Saturday, December 30, 2017

तमाम चुनौतियों का घर है नया साल

साल 2017 अन्तिम छोर पर खड़ा है और वर्श 2018 उन चुनौतियों के साथ मुहाने पर जो 2017 में उसे विरासत के तौर पर मिलेगी। देखा जाय तो साढ़े तीन साल पुरानी मोदी सरकार लोकतंत्र की नई गाथा लिख रही है और चुनावी जीत की नई पटकथा भी। बावजूद इसके चुनौतियों का अम्बार कम नहीं हुआ है और समस्याएं प्रतिदिन के हिसाब से बढ़त बनाये हुए है। रोटी, कपड़ा और मकान व सुरक्षा आदि समेत कई बुनियादी चीजों के लिए देष का हर चैथा व्यक्ति आज भी वैसे ही जूझ रहा है जैसे बरसों से होता रहा है। गौरतलब है कि विकासात्मक नीति के निर्माण और उसके क्रियान्वयन के लिए आर्थिक ढांचा सुदृढ़ होना आवष्यक है जिसे लेकर नोटबंदी से जीएसटी तक के अभ्यास इसी दिषा में देखे जा सकते हैं। हालांकि नोटबंदी 2016 का मामला है परन्तु उसके असर से साल 2017 पूरी तरह प्रभावित रहा है। जुलाई में जब विकास दर का आंकलन सामने आया तो सरकार के भी नोटबंदी वाले फैसले संदेह के दायरे में आ गये। गौरतलब है कि विकास दर तुलनात्मक दो फीसदी औंधे मुंह गिर गया था। एक जुलाई से देष में जीएसटी लागू है इसे लेकर भी आर्थिक जगत में अनेकों समस्याएं देखने को मिली हैं। जुलाई में करीब 94 हजार करोड़ अप्रत्यक्ष कर इकट्ठा हुआ जबकि लगातार इसमें कमी होते हुए दिसम्बर में जुलाई की तुलना में यह 10 हजार करोड़ कम है। कारोबारी परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाय तो साल 2017 अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और सुधारने में ही चला गया। साफ है कि सुषासन को हथियार बनाने वाली मोदी सरकार बुनियादी मामले में इसलिए बहुत कुछ नहीं कर पायी क्योंकि नोटबंदी और जीएसटी के चलते पनपे असंतोश को कम करने में ही पूरी कूबत झोंकती रही।
फिलहाल 2017 आर्थिक उतार-चढ़ाव से गुजरा है यह बात सभी स्वीकार करेंगे। अब सवाल यह है कि जो 2017 में नहीं हुआ क्या 2018 में हो जायेगा। विकास, रोज़गार बढ़ाने और भ्रश्टाचार समाप्त करने के नाम पर सत्ता में आई मोदी सरकार के लिए 2019 लोकसभा चुनाव को देखते हुए साल 2018 सबसे चुनौती भरा सिद्ध होगा। जब मई 2014 में सरकार बनी थी तब प्रधानमंत्री मोदी ने अपना रिपोर्ट कार्ड पांच साल में दिखाने की बात कही थी। जाहिर है जनता भूली नहीं है और ब्यौरा मांगेगी। दूसरा सवाल यह है कि चुनौतियों से भरे 2018 में सरकार क्या वो स्पीड ला पायेगी जिसकी दरकार है। ध्यान रहे कि नोटबंदी और जीएसटी को लेकर अभी भी सरकार की साख संदेह में रहती है। वित्त मंत्री अरूण जेटली आगामी वर्श में जीडीपी की वृद्धि दर 7.7 फीसदी रहने की उम्मीद जता रहे हैं। उन्होंने कहा है कि उभरते देषों की अर्थव्यवस्थायें आज संरक्षणवादी नीतियों एवं बढ़ते-बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के रूप में नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। दो टूक यह भी है कि वित्त मंत्री जिस जीडीपी का अनुमान लगा रहे हैं उसे मौजूदा राह पर चल रही अर्थव्यवस्था को देखते हुए ऊंची कही जा सकती है पर सरकार के नियोजन और नीति यदि वाकई में चमत्कारिक रहे तो इससे भी ऊपर जा सकती है। अन्तर्राश्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूढ़ीज की रिपोर्ट से पता चलता है कि अगले साल मार्च में खत्म होने वाले वित्त वर्श 2018 में विकास दर 7.5 फीसदी रहेगी और 2019 में 7.7 फीसदी जबकि अमेरिका की एक अन्य रिपोर्ट कहती है कि विकास का दर 2018 में 6.4 प्रतिषत और अगले वित्त वर्श में 8 फीसदी पर पहुंच जायेगी। फिलहाल सरकार को तो अपनी जमीन पर अर्थव्यवस्था की षतरंजी गोटियां बिछानी हैं और विकास देकर इसे प्रमाणित भी करना है। वर्श 2014 से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जिस तर्ज पर भाजपा ने चुनावी जीत हासिल की है और 2017 में जिस भांति उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड तत्पष्चात् हिमाचल और गुजरात में सत्तासीन हुई है उससे तो यही लगता है कि नोटबंदी और जीएसटी प्रमाणित हो गये हैं पर इस सवाल से सरकार पीछा नहीं छुड़ा सकती कि जन विकास की चुनौतियां अभी उसे ऐसे प्रमाणपत्र से वंचित रखा है जिसका सबसे महत्वपूर्ण वर्श 2018 होगा। 
पिछड़ती और धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था के चलते सरकार ने सभी किसानों का ऋण माफ करने का जोखिम नहीं लिया जबकि मौजूदा समय में ग्रामीण और कृशि क्षेत्र सर्वाधिक दुर्दषा से गुजर रहे हैं। किसानों की हालत भले ही चर्चाओं में बेहतर हो पर हकीकत यह है कि दो जून की रोटी के लिए आज भी जी-तोड़ मेहनत जारी है। तीन लाख से ज्यादा किसान दुनिया छोड़ चुके हैं और 2017 में भी यह क्रम जारी रहा। काष कुछ ऐसा होता कि 2018 इन सूचनाओं से वंचित हो। साफ सुथरी बात यह भी है कि सरकार ने 2016 के बजट में ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को लेकर काफी कुछ करने की कोषिष की थी परन्तु हालात इस कदर छिन्न-भिन्न हैं कि अन्नदाता आज भी गुरबत से नहीं उबरे हैं। उत्तर प्रदेष की भारी बहुमत वाली योगी सरकार ने तकरीबन चालीस हजार करोड़ का किसानों का कर्ज माफ किया पर बद्किस्मती से किसानों का पीछा अभी नहीं छूटा है। उत्तराखण्ड में भी हालात ऐसे बिगड़े कि पहली बार यहां साल 2017 में चार किसानों की आत्महत्या की सूचना आई जो देवभूमि पर पहली बार हुआ। ऐसा क्या होता है कि सत्ता सुनिष्चित करने के लिए राजनीतिक दल  वायदे तो बड़े करती हैं पर निभाने में बहुत बौनी रह जाती हैं। गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी, अषिक्षा समेत कई समस्याओं से देष-प्रदेष अभी अछूते नहीं हैं। अच्छे षिक्षालय, अच्छे चिकित्सालय और गुणवत्ता से भरे वातावरण देने की चुनौती यहां पर व्यापक पैमाने पर है। 65 फीसदी युवाओं वाला भारत बेरोजगारी से अटा है और सरकारें कहती हैं स्वरोजगार सोचिए जबकि स्किल डवलेपमेंट के मामले में अभी भी यह कहना मुनासिब नहीं है कि मोदी सरकार ने दूसरों की तुलना में कहीं कुछ हटकर किया है। हां कोषिष जरूर अच्छी कही जायेगी। 
आज देष के सामने कई प्रमुख प्रष्न खड़े हैं जिसका समाधान सरकार और उसकी मषीनरी में खोजा जा रहा है पर हल मन माफिक हो रहे है ऐसा कहना सम्भव नहीं है। बेषक देष की सत्ता पुराने डिजाइन से बाहर निकल गयी है पर बुनियादी समस्याओं से निजात न मिल पाने के कारण राह अभी भी कठिन बनी हुई है। इन सबके बीच सुखद यह है कि भारत की आर्थिक सम्भावनाओं पर हालिया राश्ट्रीय एवं अन्तर्राश्ट्रीय अध्ययन रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि साल 2018 में भारत का आर्थिक परिदृष्य बेहतर होगा। इसमें यह भी कहा गया है कि भारत बदले हुए सकारात्मक आर्थिक एवं कारोबारी परिदृष्य के कारण 2018 में ब्रिटेन व फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए डाॅलर के हिसाब से विष्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देष बनेगा। गौरतलब है कि उक्त आषा से भरी बातें बीते 26 दिसम्बर को ब्रिटेन की वैष्विक रिसर्च सेन्टर फाॅर इकोनोमिक एण्ड बिज़नेस रिसर्च द्वारा प्रकाषित रिपोर्ट से पता चलती है। सभी जानते हैं कि सरकार के निहितार्थ में विकास और लोक कल्याण की अवधारणा निहित होती है और यह निहित परिप्रेक्ष्य तब पूरी तरह खरा उतरता है जब जन मानस बुनियादी चुनौतियों से मुक्त गुणात्मक जीवन मूल्य की ओर हो और ऐसा होने के लिए सरकार को आर्थिक रूप से सबल होना ही आवष्यक है। उम्मीद है कि आगामी 2018 में सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए जन विकास से ओत-प्रोत होगी। सरकार भी जानती है कि आगामी वर्श में विकास को लेकर उसकी अग्नि परीक्षा होगी जिसमें उत्तीर्ण भी होना है। इतना ही नहीं मध्य प्रदेष, राजस्थान एवं कर्नाटक और पूर्वोत्तर के चार राज्यों समेत आठ प्रान्तों में चुनाव भी होना है। इसे भी ध्यान में रखकर विकास का रास्ता चैड़ा करना सरकार की मजबूरी होगी। फिलहाल वजह चाहे जो हो यदि बुनियादी विकास और लोक विकास सुनिष्चित होता है तो जनता और सरकार दोनों की सेहत में सुधार होगा। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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