Thursday, December 17, 2015

बिगड़ रहा है सियासत का सिलेबस

इस समय दिल्ली कोहरे और शीत  की चपेट के साथ सियासी धुंध में भी खूब फंसी है। एक तरफ संसद के शीत सत्र में नित नये विरोध वाले स्वर गूंज रहे हैं तो दूसरी तरफ केन्द्रीय बनाम दिल्ली की सत्ता में हो रही भिड़ंत के चलते सियासत की मर्यादा भी तार-तार हो रही है। बीते मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी पर ताबड़तोड़ तीखे और कुछ हद तक बेतुके हमले किये जिसमें मोदी के लिए कायर और साइकोपैथ जैसे षब्दों का उपयोग किया गया जो सियासत में इसके पहले षायद ही देखा गया हो। माजरा यह है कि दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर पर सीबीआई ने छापा मारा। गौरतलब है कि सीबीआई केन्द्र सरकार की एक जांच एजेंसी है जाहिर है कि छापेमारी के चलते केजरीवाल का तल्ख होना लाज़मी है क्योंकि केजरीवाल और मोदी के बीच सियासती रंजिष काफी समय से जड़ लिये हुए है। ऐसे में उनका यह आरोप कि सीबीआई का छापा मोदी के इषारे पर है समझना कठिन नहीं है। दरअसल केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के खिलाफ एंटी करप्षन ब्यूरो के पास 2012 से सात षिकायतें आईं हैं। इसी षाखा ने एक षिकायत वैट आयुक्त को भेजी और एक सीबीआई को। जिसे लेकर सीबीआई ने राजेन्द्र कुमार के दिल्ली और यूपी सहित 14 ठिकानों पर छापेमारी की। केजरीवाल का आरोप है कि प्रधान सचिव के बहाने उन्हें निषाना बनाया गया और छापा उनके दफ्तर पर मारा गया है। उनका यह भी आरोप है कि वित्त मंत्री अरूण जेटली के फंसने वाली फाइल को सीबीआई ढूंढने आई थी। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री सिसोदिया की माने तो सीबीआई कैबिनेट के निर्णय सहित कई फाइलें ले गयी है। डीडीसीए की फाइलों को भी ले जाना चाहती थी। मामले को देखते हुए अब आलम यह है कि केन्द्र और दिल्ली सरकार एक बार फिर आमने-सामने हैं। इस बात के बिना फिक्र किये कि असलियत क्या है और इस पर क्या होना चाहिए।
देखा जाए तो राजेन्द्र कुमार को लेकर सीबीआई के पास आई षिकायत और उसके द्वारा की गयी कार्यवाही एक सहज प्रक्रिया है पर इसकी टाइमिंग को लेकर सवाल खड़े किये जा सकते हैं। यह बात सही है कि सीबीआई पर केन्द्र सरकार के अधीन होने का आरोप लगता रहा है। कांग्रेस के जमाने में तो सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो इंफोरमेषन तक की संज्ञा दी जाती थी। षीत सत्र के इस दौर में छापेमारी की यह प्रक्रिया भले ही केन्द्र सरकार के इषारे पर न हुई हो पर केजरीवाल सहित विपक्षी तो यही समझ रहे हैं। संसद में एक रोचक पहलू तब देखने को मिला जब आम आदमी पार्टी के भगवत मान का गला मोदी विरोध में नारे लगाते समय फंसा तो स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें पानी पिलाया। फिलहाल सियासत का रूख अख्तियार कर चुका यह मामला अभी लम्बा खिंच सकता है। अब इस मामले में कांग्रेस भी सरकार विरोधी बात कर रही है। हालांकि वह यह भी कह रही है कि इससे वह केजरीवाल का समर्थन नहीं कर रही है पर इसमें कोई दो राय नहीं कि नेषनल हेराल्ड के मामले में घिरी कांग्रेस इस छापेमारी के बहाने एक नई सियासत को हवा दे रही है जबकि सच्चाई यह है कि मामला वर्श 2012 का है तब दिल्ली की मुख्यमंत्री षीला दीक्षित थी और केन्द्र में भी कांग्रेस की सरकार थी। केजरीवाल का यही आरोप है कि षीला दीक्षित के भ्रश्टाचार के मामले में 2015 में केजरीवाल पर सीबीआई रेड क्यों? तथाकथित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि मामले को जिस रूप में देखा जा रहा है सच्चाई इससे इतर हो सकती है पर सियासत में बड़बोलेपन के षिकार लोगों के लिए सही लकीर खोजना अक्सर मुष्किल ही रहा है और यदि इसे कोई खोज कर दे भी दे तो उस पर भी एक नई सियासत हो जाती है।
देखा जाए तो भ्रश्टाचार के विरोधी केजरीवाल ने भी कम गलतियां नहीं की हैं। राजेन्द्र कुमार को प्रधान सचिव के रूप में नियुक्त करना कहां की अक्लमंदी है जबकि उन पर आधा दर्जन से अधिक षिकायतें हैं। मई में एक व्हिसल ब्लोअर की षिकायत पर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेषनल इण्डिया ने भी केजरीवाल को राजेन्द्र कुमार के मामले में चेताया था बावजूद इसके उन पर कोई असर नहीं हुआ जबकि उन पर भ्रश्टाचार सहित कई संगीन आरोपों की बात कही गयी थी। इसके अलावा केजरीवाल ने नियुक्ति करते समय उप-राज्यपाल की सलाह को भी अनदेखा किया है। सवाल है कि क्या केजरीवाल जिस आधार पर सियासत के रास्ते को अख्तियार किये थे उस पर वे स्वयं चल रहे हैं? सियासी अपरिपक्वता भी केजरीवाल में अभी भी किसी न किसी रूप में कायम है। आरोपों को उजागर करते समय षब्दों के चयन में ये बात देखी जा सकती है साथ ही राजनीतिक रंजिष को भी षीघ्रता से भुला पाने में उतने असरदार नहीं हैं। दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार 1989 बैच के आईएएस आॅफिसर हैं और 2013 में केजरीवाल के 49 दिनों की सरकार में भी सचिव के पद पर रह चुके हैं, वर्तमान में वे सेवा विभाग के सचिव के अतिरिक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव भी हैं जबकि इसके पूर्व वे दिल्ली में षिक्षा निदेषक, वैट आयुक्त, आईटी, षहरी विकास परिवहन और उच्च षिक्षा के अलग-अलग समय में सचिव के पद पर रहे हैं।
इन दिनों के सियासी दौर में सफल षासक की अवधारणा को श्रेश्ठता से समझने की भी आवष्यकता है। समावेषी राजनीति हो या समावेषी विकास इस पर भी चिंतन और मंथन की जरूरत है। भारतीय संविधान संघीय ढांचे के जीवटता से युक्त है ऐसे में केन्द्र और राज्य के बीच यदि खाई बनती है तो सीधे तौर पर संघीय ढांचे का नुकसान है। प्रजातांत्रिक परिप्रेक्ष्य को देखें तो चिंतन यह दर्षाता है कि सत्ताओं के बीच इस प्रकार का दरार होना किसी दुर्घटना को अंजाम देने जैसा है पर सवाल है कि सत्ता की सुदृढ़ता और उसके अंदर की बनावट में यदि सियासत की मात्रा बेहिसाब इस्तेमाल की जायेगी तो हालात में सुधार कैसे होंगे। राश्ट्रपिता महात्मा गांधी का मत था कि बढ़ती हुई षक्ति ऊपर से तो जनता की भलाई करती हुई दिखाई देती है परन्तु असल में ऐसा होता नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री केजरीवाल पूर्ण बहुमत के सत्ताधारक हैं ऐसे में जनहित पर खर्च की गयी चिंता ही उनसे अपेक्षित है न कि केवल आरोप-प्रत्यारोप में पूरी कूबत लगाना। सत्ता वह है जो केवल सृजनात्मक एवं महत्वपूर्ण कार्यों में ही समय का खपत करती है। सफल सत्ता की अवधारणा में कौन, कैसा है उक्त के परिप्रेक्ष्य में स्वयं को परख सकता है। सत्ता के आगे पीछे एक विरोध का भी वातावरण होता है जो गैर जरूरी मुद्दों पर भी लाभ उठाने की फिराक में रहता है। छापेमारी के मामले को लेकर कई विरोधियों को मानो बड़ा अवसर मिल गया हो। तृणमूल कांग्रेस तो इसमें अघोशित आपात की स्थिति देख रही है जबकि जदयू को संघीय ढांचे में तोड़फोड़ दिखाई दे रहा है। सवाल है कि देष में कार्यप्रणाली क्या रही है और किसी समस्या के उपचार को लेकर निदान के क्या प्रारूप रहे हैं। बेषक मोदी बनाम केजरीवाल का दौर बदस्तूर जारी है पर इसका तात्पर्य यह कतई नहीं कि पदों की गरिमा और उससे बंधी सीमाएं ध्वस्त हों। बावजूद इसके केन्द्र सरकार को भी यह सोच लेना चाहिए कि संघीय षक्तियों का प्रयोग ऐसा करें जिससे कि राज्यों को अतिरिक्त कश्ट न हो और राज्यों को भी केन्द्र के हर काज में दखल और विरोध ही नहीं देखना चाहिए।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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