इस बार के गणतंत्र दिवस में फ्रांस के राश्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद मुख्य अतिथि हैं। यह बात गम्भीर होने के साथ महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि दोनों देष हाल ही में आतंकी घटना के षिकार रहे हैं। नवम्बर, 2015 में फ्रांस की राजधानी पेरिस और बीते 2 जनवरी को भारत के पठानकोट में हुए आतंकी हमले से दोनों देषों के मुखिया मोदी और ओलांद इस ताजे चोट से चोटिल हैं। जाहिर है इसे लेकर दोनों के मन में कई सवाल भी तैर रहे होंगे। फिलहाल इन दिनों भारत और फ्रांस एक ही तरह के खतरे से जूझ रहे हैं जैसा कि फ्रांसिसी राश्ट्रपति ने भी कहा है। देखा जाए तो देष का यह 67वां गणतंत्र दिवस है और सभी दिवसों की अपनी एक विषिश्टता रही है पर इस बार के दिवस पर आतंक के बादल कुछ ज्यादे ही काले हैं। ऐसा पठानकोट हमले के चलते देखा जा सकता है। अतिरिक्त संवेदनषीलता से युक्त गणतंत्र दिवस का यह परेड सुरक्षा की दृश्टि से भी कहीं अधिक कूबत वाला माना जायेगा। अभी भी कुछ आतंकी कभी भी, कहीं भी तबाही को लाने की फिराक में हैं जिसके धर-पकड़ में खुफिया तंत्र आज भी लगा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि जब फ्रांस पर आतंकी हमला हुआ था तभी मैनें तय कर लिया था कि फ्रांस के राश्ट्रपति को गणतंत्र दिवस की परेड में बुलायेंगे। इस वक्तव्य के दृश्टिगत यह परिप्रेक्ष्य उजागर होता है कि मोदी चुनौतियों को जवाब देने का अनुकूल अवसर किस भांति खोजते हैं। मोदी काल का यह दूसरा गणतंत्र दिवस है जबकि इसके पूर्व अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा को मुख्य अतिथि के तौर पर परेड में बुलाकर दुनिया को भारत-अमेरिका सम्बंधों की पकड़ से परिचय कराया था। गणतंत्र दिवस के दो दिन पूर्व बराक ओबामा का यह कहना कि पठानकोट हमला असभ्य आतंकवाद की मिसाल है यह हर हाल में जहां भारत को जहां बल देता है वहीं पाकिस्तान को एक बार फिर अपनी हद में रहने की नसीहत भी देता है।
ओबामा ने एक इंटरव्यू में कहा कि पाकिस्तान के पास यह दिखाने का मौका है कि वह आतंकी नेटवर्कों को अवैध ठहराने, बाधित करने और तबाह करने को लेकर गम्भीर हैं। स्पश्ट है कि दुनिया दो समस्याओं जिसमें एक जलवायु परिवर्तन तो दूसरे आतंकवाद से जूझ रही है जिसमें भारत समेत फ्रांस, इण्डोनेषिया तथा कुछ अन्य देष हाल फिलहाल में इसकी विभीशिका के षिकार हुए हैं। बराक ओबामा की पठानकोट पर आतंकी हमले को लेकर की गई टिप्पणी ऐसे मौके पर आई है जहां से पाकिस्तान पर और बड़ा दबाव बनाया जा सकता है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री षरीफ ने लंदन में कहा है कि हमें एक-दूसरे के मामले में दखल अंदाजी नहीं करनी चाहिए पठानकोट हमले की जांच अभी जारी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान पठानकोट को लेकर कष्मकष में है परन्तु यह भी तय है कि इस बार की घटना की गम्भीरता को वह समझ रहा है। पाकिस्तान जानता है कि इस बार आसानी से पीछा नहीं छूटने वाला इसलिए कार्रवाई करनी उसकी मजबूरी भी है। जाहिर है कि पाकिस्तान सीमा से संचालित होने वाले आतंकी स्कूलों को फलने-फूलने में पूरी मदद की है। आतंकियों के लिए सुरक्षित षरणस्थली बनने में भी इसने कोई कोर-कसर नहीं छोड़़ी है। भारत के साथ मिलकर दुनिया में सुरक्षा की भावना के मन्तव्य से एकाकीपन लिए ओलांद आतंक के मामले में कहीं अधिक प्राथमिकता देते हुए दिखाई दे रहे हैं। दोनों देषों के बीच कारोबार को लेकर भी एक राय बनी है। फ्रांस हर साल भारत में एक बिलियन डाॅलर का निवेष करेगा, स्मार्ट सिटी के काम में सहयोग करेगा मुख्यतः चण्डीगढ़, नागपुर, पुदुचेरी। इन तमाम समझौतों के बीच गणतंत्र दिवस एक सषक्त परिपाटी की ओर झुकता दिखाई दे रहा है। षिखर बिन्दु यह है कि यह दिवस भारत के लिए एक ऐसा राश्ट्रीय पर्व रहा है जहां से राश्ट्रीय नीतियों का भी उद्घोश होता है। नई पीढ़ी को इस पुरानी परम्परा से अवगत होने का भरपूर अवसर मिलता है। एक ऐसे संकल्प को पुर्नजीवित किया जाता है जो भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के दिनों में अंग्रेजों के विरूद्ध रावी नदी के तट पर संकल्पित हुई थी। यह संदर्भ 26 जनवरी, 1930 का है जिसकी महत्ता और प्रासंगिकता बरस-दर-बरस बढ़त लिये हुए है।
67 वर्शीय गणतंत्र दिवस के अपने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य भी हैं। 26 जनवरी, 1950 को पहला गणतंत्र दिवस राजपथ पर नहीं बल्कि इर्विन स्टेडियम में हुआ था जो आज का नेषनल स्टेडियम है। पांच गणतंत्र दिवस का समारोह कभी इर्विन स्टेडियम, कभी किंग्सवे कैंप तो कभी रामलीला मैदान में आयोजित होता रहा। वर्श 1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस राजपथ पर पहुंचा जो बादस्तूर आज भी नियमित रूप से बना हुआ है। आठ किलोमीटर लम्बी यह परेड रायसिना हिल से षुरू होकर राजपथ, इण्डिया गेट से गुजरते हुए लालकिला तक देखी जा सकती है। इसी दिन भारत का संविधान पूर्ण रूप से लागू हुआ था और देष एक गणतंत्रात्मक की संज्ञा में आया था। वर्श 1970 के बाद 21 तोपों की सलामी तय की गई जो आज भी कायम है। 1950 के गणतंत्र दिवस में इण्डोनेषिया के राश्ट्रपति सुकर्णों से लेकर अब तक के परेड के अवसर पर किसी-न-किसी देष का मुखिया मुख्य अतिथि के तौर पर इसका गवाह बनता रहा है। पिछले वर्श अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा तो इस वर्श फ्रांसिसी राश्ट्रपति 26 जनवरी की परेड का हिस्सा हैं। पड़ताल और परिप्रेक्ष्य इस बात को भी इंगित करते हैं कि अच्छे अवसर बुरी नजरों के षिकार रहे हैं। बीते दो-ढ़ाई दषकों से यह दिवस भी इससे परे नहीं रहा है और इस धुंध के बीच तमाम सुरक्षा व्यवस्था के साथ इसे सफल बनाना अक्सर चुनौती रहा है। एक सच्चाई यह भी है कि एक सुरक्षित देष होने के लिए मजबूत अर्थव्यवस्था का होना आवष्यक है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर आये अतिथियों से कई आर्थिक और व्यावसायिक स्तर पर सम्बंध का निरूपण भी होता रहा है। दूसरे षब्दों में कहा जाए तो ऐसे दिवस न केवल संविधान लागू होने तथा स्वतंत्रता के संकल्पित भाव को दोहराने का अवसर देते हैं बल्कि दूसरे देषों से सम्बंधों को प्रागाढ़ करने के साथ आर्थिक नियोजन के काम भी आते रहे हैं।
किसी देष का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढांचा निर्धारित करता है और उसी ढांचे पर देष आगे बढ़ता है। गणतंत्र दिवस उसी ढांचे को याद करने का एक राश्ट्रीय पर्व है। संविधान स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के साथ राश्ट्र सम्पदा भी होते हैं जिसमें जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सकने और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करने की कूबत निहित है। भारत का संविधान किसी क्रान्ति का परिणाम नहीं बल्कि यह क्रमिक विकास की उपज है यही कारण है कि यह अतिरिक्त स्थायित्व लिए हुए है। प्रत्येक गणतंत्र दिवस इसके इन्हीं सब प्रारूपों से एक बार पुनः परिचित होने का अवसर देते हैं। लोकतांत्रिक सरकार और निरपेक्ष न्यायपालिका को बनाये रखने में संविधान मील का पत्थर साबित हुआ है। निःसंदेह गणतंत्र की परेड में बहुत कुछ देखने को मिलता रहा है और इसका हर अवसर देष के लिए भी बेहतरीन रहा है। इन सबके बावजूद विकासात्मक फलक पर खड़े भारत के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं। आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय के अलावा राश्ट्रीय सुरक्षा के प्रष्न भी हैं। इन तमाम संदर्भों के बीच एक सकारात्मक सियासत बनाये रखने की चुनौती भी देखी जा सकती है। फिलहाल आतंक के इस दौर से जूझते हुए गणतंत्र को सफल मुकाम देना भी बड़ी सफलता है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ओबामा ने एक इंटरव्यू में कहा कि पाकिस्तान के पास यह दिखाने का मौका है कि वह आतंकी नेटवर्कों को अवैध ठहराने, बाधित करने और तबाह करने को लेकर गम्भीर हैं। स्पश्ट है कि दुनिया दो समस्याओं जिसमें एक जलवायु परिवर्तन तो दूसरे आतंकवाद से जूझ रही है जिसमें भारत समेत फ्रांस, इण्डोनेषिया तथा कुछ अन्य देष हाल फिलहाल में इसकी विभीशिका के षिकार हुए हैं। बराक ओबामा की पठानकोट पर आतंकी हमले को लेकर की गई टिप्पणी ऐसे मौके पर आई है जहां से पाकिस्तान पर और बड़ा दबाव बनाया जा सकता है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री षरीफ ने लंदन में कहा है कि हमें एक-दूसरे के मामले में दखल अंदाजी नहीं करनी चाहिए पठानकोट हमले की जांच अभी जारी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान पठानकोट को लेकर कष्मकष में है परन्तु यह भी तय है कि इस बार की घटना की गम्भीरता को वह समझ रहा है। पाकिस्तान जानता है कि इस बार आसानी से पीछा नहीं छूटने वाला इसलिए कार्रवाई करनी उसकी मजबूरी भी है। जाहिर है कि पाकिस्तान सीमा से संचालित होने वाले आतंकी स्कूलों को फलने-फूलने में पूरी मदद की है। आतंकियों के लिए सुरक्षित षरणस्थली बनने में भी इसने कोई कोर-कसर नहीं छोड़़ी है। भारत के साथ मिलकर दुनिया में सुरक्षा की भावना के मन्तव्य से एकाकीपन लिए ओलांद आतंक के मामले में कहीं अधिक प्राथमिकता देते हुए दिखाई दे रहे हैं। दोनों देषों के बीच कारोबार को लेकर भी एक राय बनी है। फ्रांस हर साल भारत में एक बिलियन डाॅलर का निवेष करेगा, स्मार्ट सिटी के काम में सहयोग करेगा मुख्यतः चण्डीगढ़, नागपुर, पुदुचेरी। इन तमाम समझौतों के बीच गणतंत्र दिवस एक सषक्त परिपाटी की ओर झुकता दिखाई दे रहा है। षिखर बिन्दु यह है कि यह दिवस भारत के लिए एक ऐसा राश्ट्रीय पर्व रहा है जहां से राश्ट्रीय नीतियों का भी उद्घोश होता है। नई पीढ़ी को इस पुरानी परम्परा से अवगत होने का भरपूर अवसर मिलता है। एक ऐसे संकल्प को पुर्नजीवित किया जाता है जो भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के दिनों में अंग्रेजों के विरूद्ध रावी नदी के तट पर संकल्पित हुई थी। यह संदर्भ 26 जनवरी, 1930 का है जिसकी महत्ता और प्रासंगिकता बरस-दर-बरस बढ़त लिये हुए है।
67 वर्शीय गणतंत्र दिवस के अपने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य भी हैं। 26 जनवरी, 1950 को पहला गणतंत्र दिवस राजपथ पर नहीं बल्कि इर्विन स्टेडियम में हुआ था जो आज का नेषनल स्टेडियम है। पांच गणतंत्र दिवस का समारोह कभी इर्विन स्टेडियम, कभी किंग्सवे कैंप तो कभी रामलीला मैदान में आयोजित होता रहा। वर्श 1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस राजपथ पर पहुंचा जो बादस्तूर आज भी नियमित रूप से बना हुआ है। आठ किलोमीटर लम्बी यह परेड रायसिना हिल से षुरू होकर राजपथ, इण्डिया गेट से गुजरते हुए लालकिला तक देखी जा सकती है। इसी दिन भारत का संविधान पूर्ण रूप से लागू हुआ था और देष एक गणतंत्रात्मक की संज्ञा में आया था। वर्श 1970 के बाद 21 तोपों की सलामी तय की गई जो आज भी कायम है। 1950 के गणतंत्र दिवस में इण्डोनेषिया के राश्ट्रपति सुकर्णों से लेकर अब तक के परेड के अवसर पर किसी-न-किसी देष का मुखिया मुख्य अतिथि के तौर पर इसका गवाह बनता रहा है। पिछले वर्श अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा तो इस वर्श फ्रांसिसी राश्ट्रपति 26 जनवरी की परेड का हिस्सा हैं। पड़ताल और परिप्रेक्ष्य इस बात को भी इंगित करते हैं कि अच्छे अवसर बुरी नजरों के षिकार रहे हैं। बीते दो-ढ़ाई दषकों से यह दिवस भी इससे परे नहीं रहा है और इस धुंध के बीच तमाम सुरक्षा व्यवस्था के साथ इसे सफल बनाना अक्सर चुनौती रहा है। एक सच्चाई यह भी है कि एक सुरक्षित देष होने के लिए मजबूत अर्थव्यवस्था का होना आवष्यक है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर आये अतिथियों से कई आर्थिक और व्यावसायिक स्तर पर सम्बंध का निरूपण भी होता रहा है। दूसरे षब्दों में कहा जाए तो ऐसे दिवस न केवल संविधान लागू होने तथा स्वतंत्रता के संकल्पित भाव को दोहराने का अवसर देते हैं बल्कि दूसरे देषों से सम्बंधों को प्रागाढ़ करने के साथ आर्थिक नियोजन के काम भी आते रहे हैं।
किसी देष का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढांचा निर्धारित करता है और उसी ढांचे पर देष आगे बढ़ता है। गणतंत्र दिवस उसी ढांचे को याद करने का एक राश्ट्रीय पर्व है। संविधान स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के साथ राश्ट्र सम्पदा भी होते हैं जिसमें जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सकने और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करने की कूबत निहित है। भारत का संविधान किसी क्रान्ति का परिणाम नहीं बल्कि यह क्रमिक विकास की उपज है यही कारण है कि यह अतिरिक्त स्थायित्व लिए हुए है। प्रत्येक गणतंत्र दिवस इसके इन्हीं सब प्रारूपों से एक बार पुनः परिचित होने का अवसर देते हैं। लोकतांत्रिक सरकार और निरपेक्ष न्यायपालिका को बनाये रखने में संविधान मील का पत्थर साबित हुआ है। निःसंदेह गणतंत्र की परेड में बहुत कुछ देखने को मिलता रहा है और इसका हर अवसर देष के लिए भी बेहतरीन रहा है। इन सबके बावजूद विकासात्मक फलक पर खड़े भारत के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं। आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय के अलावा राश्ट्रीय सुरक्षा के प्रष्न भी हैं। इन तमाम संदर्भों के बीच एक सकारात्मक सियासत बनाये रखने की चुनौती भी देखी जा सकती है। फिलहाल आतंक के इस दौर से जूझते हुए गणतंत्र को सफल मुकाम देना भी बड़ी सफलता है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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