Saturday, January 2, 2016

उधर लाहौर लैंडिंग, इधर आतंकी हमला

अक्सर ऐसा तब हुआ है जब भारत और पाकिस्तान एक मंचीय होने का प्रयास करते हैं। आतंक की हिस्ट्री ऐसी तमाम मिस्ट्री में उलझी हुई है कि पाकिस्तान में आतंकवादी षिविर चलाने वालों का आखिर असल मकसद क्या है? जब वर्श 2016 की दूसरी सुबह कगार पर खड़ी थी तब पाकिस्तान से आये आतंकियों ने पंजाब के पठानकोट को अपने मंसूबों की कैद में ले लिया। यहां का एयरफोर्स स्टेषन हमले की जद में आया जिसमें एयरफोर्स कमांडो सहित तीन षहीद हो गये। इसके अलावा एक आम व्यक्ति भी इस घटना का षिकार और एक जख्मी हुआ। हालांकि चार आतंकवादी भी इसमें ढेर हुए। इस घटना ने नाजुक प्रष्न यह पैदा किया कि जिस कीमत पर आतंकी भारत में तबाही का मंजर बिखेर रहे हैं क्या उस सूरत में पाकिस्तान इस पर अफसोस करता है? पाकिस्तान में आतंक की ट्रेनिंग तो अभी भी चल रही है, भले ही पहले जैसी स्थिति न हो पर इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भारत-पाक के तमाम भेंट-मुलाकातों के बावजूद आतंक की प्रयोगषाला में पैदा होने वाला जहर आज भी भारत पर ही आजमाया जाता है। आर्मी वर्दी में आये आतंकी एयरफोर्स बेस में फिदाइन हमले के इरादे में थे। हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि दो दिन पहले ही आतंकियों ने घुसपैठ की थी। घटना से एक दिन पहले ही असिस्टेंट कमांडेंट की किडनैपिंग के बाद आर्मी ने इसे अलर्ट भी किया था पर नतीजे सिफर ही रहे।
पठानकोट में पाकिस्तान बोर्डर से लगे नरोट जमैल सिंह इलाके से गुजरने वाले गुरदासपुर के पूर्व एसपी सहित दो को घटना से पहले ही किडनैप किया गया था किडनैपर आर्मी की वर्दी में थे। जिस अंदाज में पूरा घटनाक्रम है उससे लगता है कि सुरक्षा व्यवस्था की तरफ से तैयारी अधूरी थी और आतंकियों को घटना का कोई सरल रास्ता मिला हुआ था। जाहिर है अद्भुत तरीके से की गयी मोदी के लाहौर दौरे से आतंकी बौखलाए हैं। दावा तो यह भी किया गया था कि आतंकी कभी भी एयरबेस के अन्दर पहुंच ही नहीं सकते तो क्या आतंकी मीडिया का ध्यान खींचने के लिए आये थे या यह बताना चाहते थे कि उनकी ताकत किसी भी सूरत में अभी घटी नहीं है। अफसोस यह है कि घटना में जान गयी है और आतंकी हमले में पठानकोट भी सूचीबद्ध हो गया। देखा जाए तो पांच महीने पहले भी गुरदासपुर जिले में डेढ़ घण्टे में सात आतंकी हमले हुए थे। रक्षा के जानकार यह मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक बोल्ड स्टेप लिया और वे पाकिस्तान गये ऐसे में आतंकी भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहेंगे। हालांकि षक तो पहले भी था और दोनों देषों की सरकारें भी षायद इसे समझती-बूझती थीं कि सम्बंधों के बीच में आतंकियों की तिरछी नजर पड़ेगी जरूर।
इस घटना के बाद भारत और पाकिस्तान में बढ़ी आपसी समझ भी इस विमर्ष की ओर झुकेगी कि कैसे आतंकी कार्यवाही के बीच बातचीत सफल हो। एक तरफ भारत जहां पाकिस्तान से वार्ता करने का सौ फीसदी मन बना चुका है जिसका पुख्ता सबूत मोदी की लाहौर लैण्डिंग है और जनवरी के मध्य में दोनों देषों के प्रतिनिधियों की मुलाकात की तय तारीख है। निःसंदेह पाकिस्तान से बात होनी चाहिए पर बात इस पर भी बात होनी चाहिए कि नवाज़ षरीफ आतंक से निपटने के लिए कौन सा नियोजन तैयार कर रहे हैं। पड़ताल बताती है कि पाक कभी सच्चे मन से आतंक के विरोध में नहीं रहा बल्कि उकसाने की कार्यवाही में वह जरूर षामिल  रहा है। दाऊद से लेकर लख्वी तक और जमाद-उद-दावा का सरगना हाफिज़ सईद सहित कई आतंकियों के मामले में पाकिस्तान ढुलमुल बना रहा। पिछले तीन दषकों में आतंकी हमलों से भारत खूब छलनी हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी भी 2016 के इस नूतन वर्श में पाकिस्तान से बड़ी जिम्मेदारी की उम्मीद रखते हैं पर वर्श का आगाज यदि ऐसे होगा तो अंजाम क्या होगा इसकी आहट साफ सुनी जा सकती है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का षरणगाह है बावजूद इसके भारत बड़े मन से बातचीत के दरवाजे खोल चुका है। भारत की भूमि से अलग होकर बना पाकिस्तान जो पीड़ा पहुंचा रहा है और भारत जिस हित की बात कर रहा है उसकी भी दूर-दूर तक कोई तुलना नहीं है।
आतंक का स्थान कोई भी हो परन्तु पीड़ा में कोई अंतर नहीं होता। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आतंकी हमले को नाकाम बताते हुए कहा कि खुफिया जानकारी पहले होने से नुकसान कम हुआ है। लालू प्रसाद का तो यह मानना है कि यह वक्त फाॅरेन पाॅलिसी पर सवाल उठाने का नहीं है। पंजाब के मुख्यमंत्री भी पहले से सूचना होने के चलते कम नुकसान वाला हमला मान रहे हैं। सवाल नुकसान कम और ज्यादा का नहीं है, सवाल हमला करने वालों के इरादे का है। सवाल तो यह भी है कि जब सूचना पहले से थी तो हमला ही क्यों हुआ? आतंकी जिंदा क्यों नहीं धरे गये और कमांडो समेत तीन जवानों की जान क्यों गयी? हमेषा से यह दुखती रग रही है कि घटना घटने के बाद उसका जायजा जान-माल के नुकसान से लगाया जाता रहा है। ताज्जुब इस बात की है कि सरेआम देष के भीतर पाकिस्तान प्रायोजित आतंक का ताण्डव है उसे रोकने के बजाय जिरह इस बात पर हो रही है कि घटना कितनी सफल थी और कितना असफल। विकासषील देषों की एक समस्या यह भी है कि वे ‘सांख्यिकीय चेतना‘ के षिकार होते हैं जबकि विकसित देष यांत्रिक चेतना से युक्त होते हैं फर्क यह है कि एक आंकड़ों की बाजीगरी करता है तो दूसरा परिणाम की चिंता करता है। पठानकोट के हमले में बेषक नुकसान कम हुआ हो पर हमला देष के भीतर हुआ यह स्वयं में एक बड़ी घटना ही कहीं जायेगी।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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