इस बार के बजट में मोदी सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं और परियोजनाओं को बल देने का प्रयास किया गया है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने करीब दो घण्टे के बजट भाशण में पूरे साल भर का आय-व्यय का विवरण संसद के सामने परोस दिया जिसे लेकर देष भर में आलोचना-समालोचना का बाजार गरम है। किसी भी बजट में देष के नागरिक अपने हिस्से की विषेशता खोजते जरूर हैं जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा कि 125 करोड़ देषवासी इस बजट के माध्यम से उनकी परीक्षा ले रहे होंगे। प्रत्येक बजट की भांति इस बजट में भी कई आर्थिक और तकनीकी पक्ष हैं जिन्हें ब्यौरेवार तरीके से कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है। बीते तीन साल से लगातार देष सूखे का षिकार रहा है और पिछला वर्श तो बेमौसम बारिष का भी षिकार हुआ जिसके चलते किसान भारी दबाव में थे। इस दबाव को ध्यान में रखते हुए अरूण जेटली ने किसानों को राहत देने वाली कई योजनाओं को बजट में षामिल किया। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि सरकार किसानों को कुछ बेहतर देकर अपनी बरसों पुरानी किसान विरोधी छवि को भी बदलना चाहती है। ग्रामीण ढांचे को सुधारने पर अधिक खर्च के अलावा कृशि हेतु 35 हजार करोड़ का फण्ड, सिंचाई के लिए भी बड़े फण्ड का एलान, आगे के पांच साल में किसानों की आय दोगुनी करने, पांच लाख एकड़ खेती मे जैविक खेती को बढ़ावा देना, दालों के उत्पादन के लिए 5 हजार करोड़ रूपए की अतिरिक्त व्यवस्था इस बात को पुख्ता बनाती है। सरकार का जोर कृशि उत्पादकता, फसल बीमा, क्रेडिट और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस बजट में देखा जा सकता है।
बीते एक वर्श में विदर्भ, बुंदेलखण्ड और पंजाब सहित समस्त उत्तर भारत सूखाग्रस्त रहा जिसके चलते देष का अन्नदाता न केवल व्यथित था बल्कि आत्महत्या करने पर भी उतारू था। मोदी सरकार यह समझने की कोषिष में थी कि किसानों को बिना राहत दिये किसानों के हिमायती होने की पहचान बनाना षायद मुष्किल है। लगभग दो वर्श पुरानी मोदी सरकार ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए दीनदयाल अन्त्योदय योजना तथा 55 सौ करोड़ की फसल बीमा योजना, इसके अलावा 15 हजार करोड़ रूपए का अलग से प्रावधान भी किया है। विगत् एक दषक से चल रही मनरेगा परियोजना को भी 38 हजार 5 सौ करोड़ का फण्ड की घोशणा जो अब तक की सबसे बड़ी राषि कही जायेगी साथ ही मनरेगा के तहत 5 लाख तालाब और कुंए आदि भी निर्मित किये जायेंगे। ग्राम पंचायत को अलग से 2 लाख 87 हजार लाख करोड़ फण्ड देने की योजना इस बात का संकेत है कि पंचायतों की तस्वीर अब कुछ अलग हो सकती है खास यह भी है कि 1 मई, 2018 तक देष के सभी गांव तक बिजली पहुंचेगी इसके लिए भी 85 सौ करोड़ का फण्ड है। इसके अतिरिक्त मोदी की कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को गांव तक पहुंचाने का प्रयास इस बजट में देखा जा सकता है। काॅरपोरेट सेक्टर के लिए भी बहुत कुछ है पर उतनी संतुश्टजनक बात षायद नहीं है जितना षायद समझा जा रहा था। यहां यह भी बता दें कि मोदी सरकार को काॅपोरेट सरकार की संज्ञा भी दी गयी है। इस बार इन्होंने इस पहचान को भी कमजोर करने की कोषिष की गई है। 29 फरवरी को जो हुआ उसके अंदाजा बजट सर्वे के चलते पहले ही हो चुका था। इस बजट से सरकार की एक नई सूरत भी उभरती है ऐसा कहना गैर वाजिब नहीं होगा।
वित्तीय क्षेत्र में स्थिरता लाने की कोषिष करते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली देखे गये। वैष्विक अर्थव्यवस्था में व्यापक संकट की पड़ताल से भी पता चलता है कि बजट काफी सकारात्मक है। जीडीपी 7.6 प्रतिषत है, काॅरपोरेट टैक्स की छूट को धीरे-धीरे समाप्त करने की बात भी कही गई है पर इन्कम टैक्स के मामले में तो खबर निराषाजनक है क्योंकि टैक्स स्लैब में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है इसकी 9 कैटेगरी हैं। छोटे करदाताओं को थोड़ी-मोड़ी राहत होते हुए दिखाई देती है। अब टीडीएस में कटौती कम की होगी परन्तु सरचार्ज एक करोड़ पर 12 से 15 फीसदी के चलते कईयों के हाथ मायूसी भी लगी है। हालांकि कर चोरों पर षिकन्जा कसने का इरादा भी बजट में निहित दिखाई देता है। कृशि में एफडीआई 100 फीसदी और राजकोशीय घाटे का लक्ष्य 3.9 करने का अनुमान है फिलहाल यह वर्तमान में 3.15 है। सस्ते आवास को बढ़ावा दिया गया है और 60 वर्ग मीटर तक का मकान कर मुक्त किया गया है। देष में बिजली की किल्लत को देखते हुए परमाणु उर्जा क्षेत्र को और मजबूत बनाने हेतु 3 हजार करोड़ रूपए की राषि निर्धारित की गई है। जीएसटी पर निर्भर करेगा कि आगे की कर निर्धारण क्या होगा पर सर्विस टैक्स ने वस्तुएं के महंगी होने के संकेत दे दिये हैं। इतना ही नहीं एक प्रतिषत टैक्स बढ़ोत्तरी के चलते सभी कारें महंगी हो जायेंगी। सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात आदि भी महंगे होंगे। इसके अतिरिक्त कई मामले में काॅरपोरेट सेक्टर को राहत देने का प्रसंग भी बजट में देखा जा सकता है। सामाजिक सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन आदि जैसे संदर्भ के साथ वित्तीय क्षेत्र में सुधार आदि किसी भी बजट के बड़े महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं। गरीबों को एक लाख का बीमा इस दिषा में उठाया गया कदम दिखाई देता है। बजट साल में एक दिन आता है और कईयों को उम्मीदों से भरता है तो कईयों को ना उम्मीद भी करता है पर असल पक्ष यह है कि आम व्यक्ति आंकड़ों में उलझने के बजाय बुनियादी जरूरतों तक ही बजट से लेना-देना रखता है।
मध्यम वर्ग की दृश्टि में बजट में निहित टैक्स स्लैब एक चेहरा होता है पर जेटली के बजट ने उन्हें बड़ी मायूसी दी है क्योंकि आय छूट को बढ़ाया नहीं गया। हालांकि पांच लाख तक की आय में 2 से 5 हजार की अतिरिक्त छूट की बात कही गयी है परन्तु टैक्स स्लैब पुराना होने से करीब 2 करोड़ लोगों को मायूसी हुई होगी। देष में 4 करोड़ के आस-पास लोग इन्कम टैक्स रिटर्न भरते हैं। एफडीआई के मामले में मोदी सरकार थोड़ी चुस्त-दुरूस्त दिखाई पड़ती है और अनुमान है कि दस अरब डाॅलर की राषि इससे जुटाई गयी है और पिछले 10 माह में निर्यात 15.5 फीसद कम हुआ है। महंगाई उम्मीद के मुताबिक 5 फीसद के आस-पास ही है। राजकोशीय घाटे की स्थिति काफी हद तक काबू में कही जा सकती है जो विगत् वर्श की भांति ही दिखाई देती है। दिक्कत यह है कि जिस प्रतिषत पर देष की जीडीपी है उससे देष की बेरोजगारी और गरीबी दूर करने में अभी दषकों लगेंगे। स्किल डवलेपमेंट के मामले में भी सरकार ने नये प्रषिक्षण केन्द्र खोलने की बात कही है। डिजिटल इण्डिया, क्लीन इण्डिया, स्टार्टअप इण्डिया साथ स्टैंडअप इण्डिया जैसी योजना पर जेटली ने बजट के माध्यम से काफी गम्भीरता दिखाई है। षिक्षा के क्षेत्र में भी सरकार का धन आबंटन का सिलसिला काफी हद तक ठीक है। लक्ष्य है कि 3 करोड़ युवाओं को सक्षम बनाया जायेगा। कई जानकार इस बजट को नई बोतल में पुरानी षराब की संज्ञा भी दे रहे हैं तो कई इसे मोदी सरकार की छवि सुधारने की दिषा में मान रहे हैं। कुल मिला-जुलाकर लब्बो-लुआब यह है कि अरूण जेटली का यह बजट पूरी तरह खारिज करने लायक नहीं है। भले ही कुछ को तकलीफ हुई होगी पर इस बजट के माध्यम से मोदी सरकार ने किसानों की तकलीफ दूर करने की कोषिष की है।
सुशील कुमार सिंह
बीते एक वर्श में विदर्भ, बुंदेलखण्ड और पंजाब सहित समस्त उत्तर भारत सूखाग्रस्त रहा जिसके चलते देष का अन्नदाता न केवल व्यथित था बल्कि आत्महत्या करने पर भी उतारू था। मोदी सरकार यह समझने की कोषिष में थी कि किसानों को बिना राहत दिये किसानों के हिमायती होने की पहचान बनाना षायद मुष्किल है। लगभग दो वर्श पुरानी मोदी सरकार ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए दीनदयाल अन्त्योदय योजना तथा 55 सौ करोड़ की फसल बीमा योजना, इसके अलावा 15 हजार करोड़ रूपए का अलग से प्रावधान भी किया है। विगत् एक दषक से चल रही मनरेगा परियोजना को भी 38 हजार 5 सौ करोड़ का फण्ड की घोशणा जो अब तक की सबसे बड़ी राषि कही जायेगी साथ ही मनरेगा के तहत 5 लाख तालाब और कुंए आदि भी निर्मित किये जायेंगे। ग्राम पंचायत को अलग से 2 लाख 87 हजार लाख करोड़ फण्ड देने की योजना इस बात का संकेत है कि पंचायतों की तस्वीर अब कुछ अलग हो सकती है खास यह भी है कि 1 मई, 2018 तक देष के सभी गांव तक बिजली पहुंचेगी इसके लिए भी 85 सौ करोड़ का फण्ड है। इसके अतिरिक्त मोदी की कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को गांव तक पहुंचाने का प्रयास इस बजट में देखा जा सकता है। काॅरपोरेट सेक्टर के लिए भी बहुत कुछ है पर उतनी संतुश्टजनक बात षायद नहीं है जितना षायद समझा जा रहा था। यहां यह भी बता दें कि मोदी सरकार को काॅपोरेट सरकार की संज्ञा भी दी गयी है। इस बार इन्होंने इस पहचान को भी कमजोर करने की कोषिष की गई है। 29 फरवरी को जो हुआ उसके अंदाजा बजट सर्वे के चलते पहले ही हो चुका था। इस बजट से सरकार की एक नई सूरत भी उभरती है ऐसा कहना गैर वाजिब नहीं होगा।
वित्तीय क्षेत्र में स्थिरता लाने की कोषिष करते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली देखे गये। वैष्विक अर्थव्यवस्था में व्यापक संकट की पड़ताल से भी पता चलता है कि बजट काफी सकारात्मक है। जीडीपी 7.6 प्रतिषत है, काॅरपोरेट टैक्स की छूट को धीरे-धीरे समाप्त करने की बात भी कही गई है पर इन्कम टैक्स के मामले में तो खबर निराषाजनक है क्योंकि टैक्स स्लैब में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है इसकी 9 कैटेगरी हैं। छोटे करदाताओं को थोड़ी-मोड़ी राहत होते हुए दिखाई देती है। अब टीडीएस में कटौती कम की होगी परन्तु सरचार्ज एक करोड़ पर 12 से 15 फीसदी के चलते कईयों के हाथ मायूसी भी लगी है। हालांकि कर चोरों पर षिकन्जा कसने का इरादा भी बजट में निहित दिखाई देता है। कृशि में एफडीआई 100 फीसदी और राजकोशीय घाटे का लक्ष्य 3.9 करने का अनुमान है फिलहाल यह वर्तमान में 3.15 है। सस्ते आवास को बढ़ावा दिया गया है और 60 वर्ग मीटर तक का मकान कर मुक्त किया गया है। देष में बिजली की किल्लत को देखते हुए परमाणु उर्जा क्षेत्र को और मजबूत बनाने हेतु 3 हजार करोड़ रूपए की राषि निर्धारित की गई है। जीएसटी पर निर्भर करेगा कि आगे की कर निर्धारण क्या होगा पर सर्विस टैक्स ने वस्तुएं के महंगी होने के संकेत दे दिये हैं। इतना ही नहीं एक प्रतिषत टैक्स बढ़ोत्तरी के चलते सभी कारें महंगी हो जायेंगी। सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात आदि भी महंगे होंगे। इसके अतिरिक्त कई मामले में काॅरपोरेट सेक्टर को राहत देने का प्रसंग भी बजट में देखा जा सकता है। सामाजिक सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन आदि जैसे संदर्भ के साथ वित्तीय क्षेत्र में सुधार आदि किसी भी बजट के बड़े महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं। गरीबों को एक लाख का बीमा इस दिषा में उठाया गया कदम दिखाई देता है। बजट साल में एक दिन आता है और कईयों को उम्मीदों से भरता है तो कईयों को ना उम्मीद भी करता है पर असल पक्ष यह है कि आम व्यक्ति आंकड़ों में उलझने के बजाय बुनियादी जरूरतों तक ही बजट से लेना-देना रखता है।
मध्यम वर्ग की दृश्टि में बजट में निहित टैक्स स्लैब एक चेहरा होता है पर जेटली के बजट ने उन्हें बड़ी मायूसी दी है क्योंकि आय छूट को बढ़ाया नहीं गया। हालांकि पांच लाख तक की आय में 2 से 5 हजार की अतिरिक्त छूट की बात कही गयी है परन्तु टैक्स स्लैब पुराना होने से करीब 2 करोड़ लोगों को मायूसी हुई होगी। देष में 4 करोड़ के आस-पास लोग इन्कम टैक्स रिटर्न भरते हैं। एफडीआई के मामले में मोदी सरकार थोड़ी चुस्त-दुरूस्त दिखाई पड़ती है और अनुमान है कि दस अरब डाॅलर की राषि इससे जुटाई गयी है और पिछले 10 माह में निर्यात 15.5 फीसद कम हुआ है। महंगाई उम्मीद के मुताबिक 5 फीसद के आस-पास ही है। राजकोशीय घाटे की स्थिति काफी हद तक काबू में कही जा सकती है जो विगत् वर्श की भांति ही दिखाई देती है। दिक्कत यह है कि जिस प्रतिषत पर देष की जीडीपी है उससे देष की बेरोजगारी और गरीबी दूर करने में अभी दषकों लगेंगे। स्किल डवलेपमेंट के मामले में भी सरकार ने नये प्रषिक्षण केन्द्र खोलने की बात कही है। डिजिटल इण्डिया, क्लीन इण्डिया, स्टार्टअप इण्डिया साथ स्टैंडअप इण्डिया जैसी योजना पर जेटली ने बजट के माध्यम से काफी गम्भीरता दिखाई है। षिक्षा के क्षेत्र में भी सरकार का धन आबंटन का सिलसिला काफी हद तक ठीक है। लक्ष्य है कि 3 करोड़ युवाओं को सक्षम बनाया जायेगा। कई जानकार इस बजट को नई बोतल में पुरानी षराब की संज्ञा भी दे रहे हैं तो कई इसे मोदी सरकार की छवि सुधारने की दिषा में मान रहे हैं। कुल मिला-जुलाकर लब्बो-लुआब यह है कि अरूण जेटली का यह बजट पूरी तरह खारिज करने लायक नहीं है। भले ही कुछ को तकलीफ हुई होगी पर इस बजट के माध्यम से मोदी सरकार ने किसानों की तकलीफ दूर करने की कोषिष की है।
सुशील कुमार सिंह