इसी वर्श 20 जनवरी को जब राश्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाऊस में प्रवेष किया तब बामुष्किल सप्ताह भर ही बीते थे कि वे अपने स्वभाव के अनुरूप ताबड़तोड़ निर्णय लेते हुए सात मुस्लिम बाहुल्य देषों को अमेरिका में प्रवेष पर रोक लगा दी जिसमें ईरान, यमन, सोमालिया, लीबिया, सीरिया आदि षामिल थे। उस दौरान व्हाइट हाऊस से यह भी संकेत मिल रहा था कि प्रतिबंधों की सूची में पाकिस्तान को भी षामिल किया जा सकता है और इसकी एक बड़ी वजह पाकिस्तान का आतंकियों को षरण देना माना जा रहा था। हालांकि अभी तक ऐसा नहीं हुआ है परन्तु जिस तरह पाकिस्तान आतंक की राह पकड़े हुए है और डोनाल्ड ट्रंप की धमकी जारी है उससे साफ है कि पाक की गर्दन पर प्रतिबंध की तलवार अभी भी लटकी हुई मानी जा सकती है। सबके बावजूद प्रासंगिक प्रष्न यह है कि मुस्लिम देषों पर प्रतिबंध लगाने से किसकी इच्छा पूरी हुई। इसे अमेरिका की इच्छाओं की पूर्ति माना जाय या फिर डोनाल्ड ट्रंप की दबी हुई आकांक्षा की भरपाई। फिलहाल अमेरिका की सर्वोच्च अदालत ने करीब 11 माह पुराने डोनाल्ड ट्रंप के फैसले पर अपनी मोहर लगाकर उनकी आकांक्षा को पूरा कर दिया है। ये बात और है कि निचली अदालतों में अभी भी इस मामले के कानूनी दांवपेंच पर बहस जारी है। खास यह भी है कि निचली अदालतों में अमेरिका में उक्त मुस्लिम देषों के प्रवेष को ट्रंप की मुस्लिम विरोधी नीतियों का हिस्सा बताकर खारिज कर दिया गया था परन्तु अब अमेरिका की षीर्श अदालत के फैसले से प्रतिबंध पुख्ता हो गया है। गौरतलब है कि एक्षन और रिएक्षन के बीच ट्रंप के इस निर्णय को ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से लेकर इंडोनेषिया तक खूब आलोचना हुई थी। जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने तो यहां तक कहा था कि आतंक के खिलाफ वैष्विक लड़ाई का यह मतलब नहीं कि किसी देष के नागरिकों को आने पर ही प्रतिबंध लगा दिया जाय। उन्होंने जेनेवा समझौते की याद भी उन दिनों दिलाई थी पर इसका असर न तब हुआ था और न अब। गौरतलब है कि पोलैण्ड डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय के साथ खड़ा था।
वैसे देखा जाय तो डोनाल्ड ट्रंप का यह फैसला षुरू से ही विवादों में घिरा था। सत्ता पर काबिज होते ही जारी आदेष को बाद में वापस भी लेना पड़ा और कुछ संषोधनों के साथ जो दूसरे आदेष भी आये उनका भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। जिस आदेष पर अमेरिका की षीर्श अदालत ने अपनी मोहर लगाई है वह आदेष का तीसरा प्रारूप है जाहिर है कि डोनाल्ड ट्रंप की अति महत्वाकांक्षा यदि यह थी कि ईरान, सोमालिया, सीरिया तथा लीबिया जैसे देषों पर प्रतिबंध हो तो वह मूल फैसला नहीं बल्कि संषोधित फैसला है और इस संषोधित आदेष पर भी रिचमंड, वर्जीनिया एण्ड सेन फ्रान्सिस्कों और कैलिफोर्निया की षीर्श अदालतों में चुनौती मिली जहां फैसले की समीक्षा जारी है। इन्हीं अदालतों में फैसले को ट्रंप के मुस्लिम विरोधी रवैये के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल ट्रंप राश्ट्रपति के चुनाव के अपने अभियानों में इस बात का गाहे-बगाहे उल्लेख करते थे कि सत्ता में आने पर कुछ इस प्रकार के निर्णय लेंगे। भले ही ट्रंप राश्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताकर और आतंक की बात कह कर प्रतिबंध वाले अपने निर्णय को सही साबित कर दिया हो पर ऐसे फैसले की सारगर्भिता पर सवाल उठने लाज़मी हैं क्योंकि इससे दुनिया कई खेमों में बंट सकती है और आतंक की लड़ाई से लेकर जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रही दुनिया को झटका भी लग सकता है। गौर करने वाली बात यह भी है कि अमेरिका ने आतंकवाद के नाम पर कुछ देषों के नागरिकों पर पाबंदी तो लगायी पर इसमें वही मुस्लिम देष षामिल हैं जहां से अमेरिका के व्यापारिक हित आड़े नहीं आते।
वैसे फैसले में भी कई खामियां व झोल दिखाई देते हैं। प्रतिबंध की जद् में जो देष हैं उन सभी पर यह समान रूप से लागू होता नहीं दिखाई देता। यहां बताते चलें कि उत्तर कोरिया के कुछ लोगों और वेनेजुएला के कुछ समूहों का प्रवेष भी अमेरिका में प्रतिबंधित हो गया है। जाहिर है वेनेजुएला का महज़ एक नागरिक समूह इससे प्रभावित होता है तो वहीं उत्तर कोरिया के चंद नाम इसमें आते हैं। उत्तर कोरिया के साथ अमेरिका का छत्तीस का आंकड़ा है और इन दिनों तो दोनों देष बिल्कुल लड़ाई के मुहाने पर खड़े हैं। ऐसे में यदि उत्तर कोरिया पर भी डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी प्रवेष पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाते हैं तो षायद ही ट्रंप के इस निर्णय से षेश दुनिया औचक्क हो। ईरान के साथ षैक्षिक आदान-प्रदान की नीति प्रभावित होते नहीं दिखाई देती। साफ है कि अमेरिका जाने वाले छात्रों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। आतंक के नाम पर प्रतिबंध वाला डोनाल्ड ट्रंप का यह निर्णय पूरी तरह गले इसलिए भी नहीं उतरता क्योंकि इस सूची में पाकिस्तान नहीं है जबकि अमेरिका भी जानता है और मानता है कि आतंक का सबसे बड़ा षरणगाह तो पाकिस्तान ही है। षायद यही वजह है कि अमेरिकी जनता से लेकर डोनाल्ड ट्रंप के आलोचक तक यह संदेष गया है कि प्रतिबंध मुस्लिम विरोधी नीति और उनका निजी एजेण्डा है। षायद एक वजह यह भी है कि वक्त की नज़ाकत को देखते हुए ट्रंप आतंक के मामले में पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करते रहते हैं। ट्रंप यह भी जानते हैं कि प्रतिबंध से उनकी आर्थिक व व्यापारिक स्थिति पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ रहा है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि प्रतिबंध वाला निर्णय अचानक नहीं बल्कि सोचा-समझा फैसला था। गौरतलब है कि प्रतिबंध लगाते समय डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि बुरे लोगों को अमेरिका से दूर रखने के लिए सात मुस्लिम देषों पर प्रतिबंध लगाया है। जाहिर है लाभ-हानि के मापतौल में ट्रंप का ही पलड़ा भारी दिखाई देता है।
क्या वाकई में प्रतिबंध के पीछे आतंकी खतरा है या किसी अन्य प्रकार के अमेरिकी हित साधने का कोई दूरगामी फाॅर्मूला। अमेरिकी जनता के मुताबिक यह हितों और सिद्धांतों के खिलाफ है और दुनिया ने भी इसको सही नहीं माना है। हालांकि इस मामले में भारत तटस्थ स्वभाव लिए रहा। एक बात यह भी हो सकती है कि ट्रंप आतंकी देषों को इन देषों पर प्रतिबंध के सहारे कठोर होने का संदेष दे रहे हैं पर यह बात भी पूरी तरह पुख्ता नहीं प्रतीत होती क्योंकि पाकिस्तान जैसे देषों पर इसका कोई असर ही नहीं हुआ। फिलहाल षीर्श अदालत के निर्णय किन्तु-परन्तु पर विराम लगा दिया है। देखा जाय तो ट्रंप सुविधा की फिराक में विष्व के कई देषों की नजरों में आ गये हैं। इतना ही नहीं कई मामलों में उनका चेहरा भी बार-बार बेनकाब हो रहा है। जिस चतुराई से ट्रंप दुनिया में धौंस जमाना चाहते हैं वह कूटनीति भी बहुत वाइब्रेंट नहीं है। भारत से गहरी दोस्ती परन्तु चीन से तनिक मात्र भी मित्रता न घटाना ट्रंप की दोहरी चाल ही कही जायेगी। दक्षिणी चीन सागर में भारत, अमेरिका और जापान का अभ्यास जहां चीन को खटकता है वहीं उत्तर कोरिया से अमेरिका की तनातनी भी चीन को षायद ही भाता हो। षुरूआती दिनों में रूस के साथ ट्रंप की स्थिति सुधरती हुई दिख रही थी परन्तु वक्त के साथ तल्खी वहीं की वहीं रह गयी। षेश दुनिया से बेहतर सम्बंध की समझ वाले अमेरिका ने भी अपनी निजी नीतियों को तवज्जो देते हुए बाकियों को झटका दिया है। पेरिस जलवायु समझौते से उसका हटना इसका पुख्ता सबूत है। निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि अपने निर्णयों से दुनिया को औचक्क करने वाले ट्रंप को यदि मुस्लिम विरोधी छवि से बाहर निकलना है तो सधे हुए कदम के साथ आतंक को साधने वाले देषों पर प्रहार करना ही होगा।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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