Thursday, December 24, 2015

सुशासन का असल पक्ष

स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सुषासन के लिए आईटी के व्यापक इस्तेमाल पर जोर दिया गया था। उन्होंने कहा था कि ई-गवर्नेंस आसान, प्रभावी और आर्थिक गवर्नेंस भी है और इससे सुषासन के लिए मार्ग प्रषस्त होता है। विष्व बैंक ने सुषासन की एक आर्थिक परिभाशा गढ़ी थी जिसका संदर्भ 1991 में उदारीकरण के दौर से ही देखा जा सकता है। सुषासन एक लोकतंत्र प्रवर्धित अवधारणा है जो षासन को अधिक खुला, पारदर्षी तथा उत्तरदायी बनाता है जिसमें आईटी सहित डिजिटल इण्डिया आदि का कहीं अधिक महत्व है। मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण का महत्व सुषासन के सीमाओं में आते हैं। भारत में पिछले ढ़ाई दषक से इस दिषा में कई महत्वपूर्ण काज भी हुए हैं। इसी के फलस्वरूप सूचना का अधिकार, नागरिक घोशणा पत्र, ई-गवर्नेंस, सिटीजन चार्टर, ई-याचिका, ई-सुविधा सहित कई लोकहित से जुड़े संदर्भ देखे जा सकते हैं साथ ही इनके अनुप्रयोग को भी व्यवहार में उतरते हुए दृश्टिगत किया जा सकता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में सुषासन क्या है और इसके समक्ष खड़ी केन्द्रीय चुनौती भी क्या है? इसे पड़ताल करके देखें तो सुषासन के असल पक्ष को बातौर उभारा जा सकता है। षैक्षणिक तौर पर सुषासन के अर्थ को न्याय, सषक्तिकरण, रोजगार एवं क्षमतापूर्वक सेवा-प्रदायन से जोड़ा जाता है। अपरिहार्य उद्देष्यों की पूर्ति इसकी मूल विषेशता है। सामाजिक अवसरों का विस्तार और समतामूलक समाज के साथ गरीबी उन्मूलन इसकी अनिवार्यता है। इससे सम्बन्धित आकांक्षाएं भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी झांकी जा सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सुषासन की अवधारणा जीवन, स्वतंत्रता एवं खुषी प्राप्त करने के अधिकार से जुड़ी हुई है। वर्श 2014 के 25 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस को सुषासन दिवस के रूप में प्रतिश्ठित किया गया था। इसे बड़ा दिन और बड़े महत्व का दिन इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह ईसा मसीह से भी सम्बन्धित है। सफल और मजबूत मानवीय विकास को समझने के लिए सुषासन के निहित आयामों को जांचा-परखा जा सकता है। हालांकि सुषासन के मामले में आम तौर पर बहुत मानकयुक्त परिभाशा नहीं बनी है।
वास्तव में आज की षासन व्यवस्था स्वयं में कल्याणकारी राज्य के रूप में तभी अनुमोदित हो सकती है जब वह सुषासन को अंगीकृत करती हो। प्रधानमंत्री मोदी का डेढ़ वर्श का कार्यकाल सुषासन की अभिक्रियाओं से भरा हुआ तो दिखाई देता है पर क्या यह व्यावहारिक तौर पर भी खरा है? पिछले कुछ वर्शों से हमारी अर्थव्यवस्था संकट में है। विकास दर उतनी उम्दा नहीं मिली, जितनी होनी चाहिए। महंगाई पर पूरा नियंत्रण नहीं है साथ ही रूपया लगभग लगातार टूटता रहा है। राजकोशीय और बजटीय घाटा बढ़ता रहा है। गवर्नेंस का ग्लोबलाइजेषन तो किया जा रहा है परन्तु देष की नौकरषाही में व्याप्त ढांचागत कमियां और क्रियान्वयन में छुपी उदासीनता के अलावा निहित भ्रश्टाचार पर बहुत कुछ नहीं हो पाया है। बेषक देष की सत्ता पुराने डिजाइन से बाहर निकल गई हो पर दावे और वादे का परिपूर्ण होना अभी दूर की कौड़ी ही प्रतीत होती है। बीते बुधवार को चार सप्ताह तक चलने वाला षीत सत्र समाप्त हुआ। पिछले षीत सत्र से इस षीत सत्र तक की यात्रा को देखें तो मोदी सरकार मन मुताबिक बहुत बड़े काज करने में उतनी सफल नहीं कही जाएगी जितनी एक पूर्ण बहुमत की सरकार को होना चाहिए था। इसके पीछे एक प्रमुख कारण विपक्षियों का रचनात्मक सहयोग न मिल पाना भी षामिल है। मोदी भी सुषासन को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं और इसे सभी समस्याओं के हल के रूप में देखते हैं बावजूद इसके सुषासन को तीव्रता देने वाले कई कृत्य जिसमें जीएसटी भी षामिल है जिसका मूर्त रूप लेना अभी बाकी है।
‘मेक इन इण्डिया‘, ‘डिजिटल इण्डिया‘ सहित ‘कौषल विकास‘ जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं से युक्त विषिश्टताओं को देखें तो सुषासन की गणना में सरकार आगे जाती हुई दिखाई देती है पर क्या बिना ‘स्किल डवलेप्मेंट‘ के कई काम पूरे होंगे संदेह है। हालांकि मोदी इस बात को मानते हैं कि युवाओं को हुनरमंद बना कर न केवल विकास को संभव किया जा सकता है बल्कि वैष्विक स्तर पर स्किल निर्यात को भी सम्भव बनाया जा सकता है। बिना स्किल डवलेप्मेंट के सुषासन का अंजाम तक पहुंचना तो मुष्किल है ही साथ ही स्किल डवलेप्मेंट करना भी इसलिए मुष्किल है क्योंकि भारत में ऐसी संस्थाओं की व्यापक कमी है। आंकड़े दर्षाते हैं कि चीन में पांच लाख, जर्मनी और आॅस्ट्रेलिया में एक-एक लाख कौषल विकास से जुड़ी संस्थाएं हैं किन्तु भारत में ऐसी संस्थाएं मात्र पन्द्रह हजार ही हैं जबकि भारत जनसंख्या के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देष है। इतना ही नहीं चीन में तीन हजार से अधिक कौषलों के बारे में प्रषिक्षण दिया जाता है भारत यहां भी काफी सीमित है। चीन अपनी जीडीपी का 2.5 प्रतिषत व्यावसायिक षिक्षा पर खर्च करता है। भारत में यही खर्च जीडीपी का मात्र 0.1 फीसदी है। मोदी द्वारा योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग जैसे थिंक टैंक को निर्मित करने के पीछे उद्देष्य विकास और सुषासन को प्रासंगिक बनाना ही रहा है। हाल के दषकों में विभिन्न देषों की प्रषासनिक नीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे जा सकते हैं। लोकतांत्रिक प्रषासनिक नीति एवं लोक प्रबंधन के विकल्प के बीच सम्पर्क बिन्दु भी परिलक्षित हुए हैं। ‘इनपुट लोकतांत्रिक माॅडल‘, ‘समूहवादी माॅडल‘ और ‘आउटपुट लोकतांत्रिक माॅडल‘ का भी परिप्रेक्ष्य कमोबेष उजागर हुए हैं। ‘ज्वाइंट अप-गवर्नमेंट‘ तथा ‘होल आॅफ गवर्नमेंट‘ को लेकर भी राय बदली है। केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि अन्य सामाजिक और पर्यावरणीय नीतियों पर भी वैष्विक पहल मजबूत हुई है। जलवायु परिवर्तन को लेकर वैष्विक स्तर पर की जा रही चिंता इसकी एक बानगी है।
सुषासन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम सरकार की प्रक्रियाओं को सरल बनाना भी है। ऐसा करने से पूरी प्रणाली को पारदर्षी और तीव्र बनाया जा सकेगा। यह तय माना जा रहा है कि सुषासन किसी भी देष की प्रगति की कुंजी है और यह तभी सम्भव है जब जवाबदेही को व्यापक स्थान मिले। डिजिटल गवर्नेंस को भारत में नवीन लोक प्रबन्धन के प्रभावषाली उपकरण के रूप में संचालित किया जा रहा है पर सुषासन के भाव में निहित लोक सषक्तीकरण को समुचित बनाना है तो प्रषासनिक सुधारों से लेकर सरकार में ‘आॅर्गेनाइजेषन एण्ड मैनेजमेंट‘ सहित कई बिन्दुओं पर और काम करने की जरूरत पड़ेगी ताकि दायित्वषीलता और व्यापक रूप से सामने आये। देखा जाए तो सुषासन के युग में प्रवेष हुए बहुत वक्त नहीं हुआ है पर राय रही है कि सुषासन एक प्राचीन अवधारणा है पर आधुनिक परिप्रेक्ष्य में इसका पोशण आषा के अनुरूप है जिसमें डिजिटल इण्डिया इसकी एक बड़ी खुराक हो सकता है। सुषासन के अन्तर्गत बहुत सी चीजें आती हैं जिसमें अच्छा बजट, सही प्रबन्धन, कानून का षासन आदि षामिल हैं पर पारदर्षिता का आभाव, लोगों की भागीदारी का आभाव और भ्रश्टाचार के अलावा सरकारी कार्यप्रक्रिया में जड़ता का होना अभी भी यह दुःषासन के लक्षण को समेटे हुए है। अन्ततः यह भी सही है कि जहां विकास के षुरूआती दौर में प्रौद्योगिकरण, औद्योगीकरण तथा आधुनिकीकरण के साथ पष्चिमीकरण का महत्व होता था वहीं इक्कीसवीं सदी के इस दौर में बाकायदा ‘सुषासन‘ को बारीकी से प्रासंगिक बनाया जा रहा है। भारत में वर्तमान सरकार इसके प्रति जो गहरापन दिखा रही है वह बेहतर इसलिए है क्योंकि इसमें ‘सर्वोदय‘ के पूरे लक्षण निहित हैं।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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