Saturday, December 30, 2017

देश की प्रगति की कुंजी है सुशासन

दिसम्बर 2017 की 25 तारीख को सुषासन दिवस के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने जब यह कहा कि सुषासन तब तक सम्भव नहीं जब तक लोगों की सोच है, मेरा क्या और मुझे क्या। उक्त वक्तव्य से साफ है कि विकास के सहभागी मापदण्ड को अब देर तक न तो दरकिनार किया जा सकता है और न ही राश्ट्र निर्माण की दिषा में स्वयं को पहल से अछूता रखा जा सकता है। गौरतलब है कि लोकतंत्र के प्रचण्ड बहुमत से निर्मित मौजूदा मोदी सरकार भी सुषासन के जरिये ही जीवट लोकतंत्र सम्भव करना चाह रही है। जिस सुषासन को सरकार सभी समस्या की समाप्ति के संयंत्र के रूप में देख रही है वह तभी पूर्णता को प्राप्त करेगा जब इसमें निहित लोकप्रवर्धित अवधारणा को मजबूती मिलेगी। जाहिर है इसके केन्द्र में जनता है जिसकी तादाद करोड़ों में है और समस्याएं बेषुमार तथा अपेक्षाएं अनंत हैं। देष में जनहित को लेकर सरकार द्वारा उठाये जाने वाले कदम बीते साढ़े तीन सालों में कितने खरे रहे इस पर एक विमर्ष हो सकता है पर आज देष के सामने जो प्रमुख निर्णायक प्रष्न खड़ा है उसमें सुषासन सबसे महत्वपूर्ण है। देष के लोकतांत्रिक संविधान के अंतर्गत यह प्रतिबद्धता है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने की व्यवस्था हो और ऐसा गुड गवर्नेंस के जरिये ही सम्भव माना जा रहा है। इस बात में तनिक मात्र भी संदेह नहीं कि सुषासन सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास तथा लोक विकास की परिपाटी को उच्चस्थ बनाने का एक बड़ा औजार है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी जब 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन 25 दिसम्बर को सुषासन दिवस घोशित किया तब इस बात का ध्यान था कि इसके जरिये लोगों के जीवन में जीवटता भर देंगे। दो टूक यह भी है कि सुषासन जिस सामाजिक-आर्थिक न्याय की बात करता है उसमें मोदी का ष्लोगन सबका साथ, सबका विकास पूरी तरह निहित है। 
मौजूदा समय में सरकार की प्रक्रियाएं नागरिकों पर केन्द्रित होते हुए एक नये डिज़ायन और सिंगल विंडो संस्कृति में तब्दील हो रही है। सुषासन में निहित ई-गवर्नेंस की ज्यादातर पहल में बिज़नेस माॅडल, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरषिप समुचित तकनीक और स्मार्ट सरकार के साथ इंटरफेस उद्यमिता इत्यादि का उपयोग किया जाता है लेकिन आगे बढ़ने या आरम्भिक सफलता को दोहरा पाने में यह पूरी तरह अभी सफल नहीं है। स्वतंत्रता दिवस के दिन अगस्त, 2015 में प्रधानमंत्री मोदी सुषासन के लिए आईटी के व्यापक इस्तेमाल पर जोर दिया था तब उन्होंने कहा था कि ई-गवर्नेंस आसान, प्रभावी और आर्थिक गवर्नेंस भी है और इससे सुषासन का मार्ग प्रषस्त होता है। यद्यपि सुषासन को लेकर आम लोगों में विभिन्न विचार हो सकते हैं पर सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो षासन को अधिक खुला, पारदर्षी तथा उत्तरदायी बनाता है। ऐसा इसलिए ताकि सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देष की जनता को दिल खोलकर विकास दें। मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण का महत्व सुषासन की सीमाओं में आते हैं। गौरतलब है कि 1991 में उदारीकरण के दौर में जो आर्थिक मापदण्ड विकसित किये गये वे मौजूदा समय के अपरिहार्य सत्य थे जिसमें सुषासन की अवधारणा भी पुलकित होती है। विष्व बैंक ने भी इसी दौर में इसकी एक आर्थिक परिभाशा गढ़ी थी। लगभग तीन दषक के बाद यह कहा जा सकता है कि सूचना का अधिकार, नागरिक घोशणापत्र, ई-गवर्नेंस, सिटीजन चार्टर, ई-याचिका तथा ई-सुविधा समेत लोकहित से जुड़े तमाम संदर्भ सुषासन की दिषा में उठे कदम ही हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि सुषासन के कोर में सरकार की जिम्मेदारी कहीं अधिक है और बारम्बार एक बेहतरीन सरकार का निरूपण इसमें निहित है। भारत के परिप्रेक्ष्य में सुषासन और इसके समक्ष खड़ी चुनौतियां दूसरे देषों की तुलना में भिन्न हैं। जाहिर है न्याय, सषक्तीकरण, रोजगार एवं क्षमतापूर्वक सेवा प्रदायन से जब तक समाज के प्रत्येक तबके को गरीबी, बीमारी, षिक्षा, चिकित्सा समेत बुनियादी तत्वों को हल नहीं मिलता तब तक सुषासन की परिभाशा अधूरी रहेगी। 
सुषासन की क्षमताओं को लेकर ढ़ेर सारी आषायें हैं। षायद इन्हीं आषाओं को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आते ही काफी सक्रिय दिखाई दिये। हालांकि सुषासन के मामले में जैसा पहले कहा गया है आमतौर पर  परिभाशाओं का घोर आभाव है और यह अपनी सुविधा पर जांची-परखी जाती रही है। पिछले कुछ वर्शों से देष में आर्थिक समस्याएं उस तरह से हल नहीं प्राप्त कर पायी जैसा होना चाहिए। इससे सुषासन की संवेदनषीलता प्रभावित हुई है। नोटबंदी के बाद विकास दर का प्रभावित होना इसका पुख्ता प्रमाण है। अभी भी देष में नोटबंदी और जीएसटी के चलते साईड इफैक्ट देखने को मिल रहे हैं। हालांकि अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश और विष्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करार दिया है। वैसे देखा जाय तो सुषासन की कसौटी पर राजकोशीय और बजटीय घाटा अभी भी समुचित नहीं है। साल 2017 के आखिर में वित्त मंत्री अरूण जेटली का यह बयान है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी तो है। षीत सत्र के दौरान जेटली ने कहा कि जीडीपी की दर 2015-16 में 8 फीसदी के मुकाबले 2016-17 में 7.1 पर आ गयी पर गौर करने वाली बात यह भी है कि बीते जून तक नोटबंदी के चलते जीडीपी दो फीसदी नीचे चली गयी थी। दो टूक यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने निवेष बढ़ाने की बड़ी कोषिष की और गुड गवर्नेंस का ग्लोबलाइजेषन धड़ाले से किया गया मेक इन इंडिया इसका पुख्ता सबूत है। देष में स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इंडिया से सुषासन की पूर्ति होती है और सुषासन से इनकी पर देष की नौकरषाही में व्यापक ढांचागत कमियां और क्रियान्वयन में छुपी उदासीनता के अलावा भ्रश्टाचार पर पूरा नियंत्रण न होने से मामला कागजी ही सिद्ध हुआ है। 
प्रधानमंत्री मोदी न्यू इंडिया की बात कर रहे हैं जाहिर है पुराने भारत की तस्वीर बदलेगी पर कैसे इस पर षक इसलिए गहराता है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र अभी भी मुसीबत में है। बावजूद इसके सरकार ग्रामीण एवं कृशि सुषासन पर बड़ा जोखिम नहीं लिया। हालांकि कुछ मामलों में राहत दे रही है। इस क्षेत्र का मानव संसाधन अभी भी भूखा-प्यासा और षोशित महसूस करता है। सुषासन के लिए महत्वपूर्ण कदम सरकार की प्रक्रियाओं को सरल बनाना भी है और ऐसा पारदर्षी और ईमानदार प्रणाली से ही होगा। पुरानी पड़ चुकी नौकरषाही में नई जान फूंकी जा रही है पर यह न पहले आसान था और न अब। सुषासन किसी भी देष की प्रगति की कुंजी मानी जाती है और यह समस्याओं के निदान में सर्वाधिक प्रभावषाली भी पर जब तक जवाबदेही में कोताही बरती जायेगी यह कुंजी ताले को नहीं खोल पायेगी। यह कहना सही है कि डिजिटल गवर्नेंस का दौर बढ़ा है। नवीन लोक प्रबंधन की प्रणाली के रूप में ये प्रासंगिक हुआ है। आर्थिक विकास के मार्ग को समतल बनाना, षिक्षा, ऊर्जा, स्वास्थ और मानव विकास को प्राथमिकता देना इसमें षुमार है। कृशि, उद्योग और सेवा आदि क्षेत्रों को सुसंगत और सुषासनिक अवधारणा से ओत-प्रोत व्यवस्था लाना सुषासन की निहित विचारधारा है। ई-लोकतंत्र, पारदर्षिता, दायित्वषीलता और सहभागिता सब इसके ही अनोखे गुण हैं। सुषासन को आर्थिक गणना में रखकर और मजबूती से समझा जा सकता है। लोक कल्याण आर्थिक मुनाफे पर केन्द्रित नहीं होता। सरकार को भी यह भली-भांति समझना चाहिए कि सुषासन के जरिये जीवटता बनाये रखना है तो रोटी, कपड़ा और मकान किसी के लिए भी दूर की कौड़ी नहीं होनी चाहिए। गौरतलब है कि 2022 तक सरकार सभी को मकान देने की बात कह रही है पर युवाओं की बेरोजगारी वाली लम्बी कतार यह संदेह पैदा कर रही है कि रोजगार के बगैर किचन में भोजन कैसे पकेगा। देष समस्याओं से भरा है और हल करने की तरकीब सुषासन में है पर मात्र इसकी माला जपने से काम नहीं होगा। सुषासन कोई मंत्र नहीं है पर यदि इसके निर्धारित साक्ष्यों, साधनों और संदर्भों को उकेरा जाय तो यह जनता की ही नहीं सरकार की भी सेहत सुधारती है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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