Wednesday, December 13, 2017

महंगाई से निपटने में नाकाम सरकार

सब्जी, फल, अण्डा, चीनी और दूध जैसी रोज़मर्रा की उपयोग की वस्तुएं महंगी होने के चलते बीते नवम्बर में खुदरा महंगाई दर पिछले 15 महीने की तुलना में उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी। यह किसी भी सरकार के लिए अच्छा संकेत नहीं है। बीते 12 दिसम्बर को केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने इस बात का खुलासा किया कि मुद्रास्फीति 4.88 फीसदी पर पहुंच गयी है जो सवा साल में सर्वाधिक है। हालांकि इस बीच एक अच्छी खबर यह है कि पिछले साल के नवम्बर की तुलना में इस बार दलहन के दाम में गिरावट है। रोचक यह भी है कि यूपीए सरकार के समय महंगाई पर छाती पीटने वाले यही भाजपाई आज इसलिए बढ़ी हुई महंगाई के बावजूद सुकून में हैं क्योंकि विपक्ष भी कान में तेल डालकर बैठा है। इस बात से बहुधा लोग अनभिज्ञ नहीं होंगे कि इस देष में मात्र प्याज महंगा होने से सरकारें पानी-पानी हुई हैं और नौबत तो सत्ता से हाथ धोने तक की भी आई है। यह बदले दौर की राजनीति ही है कि जिस देष में महंगाई को लेकर हाहाकार होता था आज वहां सन्नाटा है। यह बात और है कि मध्यम और निम्न आय वर्ग के लिए जीवन इन दिनों फिलहाल कठिन बना हुआ है। जब कभी यह सवाल मन में आये कि संवेदनषीलता और संवेदनहीनता में क्या अंतर है तो दो प्रकार की सरकारों की तरफ दृश्टि गड़ाई जा सकती है एक वो जो महंगाई काबू रखने के साथ-साथ जनता की जेब और जीवन का ख्याल रखती है, दूसरी वो जो इससे उलट कृत्य में लिप्त होकर मात्र सियासी दांवपेंच में लगी रहती है। गौरतलब है महंगाई न केवल जनजीवन को अस्त-व्यस्त तथा त्रस्त करती है बल्कि सरकार की साख पर भी बट्टा लगाती है। साढ़े तीन साल से केन्द्र में मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चल रही है। मतदाताओं ने सरकार को इसलिए बड़े पैमाने पर सीटें जिताई थी ताकि वे उनके लिए अच्छे दिन लाये जैसा कि उनका चुनावी वादा भी था पर इन दिनों मामला इससे उलट दिखाई दे रहा है। खान-पान की वस्तुओं में प्याज कहीं अधिक केन्द्र में रहती है जिसकी कीमत सामान्य होने में षायद अभी और वक्त लगेगा। बीते 21 नवम्बर को खाद्य एवं उपभोक्ता मामले के मंत्री राम विलास पासवान ने कहा था कि एक पखवाड़े में प्याज की कीमत सामान्य हो जायेगी पर इसके आसार अब दिखाई नहीं देते। उन्होंने कहा था कि कीमत को काबू में रखने के लिए एमएमटीसी 2 हजार टन प्याज का आयात करेगी एवं नेफेड के जरिये 10 हजार टन प्याज की खरीद की जायेगी। खास यह भी है कि सरकार ने प्याज के निर्यात पर 850 डाॅलर का न्यूनतम मूल्य भी घोशित कर दिया है बावजूद इसके अभी तक इसकी कीमत खुदरा बाजार में 50 रूपये प्रति किलो की दर से नीचे नहीं आ पायी है।
भारत की बहुत सी आर्थिक समस्याओं में महंगाई की समस्या प्रमुखता लिये रहती है। ऐसा भी देखा गया है कि एक सीमा तक जनता किसी न किसी तरह महंगाई को झेल लेती है लेकिन यदि यह लम्बे समय तक टिक जाती है तो आम जन के रक्तचाप को भी बढ़ा देती है। स्थिति तब बहुत अधिक बिगड़ जाती है जब वस्तु विषेश की दोबारा खरीदारी करते समय तुलनात्मक बढ़ी हुई कीमत देनी पड़ती है। देष की सरकार हो, नीति नियोजक या फिर कोई निकाय ही क्यों न हो इस बात पर जरूर ध्यान देना चाहिए कि गरीब और गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले के लिए महंगाई जीवन के लिए ही खतरा बन जाती है। आंकड़े इस बात का समर्थन करते हैं कि देष में हर पांचवा व्यक्ति अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है। हालांकि विष्व बैंक की दृश्टि में यह संख्या अधिक है। जिसे दो जून की रोटी जुटाने के लिए बड़ी मषक्कत करनी पड़ती है। सरकार के नियोजन और उसमें निहित लाभ से भी यह इसलिए वंचित रह जाते हैं क्योंकि अषिक्षा और जागरूकता की कमी के चलते अधिकार को भी नहीं पहचानते हैं। इतना ही नहीं गरीबों के हक से बिचैलिये मालामाल होते हैं और आर्थिक खाई गहरी होती जाती है। इस बात के लिए मोदी सरकार की सराहना की जा सकती है कि सहायता के कई संदर्भ सीधे खाताधारकों से संलग्न किये गये पर महंगाई की मार के चलते राहत भी बेमतलब सिद्ध हो रही है। रसोई गैस पर सब्सिडी खाते में तो आती है पर जिस गति से इसकी कीमत बढ़ी है उसे देखते हुए यह एक हाथ से देने दूसरे से लेने जैसा है। दो टूक यह भी है कि कीमतों में निरंतर वृद्धि एक दहषतकारी मोड़ होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्नत और विकासमान जीवन जीने की इच्छा इसके चलते धुंधली हो जाती है। 
वास्तव में बाजार हमारी समूची अर्थव्यवस्था का दर्पण है और इस दर्पण में सरकार और जनता का चेहरा होता है। जाहिर है महंगाई बढ़ती है तो दोनों की चमक पर इसका फर्क पड़ता है। खास यह भी है कि  अगर महंगाई और आमदनी के अनुपात में बहुत अंतर आ जाये तो भी जीवन असंतुलित होता है। वैसे महंगाई को समस्याओं की जननी कहा जाय तो अतार्किक न होगा। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़े मौजूदा महंगाई को ही उजागर नहीं करते बल्कि कई और क्षेत्रों में गणित बिगाड़ने के संकेत भी दे रहे हैं। अर्थषास्त्रियों का यह मानना है कि महंगाई दर अनुमान से कहीं ज्यादा है ऐसे में मौजूदा वित्तीय वर्श में ब्याज दर में कटौती की सम्भावना लगभग खत्म हो गयी है। सम्भावना तो यह भी जताई जा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक अगले छः माह तक ब्याज दर में कटौती नहीं करेगा। यह इस बात का संकेत है कि बैंकों से ऋण लेने वाले एक तरफ महंगाई की मार झेलेंगे तो दूसरी तरफ ब्याज दर में राहत से भी वंचित रहेंगे। चिंतन तो इस बात का भी है कि प्याज, टमाटर और अन्य सब्जियों की कीमत में वृद्धि का अनुमान मौजूदा समय में उम्मीद से ज्यादा असर डाल रहा है जिस पर काबू पाने के लिए सरकार को कड़ी मषक्कत करनी पड़ेगी। महंगाई का एक वृहद् पक्ष कच्चे तेल की कीमत भी है जिसका दाम 10 जून 2015 के बाद पहली बार 65 डाॅलर प्रति बैरल को पार किया जाहिर है यह दो साल का उच्चतम स्तर है। जिसमें इसे देखते हुए यह संकेत मिल रहा है कि पेट्रोल और डीजल के दाम में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो सरकार के माथे पर चिंता के बल लाज़मी हो जायेंगे। वैसे भी इन दिनों तेल की कीमत आसमान छू रही है। गौरतलब है कि नवम्बर 2016 में महंगाई दर 3.63 प्रतिषत थी और इसी माह में 8 नवम्बर को नोटबंदी का एलान किया गया था। अर्थषास्त्र का विन्यास बहुत सामान्य नहीं होता हालांकि यह बहुत गूढ़़ भी नहीं होता पर एक सच्चाई है कि इसको अतिरिक्त सहज लेने पर कभी-कभी यह भारी पड़ता है जैसा कि इन दिनों देखा जा सकता है। नोटबंदी के बाद इसी वर्श 1 जुलाई को देष में जीएसटी लागू किया गया। ताबड़तोड़ आर्थिक परिवर्तनों के चलते भी आर्थिक व्यवस्था में दरारें आना स्वाभाविक है। चिंतन का विशय यह भी है कि सरकार हर आर्थिक मोर्चे पर लिये गये निर्णय को अपना सधा हुआ फैसला मानती रही है और इसके दूरगामी नतीजे बता कर अपनी पीठ थपथपाती रही जबकि जनता अनेक समस्याओं समेत महंगाई की गिरफ्त में है। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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