Wednesday, December 13, 2017

इराक ही नहीं पूरी दुनिया आतंक मुक्त हो

दुनिया दो समस्याओं से जूझ रही है एक आतंक तो दूसरा जलवायु परिवर्तन। जिसे लेकर इसी दुनिया के माथे पर चिंता की लकीरें स्वाभाविक रूप से देखी जा सकती है। गौरतलब है कि विगत् तीन दषकों से भारत, पाकिस्तान प्रायोजित आतंक से लहूलुहान होता रहा और यह सिलसिला बादस्तूर अभी जारी है। विष्व के अन्य देष व अनेक देष तब तक इसे लेकर संजीदगी नहीं दिखाई जब तक इसके खौफ के साये से वे बचे रहे। वर्श 2001 में जब अलकायदा ने अमेरिका पर हमला किया तब अमेरिका जैसे सभ्य देषों को यह पता चला कि आतंक की पीड़ा कितनी बड़ी और आहत करने वाली होती है। लंदन के मेट्रो में जब आतंकियों ने बम ब्लास्ट किया तब उन दिनों यूरोप भी इससे सिहर गया था। क्या पूरब, क्या पष्चिम और क्या उत्तर, क्या दक्षिण पृथ्वी के मानचित्र पर अब षायद ही कोई देष बचा हो जो आतंकवाद से परिचित न हो। पड़ताल बताती है कि आतंकवादियों के सैकड़ों संगठन दुनिया में संकट पैदा कर रहे हैं और ताबड़तोड़ हमलों से अपनी ताकत का प्रदर्षन कर सभ्य समाज को चिढ़ा भी रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिका द्वारा जारी सौ आतंकी संगठनों में 83 को इस्लामिक संगठन बताया गया था। इसी प्रकार की पुश्टि संयुक्त अरब अमीरात ने भी की थी जिससे निपटने के लिए अनेक राश्ट्राध्यक्ष सम्मेलनों एवं अन्तर्राश्ट्रीय बैठकों में रणनीति भी बनाते रहे हैं। खास यह भी है कि आतंक का जिस गति से विस्तार हुआ उससे पार पाने के लिए वैष्विक रणनीति कारगर नहीं रही है। प्रधानमंत्री मोदी अपने कार्यकाल से ही वैष्विक मंचों पर आतंक की पीड़ा से जूझ रहे भारत की स्थिति दुनिया के सामने रखते रहे। जिसका नतीजा यह है कि पाक आज षेश दुनिया से अलग-थलग हो गया है। 
देखा जाय तो विगत् कुछ वर्शों से आतंकवाद पर चर्चा खुल कर हो रही है और आतंकी संगठन तुलनात्मक सषक्त होने की रणनीति में भी मषगूल रहे हैं और षायद अभी भी इसी काम में लगे हैं। जिस तर्ज पर आतंकवादियों ने पिछले कई वर्शों से अपनी ताकत को परवान चढ़ाया है उसकी तुलना में बड़े से बड़ा देष भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके सुरक्षा कवच को वे भेद नहीं सकते। गौरतलब है कि अमेरिका और ब्रिटेन से लेकर तमाम ऐसे कद्दावर देष इस जद्द में पहले आ चुके हैं और कई देष भले ही हमले से बचे हों पर दहषत से मुक्त नहीं हैं। इतना ही नहीं ब्रिटेन सहित षेश यूरोप भी इसकी पीड़ा भोग चुका है। ध्यानतव्य हो कि साल 2015 में पेरिस के षार्ली आब्दो के दफ्तर पर हुए आतंकी हमले और पुनः उसी पेरिस में दोबारा आतंकी हमला पूरे यूरोप को भय से भर दिया था और इस हमले में फ्रांस में व्यापाक पैमाने पर जान-माल का नुकसान भी हुआ। हांलाकि फ्रांस ने इस मामले को प्रमुखता देते हुए आतंकी ठिकानों पर हमले भी तत्काल षुरू कर दिये थे। खास यह भी है कि जिस पेरिस में 2015 के नवम्बर के पहले पखवाड़े में यह हमला हुआ था उसी पेरिस में इसी माह के आखिरी दिनों में पेरिस जलवायु सम्मेलन को लेकर दुनिया के राश्ट्राध्यक्ष को इकट्ठा होना था। कचोटने वाला प्रष्न यह है कि दुनिया की दो समस्याओं में एक जलवायु परिवर्तन पर जहां चिंतन किया जाना था वहीं आतंकवाद को लेकर नई चिंता का विकास हो गया था। 
निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि दुनिया में तबाही का मंसूबा रखने वाला आइएस तेजी से सिकुड़ रहा है यदि उसे इस समय कोई अतिरिक्त ऊर्जा नहीं मिली तो उसका भरभराना सम्भव है। ताजा दृश्टिकोण यह है कि इराक जहां आइएस के सरगना बगदादी का जन्म हुआ अब वही इराक उसके चंगुल से मुक्त हो गया है। इस्लामिक स्टेट आॅफ इराक एण्ड सीरिया यानि आइएसआइएस को किसी भस्मासुर से कम नहीं माना गया। फिलहाल बदले हालात में यह संगठन छिन्न-भिन्न हो रहा है फलस्वरूप उसका मानचित्र तेजी से छोटा हो रहा है। कई प्रकार की परेषानियों समेत आर्थिक संकटों के चलते अब इस संगठन से जुड़ने वालों की संख्या निरन्तर कम होती जा रही है और जो पहले से हैं वे भी आम जीवन में लौटना चाहते हैं। मुख्य यह भी है कि इसमें षामिल महिलायें अब तेजी से इससे पीछा छुड़ा रही हैं। दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन आइएस निहायत महत्वाकांक्षी किस्म का है। आर्थिक तौर पर देखें तो इसका बजट दो अरब डाॅलर का है जो अपहरण से प्राप्त फिरौती तथा बैंक लूटने जैसे तमाम हथकण्डों से युक्त है। आइएस मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को सीधे अपने राजनीतिक नियंत्रण में रखने का लक्ष्य घोशित किया था जिसमें जाॅर्डन, इज़राइल, फिलीस्तीन, लेबनान, कुवैत तथा साइप्रस समेत दक्षिणी तुर्की का कुछ भाग इसमें आता है पर महात्वाकांक्षा के उफान इतने तक ही सीमित नहीं था। इसकी स्थिति को देखते हुए लगता है कि इसकी इच्छा मानो दुनिया भर पर कब्जा जमाना था।
फिलहाल ताजा प्रकरण यह है कि बगदाद समेत पूरे इराक पर जहां बगदादी की तूती बोलती थी वहां से अब यह पूरी तरह समाप्त हो चुका है दूसरे षब्दों में इराक आइएस मुक्त होते हुए इसके क्षेत्र को निहायत संकुचित कर दिया है। गौरतलब है कि इराकी प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी बीते 10 दिसम्बर को राश्ट्रीय अवकाष घोशित करते हुए आइएस से इराक के मुक्त होने का जष्न मनाया। उनका दावा है कि सुरक्षा बलों ने सीरिया से लगे अन्तिम इलाके को भी फिलहाल आईएस से मुक्त करा लिया है। यदि यह सूचना पूरी तरह सही है तो इराक आइएसआइएस के खिलाफ चल रही लड़ाई को न केवल जीता है बल्कि बगदादी के खौफ से मुक्ति भी पा ली है। इसे देखते हुए ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा ने इराक के आतंक से मुक्ति पर प्रसन्नता तो जाहिर की पर यह भी आगाह किया है कि आईएस का खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है। ऐसा कहने के पीछे सीरिया से लगी सीमा पर इराक की मौजूदगी मानी जा रही है। वैसे एक सूचना यह भी रही है कि आइएस प्रमुख बगदादी की मौत हो चुकी है पर इसकी पुश्टि न होने से यह खबर संदेह में रहती है। तुर्की और ईरान की मीडिया ने भी उसकी मौत को सही बताया है पर संदेह से पर्दा अभी भी पूरी तरह हटा नहीं है। पूरी दुनिया में आतंक और दहषत का पर्याय बन चुके चरमपंथी समूह आइएसआइएस की क्रूरता और जुर्म तथा उसी की ओर से जारी वीडियो के माध्यम से दुनिया ने यह देखा है कि रेगिस्तान में लाल वस्त्र पहनाकर घुटने के बल बैठाकर किस तरह विदेषी नागरिकों और गैर मुस्लिमों का गला रेता गया है। विष्व भर में फैले आतंक और हिमाकत साथ ही तबाही के बीच क्या इस बात का चिंतन-मनन नहीं होना चाहिए कि दुनिया को संवारते-संवारते आखिर दहषत फैलाने वाले आतंकी संगठन और आतंकवादी कहां से पैदा हो जाते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि जाने अनजाने आइएस के जन्म के पीछे अमेरिका का ही हाथ रहा है ठीक वैसे जैसे ओसामा बिन लादेन और अलकायदा के मामले में और ठीक वैसे जैसे 1980 में ईरान के खिलाफ इस्तेमाल के लिए केमिकल हथियार देकर अमेरिका ने सद्दाम को सद्दाम हुसैन बना दिया साथ ही ठीक वैसे जैसे सीरिया के फ्रीडम फाइटर को अमरिका ने हथियार और ट्रेनिंग दी जो अब आइएसआइएस के बैनर तले लड़ रहे हैं। साफ है कि कूटनीतिक और राजनीतिक लाभ के लिए जब-जब ताकतवर देष अपने निजी एजेण्डे पर काम करेंगे तब-तब अलकायदा और आइएस जैसे संगठन उगते रहेंगे और फिर इनके खात्मे के लिए अतिरिक्त ताकत जुटाई जायेगी। वजह जो भी हो दहषत और आतंक किसी के लिए भी अच्छा नहीं है और अच्छी बात यह है कि इराक ही नहीं पूरी दुनिया आतंक मुक्त हो और साथ ही दुनिया की जलवायु सभी के रहने योग्य हो।




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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