Thursday, January 14, 2016

शरीफ के लिए कार्यवाही करना ज़रूरी था

इस आरोप को कि पाकिस्तान आतंक के मामले में हमेषा निर्जीव निर्णय लेता रहा है और इस दिषा में उसके द्वारा की जाने वाली कोषिषें भी कहीं अधिक अस्थाई प्रवृत्ति लिए रही हैं पर इस बार ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। पठानकोट के आतंकियों के आका पर पाकिस्तान द्वारा की गई कार्यवाही के चलते कुछ जीवट संकेत मिलने लगे हैं। पठानकोट में हमले के जिम्मेदार आतंकी संगठन जैष-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर समेत कई अन्य की गिरफ्तारी इस बात को पुख्ता करती है कि पाकिस्तान भारत समेत वैष्विक दबाव को अब और नहीं झेलना चाहता। वजह कुछ भी हो यदि यह बात पूरे प्रमाण के साथ साबित होती है कि आतंकियों पर पाक ने काबू पाने का मन बना लिया है तो हर हाल में इससे पाकिस्तान की छवि को ही सहूलियत मिलने वाली है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी के कूटनीतिक दांवपेंच को भी इस मामले में कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। बीते 25 दिसम्बर को जब लाहौर में आकस्मिक तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा हुई तब से लेकर अब तक कई प्रकार के कयास भारत-पाक को लेकर लगाये गये। बेषक मोदी वैष्विक पटल पर भारत को कूबत से भरा देष बनाने का काम कर रहे हैं पर पाकिस्तान से आतंक के मामले में जो अपेक्षा थी वह बीते डेढ़ वर्शों में तो पूरी नहीं हुई है। हांलाकि इसकी आंषिक पूर्ति इन दिनों होते हुए देखी जा सकती है। मोदी जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद को लेकर संजीदगी दिखाते रहे हैं। इन दोनों समस्याओं को लेकर वैष्विक मंच पर अपने मत रखते रहे हैं। हालांकि मन माफिक सफलता के लिए अभी और इंतजार करना है क्योंकि पाकिस्तान ने जो कदम उठाया है उसे लेकर अभी उसके पूरे मन को टटोलना सम्भव नहीं है।
इस सच से षायद ही कोई गुरेज करे कि मोदी ‘एक्षन मैन‘ की भूमिका में एक बड़ी पहचान बना चुके हैं। पाकिस्तान के साथ अच्छे मापदण्ड के तहत संवाद और सरोकार दोनों को पटरी पर लाना चाहते हैं जिसके फलस्वरूप करीब एक वर्श से सम्बंधों में आये अड़चन को लेकर काफी संजीदा भी रहे हैं। पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान कड़वाहट को दूर करने की पहल मोदी-षरीफ की दो मिनट की मुलाकात में भी देखी जा सकती है तत्पष्चात् विदेष मंत्री सुशमा स्वराज की दिसम्बर, 2015 में इस्लामाबाद यात्रा इसी कड़ी का एक भाग था। यात्रा इस संदेष के साथ कि संवाद और सम्बंध के मामले में भारत कहीं अधिक सकारात्मक है। सुशमा स्वराज की इस्लामाबाद वापसी का एक पखवाड़ा भी नहीं बीता था कि प्रधानमंत्री स्वयं आकस्मिक यात्रा के तहत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री षरीफ से मिलने लाहौर पहुंच गये। 25 दिसम्बर के बड़े दिन में छोटे वक्त की यह बड़ी मुलाकात जब तक रंग दिखाती तब तक एक सप्ताह के भीतर ही नव वर्श की दूसरी भोर को पठानकोट आतंकियों से लहुलुहान हो गया। इस घटना ने मोदी-षरीफ सम्बंधों को एक बार फिर बेपटरी करने की दिषा में ला खड़ा किया जबकि इसके पूर्व 15 जनवरी से सचिव स्तर की वार्ता होना तय हुआ था। जाहिर है कि आतंक की चोट खाया भारत पाकिस्तान से आयातित आतंकियों के मामले में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था। सबूत जुटाये गये और षरीफ को सौंपे गये साथ ही साफ कर दिया गया कि आतंकियों पर बिना एक्षन के भारत कोई रिएक्षन नहीं करेगा। दिन बीतते गये, उम्मीदें पसीजती गयी, भारत एकटक पाकिस्तान की कार्यवाही पर नजरें गड़ाये रखा। कई उधेड़-बुन के बाद आखिरकार पाकिस्तान ने मोदी की लाहौर यात्रा से बने ताने-बाने को आंषिक तौर पर ही सही जाया नहीं जाने दिया।
अजहर मसूद जैसे आतंकी की गिरफ्तारी को लेकर पाकिस्तान ने अधिकारिक पुश्टि नहीं की है। पाकिस्तान के खूफिया विभाग के वरिश्ठ अफसर का यह भी कहना है कि मसूद और उसके भाई अब्दुल रहमान रऊफ को दो दिन पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका था जो 30 दिन की प्रोटेक्टिव कस्टडी में रहेंगे। साफ है कि मामले से पूरी धुंध नहीं छंटी है और पाकिस्तान अगला कदम क्या उठाएगा इसे भी अभी इंतजार ही करना पड़ेगा। पाकिस्तान अपने एक विषेश जांच दल को पठानकोट भी भेजने की तैयारी कर रहा है। ऐसा करने के पीछे कहीं न कहीं भारत के साथ सहयोग प्रक्रिया को बढ़ाने की ही मंषा होगी पर यह भी अभी साफ नहीं है। इस मामले में भारत की ओर से भी अभी तक न कोई सूचना है और न ही कोई नई प्रतिक्रिया है। नवाज़ षरीफ की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय बैठक में आतंकियों पर की गयी कार्यवाही की समीक्षा तो हुई है पर नतीजे कितने भारत के पक्ष में होंगे ये भी आगे ही पता चलेगा। मोस्ट वांटेड अजहर मसूद की कहानी भी आतंक के कारोबार में इस तरह सराबोर है कि कोई भी दांतों तले अंगुली दबा ले। पिछले दो दषक से यह बादस्तूर आतंकी गतिविधियों को भी अंजाम दे रहा है। 1994 में कष्मीर में फर्जी पास्टपोर्ट के साथ गिरफ्तार हुआ था जबकि 1999 में कंधार से अपहरण किये गये विमान को छुड़ाने की एवज में चार आतंकियों को छोड़ा गया था जिसमें एक यह भी था। वर्श 2000 में जैष-ए-मोहम्मद नामक आतंकी संगठन बनाया और ठीक एक वर्श बाद 13 दिसम्बर, 2001 को भारत की संसद उड़ाने वाले कृत्य में यही मास्टर माइंड था। जब मसूद 2007 में भूमिगत हुआ तब जैष-ए-मोहम्मद की कमान इसके छोटे भाई अब्दुल रऊफ ने संभाली जिसे इन दिनों पठानकोट के ‘मास्टर माइंड‘ मसूद के साथ गिरफ्तारी की बात कही जा रही है।
बड़ा सवाल और गम्भीर सवाल यह है कि क्या इस बार पाकिस्तान वाकई में आतंक को लेकर गम्भीर हुआ है। पाकिस्तान कुछ करते हुए तो दिखाई दे रहा है पर करेगा कितना इस पर संदेह है। अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा ने वांषिंगटन में ‘स्टेट आॅफ द यूनियन‘ सम्बोधन के दौरान पाकिस्तान को आतंकियों की सुरक्षित पनाहगार बताया। बेषक ओबामा का ऐसा वक्तव्य राश्ट्रपति बनने के सात वर्श बाद आया हो पर सच यह है कि अमेरिका, पाकिस्तान की नस-नस को जानता है। पाकिस्तानी मीडिया इस तरह की खबरें भी छाप रहा है कि किस तरह नवाज़ षरीफ ने अपनी षर्तों पर भारत को दोस्ती करने के लिए मजबूर किया। पाकिस्तान में क्या चल रहा है और क्या गाया और बजाया जा रहा है इसकी पड़ताल भी बाद में और परिलक्षित होगी पर षरीफ भी जानते हैं कि मोदी ने लाहौर यात्रा करके कितना बड़ा राजनीतिक जोखिम लिया था। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण वक्त के साथ बदलते हैं और बदलने भी चाहिए। यदि इसी के तहत पाकिस्तान में बदलाव आ रहा है या आने की सुगबुगाहट है तो इसका पूरा लाभ उसी को होना है। भारत की सोच तो बस आतंकी हमले न हो और सीमा पर षान्ति हो इतनी भर ही है। रही बात लाभ की तो दुनिया को लाभ देने वाला भारत अगर अन्यों से लाभ ले भी लेता है तो ये उसकी कूबत में है। रक्षा मंत्री पार्रिकर से लेकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह किसी न किसी रूप में यह जता चुके थे कि पाकिस्तान द्वारा आतंकी कार्यवाही करना उसका जरूरी काज है अन्यथा कार्यवाही हमारी ओर से होगी। सेना प्रमुख सुहाग का भी संदर्भ है कि सेना हर कार्यवाही में सक्षम है जैसी तमाम बातें भारत के मन्तव्य का इषारा भी हैं साथ ही आतंक को लेकर उठ रहे वैष्विक कदम को देखते हुए षरीफ के लिए ऐसा करना निहायत जरूरी भी था।




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502


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