Wednesday, January 10, 2018

पाकिस्तान, तुम कब सुधरोगे

वैसे अमेरिकीराष्ट्रपति  डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान को बीते कई महीनों से इस बात के लिए आगाह कर रहे थे कि उसके देष के भीतर पनपे आतंकी नेटवर्क को वो जड़ से उखाड़े। इसे लेकर कई बार धमकियां भी दी गयी पर पाकिस्तान बेअसर बना रहा पर अब षायद ऐसा नहीं होगा क्योंकि अब उसकी रीढ़ पर प्रहार किया गया है। गौरतलब है कि नये वर्श के पहले दिन ट्रंप ने पाकिस्तान को जोरदार झटका देते हुए उसे आतंक के खात्मे को लेकर दी जाने वाली राषि पर रोक लगाने की बात कही है। पाकिस्तान को ट्रंप धोखेबाज और झूठा बताने के बाद इस्लामाबाद को सैन्य सहायता राषि नहीं जारी करने का फैसला लिया। व्हाईट हाउस के इस फैसले से इस्लामाबाद की समस्या बढ़ना लाज़मी है और इस बात की भी सफाई पर जोर कि उस पर लगे आरोप अनुचित हैं। पाकिस्तान ने प्रतिक्रिया में कहा है कि आतंकववाद के खिलाफ अमेरिका के अभियान में हर तरह से मदद के बदले हमें तानों और अविष्वास के अलावा कुछ नहीं मिला। आगे उसने कहा कि हमने उन्हें अपनी जमीन और सैन्य अड्डे दिये, खूफिया सहयोग दिया और ऐसा करने से ही वह अलकायदा को नेस्तोनाबूत कर सका पर हमें कुछ नहीं मिला। पाकिस्तान का यह सोचना कि अमेरिका से अधिक कीमत उसने चुकाई है तो उसे यह भी समझना चाहिए कि आतंकियों की पाठषालाओं को किसने खाद-पानी दिया। किसने ओसामा बिन लादेन जैसे खुंखार आतंकवादी को षरण दिया। गौरतलब है कि अमेरिका में वर्श 2001 का आतंकी हमले का मास्टरमाइंड और अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन बरसों तक पाकिस्तान के एटवाबाद में छुपा रहा। जिसे तत्कालीन राश्ट्रपति बराक ओबामा के खूफिया और सुनियोजित प्रयासों के चलते पाकिस्तान में घुस कर खात्मा किया गया था।
जिस तर्ज पर अमेरिका में आतंकी नेटवर्क विस्तार लिये हुए है अब वह दुनिया से छिपा नहीं है। पाक अधिकृत कष्मीर में तो आतंक के स्कूल और विष्वविद्यालय चलते ही हैं साथ ही पाकिस्तान में लष्कर-ए-तैयबा से लेकर जमात-उद-दावा और हक्कानी जैसे आतंकी संगठन यहां की हरियाली बने हुए है। हाफिज सईद से लेकर अजहर मसूद और लखवी जैसे आतंकवादी कभी पाकिस्तान की आंखों में चुभे ही नहीं और भारत इनकी आंखों में रोजाना चुभता रहा। भारत पर जिस प्रकार पाकिस्तान के आतंकवादियों ने लगातार हमले किये उससे भी पाकिस्तान का चेहरा बेनकाब हुआ है। भले ही पाकिस्तान इस मुगालते में रहा हो कि आतंक को पालते-पोसते भी रहेंगे और दुनिया को भी धोखे में रखे रहेंगे पर अब उसकी कलई खुल चुकी है। डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह पाकिस्तान को आईना दिखाया है उससे भी यह संकेत मिलता है कि बीते कुछ वर्शों से भारत सरकार की उन कोषिषों को बल मिला है जो उसे अलग-थलग करने के लिए किया जा रहा था। प्रधानमंत्री मोदी अपने षपथ ग्रहण करने के दिन से लेकर डेढ़ वर्श तक पाकिस्तान से अच्छे सम्बंध की पहल की। जोखिम लेते हुए नवाज़ षरीफ से मिलने बिना किसी योजना के 25 दिसम्बर, 2015 को लाहौर गये परन्तु बामुष्किल एक हफ्ता नहीं बीता था कि साल 2016 की षुरूआत में पठानकोट पर आतंकी हमले ने उन सारे कयासों पर पानी फेर दिया जिसे बेहतर बनाने की फिराक में भारत लगा था। तब से लेकर अब तक भले ही अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर पाक से आंख और हाथ मिले हों पर दिल नहीं मिले हैं। दो टूक यह भी है कि आतंक को समाप्त करने के मामले में पाकिस्तान ने कभी इरादा ही नहीं दिखाया बल्कि उलटे आतंकियों की पीठ ही थपथपाई है। बुरहान वानी जैसे दहषतगर्दों की मौत पर भी उसने अपने देष पाकिस्तान में काला दिवस मनाया। तमाम सबूत देने के बावजूद भारत की सीमा के भीतर जिन्दा पकड़े गये आतंकियों को अपना नागरिक मानने से कई बार इंकार किया। आतंक फैलाता रहा, आतंकियों के भरोसे सीमा पर भारतीय सेना को क्षति पहुंचाता रहा और अपने किये करतूतों से मुकरता भी रहा जबकि प्रधानमंत्री मोदी षायद ही कोई अन्तर्राश्ट्रीय मंच हो जहां पाक प्रायोजित आतंक की चर्चा न की हो।
नतीजन एक न एक दिन पाकिस्तान को यह दिन देखना ही था। यह कहावत बिल्कुल दुरूस्त है कि देर है अंधेर नहीं। डोनाल्ड ट्रंप की जो आर्थिक चोट उसे मिली है वो उसके होष उड़ा सकते हैं पर अमेरिका के सख्त रूख के बीच चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया है हालांकि यह भारत के लिए हैरत की बात नहीं है क्योंकि संयुक्त राश्ट्र की राश्ट्रीय सुरक्षा परिशद् में पाकिस्तानी आतंकवादी लखवी और अजहर मसूद के मामले में चीन को वीटो करते देखा गया है। व्हाईट हाउस के निर्णय के बाद इस्लामाबाद के बचाव में उतरा बीजिंग ने कहा है कि दुनिया को उसके बलिदान को स्वीकार करना चाहिए। पाकिस्तान दक्षिण एषिया में षान्ति व स्थिरता की दिषा में हर सम्भव प्रयास कर रहा है। फिलहाल चीन के इस रूख के पीछे भारत को बैकफुट पर लेने वाली उसकी सोची-समझी चाल है साथ ही भारत-अमेरिका के बीच प्रगाढ़ हुए सम्बंधों की तिलमिलाहट भी। चीन अच्छी तरह जानता है कि भारत पाकिस्तान के आतंकवाद से बरसों से पीड़ित है बावजूद इसके उसकी वकालत कर रहा है। गौरतलब है चीन की उपस्थिति में जी-20 से लेकर ब्रिक्स समेत अनेक अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर आतंक की पीड़ा से भारत दुनिया को अवगत कराता रहा परन्तु चीन को पाकिस्तान का बलिदान याद आ रहा है। ऐसे में यह कहना लाज़मी है कि चीन तुम कब सुधरोगे।
बीते कुछ महीनों से पाकिस्तान में पनपे आतंक को लेकर ट्रंप धमकी दे रहे हैं। यहां तक भी कह चुके हैं कि यदि वह आतंक को समाप्त नहीं करता है तो वह स्वयं इस कार्य को करेंगे। बावजूद इसके पाकिस्तान पर इसका कोई असर हुआ नहीं। डोनाल्ड ट्रंप ने साफ षब्दों में कहा कि पिछले 15 सालों से पाकिस्तान अमेरिका को बेवकूफ बनाकर 33 अरब डाॅलर की सहायता प्राप्त कर चुका है और इसके बदले में सिर्फ झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया। इसमें कोई दुविधा नहीं कि पाकिस्तान आतंकियों का सुरक्षित पनाह मुहैया कराता है। ट्रंप का यह कहना कि जिसे हम अफगानिस्तान में तलाष रहे हैं वो पाकिस्तान में है। साफ है अलकायदा  प्रमुख ओसामा बिन लादेन को षरण देने को लेकर पाक पर यह तीखी टिप्पणी है। अमेरिका के पूर्ववर्ती राश्ट्रपतियों को भी ट्रंप ने निषाने पर लिया। षायद इसके पीछे बड़ी वजह पाकिस्तान की करतूतों पर बरती गयी ढ़िलाई है। सुनिष्चित मापदण्डों में देखा जाय तो आर्थिक मदद रोकने से पाकिस्तान कई समस्याओं से जूझ सकता है। रही बात आतंकियों पर लगाम की तो उसके यह प्रयास सफल होंगे कहना मुष्किल है। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां की सेना और आईएसआई की छत्रछाया आतंकियों पर रहती है। पाकिस्तान में लोकतंत्र भी सेना द्वारा हड़पा जाता रहा है। ऐसे में चुनी हुई सरकारें भी कभी कभी बिना रीढ़ के दिखाई देती हैं। चीन पाकिस्तान का अवसरवादी मित्र है जबकि भारत के लिए न वह मित्र और न ही दुष्मन की संज्ञा में है। यदि पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी राषि वाकई में रोक दी जाती है जैसा कि 1620 करोड़ की सैन्य मदद तुरन्त रोकने की सूचना है और ट्रंप के रूख से लगता भी है कि वे अपनी कथनी पर कायम रहेंगे तो ऐसी स्थिति में चीन पाकिस्तान के बलिदान की दुहाई देकर लालीपाॅप देने की कोषिष कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो क्या दुनिया इस बात को मान पायेगी कि चीन आतंक की लड़ाई औरों के साथ है। फिलहाल अमेरिका की तरफ से जो एक्षन हुआ है अभी उस पर बहुत सारे रिएक्षन देखने बाकी है जिसका प्रतिबिंब आने वाले दिनों में ही उभरेगा साथ ही ट्रंप के इस भारी कथन का भी परीक्षण आने वाले दिनों में ही होगा।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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