Sunday, January 17, 2016

अर्थशास्त्र का नया दर्शन स्टार्टअप इंडिया

स्टार्टअप-स्टैंडअप इण्डिया की घोशणा 15 अगस्त, 2015 को लाल किले की प्राचीर से 69वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने की थी और दिसम्बर, 2015 में रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात‘ में भी यह वादा किया था कि 16 जनवरी, 2016 को इस कार्ययोजना का विधिवत षुभारम्भ किया जायेगा जिसकी षुरूआत इसी तिथि को दिल्ली के विज्ञान भवन से की गयी। सिलिकाॅन वैली से कई भारतीय अमेरिकी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचे। इसके अलावा कई उद्यमी और निवेषकों का भी यहां जमावड़ा रहा। एक प्रकार से यह कार्यक्रम लाइसेंस राज के खात्मे की दिषा में भी कदम है जैसा कि वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा है। देखा जाए तो 1991 के नई आर्थिक नीति के तहत लाइसेंस राज को जो आंषिक तौर पर समाप्त किया गया था उसकी भी यह पूर्ति करता है। इस योजना को सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य के साथ सुषासन सम्बंधी साहित्य में भी नव-अविश्कृत परियोजना के तौर पर पहचान मिल सकती है। आज का भारत वैष्विक पटल पर आर्थिक दृश्टि से कहीं अधिक खुला है। ऐसे में स्टार्टअप इण्डिया जैसे कार्यक्रम भारतीय अर्थव्यवस्था में युग प्रवर्तक और नव क्रान्ति के परिचायक हो सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने नये उद्यमों को बढ़वा देने के लिए अपने एक्षन प्लान के तहत कई प्रमुख बातों खुलासा भी किया। इसके ‘मैकेनिज्म माॅडल‘ से लगता है कि आने वाले दिनों में देष में रोजगार की संख्या और रोजगार देने वालों की संख्या बढ़ सकती है। ‘षुरूआत करो, आत्मनिर्भर बनो‘ मोदी सरकार के इस देषव्यापी अभियान से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस योजना के मन्तव्य में ‘सबका साथ, सबका विकास‘ की अवधारणा भी निहित है। इसमें ‘मेक इन इण्डिया‘ के निहित परिप्रेक्ष्य भी साझा होते दिखाई दे रहे हैं। देखा जाए तो इसमें एक समावेषी अवधारणा से युक्त योजना का आगाज भी समाहित है। बहरहाल स्टार्टअप इण्डिया एक अच्छा कार्यक्रम है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को दिषागत करने और सुषासन की राह को सरल बनाने में कहीं अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।
स्टार्टअप इण्डिया, स्टैंडअप इण्डिया नामक इस अभियान के लक्ष्य भी व्यापक हैं जिसमें उद्यमों के लिए बैंक वित्त और उद्यमषीलता को बढ़ावा देना आदि देखा जा सकता है साथ ही रोजगार सृजन और कौषल विकास के जरूरी पक्ष भी इसमें षामिल हंै। योजना को डिपार्टमेंट आॅफ इंडस्ट्रियल पाॅलिसी के अन्तर्गत लाया गया है। इस विजन के तहत 10 हजार करोड़ के फंड का प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ऐलान किया गया। साथ ही यह भी कहा गया कि चार साल तक 500 करोड़ रूपए का क्रेडिट गारंटी फंड भी बनाया जाएगा। पहले तीन साल तक नये उद्यमों की न तो कोई जांच होगी और न ही आयकर वसूला जाएगा साथ ही पूंजीगत लाभ पर भी टेक्स से छूट मिलेगी। एक दिन में ऐप से कम्पनी का रजिस्ट्रेषन करा सकते हैं चाहें तो 90 दिनों में बंद कर सकते हैं। यह योजना 1 अप्रैल 2016 से लागू होगी। इसकी प्रषंसा करते हुए राश्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि स्टाॅर्ट अप में देरी के लिए मैं भी जिम्मेदार हँू। इसमें खासियत यह भी है कि इसके चलते युवाओं को कुछ नया करने का अवसर मिलेगा और देष नये किस्म के उत्पाद और सेवा से युक्त होगा। जिसके चलते सरकार कई तरीके के फायदे लोगों को दे सकेगी और इस बात से भी स्वयं को सुरक्षित कर सकेगी कि रोजगार सृजन की सम्भावनाएं अब सरकार के जिम्मे ही नहीं हैं। उद्यमियों को वित्तीय समर्थन और विकास की राह में रोड़े को हटाने का काम करके सरकार विकास का एक बेहतर सेतु बना रही है। स्किल इण्डिया, डिजीटल इण्डिया और मेक इन इण्डिया सहित कई मापदण्डों को इसके अधीन समावेषित माना जा सकता है। यह कार्यक्रम एक कारोबारी विचार लिए हुए है पर यह उम्मीद जताई जा सकती है कि इसके चलते देष में सामाजिक-आर्थिक बदलाव ही नहीं बेहतर कार्य-संस्कृति का वातावरण भी बनेगा।
आज भारत स्टार्टअप कम्पनियों के मामले में दुनिया में तीसरे नम्बर पर है। यह भी सही है कि कई विकसित एंव विकासषील देषों की तुलना में भारत में षोध पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया है। एषिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकतर देषों की कमोबेष यही स्थिति है। 1963 में तीसरी दुनिया के विकास को लेकर तुलनात्मक लोक प्रषासन (सीएजी) जैसी संस्था का गठन एक प्रषासनिक विचारक फ्रेडरिग्स के निर्देषन में हुआ था जिसकी वित्तीय जरूरतों को ‘फोर्ड फाउंडेषन‘ पूरा करता था। बेषक एक दषक के बाद यह संस्था ढह गयी पर उक्त देषों के विकास के लिए क्या जरूरी है इसका सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू उजागर करने में यह काफी मददगार सिद्ध हुआ था। स्वतंत्रता से अब तक कई अच्छी चीजें भारत में सुगम पथ इसलिए नहीं ले पाईं क्योंकि यहां एक तकनीकी समस्या अच्छे षोध के न होने की रही है। आज भी भारत अपने जीडीपी का एक प्रतिषत से कम षोध व विकास पर खर्च करता है जिसके चलते उसकी तकनीकी विकास पर निर्भरता दूसरे देषों पर लगातार बढ़ी है। जाहिर है यदि देष में षोध की महत्ता बढ़े और उसे प्राथमिकता में रखा जाए तो कई अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। षोध के लिए भारत रत्न प्राप्त प्रो. सीएनआर राव भी इस बात को कह चुके हैं कि सरकारें षोध पर खर्च नहीं करती हैं। फिलहाल स्टार्टअप के संदर्भ में दक्षिण भारत के चार राज्यों कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेष और तेलंगाना बेहतरीन प्रदर्षन कर रहे हें। 2004 से 2014 के दौरान भारत में 4 हजार कम्पनियों ने विदेषी निवेष हासिल किये और इनमें से आधी स्टार्टअप कम्पनियां रही हैं। योजना का उद्देष्य यह भी है कि युवाओं को नवीनतम एवं रचनात्मक कार्यों के लिए उचित ढांचा तैयार करके न केवल आर्थिक मदद दिया जाए बल्कि करों में भी छूट दिया जाए। प्रयास यह भी है कि इसके चलते अधिक से अधिक लाभ छोटे षहरों और गांव के रहने वालों को हो।
भारत की कुल श्रम षक्ति का 2.3 फीसदी लोग ही विधिवत् प्रषिक्षण से युक्त हैं जबकि ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देषों में यह आंकड़ा 68 से 96 फीसदी तक है। इतना ही नहीं देष में कौषल विकास के सिर्फ 15 हजार ही संस्थान हैं जबकि चीन जैसे देषों में ऐसे संस्थानों की संख्या 5 लाख हैं। छोटा सा देष दक्षिण कोरिया स्किल डवलेपमेंट के एक लाख संस्थान रखता है। भारत में प्रत्येक वर्श एक हजार से बारह सौ स्टार्टअप षुरू हो रहे हैं जिसमें सबसे ज्यादा मैट्रो और टियर वन षहर हैं। देष के सबसे ज्यादा स्टार्टअप बंगलुरू में देखे जा सकते हैं। किसी भी देष को सामाजिक-आर्थिक विकास पाने के लिए कौषल विकास के साथ बुनियादी विकास कहीं अधिक जरूरी है। भारत जैसे विकासषील देष संतुलित विकास की अवधारणा में पूरी तरह इसलिए नहीं आ पाये क्योंकि यहां संरचनात्मक विकास कमजोर रहा है। नैसकाॅम स्टार्टअप के जरिए 2014 से 2020 तक 65 हजार नई नौकरियां आ रही हैं और संभावना है कि यह आंकड़ा ढ़ाई लाख तक पहुंचेगा। भारत के कई राज्य आर्थिक समस्याओं के चलते बेहतर स्टार्टअप नहीं ले पाए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस मुहिम से उन्हें भी प्रोत्साहन मिलेगा। जिस प्रकार भारत में अर्थव्यवस्था उभर रही है उसे देखते हुए अंदाजा लगाना सहज है कि रोजगार समेत कई सामाजिक समस्याओं का इसके चलते निस्तारण भी होगा। अन्त में कह सकते हैं कि विकास बदलती परिस्थितियों के अनुपात में नित नई योजनाओं, परियोजनाओं और कार्यक्रमों के चलते प्राप्त होता है। जाहिर है ‘स्टार्टअप इण्डिया, स्टैंडअप इण्डिया‘ बदलते दौर की बड़ी मांग है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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