Monday, July 1, 2019

उत्तर कोरिया से शांति की उम्मीद मे अमेरिका


विश्व  इतिहास के पन्ने में 12 जून 2018 एक ऐसी तारीख है जिसे एषिया पेसिफिक के लिए ही नहीं दुनिया में षान्ति के लिए समझा जा सकता है। इसी दिन अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया का तानाषाह किम जोंग की सिंगापुर के सेंटोसा द्वीप पर स्थित कैपिला होटल में 50 मिनट की ऐतिहासिक वार्ता हुई थी। यहीं से कहीं न कहीं तीसरे विष्व युद्ध के आगाज का भी अंत हुआ था। इस वार्ता ने दोनों देषों के 68 बरस की षत्रुता का न केवल अन्त किया बल्कि मुलाकात का सिलसिला वियतनाम से गुजरते हुए उत्तर कोरिया की सीमा तक पहुंच गया। गौरतलब है कि बीते 30 जून को ट्रंप और किम जोंग की मुलाकात उत्तर और दक्षिण कोरिया को विभाजित करने वाले असैन्यकृत इलाका डीएमजेड यानी डीमिलिट्राइज्ड जोन में हुई। मुलाकात के दौरान दक्षिण कोरिया के राश्ट्रपति मून जे इन भी उपस्थित थे। हालांकि ट्रंप की किम जोंग से पहली दो मुलाकातें बहुत सार्थक नहीं रहीं पर पहल को सराहनीय कहा जा सकता है। अब यह तीसरी मुलाकात के बाद किम जोंग ट्रंप की दृश्टि में कितना खरा उतरेगा यह कहना भी कठिन है। दो टूक यह भी है कि अमेरिका के राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जनवरी 2017 में सत्तासीन होने के बाद किम जोंग तुलनात्मक अधिक हमलावर होते दिखाई देता है। जुबानी हमले के साथ-साथ परमाणु परीक्षण से लेकर मिसाइल परीक्षण तक में वह तेजी ला दिया। यही अमेरिका के लिए मुसीबत का सबब बन गया। गौरतलब है कि 2006 से 2016 के बीच उत्तर कोरिया ने चार परमाणु परीक्षण और राॅकेट प्रक्षेपण करके दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्शित किया जबकि 2017 में बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण करके अपनी हेकड़ी दिखा दी। हालांकि यह परीक्षण असफल रहा पर जिस तर्ज पर उत्तर कोरिया परमाणु बम और बैलिस्टिक मिसाइल के परीक्षण के साथ जापान और दक्षिण कोरिया के ऊपर मिसाइले छोड़ा साथ ही अमेरिका के साथ युद्ध जैसी स्थिति पैदा की वह किसी वैष्विक विपदा से कम नहीं थी। कहा जाय तो संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् के प्रतिबंधों की मार झेलने वाला उत्तर कोरिया अमेरिका को युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया था पर सिंगापुर की एक मुलाकात ने षान्ति की एक राह सुझा दी।

दोनों देषों के बीच रंजिष की लकीर
अमेरिका का पूर्व विदेष मंत्री डेयान रस्क का यह कथन कि हमने हर हिलती हुई चीज पर बमबारी की। तत्कालीन विदेष मंत्री डयान रस्क यह बात कोरियाई युद्ध (1950-53) के दौरान उत्तर कोरिया पर अमेरिकी बमबारी के इरादे से बात कर रहे थे। अमेरिकी रक्षा मंत्री के दफ्तर पेंटागन ने इस अभियान का नाम आॅपरेषन स्ट्रैगल रखा था। माना जाता है कि इन तीन सालों तक उत्तर कोरिया पर बिना रूके हवाई हमले किये जाते रहे। वामपंथी विचारधारा के लोगों का यह कहना है तब उत्तर कोरिया के कई गांव, षहर और लाखों लोग तबाह हो गये थे। तभी से उत्तर कोरिया अमेरिका को एक खतरे के तौर पर देखता है। कोरिया युद्ध षीत युद्ध का सबसे बड़ा और पहला संघर्श था। 

उत्तर कोरिया और चीन की गाढ़ी दोस्ती
चीन और उत्तर कोरिया ने 1961 में पारस्परिक सहयोग सन्धि पर हस्ताक्षर किये थे जिसमें स्पश्ट था कि अगर दोनों में से किसी पर हमला होता है तो वे एक-दूसरे की तत्काल मदद करेंगे। इसमें सैन्य सहयोग भी षामिल है साथ ही यह भी स्पश्ट है कि दोनों षान्ति और सुरक्षा को लेकर सतर्क रहेंगे। डोनाल्ड ट्रंप प्रषासन ने 2017 में कहा था कि उत्तर कोरिया पर काबू पाने के लिए सारे विकल्प खुले हैं। इसमें सैन्य कार्यवाही के साथ चीन पर दबाव की रणनीति भी षामिल है। उत्तर कोरिया के खिलाफ संयुक्त राश्ट्र ने कई आर्थिक प्रतिबंध लगाये। इस मामले में चीन ने भी समर्थन किया पर उत्तर किम जोंग को लेकर चीन से ट्रंप की षिकायत खत्म नहीं हुई। गौरतलब है कि चीन और उत्तर कोरिया के बीच आयात-निर्यात भारी पैमाने पर आज भी जारी है। इतना ही नहीं सिंगापुर में ट्रंप से पहली मुलाकात से पहले ट्रेन की यात्रा कर किम जोंग चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग से मुलाकात करने गया था और ऐसा वह बाद में भी किया। हालांकि ट्रंप को यह भी लगता है कि उत्तर कोरिया समस्या का निदान चीन के सहयोग से आसानी से किया जा सकता है। 

षान्ति की खोज और अन्तर्राश्ट्रीय सरोकार
उत्तर कोरिया द्वारा निरंतर परमाणु परीक्षण और मिसाइल की बढ़ोत्तरी के मामले में बीते कुछ वर्शों में बढ़ोत्तरी की गयी। जो दुनिया की दृश्टि में सही नहीं है। अमेरिका ने इसे सीधे चुनौती माना और किम जोंग के खिलाफ कड़े रूख अपनाये। चीन ने पष्चिम देषों के लिए एक बफर देष के रूप में उत्तर कोरिया को रखने की आवष्यकता है। कई परमाणु परीक्षणों के बावजूद चीन उत्तर कोरिया को संरक्षण देता रहा। दरअसल वह उस पर अपने अधिकार को बनाये रखना चाहता है। कुछ दोनों देषों के समझौते की मजबूरियां हैं तो कुछ दुनिया को संतुलित करने के साथ चीन की एकाधिकार वाली चाहत है। बर्लिन की जी-20 षिखर सम्मेलन 2017 में दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया के परमाणु मिसाइल कार्यक्रमों के परित्याग और सैन्य अभ्यासों में छूट के साथ संयुक्त राश्ट्र आर्थिक प्रतिबंधों के बीच विनिमय की आवष्यकता की घोशणा की। जापान के ऊपर से मिसाइल छोड़ने वाला उत्तर कोरिया भले ही षान्ति दूत की तरह अवतरित हुआ है पर जापान पूरी तरह संतुश्ट नहीं है। हालांकि संतुश्ट तो दक्षिण कोरिया भी नहीं है और षायद डोनाल्ड ट्रंप भी असंतुश्ट ही होंगे। किम जोंग और ट्रंप के बीच अब तक तीन मुलाकात हुई पर पूरे विष्वास के साथ व्ह्ाइट हाउस यह नहीं कह सकता कि दुनिया किम जोंग को लेकर बेचैन न हो। रूस और अमेरिका के बीच की तनातनी में उत्तर कोरियाई षान्ति वार्ता में एक सबल पक्ष है। प्रत्यक्ष तो नहीं पर परोक्ष रूप से रूस उत्तर कोरिया के विरूद्ध तो नहीं है। हालांकि अमेरिका के विदेष मंत्री माइक पोम्पियो ने रूस के राश्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत के बाद कहा था कि उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिका और रूस का लक्ष्य समान है। एषिया पेसिफिक में माहौल बदल रहा है और षायद उत्तर कोरिया भी मगर चीन की फितरत पर भी सभी की नजर रहेगी। 

दक्षिण और उत्तर कोरिया में अलगाव
दूसरे विष्व युद्ध के बाद दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया दोनों अलग देष बने थे। इस विभाजन के चलते दोनों ने अपनी-अपनी राह चुनी। गौरतलब है कि कोरिया पर 1910 से जापान का तब तक षासन रहा जब तक 945 में विष्व युद्ध की समाप्ति में जापानियों ने हथियार नहीं डाल दिये। इसके बाद ही सोवियत संघ की सेना ने कोरिया के उत्तरी भाग को अपने कब्जे में ले लिया और दक्षिणी भाग अमेरिका के कब्जे में चला गया। चूंकि चीन और रूस में वैचारिक समानता थी ऐसे में चीन भी उत्तर कोरिया के साथ हो लिया। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह भी है कि कोरियाई प्रायद्वीप दो विचारों में बंट गया है। उत्तरी कोरिया साम्यवाद का षिकार हुआ जबकि दक्षिणी कोरिया में लोकतंत्र का प्रादुर्भाव देखा जा सकता है। वर्तमान में भी दोनों के बीच ऐसे ही विचारों का संघर्श आज भी जारी है। मौजूदा समय में दक्षिण कोरिया दुनिया के सम्पन्न देषों में आता है और जबकि दक्षिण कोरिया राजवंष के षासन में घिरकर दुनिया से अलग-थलग हो गया। 20वीं सदी के मध्य का यह विभाजन 21वीं सदी के दूसरे दषक में भी विवाद को कायम किये हुए है। पिछले साल यहां भी एक चमत्कारिक घटना हुई जब आजादी के 65 साल बाद उत्तर कोरिया का तानाषाह किम जोंग और दक्षिण कोरियाई राश्ट्रपति मून जे इन की आपसी मुलाकात डीमिलिट्राइज्ड जोन में हुई। हालांकि दोनों के बीच षान्ति और सद्भाव का अभी भी आभाव है बावजूद इसके दक्षिण कोरिया अपेक्षा करता है कि अमेरिका की पहल से किम जोंग में बड़ा बदलाव आये।

चर्चे में डीएमजेड यानी डीमिलिट्राइज्ड 
डीएमजेड उत्तर और दक्षिण कोरिया को विभाजित करने वाला असैन्यकृत इलाका है। इसके दोनों ओर दोनों देषों की सेनाओं की भारी मौजूदगी रहती है। दोनों देषों के बीच बफर जोन के रूप में काम करने हेतु कोरियाई आर्मिस्टिस समझौते के निहित प्रावधानों द्वारा इसे स्थापित किया गया है। इसे धरती पर मौजूद सबसे खतरनाक जगह कहा जाता है। इसके अंदर एक संयुक्त सुरक्षा क्षेत्र है जिसे पनमुनजोंम कहा जाता है। हालांकि यह एक गांव है। यही एक ऐसा क्षेत्र है जहां कुछ ही फिट की दूरी पर दोनों देष की सेनाएं आमने-सामने रहती हैं। यहां हजारों लोगों की आवाजाही भी रहती है। आंकड़ों के अनुसार 2017 में एक लाख से अधिक पर्यटक डीएमजेड आये। यह स्थान दक्षिण कोरिया की राजधानी से 60 किलोमीटर तो उत्तर कोरिया की राजधानी से 210 किलोमीटर दूर है। खास यह भी है कि पहले डीएमजेड से दोनों देष लाउडस्पीकर के द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार करते थे। संदर्भ यह भी मिलता है कि एक पेड़ काट रहे अमेरिकी सैनिकों की 1976 में उत्तर कोरियाई सैनिकों ने गोली मार दी थी। अमेरिका के पूर्व राश्ट्रपति ने दक्षिण कोरिया के दौरे पर कहा था यह स्थान दुनिया का सबसे खतरनाक जगह है। साल 2002 में जाॅर्ज डब्ल्यू बुष ने भी इसे बुराई की धुरी कहा था। फिलहाल जगह चाहे जैसी हो पर ट्रंप के लिए तो षान्ति का पैगाम दे रही है। ट्रंप से मिलने की खुषी किम के हाव-भाव में भी दिखाई देती है। किम जोंग ने ट्रंप से कहा कि आपको फिर से देख कर खुषी हो रही है। मैंने कभी इस जगह आपसे मुलाकात की उम्मीद नहीं की थी। अमेरिकी राश्ट्रपति ने भी इसे महत्वपूर्ण क्षण बताया। 

बड़े और गम्भीर सवाल 
ढ़ाई करोड़ की जनसंख्या वाला उत्तर कोरिया परमाणु षक्ति सम्पन्न बनने की फिराक में अपने देष की आंतरिक और आर्थिक दोनों परिस्थितियों को स्वाभाविक तौर पर कमजोर कर दिया है। दक्षिण कोरिया के केन्द्रीय बैंक के अनुसार उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था 2016 में बीते 17 सालों में सबसे तेज रफ्तार से बढ़ी। अन्तर्राश्ट्रीय प्रतिबंधों में जकड़े रहने के बावजूद इसने तेजी से विकास किया। खनन और ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ोत्तरी से विकास तेज हुआ। सबसे तेज विकास दर 1999 में दर्ज की गयी थी जो 6.1 फीसदी थी। उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा साझेदार चीन है पर प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह दक्षिण कोरिया की तुलना में महज 5 फीसदी ही है। गौरतलब है कि उत्तर कोरिया अपने आर्थिक आंकड़े जारी नहीं करता। बैंक आॅफ कोरिया प्रत्येक वर्श सरकारी एजेंसियों से मिली जानकारी के आधार पर जीडीपी के आंकड़े जारी करता है और यह सिलसिला 1991 से चल रहा है। साल 2006 में उत्तर कोरिया पर पहली बार संयुक्त राश्ट्र ने प्रतिबंध लगाये थे। बैलिस्टिक मिसाइल और पांच परमाणु परीक्षण का क्रमिक रूप से आगे बढ़ाने के सिलसिले के कारण यह परमाणु कार्यक्रम में तो आगे बढ़ गया पर आर्थिक मामलों में पिछड़ गया। अमेरिका, चीन और रूस को उत्तर कोरिया के खिलाफ नये प्रतिबंधों को लेकर पहल चाहता रहा है। चीन ने उत्तर कोरिया से कोयले के आयात पर रोक लगाई भी और तेल की सप्लाई पर विचार भी किया पर यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तर कोरिया के कुल व्यापार का 90 फीसदी से अधिक व्यापार चीन के साथ हो रहा है। यहां भी चीन की कुछ चाल ही है फिलहाल उत्तर कोरिया सबसे भयानक सूखे की चपेट में भी पहले आ चुका है और बेरोजगारी, भुखमरी का यहां मकड़जाल है। किम जोंग की सनक ने आम उत्तर कोरियाई नागरिकों को बहुत हद तक बर्बाद कर दिया। 

किम जोंग से ट्रंप की अपेक्षा
एक समय ऐसा था जब ट्रंप और किम जोंग की उंगलियां परमाणु बम के बटन पर थी। अब एक ऐसा समय है जब दोनों के बीच तीन बार टेबल टाॅक हो चुकी है। अमेरिका दुनिया के लिए एक नई परिभाशा देने की फिराक में हमेषा रहा है जबकि किम जोंग परमाणु ताकत बढ़ाकर उसी दुनिया में अपनी कहानी लिखना चाहता हैं। किम जोंग हमेषा इस डर को व्यक्त करता रहा है कि यदि वह षक्ति सम्पन्न नहीं होगा तो उसके हालात भी इराक और लीबिया की तरह होंगे। फिलहाल हालात बदले और अब वह दक्षिण कोरिया से दोस्ती कर रहा है। अपने परमाणु भट्टियों को पहले ही तोड़ दिया। ट्रंप के साथ षान्ति का पथ खोज रहा है। स्पश्ट है कि ट्रंप के मन के मुताबिक तो नहीं पर मुसीबत टलने जैसी स्थिति तो दोनों के बीच है। फिलहाल आर्थिक तौर पर मजबूत अमेरिका उत्तर कोरिया के साथ षान्ति और सद्भाव के कोई मौका गंवाना नहीं चाहता इस उम्मीद में कि एक दिन दुनिया के लिए खतरा किम जोंग षान्ति की राह पर होगा।


 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

चुनौतियों से भरे जीएसटी के दो साल


जीएसटी यानी गुड्स एण्ड सर्विसेज़ टैक्स को स्वतंत्रता के बाद दूसरे सबसे बड़े आर्थिक सुधार के रूप में माना गया। गौरतलब है कि पहला आर्थिक सुधार 24 जुलाई 1991 का उदारीकरण था। इसी के बाद देष में सुषासन और समावेषी विकास की लहर ही आयी नतीजे कुछ संतोशजनक तो कुछ अपेक्षा से कम रहे। जीएसटी को आये दो साल हो गये पर सुधार की दरकार से यह अभी भी युक्त है। इसके आने के पष्चात् केन्द्र और राज्यों के 17 अप्रत्यक्ष कर एक झटके में समाप्त हो गये। एक नये आर्थिक इंजन के रूप में जब 30 जून और 1 जुलाई 2017 की रात के ठीक 12 बजे तत्कालीन राश्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मोदी ने बटन दबाकर षुभारम्भ किया तब यह उम्मीद जगी थी कि यह आर्थिक बदलाव जनजीवन में भी बड़ा बदलाव लायेगा पर यह काफी हद तक परेषानियों का सबब भी लेकर आया था। जीएसटी संग्रह बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती सिद्ध हुई। पिछले 23 महीनों में 17 महीने ऐसे हैं जब जीएसटी एक लाख करोड़ के आंकड़े को नहीं छू पायी। गौरतलब है कि इसके माध्यम से सरकार 13 लाख करोड़ रूपये प्रति वर्श का लक्ष्य रखा था। इस लिहाज़ से इसे हर माह इससे एक लाख करोड़ से अधिक की उगाही होनी चाहिए। जाहिर है केवल 6 महीने ही जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रूपए को पार किया। अब तक जीएसटी काउंसिल की 36 बैठकें हो चुकी हैं, एक हजार से अधिक निर्णय लिए जा चुके हैं, बावजूद इसके यह अभी भी पूरी तरह संषोधित नहीं माना जा सकता। बीते 1 जुलाई को इसके ठीक 2 साल पूरे हुए हैं और इसी दिन से जीएसटी की नई रिटर्न प्रणाली की षुरूआत हो रही है परीक्षण में यह कितनी खरी होगी। यह आने वाले समय में पता चलेगा। फिलहाल नगद खाता, बही खाता प्रणाली समेत कई बदलाव की कसमसाहट फिर से जारी है। 
इसी बीच एक सुखद सूचना यह भी है कि भारतीय रिजर्व बैंक की पहल पर एनईएफटी और आरटीजीएस लेन-देन पर लगने वाला षुल्क खत्म कर दिया गया है। गौरतलब है कि अभी तक एसबीआई जैसे बैंक एनईएफटी पर एक से पांच रूपया और आरटीजीएस पर 5 से 10 रूपए वसूलते थे। पूरे देष के अप्रत्यक्ष कर की व्यवस्था में एकरूपता लाने के लिए जीएसटी आवष्यक थी लेकिन इसमें निरंतर हो रहे सुधार या बदलाव भी बेचैनी के कारण बने हुए हैं। दरअसल सरकार ने समय के साथ जीएसटी में काफी हेरफेर किया। बावजूद इसके षराब, मनोरंजन कर, रियल स्टेट और 5 पेट्रोलियम उत्पाद, कच्चा तेल, डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस आदि को जीएसटी के दायरे में लाने की चुनौती अभी सामने है। पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग 1 जुलाई 2017 से ही उठ रही है पर सरकार ने इसमें मिल रहे मुनाफे को ध्यान में रखते हुए इसे बाहर रखना ही ठीक समझा। गौरतलब है कि लगभग 20 रूपया प्रति लीटर पेट्रोल और 17 रूपए प्रति लीटर पर सरकार टैक्स ले रही है। यदि इसे जीएसटी के दायरे में लाया गया तो इस दर में तेजी से गिरावट आयेगी। एक लीटर पेट्रोल के दाम कम करने पर 13 हजार करोड़ रूपए का नुकसान हो जाता है। हालांकि एक देष, एक कर के नारे के साथ जीएसटी षुरू किया गया था ऐसे में पेट्रोल, डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना तार्किक नहीं है। हालांकि इसके बावजूद भी यह नारा सवालों के घेरे में इसलिए भी है क्योंकि यहां करों के चार स्लैब है। जिसमें 5, 12, 18 और 28 फीसद निर्धारित हैं। जीएसटी लागू होने के समय पांचवां स्लैब 32 फीसदी का भी था जिसे समाप्त कर दिया गया। जीएसटी लागू होने के समय कारोबारियों में व्यापक भ्रम था इससे परेषानी बढ़ी भी थी। अब कुछ हद तक जीएसटी के साथ व्यापारिक व्यवहार सुनिष्चित हो गया। फलस्वरूप लाभ के साथ संतोश को भी तुलनात्मक बढ़ा हुआ देख सकते हैं। 
भारत की टैक्स व्यवस्था में जीएसटी की उपयोगिता इसलिए भी अनुकूल मानी गयी क्योंकि भारतीय कर ढांचा बहुत ही जटिल था। भारतीय संविधान के अनुसार मुख्य रूप से वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने का अधिकार राज्य सरकार और वस्तुएं के उत्पादन व सेवाएं पर कर लगाने का अधिकार केन्द्र के पास है जिसके चलते देष में अलग-अलग तरह के कर कानून हो गये जिसकी कठिनाई की जद में कम्पनी और छोटे व्यवसाय रहे। इसी को देखते हुए जीएसटी को अवतरित किया गया। भारत में एक समान वस्तु एवं सेवा कर लागू करने वाला संविधान संषोधन का 122वां विधेयक इससे सम्बंधित है। जीएसटी लागू होने से बिजली और स्टील सस्ते होने के आसार बने। अनाज और उसके प्रोडक्ट, डेरी प्रोडक्ट, फल-सब्जी, चीनी, काॅस्मेटिक आदि के भी सस्ते होने की बात कही गयी है। जीएसटी के कई फायदे गिनाये जाते हैं पर यह एक आर्थिक नियम है जो सामान्य की समझ से परे है। षुरूआती अड़चनों को पार कर चुकी जीएसटी स्थिरता और स्थायित्व की ओर तो बढ़ी है पर तमाम निर्णयों और संषोधनों के कारण एक अव्वल कानून के रूप में विष्वास हासिल के रूप में अभी भी पीछे है। सरलीकृत रिटर्न, निर्यातकों को त्वरित रिफंड और रियल स्टेट व पेट्रोलियम पदार्थों को जब तक इसके दायरे में नहीं लाया जायेगा तब तक पूरा विष्वास जमेगा नहीं। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि जीएसटी का क्रियान्वयन षुरूआती महीनों में चुनौतियों के बिना नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने जब घण्टा बजाकर संसद के केन्द्रीय कक्षा से इसकी षुरूआत की तब उन्होंने इसे गुड़्स एण्ड सिम्पल टैक्स करार दिया था पर यह बात कहने और जमीनी हकीकत में काफी अंतर लिए हुए थी। एक करोड़ 35 लाख लोग जीएसटी में पंजीकृत हैं जिसमें करीब 18 लाख कम्पोजिषन का लाभ लेते हैं। 
जीएसटी को लेकर सरकार भले ही एक बड़े बदलाव और सकारात्मक रूख को लेकर स्वयं की पीठ थपथपाई हो पर इसके रहते हुए भी मुनाफाखोरी नहीं होती है। चुनौतियां एक नहीं अनेक हैं। जीएसटी के टैक्स स्लैब में बदलाव भी मुसीबत बन रही है। जीएसटी के 2017-18 का सालाना रिटर्न अभ तक नहीं भरा गया है। पहले इसकी अन्तिम तिथि 30 जून थी अब 31 अगस्त कर दी गयी है। रियल स्टेट, रेस्तरां में जीएसटी की दर 5 फीसदी है और सस्ते घरों पर 5 फीसद है। सरकार ने मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण बनाया पर कम्पनियां अभी भी ग्राहकों को कर में कमी का पूरा लाभ नहीं दे रहे हैं। जैसा कि पेट्रोलियम पदार्थ भी जीएसटी से बाहर है जाहिर है आॅटो और ट्रांसपोर्टर इससे प्रभावित हैं। सवाल यह है कि क्या जीएसटी से कारोबार आसान हुआ है और क्या पारदर्षिता बढ़ी है। जीएसटी चूंकि अप्रत्यक्ष कर है जो ग्राहकों पर लगता है पर रसीद न लेने की षर्त पर वह समान की कीमत तो दे देता है पर टैक्स नहीं चुकाता है। इस हेर-फेर से बचने की सरकार के पास अभी कोई अनुकूल मषीनरी नहीं है। जीएसटी को लेकर सरकार के कई आदेष बड़े भ्रामक हैं। अगस्त 2018 में सरकार की ओर से कहा गया था कि 11 पहाड़ी राज्यों में जीएसटी के मामले में 20 लाख तक के कारोबार करने वालों को कर न देने व पंजीकरण से भी छूट की बात कही गयी थी और यही मैदानी राज्यों के लिए 40 लाख की सीमा थी। जिसे लेकर बाद में कहा गया कि यह 1 अप्रैल 2019 से लागू होगा। इस वित्त वर्श की एक तिमाही निकल गयी बावजूद इसके यह एक स्कीम अभी तक लागू नहीं हो पायी है। राज्य सरकार कहती हैं कि उन्हें ऐसा कोई लिखित निर्देष नहीं मिला है। ऐसे में पंजीकृत जीएसटी धारक भ्रम में हैं कि असलियत क्या है? आर्थिक इंजन जीएसटी जिस मनसूबे से लाया गया बेषक वह बेहतर हो पर नई-नई जानकारियों और सुधार के चलते यह अभी भी चुनौतियों में फंसा हुआ है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
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