Monday, December 25, 2017

लोक विकास की कुंजी है सुशासन

मौजूदा समय में सरकार की प्रक्रियाएं नागरिकों पर केन्द्रित होते हुए एक नये डिज़ायन और सिंगल विंडो संस्कृति में तब्दील हो रही है। सुषासन में निहित ई-गवर्नेंस की ज्यादातर पहल में बिज़नेस माॅडल, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरषिप समुचित तकनीक और स्मार्ट सरकार के साथ इंटरफेस उद्यमिता इत्यादि का उपयोग किया जाता है लेकिन आगे बढ़ने या आरम्भिक सफलता को दोहरा पाने में यह पूरी तरह अभी सफल नहीं है। स्वतंत्रता दिवस के दिन अगस्त, 2015 में प्रधानमंत्री मोदी सुषासन के लिए आईटी के व्यापक इस्तेमाल पर जोर दिया था तब उन्होंने कहा था कि ई-गवर्नेंस आसान, प्रभावी और आर्थिक गवर्नेंस भी है और इससे सुषासन का मार्ग प्रषस्त होता है। यद्यपि सुषासन को लेकर आम लोगों में विभिन्न विचार हो सकते हैं पर सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो षासन को अधिक खुला, पारदर्षी तथा उत्तरदायी बनाता है। ऐसा इसलिए ताकि सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देष की जनता को दिल खोलकर विकास दें। मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण का महत्व सुषासन की सीमाओं में आते हैं। गौरतलब है कि 1991 में उदारीकरण के दौर में जो आर्थिक मापदण्ड विकसित किये गये वे मौजूदा समय के अपरिहार्य सत्य थे जिसमें सुषासन की अवधारणा भी पुलकित होती है। विष्व बैंक ने भी इसी दौर में इसकी एक आर्थिक परिभाशा गढ़ी थी। लगभग तीन दषक के बाद यह कहा जा सकता है कि सूचना का अधिकार, नागरिक घोशणापत्र, ई-गवर्नेंस, सिटीजन चार्टर, ई-याचिका तथा ई-सुविधा समेत लोकहित से जुड़े तमाम संदर्भ सुषासन की दिषा में उठे कदम ही हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि सुषासन के कोर में सरकार की जिम्मेदारी कहीं अधिक है और बारम्बार एक बेहतरीन सरकार का निरूपण इसमें निहित है। भारत के परिप्रेक्ष्य में सुषासन और इसके समक्ष खड़ी चुनौतियां दूसरे देषों की तुलना में भिन्न हैं। जाहिर है न्याय, सषक्तीकरण, रोजगार एवं क्षमतापूर्वक सेवा प्रदायन से जब तक समाज के प्रत्येक तबके को गरीबी, बीमारी, षिक्षा, चिकित्सा समेत बुनियादी तत्वों को हल नहीं मिलता तब तक सुषासन की परिभाशा अधूरी रहेगी। 
सुषासन की क्षमताओं को लेकर ढेर सारी आषायें हैं। षायद इन्हीं आषाओं को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आते ही सुषासन को लेकर कुछ सक्रिय दिखाई दिये। 25 दिसम्बर को क्रिसमस दिवस के रूप में ही नहीं बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के रूप में भी मनाने की प्रथा रही है। मोदी वर्श 2014 में इस तिथि को सुषासन दिवस के रूप में प्रतिश्ठित किया। ऐसा अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान को और मजबूत करने के चलते किया गया। तभी से 25 दिसम्बर एक नई अवधारणा व विचारधारा से पोशित हो सुषासनिक राह ले लिया। सफल और मजबूत मानवीय विकास को समझने के लिए सुषासन के निहित आयामों को जांचा-परखा जा सकता है। हालांकि सुषासन के मामले में जैसा कि पहले भी कहा गया है आम तौर पर परिभाशाओं का घोर आभाव है और बहुत कुछ मानव युक्त परिभाशा नहीं बनी है यह अपनी सुविधा पर निर्भर व्यवस्था है। प्रधानमंत्री मोदी साढ़े तीन वर्श का कार्यकाल बिता चुके हैं। सुषासन की अभिक्रियाओं से यह उतना भरा समय नहीं दिखता जितना व्यावहारिक तौर पर होना चाहिए। पिछले कुछ वर्शों से हमारी अर्थव्यवस्था संकट में है। नोटबंदी और जीएसटी के चलते इसके साईड इफैक्ट भी देखने को मिले। सुषासन की संवेदनषीलता भी इससे प्रभावित हुई है। विकास दर उतनी उम्दा नहीं मिली जितनी उम्मीद थी बल्कि जून 2017 तक उम्मीद से कहीं ज्यादा नीचे चली गयी थी। हांलाकि अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश और विष्व बैंक के हालिया संदर्भ पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ राह पर बता रही है। राजकोशीय और बजटीय घाटा अभी भी समुचित कम ही दिख रहा है। गवर्नेंस का ग्लोबलाइजेषन तो किया जा रहा है और निवेष के लिए उकसाया भी जा रहा है। मेक इन इण्डिया समेत स्आर्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया से उम्मीदे खूब लगायी गयी पर देष की नौकरषाही में व्याप्त ढांचागत कमियां और क्रियान्वयन में छुपी उदासीनता के अलावा निहित भ्रश्टाचार पर पूरा नियंत्रण न होने से मामला कागजी ही सिद्ध हुआ है। 
बेषक देष की सत्ता पुराने डिजा़यन से बाहर निकल गयी हो पर दावे और वादे का परिपूर्ण होना अभी दूर की कौड़ी है। देष युवाओं का है इसमें दुविधा नहीं है पर स्किल डवलेपमेंट में हमारी हालत अच्छी नहीं है। स्किल डवलेपमेंट के संस्थान भी बहुत मामूली हैं और जो भी हैं वो हांफ रहे हैं। इस मामले में चीन से ही नहीं हम दक्षिण कोरिया जैसे छोटे राश्ट्र से भी पीछे हैं। भारत के नगरों और गांवों के विकास के लिए वर्श 1992 में 73वें और 74वें संविधान संषोधन इस दिषा में उठाया गया कदम था। प्रधानमंत्री मोदी न्यू इण्डिया की बात कर रहे हैं जाहिर है पुराने भारत की तस्वीर बदलेगी पर कैसे इस पर षक कम होने के बजाय गहराता है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के राह अभी पथरीले ही हैं सरकार यह जोखिम लेने में पीछे है कि किसानों का कायाकल्प हर हाल में करेगी। स्पश्ट है कि जब तक कृशि क्षेत्र और इससे जुड़ा मानव संसाधन भूखा-प्यासा और षोशित महसूस करेगा तब तक देष सुषासन की राह पर है कहना बेमानी होगा। सुषासन के लिए महत्वपूर्ण कदम सरकार की प्रक्रियाओं को सरल बनाना भी है और ऐसा तभी होगा जब पूरी प्रणाली पारदर्षी और ईमानदार हो। इतना ही नहीं सुषासन एक प्रगतिषील अवधारणा है जाहिर है कि गतिषीलता इसकी सर्वाधिक बड़ी मांग है। पुरानी पड़ चुकी नौकरषाही के ढांचे में नई जान फूंकना मोदी के लिए भी न पहले आसान था और न अब। हां कोषिष बड़ी जरूर की जा रही है। सुषासन किसी भी देष की प्रगति की कुंजी मानी जाती है पर यह तभी ताला खोल पायेगी जब जवाबदेही में कोई कोताही न बरती जाय। 
यह कहना सही है कि डिजिटल गवर्नेंस का दौर बढ़ा है। भारत में नवीन लोकप्रबंधन की प्रणाली के रूप में यह संचालित भी हो रहा है पर सुषासन के भाव में तब बढ़ोत्तरी होगी जब सरकार के नियोजन तत्पष्चात् होने वाले क्रियान्वयन का सीधा लाभ जनता को मिले। हालांकि जनधन योजना के तहत खोले गये 25 करोड़ से अधिक बैंक खाते कई काम आ रहे हैं। गैस की सब्सिडी इसी के माध्यम से सीधे जनता को मिल रही है पर सरकार जिस प्रकार सब्सिडी हटा रही है और मार्च 2018 तक लगभग इसे समाप्त करने की कोषिष में है इससे भी सवाल उठता है कि मंजिल मिलने से पहले ही सरकार सब्सिडी से तौबा करना चाह रही है। साफ है कि यह सुषासन नहीं बल्कि यह एक आर्थिक गणना है जिसमें लोक कल्याण कम आर्थिक मुनाफे पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। तकनीकी तौर पर सुषासन को सुसज्जित करने के संसाधन निर्मित हो रहे हैं। विष्व स्तर पर प्रषासनिक सुधार की लहर के बीच सुषासन भारत में बड़ी ताकत के रूप में जगह ले रहा है और नई करवट भी। पर रोटी, कपड़ा और मकान कईयों के लिए अभी दूर की कौड़ी है। मोदी सरकार वर्श 2022 तक सबको मकान देने की बात कह रही है पर यह नहीं बता रही है कि उस मकान की रसोई में भोजन कैसे पकेगा। 65 फीसदी युवा वाला देष जाहिर है बेरोजगारी और गरीबी से भी जूझ रहा है। हर चैथा व्यक्ति गरीब और चार में तीन ग्रेजुएट यहां काम के लायक नहीं है। ऐसे में सुषासन को कैसे पुख्ता माना जाय वाजिब तर्क नहीं है। बात यहीं तक नहीं है अषिक्षा से लेकर स्वास्थ समस्याएं भी यहां खूब अटी हैं जो सुषासन को मुंह चिढ़ा रही हैं। वक्त और अवसर तो यही कहता है कि सरकार से उम्मीद किया जाय पर भरोसा तब किया जाय जब वायदे निभाये गये हों। सुषासन कोई मंत्र नहीं है पर सच तो यह है कि सरकारी तंत्र में यह एक ऐसी कुंजी है जो सरकार की ही नहीं जनता की भी सेहत सुधारती है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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