Wednesday, January 6, 2016

यह हमला नहीं, आक्रमण है

इसमें संदेह नहीं कि आधुनिक समय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के चलते सुरक्षात्मक तो हुआ है पर विध्वंसक भी हुआ है मगर इसका तात्पर्य कतई नहीं कि सभ्यता से भरी दुनिया में कुछ को कुछ भी करने की खुली छूट दे दी जाए। इस पर भी गौर करने की जरूरत है कि जो आतंक को अपना ईमान बना चुके हैं और देष-दुनिया को मिटाने के लिए आतुर हैं उनके प्रति देर तक सलीखे वाला रूख अख्तियार करना गैर वाजिब होगा। ताजा वर्णन यह है कि पंजाब के पठानकोट के एयरबेस के भीतर षनिवार के सुबह तीन बजे से ही आतंकियों से भारतीय सेना द्वारा लोहा लिया जा रहा है। जिस तैयारी और इरादे से आतंकियों के मंसूबे थे उससे साफ है कि विगत् कुछ समय से जो यह असमंजस था कि पाकिस्तान आतंक के मामले में पटरी पर आ रहा है यह बिल्कुल उसके उलट है। निष्चित तौर पर इस बात से अवगत होना सही कहा जाएगा कि मोदी-षरीफ की लाहौर भेंट तनिक मात्र भी आतंकियों को रास नहीं आया। बीते कई वर्शों से पाकिस्तान के आतंक को भारत झेलने के लिए मजबूर है। पठानकोट में आतंकी हमला जिस स्तर का है उसे देखते हुए यदि इसे आक्रमण की संज्ञा दी जाए तो बिल्कुल सही होगा। इसके पहले भी देष दषकों से अलग-अलग क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर आतंक झेलता रहा है। मुम्बई से लेकर पठानकोट तक इतनी आतंकी घटनाएं देष में हुई हैं कि सिरे से पड़ताल की जाए तो आज भी आतंकी हमलों के चलते हुए जान-माल की भरपाई सम्भव नहीं हुई है। जिस तर्ज पर पठानकोट की घटना हुई हैं वह पहले की तुलना में अधिक मारक और तकनीकी तौर पर कहीं अधिक मजबूत देखने को मिली है।
बीते 2 जनवरी से हुए आतंकी आक्रमण के चलते देष की सुरक्षा प्रणाली से लेकर राजनयिक संदर्भों का समीकरण भी गड़बड़ा गया है। राश्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अगले सप्ताह होने वाली चीन यात्रा स्थगित कर दी गयी। डोभाल सीमा विवाद को लेकर चीन रवाना होने वाले थे। गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लम्बी सीमा को लेकर आये दिन विवाद रहता है। हालांकि दोनों देष इस विवाद को सुलझाने के लिए अब तक 18 बार बातचीत कर चुके हैं पर मामला जस का तस बना हुआ है। इसी माह के मध्य में भारत-पाक के बीच सचिव स्तर की वार्ता होनी है। इस प्रकार के माहौल में कि पाकिस्तान आतंक को लेकर कोई संजीदगी नहीं दिखा रहा है ऐसे में वार्ता का क्या अर्थ है। जाहिर है उधेड़-बुन में यह वार्ता भी फंस गयी है। रंज यह भी है कि वैष्विक पटल पर आतंक को मुख्य एजेण्डा बनाने वाले प्रधानमंत्री मोदी अपने ही देष में बेलगाम आतंक से जूझ रहे हैं और इस मामले में ऐसे देष से उम्मीद कर रहे हैं जो भरोसे के लायक नहीं है। इस सच से गुरेज न किया जाए तो बेहतर होगा कि पाकिस्तान की सरकार आतंक के मामले में कोई सकारात्मक काज षायद ही कर पाये। पाकिस्तान के अंदर जो आतंकी षिविर चल रहे हैं आज वो विष्वविद्यालय का रूप ले चुके हैं। उन्हें निस्तोनाबूत करना चुनौती ही नहीं कसौटी भी है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ इस कसौटी के इर्द-गिर्द फिलहाल नहीं दिखाई देते हैं। सीमा पर सीज़ फायर के उल्लंघन के मामले में भी नवाज़ षरीफ लगातार चूक करते रहे हैं। सीमा पार से आये जिंदा आतंकी भी दबोचे गये हैं, सबूत भी पेष किये गये हैं बावजूद इसके पाकिस्तान न इन्हें मानने के लिए तैयार है और न ही घटनाओं को लेकर कोई सबक ही लेना चाहता है।
पाकिस्तान की एक मुख्य समस्या वहां की सैन्य व्यवस्था भी है। लोकतांत्रिक देष होने के बावजूद पाकिस्तान मानवीय मूल्यों को कभी सहेज कर रख ही नहीं पाया। अप्रत्यक्ष तौर पर कहीं-कहीं तो सीधे तौर पर आतंक और आईएसआई के षिकंजे के चलते यहां की लोकतांत्रिक सरकारें भी लूली-लंगड़ी ही सिद्ध हुई हैं। माना जा रहा है कि मुम्बई हमलावरों की तुलना में पठानकोट में घुसे आतंकी कहीं अधिक प्रषिक्षित थे। जिस पठानकोट के एयरबेस पर आक्रमण हुआ है वहां मिग-21 लड़ाकू विमान और एमआई-25 हेलीकाॅप्टर खड़े होते हैं। आतंकी उन तक भी पहुंचना चाहते थे। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि इनको प्रषिक्षित करने वाले षिविर ‘आर्मी कल्चर‘ से युक्त हैं। जाहिर है यह इस ओर इषारा करता है कि पाकिस्तान की मिलट्री भी इन आतंकियों को दीक्षित करने में ताकत झोंके हुए है। 2008 में मुम्बई हमले की तुलना में ये इतने प्रषिक्षित कैसे हुए, षक करना लाज़मी है। इन्हें विषेश कमांडो जैसी ट्रेनिंग मिली थी। वैसे कहा जा रहा है कि पठानकोट में चल रहे आॅपरेषन को लम्बा चलाने का इरादा नहीं था पर ऐसा करने के पीछे नुकसान को कम करने का लक्ष्य था। सवाल तो यह भी है कि वायु सेना बेस में आतंकियों के घुसने से पहले ही उन पर काबू क्यों नहीं पाया गया। क्या यह सुरक्षा एजेंसियों की चूक नहीं है? इस पर और गौर करें तो पता चलता है कि हमले की आषंका पहले से थी यानी सतर्कता नहीं बरती गयी। हमले से पूर्व आतंकियों के चंगुल में फंसे गुरदासपुर के एसपी सलविन्दर सिंह की बात को भी नजर अंदाज किया गया। सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम की कमी और सर्च अभियान का न चलाया जाना भी इस घटना के होने के अर्थ में षामिल किये जा रहे हैं। सुरक्षा के घेरे को आतंकियों द्वारा कमजोर करना और उन्हें ध्वस्त करना यह इषारा करता है कि ऐसे मामलों में इससे जुड़े इंतजाम और गहरे होने चाहिए। बेषक सुरक्षा एजेंसियां इसे लेकर जान लड़ा रही हैं पर आतंकियों के मंसूबे के एवज में अभी इन्हें और पुख्ता करने की जरूरत है।
जम्मू और कष्मीर के रास्ते पठानकोट में प्रवेष करने वाले आतंकियों की संख्या कितनी है इसका भी पूरा अंदाजा नहीं है। आर्मी के भेश में आये आतंकी एक दर्जन भी हो सकते हैं जिसमें से छ‘ आतंकियों को ढेर किया जा चुका है लेकिन भारत के कई अफसर और जवान भी षहीद हो गये। भारत की धरती पर ही हुई इस हमले वाली कार्यवाही इस कदर लम्बी खिंची कि मानो युद्ध चल रहा हो। अलबत्ता षासक स्तर पर यह गैर मान्यता प्राप्त युद्ध है पर जिस प्रकार पाकिस्तानी सरकार की आदत रही है उसे देखते हुए उसकी मंषा पर संदेह तो होता है। भारत सरकार इस मामले में पाकिस्तान पर नकेल कसने की तैयारी षुरू कर दी है। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद पाकिस्तानी तत्वों के हाथ होने के सबूत उसे भेजकर कड़ी कार्यवाही की मांग की है। भारत ने यह भी चेतावनी दिया है कि यदि ऐसा नहीं होता है तो आगामी विदेष सचिव स्तर की वार्ता अधर में लटक सकती है। यहां पर फिर सवाल उठता है कि यदि पाकिस्तान सबूत को झुठला देता है जैसा कि पहले भी करता रहा है और कोई कार्यवाही नहीं करता है तत्पष्चात् सचिव स्तर की वार्ता भी नहीं होती है तो पाकिस्तान की सेहत पर इसका क्या असर पड़ेगा। फिलहाल  जिस प्रकार पाकिस्तान की आदत रही है उसे देखते हुए उम्मीद कम ही है। लाहौर की मोदी-षरीफ मुलाकात को भी फिलहाल यहां बेअसर होते हुए देखा जा सकता है। इतना ही नहीं जिस प्रकार इस हमले के बावजूद भारत को लेकर उसका रूख स्थिर बना हुआ है उससे भी बहुत कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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