Tuesday, December 15, 2015

पाकिस्तान के मामले में भारतीय पहल का मतलब

अचानक भारत द्वारा पाकिस्तान को लेकर समग्र बातचीत के लिए तैयार होना, थोड़ा हैरत में डालता है पर वैष्विक कूटनीति के परिदृष्य में देखें तो सब कुछ जायज प्रतीत होता है। इसी प्रारूप में इन दिनों भारत-पाक के बीच कुछ ऐसा पकाने का प्रयास किया जा रहा है जिससे कि राश्ट्रीय हित के साथ अन्तर्राश्ट्रीय परिप्रेक्ष्य भी सुदृढ़ हो जाए। जिस भांति समग्र बातचीत को लेकर दोनों देष एक मन हुए हैं उससे उम्मीदें फिर कुलांचे मारने लगी हैं पर बीते एक वर्श से दोनों देषों के बीच पनपी तल्खी को देखा जाए तो यह सब कितना बेहतर होगा कहना कठिन है। क्या पूरे संदर्भित समायोजन के साथ सम्बन्ध वाली गाड़ी पटरी पर दौड़ पायेगी इस पर भी स्पश्ट राय दे पाना सम्भव नहीं है। जिस भांति पाकिस्तान भारत के मामले में उन्हीं गतिविधियों को बनाये रखने में मषगूल रहा है जिसे लेकर भारत को आपत्ति रही है जाहिर है ऐसे में सम्बन्ध की बेहतरी के लिए पाकिस्तान को अतिरिक्त जिम्मेदारी दिखानी ही होगी। देखा जाए तो वर्श 2014 के नवम्बर महीने में नेपाल की राजधानी काठमाण्डू की सार्क बैठक से ही कमोबेष प्रधानमंत्री मोदी और षरीफ के बीच दूरी बढ़ी। रूस के उफा में मुलाकात तो हुई पर षरीफ के आतंक पर की गयी वादा खिलाफी के चलते तनाव और बढ़ा। तत्पष्चात् सितम्बर में संयुक्त राश्ट्र सम्मेलन के दौरान भी दूरी कायम रही परन्तु दिसम्बर आते-आते पेरिस में कुछ क्षणों की मुलाकात ने सारी तल्खी को मानो समाप्त कर दिया। कयास तो लगाया जा रहा था कि इस मुलाकात के कुछ मतलब निकलेंगे पर नतीजे इतने सहज होंगे षायद ही किसी को अंदाजा रहा हो। जिस प्रकार बिना पाकिस्तान के किसी सबक के समग्र बातचीत का रास्ता भारत की ओर से खोल दिया गया उसे लेकर अचरज यह है कि ऐसा करने के पीछे भारत की कौन सी मजबूरी थी जबकि पाकिस्तान भारत को लेकर जस का तस बना हुआ है।
बीते दिनों विदेष मंत्री सुशमा स्वराज इस्लामाबाद दौरे पर थीं जहां उन्होंने कहा था कि दोनों देषों के बीच रिष्ते बेहतर करने के लिए आईं हूँ। मोदी सरकार के बनने के बाद यह किसी भी भारतीय मंत्री का पहला पाकिस्तानी दौरा है। यदि इस बात को छोड़ दिया जाए कि पाकिस्तान की कई गड़बड़ियों के बावजूद भारत ने सम्बन्ध की पहल क्यों की तो भी क्या इस बात की तसल्ली हो सकती है कि पाकिस्तान एक सकारात्मक भूमिका में रहेगा? नये साल में दोनों देषों के बीच होने वाली समग्र विपक्षी वार्ता में सम्भवतः हुर्रियत की कोई भूमिका नहीं होगी। यदि बीच में इसने खलल डाला तो इस पहल का मतलब बदल जायेगा। पेरिस में जलवायु परिवर्तन के सम्मेलन के दिनों में जब क्षण भर के लिए मोदी-षरीफ की मुलाकात हुई तभी से कयास लगाया जा रहा था कि रिष्तों पर जमी बर्फ पिघल सकती है पर इतनी बड़ी धारा लेगी यह नहीं सोचा गया था। असल में हर बार जब भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्री किसी अन्तर्राश्ट्रीय बैठक में जाते हैं तो उम्मीदों का सागर उफान मारने लगता है पर उम्मीदों पर पानी तब फिरता है जब पाकिस्तान संवेदनषील मुद्दों पर असंवेदनषील बना रहता है। लाज़मी है कि दोनों देषों के बीच फिर तमाम चर्चाएं होंगी पर उनका मोल क्या होगा आने वाले दिनों में पता चलेगा। कष्मीर को लेकर पाकिस्तान का नजरिया अड़ियल रहता है। पाकिस्तान का यह दावा धार्मिक तथा आर्थिक कारणों से प्रेरित है। उसका तर्क है कि यहां मुसलमानों की अधिक संख्या होने के कारण यह स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान है।
अभी तक जो भी बातें की गयी हैं वह विदेष मंत्री स्तर पर हैं जाहिर है इस्लामाबाद में अगले वर्श सार्क सम्मेलन होना है, प्रधानमंत्री मोदी इसमें षिरकत करेंगे। नतीजे कितने सार्थक होंगे यह आगे की बातचीत और काफी हद तक पाकिस्तान के रवैये पर निर्भर करेगा। सुशमा स्वराज का दावा है कि बात कष्मीर में आतंकवाद को लेकर होगी न कि जम्मू-कष्मीर पर यदि ऐसा होता है तो यह पाकिस्तान का भारत के प्रति बदला हुआ रूप ही कहा जायेगा। कहा तो यह भी जाता है कि 2007 में पाकिस्तानी तानाषाह मुषर्रफ की कमियों के चलते समस्या हल होते-होते रह गयी। साथ चलेंगे तभी बढ़ेंगे यह परिप्रेक्ष्य भारत के मामले में हमेषा से रहा है पर पाकिस्तान इस पर कितना अमल करेगा देखने वाली बात है। सच तो यह है कि भारत की प्रतिबद्धता हमेषा से कहीं अधिक सकारात्मक रही है। पड़ोसी मुल्कों के मामले में भारत का नजरिया कभी भी चोट या नुकसान पहुंचाने वाला नहीं रहा है बावजूद इसके पाकिस्तान जैसे देष भारत को हतोत्साहित करने के लिए विगत् 65 वर्शों से प्रयासरत् हैं जबकि पिछले तीन दषक से तो आतंकवाद के चलते भारत के नाक में दम कर रखा है।
बातचीत को ‘समग्र द्विपक्षी वार्ता‘ के षीर्शक से प्रतिश्ठित किया जा रहा है। इस वार्ता में पाकिस्तान की तरफ से कष्मीर और भारत की तरफ से मुम्बई हमले समेत आतंकवाद के कई मुद्दे जरूर उठेंगे। हार्ट आॅफ एषिया सम्मेलन के चलते इस्लामाबाद गईं सुशमा स्वराज के दृश्टिकोण यह दर्षाते हैं कि उन्होंने सकारात्मक बातचीत को लेकर पाकिस्तान को न केवल आष्वस्त किया है बल्कि भारत में भी उम्मीद जगायी है। यदि भारत-पाक असली मुद्दों पर समाधान के साथ आगे बढ़ते हैं तो यह द्विपक्षी वार्ता मील का पत्थर सिद्ध हो सकती है। प्रधानमंत्री मोदी की चाहतों में यह जरूर होगा कि वैष्विक पटल पर जो छवि भारत की उभरी है उसकी आड़ में पाकिस्तान को भी सहज किया जाए और विष्व के देषों में यह संदेष प्रसारित हो कि बरसों से द्विपक्षीय वार्ता की रट लगाने वाला भारत इस मामले में आखिरकार सफल हुआ। हालांकि अटल बिहारी वाजपाई सरकार के समय भी सम्भावनाएं बेहतर थीं पर मुषर्रफ जैसे तानाषाहों के रहते यह सम्भव नहीं था। फिलहाल दोनों देष के सम्बन्ध यदि किसी समाधान की ओर झुकते हैं तो यह दोनों के लिए ही बेहतर होगा पर इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि षिमला समझौते से लेकर अब तक के वार्ता और सन्धियों के मामले में पाकिस्तान पूरे विष्वास के लायक नहीं रहा है।



लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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