Wednesday, December 6, 2017

मूडीज़ ने बढाई मोदी की साख

मूडीज़ को विष्वास है कि आर्थिक सुधारों के देष में कारोबारी माहौल सुधरेगा, उत्पादकता बढ़ेगी, विदेषी और घरेलू निवेष में तेजी आयेगी अन्ततः मजबूत एवं सतत् विकास होगा। प्रधानमंत्री मोदी का यह वक्तव्य अमेरिका की वैष्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ की उस रिपोर्ट के बाद आया जिसमें उसने 13 साल में पहली बार भारत की रेटिंग को एक पायदान सुधारा है। जीएसटी और नोटबंदी को अर्थव्यवस्था के लिए समुचित बताने वाली मूडीज़ ने साल भर से आलोचना झेल रही मोदी सरकार की फिलहाल साख तो बढ़ा दी है। मोदी सरकार के लिए अक्टूबर और नवम्बर के महीने भी बड़े अच्छे रहे। बीते अक्टूबर के मध्य में अन्तर्राश्ट्रीय मुद्रा कोश की अध्यक्ष क्रिस्टीन लिगार्ड ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बेहद मजबूत राह पर बता कर जहां सरकार की स्थिति को आर्थिक तौर पर संभालने का काम किया वहीं इसी माह के अंत में विष्व बैंक की ईज़ आॅफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट ने कारोबारी सुगमता को लेकर भारत के 130वें स्थान से 100वें स्थान की छलांग की बात मौजूदा सरकार के लिए तो एक स्वास्थवर्धक अर्थव्यवस्था का मानो खिताब ही दे दिया हो। आर्थिक मोर्चे पर केन्द्र सरकार के लिए लगातार आ रही अच्छी खबरे जाहिर है आलोचनाओं के बीच संतोश का काम कर रही होंगी। मूडीज़ के द्वारा निर्धारित रेटिंग में इस बात का पता चलना कि आर्थिक और संस्थागत सुधारों से भारत में विकास की सम्भावनायें बढ़ी हैं जाहिर है बीएए-3 से बीएए-2 होना भारत को हर लिहाज़ से बेहतर कहा जायेगा। मूडीज़ ने बीते 17 नवम्बर को जारी रिपोर्ट में जीएसटी, मोनेटरी पाॅलिसी फ्रेमवर्क में सुधार सहित कई प्रयासों को सराहा है। नोटबंदी, बायोमैट्रिक व्यवस्था हेतु आधार का विस्तार एवं डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के चलते सब्सिडी की रकम सही व्यक्ति तक पहुंचाने जैसे उपायों को उचित करार देते हुए सही माना है। 
देखा जाय तो सुषासन की राह को समतल बनाने की फिराक में मोदी सरकार ने कई जोखिम लिए हैं जिसमें नोटबंदी और जीएसटी तो आर्थिक इतिहास के पन्नों में पहली बार है। सुषासन एक लोकप्रवर्धित अवधारणा है और यह तभी सम्भव है जब प्रत्यक्ष लाभ और न्याय जनता को मिले। कई बुनियादी तत्वों समेत विभिन्न आर्थिक आयामों से युक्त व्यवस्थाओं को समुचित रूप देते हुए सरकार ने अपने हिस्से का सुषासनिक कृत्य न निभाया होता तो षायद अन्तर्राश्ट्रीय एजेंसियां सिलसिलेवार तरीके से सरकार की साख को इतना तवज्जो न देती। सम्भव है कि मौजूदा सरकार ने उन पहलुओं को छुआ है जिससे सुधारों की सराहना इन दिनों मिल रही है। मूडीज़ रिपोर्ट से निर्धारित रैंकिंग से दुनिया में भारत की आर्थिक छवि सुधर गई है। कर्ज मिलने में आसानी से लेकर कर्ज पर ब्याज भी कम होना विकास की कई सम्भावनाओं को बढ़ा देता है। हालांकि देष में करोड़ों की तादाद में युवा बेरोज़गार हैं तमाम कोषिषों के बावजूद सरकार इस मामले में बेहतर उपाय नहीं ला पा रही है। प्रति वर्श दो करोड़ रोज़गार देने के वायदे के बावजूद बेरोज़गारी का आलम बढ़ा हुआ है। स्टार्टअप इण्डिया एण्ड स्टैण्डअप इंडिया समेत स्किल इण्डिया आदि से सम्भावनायें प्रखर होते नहीं दिखाई दे रहीं। सम्भव है कि रोज़ागर के भी अवसर आने वाले दिनों में बढ़ेंगे पर अभी तो इस मामले में निराषा ही है। गौरतलब है कि साल 2004 में मूडीज़ ने भारत की क्रेडिट रैंकिंग बीएए-3 निर्धारित की थी और एक दषक बाद 2015 में क्रेडिट रैंकिंग आउटलुक अर्थात् भविश्य परिदृष्य को स्थिर से सकारात्मक कर दिया था। एक वाजिब तर्क यहां यह भी समझना सही होगा कि उदारीकरण के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था सरपट दौड़ी थी। जब संर्कीण आर्थिक दीवार 24 जुलाई 1991 को ढहाई गयी और उदारीकरण से देष को सराबोर किया गया तब दुनिया से भारत का नये अर्थ के साथ साक्षात्कार हुआ था। तभी से दुनिया भर के देषों समेत आर्थिक एजेंसियों की नज़र भारत से हटी नहीं।
मूडीज़ ने मौजूदा वित्तीय वर्श 2017-18 के लिए भारत की जीडीपी की विकास दर का अनुमान 7.1 जो 2016-17 से घटाकर 6.7 कर दिया था अब एजेंसी ने 2018-19 में 7.5 की दर से आगे बढ़ने की सम्भावना जता रही है। गौरतलब है कि जब 8 नवम्बर, 2016 को देष में नोटबंदी हुई थी उसके बाद मूडीज़ की रिपोर्ट ने भारत की विकास दर गिरने की सम्भावना जून, 2017 तक के लिए व्यक्त की गयी थी और ऐसा हुआ भी था। निरूपित मापदण्डों में देखें तो जिन सम्भावनाओं को लेकर मूडीज़ ने भारत के विकास दर के बढ़ने की बात कही है उसकी धरातल फिलहाल भारत में मज़बूत हो रही है। देष की टैक्स व्यवस्था बेहतर हुई है जुलाई से सितम्बर तक के तिमाही में जीएसटी के चलते संचित निधि में कर संग्रह बढ़ा है। नोटबंदी के चलते काला धन और समानांतर अर्थव्यवस्था को काफी पैमाने पर झटका लगा है। हालांकि काले धन के मामले में अभी कुछ कह पाना सम्भव नहीं है पर संदिग्ध खातों की जांच जारी है, नतीजे बाद में ही मिलेंगे। अभी की स्थिति तो यह है कि हजार और पांच सौ के जो 86 फीसदी धनराषि संचालन में थी उसमें से 99 फीसदी की बैंकों में वापसी हो चुकी है। देष में भ्रश्टाचार मुखर दिखाई नहीं दे रहा है। इसके चलते भी अर्थव्यवस्था को सुधरे हुए राह पर करार दिया जा रहा है। कई मायनों में सरकार ने बिचैलियों को रास्ते से हटा दिया। इससे न केवल ग्राहकों को सीधा लाभ पहुंचा बल्कि सरकार को 57 हजार करोड़ का मुनाफा भी हुआ। आधार लिंक के चलते इस तरह की सम्भावनायें और मजबूत हुई हैं। सकारात्मक प्रयासों का नतीजा यदि मूडीज़ की रेटिंग है तो यह सवाल खड़ा होता है कि यह सकारात्मकता आंकड़ों से बाहर निकलकर वास्तविकता में आम जन तक कम दिखेगी। प्रष्न यह उठता है कि हमारी अर्थव्यवस्था सही राह पर है, कारोबार के लिए सुगम है और अब तो आर्थिक सुधार भी सराहना के फलक पर है तो फिर गरीबी, बीमारी, बेरोज़गारी समेत दर्जनों महामारी से देष को क्यों छुटकारा नहीं मिल रहा है। अन्तर्राश्ट्रीय एजेंसियों के आधार पर किये गये आंकलन पर अविष्वास नहीं है पर विष्वास पूरी तरह तब होगा जब सब को बुनियादी जीवन का अधिकार देने में सरकार सफल होगी। 
मूडीज़ द्वारा निर्धारित रेटिंग से कई आर्थिक मायने निकाले जा सकते हैं जिसमें सस्ता और आसान कर्ज तो षामिल ही है साथ ही विदेषी कम्पनियां भी भारत की ओर बड़े पैमाने पर रूख कर सकती हैं। मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मेक इन इण्डिया में तेजी आ सकती है। आर्थिक विकास तेज होगा क्योंकि लोगों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा तुलनात्मक बढ़ेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि महंगाई घटेगी पर मौजूदा समय में लोग इससे परेषान हैं। रूपया मज़बूत होगा अंदाजा लगाना गैरवाजिब नहीं है परन्तु अभी तो हमारी हालत इस मामले में काफी पतली है। देष में आर्थिक माहौल बेहतर होने के कयास लगाये जा रहे हैं। जाहिर है जब निवेष बढ़ेगा तो रूपया भी मजबूत होगा। इसके अलावा बाॅण्ड और इक्विटी मार्केट भी मजबूती की राह पकड़ेगा। ऐसे में सरकार का राजस्व बढ़ सकता है। राजस्व बढ़ने के चलते नीतियों को गति मिलेगी, बजटीय घाटा कम होगा और लोक कल्याण को लेकर सरकार अपनी स्पीड बढ़ा सकेगी। देखा जाय तो मूडीज़ ने मोदी के आर्थिक मूड को बड़ी तल्लीनता से समझा है पर लोग इसको तभी तवज्जो देंगे जब मुनाफा उनके हिस्से में आयेगा। वैसे कई माध्यमों में सुगमता बढ़ी है, बुनियादी जरूरतों की मारामारी कम हुई है मसलन रसोई गैस। बावजूद इसके आर्थिक परिभाशा और विषेशता के अन्तर्गत कारगर सुधार की आवष्यकता अभी भी बरकरार है। जिस देष में हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे हो और इतने ही अषिक्षित हों वहां आर्थिक नीतियां व्यापक सुधार और बड़े रफ्तार की मांग करती हैं। सम्भव है कि सरकार बढ़ी हुई साख के साथ लोगों के जीवन मूल्य को भी बढ़ाने की कवायद में खरी उतरेगी।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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