Sunday, December 6, 2015

विधेयकों पर कितना घना कोहरा

इन दिनों संसद के दोनों सदन जनप्रतिनिधियों से खचा-खच भरे हैं साथ ही चर्चा-परिचर्चा और विमर्ष के अलावा आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी बाकायदा जारी है। देखा जाए तो संसद राश्ट्र की आवाज होती है और राश्ट्र के नागरिकों का दर्पण भी। यहां जब तक सामने के आईने में न निहारा जाए तब तक लोकतंत्र पूरा नहीं पड़ता। कुछ इसी प्रकार के मर्म से ओत-प्रोत पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार ऊपरी सदन में तादाद की कमी के बावजूद कानून की सूरत बदलने की फिराक में है। बीते 26 नवम्बर को षीतकालीन सत्र का आगाज हुआ जिसके षुरूआती दो दिन संविधान को समर्पित थे। इसी दिन 1949 को देष के संविधान के कुछ उपबन्ध लागू किये गये थे जबकि सम्पूर्ण संविधान 26 जनवरी, 1950 को धरातल पर आया था। इसी 26 नवम्बर को मोदी सरकार के ठीक डेढ़ वर्श पूरे हुए। इन डेढ़ वर्शों के कार्यकाल में सरकार कई खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरी जिसमें सर्वाधिक दिक्कत का सामना कई विधेयकों को कानूनी रूप न दिला पाने का रहा है। भारत के संविधान में कुछ लक्ष्य अंकित हैं जिसमें सामाजिक-आर्थिक विकास जैसे संदर्भ निहित हैं। सरकार इन मामलों में कितनी बेहतरी ला सकती है यही इसकी सफलता की असल पड़ताल भी है। सच यह है कि षानदार बहुमत के साथ सत्ता संचालित करने वाली मोदी सरकार विधेयकों के कानूनी रूप न लेने की वजह से खुलकर अपने आइडिया को धरातल पर नहीं ला पा रही है। सत्र के दौरान प्रधानमंत्री ने ‘आइडिया आॅफ इण्डिया‘ पर जोरदार भाशण तो दिया पर असल बात तब बनेगी जब लम्बित पड़े विधेयक कानूनी रूप अख्तियार करेंगे। 23 दिसम्बर तक चलने वाले इस 27 दिवसीय षीत सत्र में कई विधेयक सरकार अधिनियमित कराना चाहेगी पर सफलता दर क्या होगी ये आखिर में ही पता चलेगा।
नीति एवं कानून निर्माण सरकार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रियाओं में से एक है। यह ऐसा माध्यम है जिसके सहारे जनहित में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है। सरकार के सामने कई आन्तरिक तथा बाह्य समस्याओं के साथ लोक कल्याणकारी दायित्वषीलता भी होती है। इसी को देखते हुए नीतियों की सख्त आवष्यकता पड़ती है। हालांकि इन दिनों संसद में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है फिर भी अच्छी तरह से संसद चलने की उम्मीद करना बेमानी नहीं है। हालांकि इसके पूर्व 23 दिन के मानसून सत्र के 30 विधेयक अधिनियमित होने के मामले में सूखे ही रहे। सवाल है क्या जारी षीत सत्र में इन विधेयकों से कोहरा छंटेगा उम्मीद कम ही है? फिलहाल दर्जनों विधेयक सदन में लम्बित हैं जिसमें जीएसटी सर्वाधिक संवेदनषील स्थान लिए हुए है। इसकी मुख्य वजह इसका आर्थिक विकास का धुरी होना है। इसकी गम्भीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी से सद्भावना बैठक भी की। हालांकि मनमोहन सिंह जीएसटी को आर्थिक विकास के धारा में मानते हैं और इसके सकारात्मक पहलू से सहमत हैं पर मामला काफी कुछ राहुल गांधी के मानने पर निर्भर करेगा जबकि भू-अधिग्रहण, बीमा और व्हिसल ब्लोअर सुरक्षा (संषोधन) सहित दर्जनों विधेयक कानून बनने की राह पर हैं पर राजनीतिक एका में कमी के चलते मामला अधर में है। बहरहाल देष की जनता जमीनी सुधार की प्रतीक्षा में है। सरकार से अच्छे दिन की दरकार रखती है पर असहिश्णुता, असंवेदनषीलता और कई अनचाही चर्चाओं के चलते संसद का बेषकीमती वक्त गैर उपजाऊ सिद्ध हो रहा है। इसके पूर्व का मानसून सत्र भी ललित मोदी और व्यापमं घोटाले सहित तमाम विवादित बयानों के चलते गैर उत्पादक ही रहा जबकि बजट सत्र विधेयकों के मामले में आई-गई तक ही सीमित रहा। ऐसे में यह चिंता होना लाजमी है कि आखिर सरकार अध्यादेष के भरोसे कब तक जनहित को साधती जबकि इसकी भी सीमाएं हैं। राश्ट्रपति भी अध्यादेष की प्रथा को सही नहीं मानते। पड़ताल बताती है कि सर्वाधिक अध्यादेष इन्दिरा गांधी के कार्यकाल में ही जारी हुए हैं।
सवाल सरकार पर भी है और विरोधियों पर भी। लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य के विकास में चाहे बहुमत वाली सरकार हो या सामने बैठा विपक्ष, इस विरोधाभास में न रहे कि प्रतिउत्तरदायिता केवल बहुमत वाले की है। इसके अर्थों में दोनों षुमार हैं। एक लोकतांत्रिक सरकार में धारणा यह है कि वे जनता की सेवा के लिए है पर क्या विपक्ष में रहकर यही भावना केवल विरोध की रह जाती है? देखा गया है कि विरोध की राजनीति के चलते कई अच्छे काज प्रभावित हो जाते हैं। फिलहाल हम समाज के तीन प्राथमिक कारकों में जनहित, लोककल्याण और विकास के संतुलन को प्राथमिकता दें तो भी इसकी प्राप्ति नीतियों, नियमों और कानूनों की सहायता से ही सम्भव है। नेहरू के समय से ही भारत ऐसी चिंताओं को समझता रहा है जबकि आज मीलों दूरी तय करने के बाद भी राजनीतिक गतिरोध इस कदर फैला है कि अच्छी नीतियां भी अमलीजामा नहीं धारण कर पा रही हैं। प्रष्न है कि क्या कांग्रेस को एक रचनात्मक विपक्षी की संज्ञा दी जा सकती है? जाहिर है यह सवाल कईयों को तिलमिलाने के काम आ सकता है। सरकार कांग्रेस को कतई अच्छा विपक्ष नहीं कहेगी पर उन्हें भी सोचना होगा कि विरोधियों के विरोध के सुर इतने क्यों बढ़े साथ ही विपक्ष को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि विरोध करना मात्र ही उनकी जिम्मेदारी नहीं है। सफल सरकार के कई मापदण्ड होते हैं तो विपक्षी के क्यों नहीं? इन्हीं मापदण्डों में वे विधेयक भी षामिल हैं जो विरोध के चलते जमीनी नहीं हो पा रहे हैं जिसका सबसे बड़ा नुकसान जनता का हो रहा है, यह बात भी विपक्ष को समझ लेना चाहिए।
विदित है कि सत्ताधारी एनडीए के पास राज्यसभा में संख्याबल की कमी है। सरकार इसके पहले भी एड़ी-चोटी का जोर लगाकर देख लिया है पर पूरी तरह बात नहीं बनी। क्षेत्रीय पार्टियों को देखें तो सपा के 15, तृणमूल कांग्रेस के 12, बसपा के 10, बीजू जनता दल के 6 और षरद पंवार की पार्टी के 6 सदस्य और द्रमुक के 4 को जोड़ दिया जाए तो बात पूरी हो सकती है पर क्या ये राजनीतिक दल सरकार के समर्थन में आ सकते हैं, कहना कठिन है। दरअसल कईयों को इस बात का डर होगा कि यदि भाजपा को इस मामले में मदद की तो आरोप उन पर भी मढ़े जा सकते हैं। पहला यह कि जिसके विरोध में थे उसी का साथ दिया, दूसरे कुछ कानूनों के चलते मुख्यतः भू-अधिग्रहण कानून के मामले में किसानों के नाराज होने का डर। हालांकि इस दौर में सरकार भू-अधिग्रहण कानून को लेकर कदम पीछे खींच लिया है पर उसकी ख्वाहिष जरूर होगी कि इसके लिए भी कानूनी रास्ता साफ हो फिलहाल इस मामले में सरकार काफी लचर और संषोधन के लिए पहले से ही तैयार है। देखा जाए तो अभी सरकार का पूरा जोर जीएसटी पर है जो कांग्रेस के समर्थन के बगैर सम्भव नहीं है। जाहिर है जीएसटी 1 अप्रैल, 2016 से लागू किये जाने की बात प्रधानमंत्री कह चुके हैं और इसी सत्र में जीएसटी के अधिनियमित होने की उम्मीद भी है। निहित मापदण्डों में ऐसा कम ही रहा है कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार गैर मान्यता प्राप्त विपक्ष के सामने इतनी बेबस रही हो। संदर्भ तो यह भी है कि कुछ विरोध, विरोध के लिए भी हो रहे हैं न कि कानून में गड़बड़ी के चलते।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502


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