Wednesday, December 20, 2017

गुजरात के अन्दर की आवाज़

जब 25 अक्टूबर को चुनाव आयोग ने इस बात की घोशणा की कि 9 और 14 दिसम्बर को गुजरात विधानसभा के लिए वोटिंग होगी तब से गुजरात की जमीन का सियासी पारा मानो ऊपर चला गया। भाजपा को जहां बीते 22 साल की सत्ता को अनवरत् बनाये रखने के लिए एड़ी-चोटी का यहां जोर लगाना था वहीं लगातार हार का सामना कर रही मुख्य विरोधी कांग्रेस को सत्ता की नई जमीन खोजनी थी पर यहां भी कांग्रेस का दुर्भाग्य पीछा नहीं छोड़ा। बेषक प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के हैं और गुजरातियों में ही नहीं पूरे भारत में लोकप्रिय हैं पर इस बार गुजरात के वोटरों को लेकर ईमान तो काफी हद तक उनका भी डोला था। जिस तर्ज पर उन्होंने अपने घर और गढ़ में हजारों किलोमीटर की यात्रा की और तीन दर्जन से अधिक सभाओं का सम्बोधन किया साथ ही जिस प्रकार भावनात्मक राजनीति की और अन्ततः विकास के वर्चस्व को लेकर नर्मदा में सी-प्लेन का प्रदर्षन किया उससे साफ था कि इस बार गुजरात की राह उनके लिए भी मुष्किल थी। गौरतलब है कि मणिषंकर अय्यर के नीच वाले षब्द को गुजरात की अस्मिता से जोड़कर इमोषनल कार्ड भी खेला गया था। गुजरात की जमीन भाजपाई नेताओं से जिस तरह अटी थी उससे भी लगता था कि गुजरात के अन्दर की आवाज इस बार कुछ और है। गौरतलब है बीते 18 दिसम्बर को गुजरात समेत हिमाचल प्रदेष के नतीजे आ चुके हैं जो कमोबेष अपेक्षा के अनुरूप हैं। गुजरात में 182 विधानसभा की सीट है जिसमें बीजेपी की सत्ता तक पहुंच सम्भव हुई और कांग्रेस सत्ता से दर्जन भर सीट से पीछे परन्तु पिछले की तुलना में अच्छी खासी बढ़त के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है। हिमाचल के नतीजे बीजेपी के हक में गये वो भी बड़ी जीत के साथ। भारत की सियासत में इन दिनों गुजरात क्षितिज पर है। यहां भले ही कांग्रेस सत्ता तक न पहुंची हो पर जिस तरह चुनाव में अपने सीट और मत प्रतिषत का इजाफा किया उससे उसके प्रदर्षन को मजबूत ही कहा जायेगा क्योंकि मौजूदा कांग्रेस संरचनात्मक तौर पर इन दिनों सबसे कमजोर अवस्था में है। गुजरात के साथ हिमाचल प्रदेष का भी नतीजा कांग्रेस के लिए एक कसैला अनुभव रहा है। यहां कांग्रेस का नुकसान देखा जा सकता है। हिमाचल में कांग्रेस घर नहीं बचा पायी और गुजरात में तमाम कोषिषों के बावजूद मोदी मैजिक रोक नहीं पायी। 
पड़ताल यह बताती है कि भारतीय जनता पार्टी गुजरात विधानसभा में क्रमषः 2012 में 115 स्थान, 2007 में 117 जबकि 2002 में 127 स्थानों पर जीत दर्ज की थी। इस बार के चुनाव में भाजपा यह दावा कर रही थी कि वह 150 तक पहुंचेगी जो ख्याली पुलाव ही सिद्ध हुआ। इसी तुलना में कांग्रेस की वास्तुस्थिति कमोबेष हार के साथ वैसी ही है मसलन 2002, 2007 एवं 2012 के चुनाव में क्रमषः 61, 59 तथा 51 सीटों तक ही रही। मौजूदा नतीजों में अब आंकड़े बढ़त के साथ पहले की तुलना में कहीं अधिक सकारात्मक हैं और भाजपा सत्ता के लिए जरूरी सीटें जुटा लिये हैं। साफ है कि भाजपा सत्ता तो बचा लिया है पर पहली जैसी स्थिति बहाल नहीं कर पायी जबकि कांग्रेस सत्ता से अभी भी दूर है परन्तु चुनावी टक्कर देते हुए राजनीति में अपनी चमक काफी हद तक बना ली है। गुजरात में कांग्रेस के चमक के कई मायने हैं। राहुल गांधी को सीधे मोदी से टक्कर और भावी राजनीति में बढ़े हुए पद और कद के साथ अब उन्हें आंकना लाज़मी है। सभी जानते हैं कि 2012 के गुजरात विधानसभा में बड़ी जीत के बाद मोदी का कद भी बहुत बड़ा हो गया था जिसका नतीजा सितम्बर 2013 में प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर उनकी ताजपोषी थी। मैजिक के मामले में सर्वाधिक लोकप्रिय मोदी भारत के सियासत में जिस प्रकार की धमक दिखाई उसी का नतीजा पूर्ण बहुमत के साथ 26 मई 2014 को उनका देष का प्रधानमंत्री बनना देखा जा सकता है जबकि कांग्रेस ताष के पत्तों की तरह ढह गयी और सिलसिला विधानसभा चुनाव में भी जारी रहा, हालांकि पंजाब इसका अपवाद है। भारत के 29 राज्यों में 19 पर अब भाजपा का कब्जा है और यह मैजिक आगे भी चलता रहा तो इस आंकड़े में भी रद्दोबदल होगा क्योंकि कर्नाटक में अगले वर्श चुनाव होना है। हालांकि चुनाव तो भाजपा षासित मध्य प्रदेष और राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी होना है। कांग्रेस की गुजरात में बढ़े मत प्रतिषत और सीटे आगामी चुनाव में भरपूर ऊर्जा का काम करेंगे। गुजरात के अंदर की आवाज अब न कांग्रेस और न ही भाजपा अनसुना कर सकती है। गौरतलब है कि लोकसभा में यहां कांग्रेस का खाता नहीं खुला था अब कांग्रेस इस चुनाव के सहारे ऐसी उम्मीद रख सकती है और सत्तासीन भाजपा के लिए गुजरात पहले जैसा षायद ही रहे। 
गुजरात चुनाव का एक खास परिप्रेक्ष्य यह भी है कि मोदी का मैजिक षहरी इलाकों में ही चला है जबकि ग्रामीण इलाकों में राहुल गांधी की बाते लोगों को खूब रास आई हैं। इसमें दो संदर्भ सांकेतिक होते हैं कि आगामी लोकसभा में राहुल गांधी को गुजरात से बड़ी उम्मीदें हाथ लगते हुए दिखाई देती हैं और यदि वह षहरी मतदाता को साध लेते हैं तो भाजपा को और पसीने बहाने पड़ सकते हैं। इसी के दूसरे पहलू में यदि भाजपा रोजगार, स्वास्थ, षिक्षा, चिकित्सा समेत किसानों और मजदूरों की बुनियादी समस्या को ग्रामीण स्तर पर हल करने में सक्षम होती है तो 2019 के लोकसभा में बेहतर उम्मीद कर सकती है अन्यथा सियासी गणित गड़बड़ा सकता है। भाजपा के लिए चिंता का विशय यह भी है कि लोकसभा में 60 प्रतिषत मत प्राप्ति की तुलना में 11 प्रतिषत के आस-पास मत गिरा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की कमजोर जीत इस बात का भी संकेत है कि गुजरात माॅडल जो मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी का ही था उसका असर खत्म हो चुका है साथ ही उत्तराधिकारियों ने भी सियासत साधने में फीके रहे। गुजरात में साम्प्रदायिक धु्रवीकरण का भी इतिहास रहा है और इसको भुनाने में भाजपा ही अव्वल रही है पर इस बार मंदिर-मंदिर जाकर राहुल गांधी ने भी इसमें सेंध लगायी है। राजनीति में ये पैंतरे इसलिए अपनाये जाते हैं कि सीट और मत दोनों में इजाफा हो पर इजाफा तो हुआ मगर सत्ता के लिए नाकाफी रहा। चुनाव के षुरूआती चरण में ही देखा गया कि भाजपा ने अपना चुनाव प्रचार गुजरात के विकास के मुद्दे पर केन्द्रित न कर गुजराती अस्मिता और गुजराती गौरव के साथ अनाप-षनाप की ओर मोड़ा जो हैरत भरा था। सवाल है कि 22 साल की सत्ता वाली भाजपा और तीन साल से अधिक समय के प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी, जीएसटी, कैषलेस, भ्रश्टाचार सहित बुनियादी विकास की चर्चा क्यों नहीं की। क्या भाजपा को यह डर था कि गुजरात के अन्दर की आवाज और रूख उनके खिलाफ है? क्यों नहीं उन्होंने अब तक के विकास पर वोट मांगा? क्यों यह इंतजार करते रहे कि मणिषंकर अय्यर कुछ बोलेंगे तो उनको भुनायेंगे। क्यों उन्होंने राहुल गांधी को गुजरात की सियासत में बड़ा कद वाला समझा। ऐसे तमाम क्यों हो सकते हैं पर प्रतीत होता है कि भाजपा एंटी इन्कम्बैंसी से डर रही थी और अब तक के अपने फैसले को पूरी तरह सही साबित न कर पाने के चलते विकासात्मक मुद्दे उभारने से कमजोरी भी उभरने का डर था। फलस्वरूप उसने सत्ता प्राप्ति का रास्ता इससे इतर अपनाया। सियासत में सब कुछ चलता है और जब सत्ता मिलती है, तो जो भी कार्ड चला गया हो वही मैजिक हो जाता है। जाहिर है सीटें घटी पर मोदी मैजिक चला है परन्तु इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि चरमराई कांग्रेस ने भी गुजरात में अपनी सियासी जमीन मजबूत कर आगामी चुनाव के लिए हौसले में इजाफा कर लिया है। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment