Wednesday, December 6, 2017

आसियान के मंच से मनचाहा सहयोग

किसी भी देष की विदेष नीति का मुख्य आधार उस देष को वैष्विक स्तर पर न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराना बल्कि अपनी नीतियों के माध्यम से दूसरे देषों को अवगत कराते हुए उनके सही गलत होने का एहसास भी कराना होता है। कुछ इसी तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते 14 नवम्बर को आसियान के मंच से पाकिस्तान और चीन को कड़ा संदेष देने का प्रयास किया। हालांकि दोनों देषों का नाम नहीं लिया परन्तु सम्बोधन में मोदी ने जहां आतंकवाद और चरमपंथ को सबसे बड़ी चुनौती करार दिया वहीं पूरे दक्षिण चीन सागर पर एकाधिकार की फिराक में रहने वाले चीन को सख्त संदेष देते हुए यह जता दिया कि भारत हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में नियम आधारित क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था का पक्षधर है। उक्त वक्तव्य चीन और पाकिस्तान को नागवार जरूर गुजरा होगा और षायद इस बात का मंथन भी वे कर रहे होंगे कि वैष्विक फलक पर भारत के इस उभार और इस हनक को क्या समझा जाय। यह बात तब और अधिक प्रमाणित और मजबूत हो जाती है जब प्रधानमंत्री मोदी के सम्बोधन के ठीक एक दिन पहले अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एषिया-प्रषान्त क्षेत्र को भारत-प्रषान्त क्षेत्र कहना षुरू किया। इससे यह भी पता चलता है कि व्हाइट हाऊस का प्रषासन एषिया से सम्बन्धित अपनी रणनीति में भारत को केन्द्र में रख कर आगे बढ़ना चाहता है। आज भूमण्डलीकृत विष्व की अनिवार्यताओं को देखते हुए भारत कूटनीतिक फलक पर अपने मन की बात करने से फिलहाल कहीं कोई चूक करता नहीं दिखाई देता। इसी परम्परा का निर्वहन आसियान के मंच पर भी दिखा। गौरतलब है कि बीते सोमवार से फिलीपीन्स की राजधानी मनीला में तीन दिवसीय 31वां आसियान षिखर सम्मेलन हुआ जिसमें प्रधानमंत्री मोदी भागीदारी देते हुए अपने अंदाज में पड़ोसी देषों की भी खबर ली। 
आसियान के स्वर्ण जयन्ती समारोह के मौके पर इस वर्श इन षिखर सम्मेलनों की भारत के लिए खास एहमियत है। आसियान षिखर सम्मेलन इससे सम्बंधित बैठकों और स्वर्ण जयन्ती समारोह के साथ-साथ चला। गौरतलब है इस वर्श भारत-आसियान संवाद की 25वीं वर्शगांठ है। यह भारत-आसियान का 15वां तथा भारत-आसियान रणनीतिक साझेदारी का 50वां वर्श है। बीते 12 नवम्बर को इन कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी मनीला पहुंचे। खास यह भी है कि 1981 में इन्दिरा गांधी के बाद फिलीपीन्स की यात्रा पर जाने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं। एसोसिएषन आॅफ साउथ ईस्ट एषियन नेषन्स (आसियान) दक्षिण पूर्व एषिया के 10 प्रभावषाली देषों का समूह है। पूर्वी एषिया सम्मेलन में इन दस देषों के अलावा अमेरिका, भारत, रूस, चीन और जापान सहित 9 बड़े देष भी षामिल हैं। गौरतलब है कि भारत आसियान के साथ अपने सम्बंधों को महत्व देता रहा है। आसियान सदस्य देषों के साथ सम्बंधों को गहरा करने के लिए भारत अपनी प्रतिबद्धता भी समय-समय पर दिखाता रहा है। इस दौरान भी कुछ इसी प्रकार की अवधारणा उजागर तब हुई जब प्रधानमंत्री ने आसियान के सभी 10 नेताओं को आगामी गणतंत्र दिवस समारोह हेतु दिल्ली आमंत्रित किया साथ ही 25 जनवरी 2018 को भारत-आसियान विषेश षिखर सम्मेलन के लिए भी न्यौता दिया गया है। भारतीय परिप्रेक्ष्य को और उम्दा प्रदर्षित करते हुए मोदी ने यह कहा कि भारत के 125 करोड़ लोग 69वें गणतंत्र दिवस में आसियान नेताओं का स्वागत करने का इंतजार कर रहे हैं। यह भी बता दें कि इस बार के गणतंत्र दिवस में इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतान्याहू को भी मुख्य अतिथि के तौर पर निमंत्रण दिया गया। इस बार पहली बार ऐसा होगा जब गणतंत्र दिवस पर अतिथि एक नहीं अनेक होंगे।
साल 1991 में भारत ने पूर्वी एषियाई देषों के साथ अपनी संलग्नता सुनिष्चित करने के दृश्टिकोण से पूर्व की ओर देखो नीति की घोशणा की। ये आधार इस बात को पुख्ता करते हैं कि भारत का इन देषों के साथ एतिहासिक सम्बंध बरसों पुराने हैं। 1992 में भारत आसियान का क्षेत्रीय वार्ता भागीदार बन गया और क्रमिक तौर पर भारत की उपादेयता इन क्षेत्रों में वाणिज्य एवं व्यापार के साथ कृशि तथा अन्य मामलों में परिभाशित होने लगी। मोदी की फिलीपीन्स के राश्ट्रपति के साथ एकपक्षीय बैठक जिसमें कृशि सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग से जुड़ी कई करार साथ ही विष्व के कई अन्य नेताओं के साथ भी द्विपक्षीय नीति का संचालन मुनाफे का कार्य था। अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मोदी की मुलाकात न केवल पड़ोसियों को संतुलित करने में बल्कि पूर्वी देषों पर चीन के असर को कमजोर करने में भी मददगार हो सकती है। वैसे अमेरिकी राश्ट्रपति की मौजूदा गतिविधियां भी गौर करने लायक हैं। मोदी को जेंटलमेंट बताने वाले ट्रंप 12 दिन की एषियाई यात्रा 14 नवम्बर को आसियान के समापन के साथ समाप्त की। इसी सम्मेलन में डोनाल्ड ट्रंप और मोदी की एक बार फिर मुलाकात हुई। जनवरी 2015 से ट्रंप अमेरिका के राश्ट्रपति हैं और इतना लम्बा दौरा उनका कभी नहीं रहा। पड़ताल बताती है कि बीते दो दषकों में भी कोई भी अमेरिकी राश्ट्रपति इतनी अवधि का दौरा नहीं किया है। डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां अमेरिका उन्मुख अधिक रही हैं। अमेरिका फस्र्ट की थ्योरी पर वे फिलहाल काम करते देखे जा सकते हैं बावजूद इसके एषियाई देष में इतना लम्बा वक्त बिता कर उन्होंने अन्यों की कूटनीति के साथ निजी नीति को प्रसार करने की कोषिष की है। उत्तर कोरिया के संकट से ट्रंप पूरी तरह वाकिफ हैं एषियाई देषों को साथ लेकर चलना इस मामले में उनकी एक मजबूरी भी हो सकती है। प्रधानमंत्री मोदी भी सम्बोधन के दौरान कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु मुक्त बनाने और उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार तकनीक की लीकेज का विस्तृत जांच कराने का भी आह्वान किया है। साफ है कि इस संदर्भ के चलते मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मित्रता और गाढ़ी ही होगी। इतना ही नहीं इज़राइल को गणतंत्र दिवस पर भारत में बुलाकर दूसरे छोर को भी और मज़बूत कर दिया है। गौरतलब है कि 70 साल के इतिहास में मोदी इज़राइल की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। वहीं से सीधे पेरिस जलवायु सम्मेलन में जब उनकी षिरकत हुई थी तब देष में डोकलाम समस्या चरम पर थी और इस गरमागरमी के माहौल में चीन के राश्ट्रपति जिनपिंग से मुलाकात हुई थी और मोदी का इज़राइल दौरा जिनपिंग को बहुत अखरा था। और अब तो अमेरिका समेत जापान से न केवल भारत की गाढ़ी दोस्ती है बल्कि आसियान पर उसकी पैठ से चीन कुछ असंतुलित हुआ होगा। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी रणनीति के कई छोर हैं जिसमें एक एक्ट ईस्ट नीति षामिल है। आसियान का यह सम्मेलन ऐसे समय में हुआ जब चीन अपनी वन बेल्ट, वन नीति का विस्तार से खुलासा कर चुका है और भारत चीन की इस योजना से नाखुष है इसके पीछे बड़ा कारण पीओके में चीन की इस परियोजना का प्रवेष है। जिस तेजी से चीन इस परियोजना पर अमल कर रहा है। उससे आर्थिक और सामरिक दृश्टि से वह मजबूत भी हो रहा है। गौरतलब है मनीला में भारत, अमेरिका और जापान तथा आॅस्ट्रेलिया के नेताओं की मौजूदगी के बड़े खास मायने हैं। इन चारों को यदि मिश्रण किया जाय तो चतुश्कोण बन जाता है। ध्यानतव्य हो कि इन चारों का संक्षिप्त स्वरूप क्वाड यानि चतुश्कोण जिसकी पहली औपचारिक बैठक दषक पहले 2007 में हुई थी। हालांकि इसका कोई खास परिणाम नहीं निकला पर इससे चीन समेत पाकिस्तान कहीं न कहीं मनोवैज्ञानिक कमजोरी का सामना करते हैं। इस चतुश्कोण के पीछे भी एक बड़ा कारण चीन का बढ़ता दबदबा ही था। आसियान में यह भी साबित हुआ है कि भारत की आवाज़ किसी गूंज से कम नहीं थी। अच्छी बात यह भी है कि आसियान जैसे मंचों से भारत को मनचाहा सहयोग मिल रहा है। भले ही चीन की तुलना में हमारा ढांचागत संदर्भ पीछे ही क्यों न हो। 

  

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेश  
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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