Monday, December 28, 2015

क्या हमारे संदेश पाक तक पहुँच रहे हैं.

जब बीते शुक्रवार की सुबह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ को प्रधानमंत्री मोदी 66वें जन्मदिन पर मुबारकबाद दे रहे थे तो यह मात्र एक औपचारिकता थी। इसी का निर्वहन करते हुए षरीफ ने भी षराफत के साथ मोदी को अपनी नातिन की षादी में आने और उसे आर्षीवाद देने का आग्रह कर दिया। ऐसा करते समय षरीफ को तनिक मात्र भी अंदेषा नहीं रहा होगा कि दुनिया के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देष का मुखिया अब उन्हें सरप्राइज करने वाला है। मोदी के मन में क्या था इसका अंदाजा लगाना भी सरल नहीं था पर षरीफ के आग्रह को जिस प्रकार ‘अप्रत्याषित डिप्लोमेसी‘ के सांचे में ढाल दिया गया उससे दुनिया हैरत में पड़ गयी। मोदी ने भी संदेष दे दिया कि आप की दावत कबूल है। अब काबुल से उड़ने वाले विमान की लैण्डिंग दिल्ली  से पहले लाहौर होना तय हो गया पर लाहौर की इसी लैण्डिंग के चलते भारत-पाक समेत दुनिया के लिए एक अप्रत्याषित घटना हो गयी। विदेष मंत्री सुशमा स्वराज ने मोदी की इस हैरत भरी लाहौर यात्रा को ‘स्टेट्समैन‘ की तरह उठाया गया कदम बताया और कहा कि पड़ोसियों के बीच ऐसे ही मधुर रिष्ते होने चाहिए जबकि अन्तर्राश्ट्रीय राजनयिक खासकर भारत और पाकिस्तान के रिष्तों की जानकारी रखने वाले भौचक्के रह गये होंगे। विरोधियों को आलोचना करने का मौका है तो समर्थकों के लिए यह कदम हौसला अफज़ाई का काम कर रहा है। इतना ही नहीं एकाएक की गयी पाक यात्रा से वहां की कूटनीति न केवल भौचक्क है बल्कि मोदी की दमदारी को भी हाथोंहाथ लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी। जाहिर है औचक्क लाहौर यात्रा के संदेष को भी लेकर पाकिस्तान बड़ी पड़ताल में लगा होगा पर भारत को भी तो यह सोचना है कि क्या उसका संदेष पाक पहुंच रहा है?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 2004 के पाकिस्तान यात्रा के बाद मोदी की इस ‘सरप्राइज टूर‘ को बड़ी गम्भीरता से भी लिया जा रहा है। वे लाहौर पहुंच कर षरीफ से गले मिले एक ही हैलीकाॅप्टर में बैठ षरीफ के निवास जट्टी उमरा रायविंड पैलेस पहुंचे और डेढ़ घण्टे की भरपूर मुलाकात में वह सब हुआ जो एक सघन दोस्ती के बीच होता है। षरीफ ने मेहमानबाजी की, मोदी ने उसका लुत्फ उठाया और कई गिले-षिकवे को धोते हुए वैष्विक पटल पर एक ऐसा संदेष गढ़ दिया कि मानो भारत और पाक के बीच जो बर्फीले सम्बंध थे साथ ही बरसों की दरारें थी उनको एक लम्हे में पानी-पानी करके भर दिया गया हो। संयुक्त राश्ट्र ने उम्मीद जताई है कि दोनों देष वार्ता को बरकरार रखेंगे और मजबूती देंगे जबकि अमेरिका ने वार्ता का स्वागत करते हुए कहा कि दोनों देषों के सम्बंध सुधरने से पूरे क्षेत्र को फायदा होगा। भारत-पाक के बीच सम्बंधों का उतार-चढ़ाव चूहे-बिल्ली के खेल जैसा रहा है। मोदी को प्रधानमंत्री बने 19 महीने हो चुके हैं। तब से अब तक दोनों देषों के बीच सम्बंधों का ग्राफ कभी साफ तो कभी धुंधला रहा है। सिरे से पड़ताल किया जाए तो मोदी ने षरीफ को 26 मई, 2014 को षपथ ग्रहण समारोह में बुलाया था। इसी दौर की बातचीत में भारत विदेष सचिव इस्लामाद भेजने को राजी हुआ था पर अगस्त में विदेष सचिव भेजे जाने से पहले ही पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने दिल्ली में कष्मीरी अलगाववादियों से मुलाकात की। भारत को विदेष सचिव का दौरा रद्द करना पड़ा। इसे पाकिस्तान की बड़ी भूल के साथ गलत कूटनीति के अर्थ के तौर पर देखा गया।
नवम्बर, 2014 में मोदी-षरीफ की मुलाकात एक बार फिर तब हुई जब नेपाल में सार्क सम्मेलन हो रहा था। हालांकि यहां बात अभिवादन तक ही रही, आधिकारिक स्तर पर कोई बातचीत नहीं हुई। यहां से रिष्तों का ठहराव देखा जा सकता है। जुलाई, 2015 में रूस के उफा में प्रधानमंत्री मोदी और नवाज़ षरीफ की एक बार फिर मुलाकात हुई यहां आतंक को लेकर षरीफ ने मोदी से जो वादा किया उसे इस्लामाबाद पहुंचने पर पलटने के चलते रिष्ते यथावत के साथ और कसैलेपन का रूप ले लिया। देखा जाए तो सम्बंधों पर जमी बर्फ एक बार फिर पिघलते-पिघलते रह गयी थी मगर बीते 30 नवम्बर को पेरिस में हुए जलवायु सम्मेलन के दौरान दोनों नेताओं की दो मिनट की मुलाकात रिष्तों को नये आयाम देने के काम आये। इसी दो मिनट के चलते विदेष मंत्री सुशमा स्वराज का इस्लामाबाद दौरा हुआ, ‘समग्र बातचीत‘ को लेकर दोनों देष रजामंद हुए अब आलम यह है कि सुशमा स्वराज का इस्लामाबाद से वापसी किये बामुष्किल एक पखवाड़ा बीता था कि प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान में इस तरह दाखिल हुए कि दुनिया देखती रह गयी। हालांकि पेरिस में हुई मुलाकात के बाद दोनों देषों के एनएसए थाइलैंड की राजधानी बैंकाॅक में मिले थे जिसमें द्विपक्षीय वार्ता के लिए रोडमेप तैयार कर लिया गया था और उसी के हिसाब से तारीखें भी तय कर ली गयी थी। भले ही लाहौर की यह औचक्क यात्रा लोगों के गले उतरना मुष्किल हो पर इसमें यह संकेत और संदेष भी है कि भारत कूटनीति और चालबाजी करने वालों के साथ भी असंवेदनषील व्यवहार नहीं करता है और हर हाल में रिष्तों में मजबूती ही चाहता है। लाहौर में की गयी लैण्डिंग मोदी का एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक है कि विरोधी भी सकते में होंगे।
षायद दुनिया भी यह जानती है कि भारत सदैव सबका हित चाहता है उसके इस चाहत में पाकिस्तान भी षामिल है पर अब पाकिस्तान को समझना होगा कि भारत की इस पेषगी को वह किस रूप में लेता है। एक तरफ भारत जहां पाकिस्तान से वार्ता करने का पूरा इरादा बना चुका है, अनावष्यक समस्याओं से बाज आना चाहता है वहीं पाकिस्तान संघर्श विराम का उल्लंघन करना और भारतीय सीमा पर गोलीबारी करने से कभी नहीं हिचकिचाया। भारत ने 1948, 1965, 1971 और 1999 सहित चार बार पाकिस्तान को परास्त भी किया बावजूद इसके भारत पिछले तीन दषकों से आतंक को झेलते हुए काफी संयम से काम ले रहा है। वर्तमान भारत मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार से युक्त है। कहा जाए तो भारत मोदी की अगुवाई में न केवल सक्रिय नेतृत्व की पूर्ति कर रहा है बल्कि वैष्विक पटल पर भी काफी साख बटोर चुका है। यह अच्छा मौका होगा कि पाकिस्तान आर-पार को भुलाकर व्यापार और व्यवस्था पर एक ऐसी कोषिष करे कि बरसों से जड़-जंग हो चुकी समस्याएं हल को प्राप्त कर सकें। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत ने पाकिस्तान के मामले में अपना सक्रिय और सकारात्मक रूख दिखा दिया है अब बारी पाकिस्तान की है कि भारत की इस पहल को प्रगाढ़ता में बदल दे। जाहिर है कि कई आतंकी संगठन को यह नागवार गुजरेगा। वे कभी नहीं चाहेंगे कि रिष्ते मधुर हों और समस्याओं पर छाए काले बादल छंटे पर विमर्ष यह कहता है कि कूटनीति के दायरे में रहते हुए दो पड़ोसी मुल्कों को सम्बंधों का एक ऐसा मजबूत धरातल निर्माण करना चाहिए जहां दोनों को राहत हो और आने वाली पीढ़ियों के लिए अच्छा वातावरण मिले। जिस बेसब्री से षरीफ ने मोदी का लाहौर में इंतजार किया था और लजीज भोजन परोसा था यदि उसी मन से वे भारत के मनोविज्ञान और उसके अंदर छुपे संदेष को परख ले तो दोनों नेता सम्बंधों को न केवल नया मुकाम दे सकते हैं बल्कि इतिहास की तारीख में भारत-पाक रिष्ता अजर-अमर हो सकता है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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