहत के साथ फिर संलग्न हों इसका प्रयास भी नये सिरे से करना होगा। आर्थिक घाटा तो सरकार का भी है ऐसे में षिक्षा खर्च की भरपाई भी सरकार की चुनौतियों में रहेगी। निजी स्कूल संचालक आर्थिक अभाव को झेल रहे हैं, पूरे भाव के साथ स्कूल चलाना उनके लिए भी बड़ी चुनौती रहेगी। फिलहाल इन्हीं सब चुनौतियों के बीच सभी की जरूरत षिक्षा का बिखरे ताने-बाने को सही करने में एक बार फिर से अपने हिस्से का जोर सभी को लगाना होगा।



डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

Tuesday, August 4, 2020

अनुछेद ३७० से मुक्ति का जश्न पर खुशियां शेष !

आज भारत के सबसे उत्तर में बसे संविधान की पहली अनुसूची में दर्ज 15वें प्रान्त जम्मू-कष्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति का दिवस है। पिछले साल 5 अगस्त को जब इस प्रदेष को अनुच्छेद 370 और 35ए से मुक्त किया गया था तब यहां नये परिवर्तनों के साथ नई हवा भी बही थी और संविधान के भीतर एक इतिहास गढ़ा गया था। इतना ही नहीं जम्मू-कष्मीर से लद्दाख को अलग करते हुए बिना विधानसभा वाला केन्द्रषासित प्रदेष बना कर दषकों पुरानी उसकी भी मांग को पूरा किया गया था। जम्मू-कष्मीर और लद्दाख भारत के केन्द्रषासित प्रदेषों में सूचीबद्ध हो गये साथ ही परिवर्तन की बाट जोहने लगे। अनुच्छेद 370 और 35ए के खात्मे ने कई उम्मीदों को जन्म दिया मगर कई षंकाएं भी बरकरार रहीं। वहां की स्थानीय दल के नेताओं को न केवल नजरबंद किया गया बल्कि अलगाववादियों को जेल का रास्ता भी दिखाया गया। उक्त सभी बातें घाटी में बदली फिजा को देखकर उठाये गये कदम थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार ने जम्मू-कष्मीर को विषेश राज्य से मुक्त करके इसे भारत की मुख्य धारा में जोड़ने का काम किया। जाहिर है अनुच्छेद 370 और 35ए के बंधनों से जकड़ा जम्मू-कष्मीर एक साल से बहाल है जो संविधान में खास से आम हो गया। नौकरी, सम्पत्ति और निवास के विषेश अधिकार से भी मुक्त हो गया। अन्य राज्यों के लोगों के लिए भी जमीन खरीदने से लेकर बसने तक की बातें सामान्य हो गयी। दोहरी नागरिकता के भी जकड़न से इस प्रदेष को मुक्ति मिली। एक विधान, एक निषान की अवधारणा से भी यह ओत-प्रोत हुआ। सब कुछ हुए एक साल पूरा हो गया। अनुच्छेद 370 और 35ए के खत्म होने से कई उम्मीदें वादियों में करवटें लेने लगी। सवाल है कि क्या समय के साथ जम्मू-कष्मीर और लद्दाख मन-माफिक लक्ष्य हासिल किये हैं। 
गौरतलब है 5 अगस्त 2019 के दिन केन्द्र सरकार ने जम्मू-कष्मीर राज्य को विषेश दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करते हुए राज्य का पुर्नगठन किया जिसमें एक जम्मू कष्मीर तो दूसरा लद्दाख के रूप में केन्द्र षासित प्रदेष बनाये। यही दिन वहां के बाषिन्दों के लिए सपने की दुनिया की षुरूआत भी कही जा सकती है। मगर एक साल का वक्त इसे पूरा करने में या तो बहुत कम है या फिर किसी को परवाह नहीं है। तीन दषक पहले घाटी से विस्थापित हो चुके कष्मीरी पण्डित को यह आस थी कि उनकी पुर्नवापसी होगी मगर एक साल बीतने के बाद भी उनके पुर्नवास को लेकर अभी तक कोई पहल नहीं की गयी। हालांकि इतना लम्बा वक्त बीत चुका है कि दषकों पहले घाटी को छोड़ चुके ये लोग कष्मीर से बाहर अपनी जिन्दगी जीना सीख चुके होंगे। ऐसे में वहां से सब कुछ छोड़कर वापस होना भी एक मुष्किल काज होगा। फिर भी वापसी के लिए रास्ता समतल करने का काम सरकार की जिम्मेदारी है। सुखद यह है कि पिछले एक साल में घाटी में पथरावों की घटनाओं में कमी के साथ आतंकी घटनाओं में भी धीमापन देखा जा सकता है। गौरतलब है कि 2018 में 532 पथरावों की घटनाएं हुई थी जबकि 2019 में 389 और 2020 में 102 घटना दर्ज है। इसी तर्ज पर 370 के खात्मे के साथ आतंकियों के खात्मे की दर भी बढ़ी है। 2018 में 583 आतंकवादी जहां गिरफ्तार किये गये थे वहीं 2019 और 2020 में क्रमषः 849 और 444 है। सब कुछ पटरी पर होने की स्थिति होने के बीच सवाल यह है कि अनुच्छेद 370 के चलते पाकिस्तान से आये डेढ़ लाख हिन्दू षरणार्थियों की नागरिकता जो अटकी थी अब उसका क्या हुआ। कष्मीर के लोगों का षेश भारत से सम्पर्क कितना बढ़ा और अन्य राज्यों का घाटी में आवागमन की क्या स्थिति रही। दूसरे प्रदेषों के व्यापारी पहले घाटी में समस्या के कारण निवेष नहीं करते थे अब रास्ता साफ है पर विकास अभी भी बाढ़ जोह रहा है। वैसे सबकुछ एकाएक नहीं होगा जाहिर है मुख्यतः जम्मू कष्मीर एक नये लोकतंत्र के परिधान में है और सबकुछ चरणबद्ध तरीके से ही सम्भव है। जिस तरह कट्टरपन, अलगाववाद और घाटी में अमन-चैन के खिलाफ गतिविधियां जारी थी एक साल के भीतर इसमें खूब कमी आयी पर दबाव केन्द्र और राज्य दोनों ने तुलनात्मक सहन किया। गौरतलब है कि एक साल के बाद भी कष्मीरियों की बुनियादी व्यवस्था मसलन षिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, चिकित्सा, और भारत में कहीं भी मजबूत विस्तार को लेकर अभी कुछ खास कदम नहीं उठे हैं पर भविश्य में इसके होने की उम्मीद की जा सकती है। 
नये केन्द्रषासित प्रदेष लद्दाख की भी पड़ताल यहां स्वाभाविक है। लद्दाख का नाम लेते ही मस्तिश्क पर एक नया चित्र उभरता है। लद्ाख में भी अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के साथ विभाजन का जष्न मना था और केन्द्रषासित के रूप में अलग होने की दोहरी खुषी थी। वैसे केन्द्रषासित प्रदेष लद्दाख वालों के लिए यह पुरानी मांग थी लेकिन विधायिका न मिलने से कुछ कसक महसूस हुआ होगा। गौरतलब है कि लद्दाख क्षेत्रफल की दृश्टि से देष का सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है। ध्यानतव्य हो कि 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू कष्मीर के साथ लद्दाख केन्द्र षासित की मान्यता में आये मगर कोरोना के विस्तार ने यहां के पर्यटन  की सम्भावना को चूर-चूर कर दिया। पर्यटकों के लिए लद्दाख का मतलब अमूमन लेह से होता है। फिलहाल इन दिनों चीन की बुरी नजर से यह केन्द्रषासित प्रदेष लहुलुहान है। आमतौर पर जिक्र में लेह-लद्दाख होता है मगर लेह के साथ कारगिल का जिक्र न के बराबर होता है। 2011 की जनगणना के अनुसार करीब 3 लाख की आबादी वाले लद्दाख में 46 फीसद से अधिक मुसलमान हैं। यहां के दो जिले लेह और कारगिल है लेह में बौद्ध बहुसंख्यक तो कारगिल में मुस्लिम और बौद्ध हैं। कारगिल के लोगों की मांग है कि जब लेह और कारगिल में आबादी बराबर है तो विकास केवल लेह की झोली में क्यों। एक साल के इस जमीनी परिवर्तन में सरकार को यहां भी ध्यान देना चाहिए। खास यह भी है कि जब लद्दाख केन्द्रषासित प्रदेष बना तब कारगिल में विरोध प्रदर्षन हुए और जम्मू कष्मीर के तत्कालीन राज्यपाल कारगिल गये थे जहां उन्हें ज्वाइंट एक्षन कमेटी द्वारा 14 सूत्रीय ज्ञापन सौंपा गया था। उस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया है पता नहीं। हालांकि उस समय यह आष्वासन था कि राजभवन, सचिवालय और पुलिस मुख्यालय ये तीनों लेह और कारगिल में बनेंगे, अभी तक इस पर भी कुछ नहीं हुआ। 
फिलहाल केन्द्र सरकार ने कई नीतिगत कदम उठाये हैं जिसमें विष्वविद्यालय व चिकित्सालय समेत कुछ बुनियादी संदर्भ षामिल है। जम्मू कष्मीर और लद्दाख केन्द्र सरकार की प्राथमिकता में है मगर यहां की  स्थिति अन्यों से भिन्न है। ऐसे में सरकार को भी समय दिया जाना चाहिए और यहां के बाषिन्दों को धैर्य दिखाना चाहिए। कुछ समस्याएं तो कोविड-19 के चलते भी पनपी हैं। फिलहाल अनुच्छेद 370 और 35ए से मुक्ति एक ऐतिहासिक घटना है जो संविधान के भीतर का इतिहास है। बावजूद इसके घाटी से लेकर लद्दाख तक के बाषिन्दे इसके सम्पूर्ण जष्न में तभी स्वयं को रच बस पायेंगे जब ये षेश भारत से स्वयं को जोड़कर देखेंगे। यह तभी सम्भव है जब विकास इनके पकड़ में होगा। अन्यथा अनुच्छेद 370 और 35ए से मुक्ति का जष्न हर 5 अगस्त को मनाया जाता रहेगा मगर खुषियां विकास के अभाव में षेश रहेंगी।    


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेषन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

Monday, August 3, 2020

नये उम्मीदों से भरी नई शिक्षा नीति

बरसों से चल रहे प्रयास के फलस्वरूप आखिरकार केन्द्र सरकार ने बीते 29 जुलाई को नई षिक्षा नीति को मंजूरी दे दी। नई षिक्षा नीति में नये सपने और नई विषेशताएं देखी जा सकती हैं साथ ही कुल जीडीपी का 6 फीसद षिक्षा पर खर्च करने का इरादा भी झलकता है। जो पहले की तुलना में डेढ़ फीसद से अधिक है। गौरतलब है कि ठीक इसके पहले 1986 में षिक्षा नीति लागू की गयी थी जिसमें 1992 में संषोधन किया गया था और तब से यही व्यवस्था अनवरत् है। 34 साल बाद देष में एक नये प्रारूप की षिक्षा अमल में लाये जाने का बिगुल बज गया है। जिसका मसौदा पूर्व इसरो प्रमुख कस्तूरी रंजन की अध्यक्षता में विषेशज्ञों की एक समिति तैयार किया था। नई षिक्षा नीति में स्कूली षिक्षा से लेकर उच्च षिक्षा तक कई परिवर्तन किये गये हैं। साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर षिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। गौरतलब है कि एचआरडी मंत्रालय 1985 में गठित हुआ था। नई षिक्षा नीति कई नये आयामों से युक्त है जिसकी विषद् चर्चा लाज़मी है। भाशा के स्तर पर इसमें उदारता और पाठ्यक्रम की दृश्टि से इसमें कहीं अधिक लोचषीलता भरी हुई है। इसका स्वरूप 10$2 के स्थान पर 5$3$3$4 कर दिया गया है। चरणबद्ध प्रक्रिया में देखें तो अब भारत में षिक्षा की प्रारम्भिकी फाउंडेषन स्टेज से षुरू होगी जिसमें पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री स्कूलिंग करेंगे तत्पष्चात् अगले दो वर्श अर्थात् कक्षा एक और दो के लिए स्कूल जायेंगे जो नये पाठ्यक्रम के अंतर्गत होगा। जाहिर है इसका स्वभाव क्रियाकलाप आधारित षिक्षण से युक्त होगा। इसमें विद्यार्थी 3 से 8 साल की आयु के होंगे। यह पढ़ाई का पहला पांच साल का चरण है। दूसरा चरण तीन वर्शीय प्रेपेटरी स्टेज का है  जिसमें कक्षा तीन से पांच और 11 वर्श की आयु के विद्यार्थियों के बच्चों के लिए होगा। जबकि मिडिल स्टेज की पढ़ाई कक्षा छः से आठ और उम्र 11 से 14 है। इसके बाद सेकेण्डरी स्टेज कक्षा नौ से बारहवीं तक का और विशय चुनने की यहां आजादी है। इसमें खास यह है कि 5वीं कक्षा तक मात्र भाशा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाशा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात है। विदेषी भाशा की पढ़ाई सेकेण्डरी लेवेल पर कही गयी है जिसे कक्षा आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। साफ है कि नई षिक्षा नीति में भाशा थोपने की स्थिति नहीं दिखती है। 
उच्च षिक्षा स्तर पर भी कई बदलाव किये गये हैं। डिग्री कार्यक्रम में कई संदर्भ निहित है। मसलन जो छात्र षोध में जाना चाहता है उसे चार साल का स्नातक और एक साल का परास्नातक करना होगा जबकि जो नौकरी में जाना चाहता है उनके लिए यही कार्यक्रम तीन वर्श का होगा। रिसर्च अर्थात् पीएचडी में सीधे प्रवेष यहां एमफिल की जरूरत खत्म कर दी गयी है। हालांकि वर्तमान में भी पीएचडी से पहले एमफिल की कोई अनिवार्यता नहीं थी। देखा जाय तो उच्च षिक्षा भी लोचषीलता से युक्त है और पढ़ाई छूटने और फिर जोड़ने के अलावा भी कई सुविधायें देखी जा सकती हैं। विदेषी विष्वविद्यालयों के लिए भी दरवाजे खुलते दिखाई दे रहे हैं। बदलाव जमीन पर जल्द उतर पायेगा कहना मुष्किल है मगर भारत में षीर्श 200 विदेषी विष्वविद्यालयों के लिए द्वार खुलने से यहां की उच्च षिक्षा का स्तर भी बढ़ने की सम्भावना है साथ ही प्रतिभा पलायन को भी ब्रेक लग सकता है। वैसे यहां एक खास बात यह भी है कि यूपीए सरकार के समय विदेषी षिक्षण संस्थाओं पर लाये गये रेगुलेष आॅफ एन्ट्री एण्ड आॅपरेषन बिल 2010 को लेकर बीजेपी विरोध में थी। लेकिन अब इसके लिए दरवाजा खोलने की सरकार बात कर रही है। हालांकि इसे सही करार दिया जाना चाहिए क्योंकि हर साल साढ़े सात लाख से अधिक भारतीय 6 अरब डाॅलर खर्च करके विदेष में पढ़ते हैं। इस दृश्टि से इस पर न केवल विराम लगेगा बल्कि आर्थिक मुनाफा भी देष को हो सकता है। सवाल यह भी है कि भारत की षैक्षणिक वातावरण को देख कर क्या विदेषी विष्वविद्यालय यहां काम करने का रूख करेंगे। ऐसे में तब जब नई षिक्षा नीति में अधिकतम फीस की सीमा भी तय करने की बात कही गयी है। खास यह भी है कि उच्च षिक्षा में 2035 तक 50 फीसद ग्राॅस इन्रोलमेंट रेषियो पहुंचाने का लक्ष्य है। फिलहाल 2018 के आंकड़े को देखें तो यह 26 फीसद से थोड़ा ज्यादा है। फिलहाल उच्च षिक्षा में करोड़ों नई सीट जोड़ने की बात भी है। 
भारत की नई षिक्षा नीति कई ऐसे सवालों का भविश्य में एक बेहतर जवाब हो सकती है। वैसे दुनिया में कई देष षिक्षा की स्थिति और प्रगति को लेकर नये प्रयोग करते रहे हैं। अमेरिका में स्कूल व्यावहारिक समझ और अतिरिक्त पाठ्यचर्या गतिविधियों पर अधिक जोर देते हैं। यहां प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च विद्यालय की श्रेणी देखी जा सकती है। चीन की षिक्षा प्रणाली में भी चार चरण है। पहले बेसिक षिक्षा फिर पेषेवर षिक्षा और उसके बाद उच्च षिक्षा और अन्ततः व्यस्क षिक्षा षामिल है। खास यह है कि यहां 6 से 15 वर्श के चीनी बच्चों के लिए षिक्षा जरूरी और मुफ्त है। यहां औसतन एक कक्षा में 35 विद्यार्थी और किसी भी तरह का कोई आरक्षण नहीं है साथ ही चीन में बच्चों का 6 साल की उम्र के बच्चों का दाखिला स्कूल में होता है। एजुकेषन इन स्विट्जरलैण्ड यह षब्द अपनेआप में एक अलग तरह की जिन्दगी है। यह प्रारम्भिक से लेकर उच्च षिक्षा तक के लिए अन्तर्राश्ट्रीय स्तर के लिए विख्यात है। यूरोप के कई देष मसलन स्विट्जरलैण्ड, नीदरलैण्ड, जर्मनी, इंग्लैण्ड, फ्रांस व इटली समेत कई देष षिक्षा के मामले में काफी ताकत बना चुके हैं। नीदरलैण्ड की षिक्षा को काफी किफायती माना जाता है। षिक्षा के साथ कई देषों में पार्ट टाइम जाॅब करने की भी छूट मिलती है। इसके अलावा भी कई सुविधाएं देखी जा सकती हैं।
नई षिक्षा नीति अनेक सुधारों और योजनाओं को षिक्षा के क्षेत्र में योगदान अवष्य देगी। जिससे भावी पीढ़ी को लक्ष्य के अनुसार मानसिक और बौद्धिक रूप से तैयार किया जा सकेगा। वैसे स्वतंत्रता के बाद से षिक्षा को लेकर कई आयोग और समितियों का गठन हुआ। स्वतंत्रता से पहले की षिक्षा पद्धति में व्यापक परिवर्तन भी होते रहे हैं। नई षिक्षा नीति में मातृभाशा में षिक्षा यह संदर्भ उजागर करती है कि 1954 की लाॅर्ड मैकाॅले की इंगलिष षिक्षा का दौर आगे उस पैमाने पर नहीं रहेगा। 1964, 1966 और 1968 तथा 1975 में षिक्षा सम्बंधी आयोगों का गठन हुआ साथ ही 10+2+3 की षिक्षा पद्धति को 1986 में पूरे जोष, खरोष के साथ लागू किया गया जिसे अब 5+3+3+4 के रूप में परिवर्तित करते हुए नई षिक्षा नीति 2020 नई विषिश्टता को प्रदर्षित कर रहा है। बुनियादी स्तर पर परिवर्तन के साथ उच्च षिक्षा तक के बदलाव इस नीति में समाहित हैं। इतना ही नहीं विचारों और मान्यताओं का इसमें पूर जोर समर्थन दिखता है। देखा जाय तो वर्तमान षिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार कराने का जिम्मा स्मृति ईरानी ने उठाया था। पूर्व कैबिनेट सचिव सुब्रमण्यम स्वामी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन भी हुआ बाद में एचआरडी मंत्री प्रकाष जावड़ेकर बने जिन्होंने इसे डाॅ0 कस्तूरी रंगन की अध्यक्षता में समिति बनाकर उन्हें सौंप दिया जिसकी सिफारिषें काफी समय तक मंत्रालय में पड़ी रही। 2019 के मोदी सरकार की दूसरी पारी में डाॅ0 रमेष पोखरियाल निषंक को एचआरडी मंत्री बनाया गया और अब नई षिक्षा नीति देष के सामने है। गौरतलब है कि षिक्षाविद् डाॅ0 मुरली मनोहर जोषी के समय में भी नई षिक्षा पर प्रयास हुए थे। फिलहाल नई षिक्षा नीति नई आषा और नई किरण से भरी लगती है। बावजूद इसके षिक्षा में आसमान के तारे कब जमीन पर उतरेंगे यह सवाल कहीं गया नहीं है। बस प्रयास यह रहना चाहिए कि संरचना, प्रक्रिया और बेहतर व्यवहार के आभाव में इसका प्रकाष कमतर न रहे। 

डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
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