अमेरिका ने भारत को एक उभरती हुई षक्ति मानकर यह संकेत दिया है कि फिलहाल दुनिया भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकती। अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से जारी अमेरिका की राश्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में स्पश्ट किया गया कि हम भारत के वैष्विक षक्ति के रूप में मजबूत रणनीतिकार और रक्षा सहयोगी के रूप में उभरने का स्वागत करते हैं। बीते कई वर्शों से देखा गया है कि भारत और अमेरिका के बीच के सम्बंध पटरी पर तेजी से दौड़ रहे हैं। वर्श 2014 में गठित मोदी सरकार के बाद से सम्बंधों में मिठास तुलनात्मक और बढ़ी। इसका पुख्ता प्रमाण 26 जनवरी, 2015 में तत्कालीन राश्ट्रपति बराक ओबामा का गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित देखी जा सकती है और ऐसा पहली बार हुआ था जब दिल्ली की गणतंत्र परेड में कोई अमेरिकी राश्ट्रपति प्रत्यक्ष रहा हो। बेषक ओबामा के साथ मोदी का रिष्ता काफी हद तक अनौपचारिक भी था परन्तु उनके एड़ी-चोटी के जोर लगाने के बाद भी एनएसजी यानि न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप के 48 देषों के समूह में भारत को षामिल नहीं हो पाया और यह मामला अभी भी खटाई में है जबकि चीन बरसों से इसका सदस्य है। खास यह भी है कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस व जापान समेत तमाम पूर्वी एवं पष्चिमी देषों के समर्थन के बावजूद चीन की कूटनीतिक चाल के चलते ऐसा सम्भव नहीं हो पा रहा है। हालांकि एक खास बात यह है कि एमटीसीआर में भारत 2016 के मध्य में सदस्यता प्राप्त कर ली थी जहां चीन अभी भी वंचित है। तब माना जा रहा था कि भारत एनएसजी के लिए इसे कूटनीतिक संतुलन के रूप में प्रयुक्त कर सकता है। पड़ोसी पाकिस्तान पर इस बात का दबाव बना हुआ है कि वह अपने देष के आतंकी संगठनों पर कार्यवाही करे। व्हाइट हाऊस से इसी प्रकार का एक ताजा बयान बीते 19 दिसम्बर को फिर जारी हुआ। ट्रंप ने यह भी स्पश्ट किया है कि पाकिस्तान के साथ अच्छी साझेदारी चाहते हैं परन्तु आतंकियों के खिलाफ उसकी कार्यवाही को भी देखना चाहते हैं।
भारत एक उभरती हुई वैष्विक षक्ति है यह बात अमेरिका की ओर से अलबत्ता कही जा रही है पर भारत अपने कृत्यों से इसे पहले ही उजागर कर दिया है। भारत ने वो हैसियत हासिल कर ली है जो उसे ग्लोबल ताकत बनाता है। एक दौर ऐसा भी था कि जब भारत विष्व की महाषक्तियों के भरोसे हुआ करता था जबकि अब भारत बोलता है और दुनिया सुनती है। वैष्विक नीति के मामले में प्रधानमंत्री मोदी की सराहना की जा सकती है कि साढ़े तीन वर्शों के अब तक के कार्यकाल में कई ऐसी चीजें हुई हैं जिससे यह बात साबित होती है कि भारत महाषक्ति की ओर है और दुनिया उसे हल्के में नहीं ले सकती। इसी साल जून में भारत, चीन और भूटान सीमा पर उठे डोकलाम विवाद को जिस प्रकार मौखिक आक्रामकता और चीन के उदण्ड कोषिषों के बीच षान्ति से समाधान खोजा गया वह बड़ी बात थी। इससे अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर भारत की साख में इजाफा हुआ। जिस प्रकार जापान से लेकर इज़राइल तक और अमेरिका एवं अन्य यूरोपीय देषों का डोकलाम मसले पर भारत का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन दिखा वह इस बात की तस्तीक करती है कि उसका कद पहले जैसा नहीं है। चीन का पीछे हटना भारत की रणनीतिक जीत थी परन्तु पाकिस्तान के मामले में भारत की कोई भी रणनीति मन माफिक परिणाम नहीं दे पा रही है। अमेरिका का दबाव निरंतर पाकिस्तान पर है और सच्चाई है कि दबाव से पाकिस्तान बौखलाया भी है लेकिन आतंकी संगठनों पर कार्यवाही को लेकर अभी भी निराष किये हुए है। दो टूक यह भी है कि मोदी की वैष्विक मंचों पर आतंक को लेकर पाकिस्तान को अलग-थलग करने वाली नीति विष्व बिरादरी में पहुंची है और ऐसा पाकिस्तान के साथ हुआ भी है।
दुनिया दो समस्याओं से जूझ रही है जिसमें आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन षामिल है। दोनों मामले में भारत ने वैष्विक मंचों पर अगुवाई करके दुनिया के समझ को तुलनात्मक समृद्धि प्रदान की है। देखा जाय तो जलवायु परिवर्तन पर काम करने के लिए भारत वैष्विक नेतृत्व को प्रेरित करता रहा है। गौरतलब है कि वर्श 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों से अपनी ऊर्जा जरूरत का 40 फीसदी हिस्सा प्राप्त करने का लक्ष्य भारत ने रखा है। ऐसी उर्जा के विकास में भारत अमेरिका से भी कुछ कदम आगे है। सवा अरब से अधिक की जनसंख्या वाला देष भारत कई बुनियादी संकटों से जूझ रहा है जिसमें ऊर्जा के स्त्रोत को ढूंढना कई समस्याओं में एक है। जब अमेरिका स्वयं को पेरिस में हुए जलवायु समझौते से अलग किया तब मोदी ने इस बात की चिंता किये बगैर कि उसके आपसी सम्बंध कैसे रहेंगे यह कहने का साहस दिखाया कि समझौते के साथ भारत है। बेषक अमेरिका के हटने से पेरिस समझौते को झटका लगा हो पर दुनिया में उच्चस्थ हो चुके भारत के ऊँचे प्रतिमानों से कई देष अब भारत की ओर देख रहे हैं और उसके निर्णयों को तवज्जो भी दे रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की पहल पर ही इंटरनेषनल सोलर एलायंस का गठन किया गया जिसमें 121 देष षामिल हैं। भारत के प्रयासों को ग्लोबल वार्मिंग की दिषा में देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि इसके नेतृत्व को भी वह एक दिन करता दिखाई देगा।
अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश से लेकर विष्व बैंक तक इस बात को कह चुके हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत है। भारत के बढ़ते आर्थिक कद से पड़ोसी चीन जैसे देषों को रणनीति भी बदलनी पड़ती है। अमेरिका, जापान तथा जर्मनी समेत दुनिया के तमाम देषों के साथ आर्थिक, तकनीकी एवं वाणिज्यिक सम्बंध इसके मजबूती के पर्याय हैं। भारत प्रषान्त क्षेत्र में सुरक्षा कायम रखने के लिए भारत के नेतृत्व क्षमता के योगदान पर अमेरिकी समर्थन इसकी गहरायी को विष्लेशित करता है। इतना ही नहीं भारत समेत जापान और चीन का दक्षिणी चीन सागर में कुछ समय पहले किया गया अभ्यास चीन के एकाधिकार को चुनौती देने के समान है। हिन्द महासागर सुरक्षा तथा समुचे क्षेत्र में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को भी अमेरिकी समर्थन मिला है। चीन के वन बेल्ट, वन रोड़ तथा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को देखते हुए अमेरिकी प्रषासन की ओर से यह भी वक्तव्य आया कि क्षेत्र विषेश में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए दक्षिण एषियाई देषों को अपनी सम्प्रभुता बरकरार रखने में मदद करेगा। गौरतलब है कि भारत एक संयम और षान्ति से काम लेने वाले देषों में षुमार है। पड़ोसियों के साथ उसके सम्बंध स्वयं के स्तर से न बिगड़कर उनके स्तर से बिगड़ते रहे हैं। चीन के वन बेल्ट, वन रोड़ पर भारत ने आपत्ति जताई है और जब इसे लेकर बीजिंग में दर्जनों देषों की बैठक हुई तो उसमें भारत षामिल नहीं था। भारत का मंतव्य है कि इस परियोजना के तहत पाक अधिकृत कष्मीर को भी षामिल किया गया है जो सही नहीं है। उभरती षक्ति का पैमाना एक नहीं है। भारत ने उदारीकरण के बाद से दुनिया के तमाम देषों से बातचीत और आर्थिक आदान-प्रदान तथा तकनीकी लेनदेन का रास्ता चैड़ा किया। मोदी षासनकाल में कई नीतियां परवान चढ़ी मसलन बरसों से अटका येलोकेक नीति पर आॅस्ट्रेलिया से समझौता होना चीन की भी षिकस्त थी क्योंकि इस समझौते से भारत को आॅस्ट्रेलिया से यूरेनियम मिलना सम्भव हुआ जबकि चीन को आॅस्ट्रेलिया पहले से ही सप्लाई करता रहा। फिलहाल दुनिया की बुलंदी पर पहुंचने के कोई एक-दो कारण नहीं होते भारत लम्बे संघर्शों, कई कृत्यों एवं तमाम साहसिक कदम के चलते यह तगमा हासिल किया है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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