Sunday, January 31, 2016

हम भारत के लोग का गणतंत्र और संविधान

स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा यदि देष के सामने कोई मजबूत चुनौती थी तो वह अच्छे संविधान के निर्माण की थी जिसे संविधान सभा ने प्रजातान्त्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए 2 वर्श, 11 महीने और 18 दिन में एक भव्य संविधान तैयार कर दिया जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। हालांकि संविधान 26 नवम्बर, 1949 में ही बनकर तैयार हो चुका था पर इसे लागू करने के लिए एक ऐतिहासिक तिथि की प्रतीक्षा थी जिसे आने में 2 महीने का वक्त था और वह तिथि 26 जनवरी थी। दरअसल 31 दिसम्बर, 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेषन में यह घोशणा की गयी कि 26 जनवरी, 1930 को सभी भारतीय पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनायें। जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में उसी दिन पूर्ण स्वराज लेकर रहेंगे का संकल्प लिया गया और आजादी का पताका लहराया। देखा जाए तो 26 जनवरी, 1950 से षुरू होने वाला गणतंत्र दिवस एक राश्ट्रीय पर्व के तौर पर ही नहीं राश्ट्र के प्रति समर्पित मर्म को भी अवसर देता रहा है। निहित मापदण्डों में देखें तो गणतंत्र दिवस इस बात को भी परिभाशित और विष्लेशित करता है कि संविधान हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है? दुनिया का सबसे बड़ा लिखित भारतीय संविधान केवल राजव्यवस्था संचालित करने की एक कानूनी पुस्तक ही नहीं बल्कि सभी लोकतांत्रिक व्यवस्था का पथ प्रदर्षक है। नई पीढ़ी को यह पता लगना चाहिए कि गणतंत्र का क्या महत्व है? 26 जनवरी का महत्व सिर्फ इतना ही नहीं है कि इस दिन संविधान प्रभावी हुआ था बल्कि इस दिन भारत को वैष्विक पटल पर बहुत कुछ प्रदर्षित करने का अवसर भी मिलता है साथ ही सभी नागरिकों को नये आयामों के साथ देष के प्रति समर्पण दिखाने का अवसर मिलता है। अब तक 67 बार हो चुका गणतंत्र दिवस कई सकारात्मक परिवर्तनों के साथ अनवरत् और अनन्त की ओर अग्रसर हैं। हालांकि देष में पनपी समस्याओं को लेकर भी निरन्तर यह सवाल उठते रहे हैं कि अभी भी देष सामाजिक समता और न्याय के मामले में पूरी कूबत विकसित नहीं कर पाया है। गरीबी से लेकर कई सामाजिक अत्याचार अभी भी यहां व्याप्त हैं पर इस बात को भी समझने की जरूरत है कि इससे निपटने के लिए बहुआयामी प्रयास जारी हैं। यह बात सही है कि गणतंत्र जैसे राश्ट्रीय पर्व का पूरा अर्थ तभी निकल पायेगा जब गांधी की उस अवधारणा को बल मिलेगा जिसमें उन्होंने सभी की उन्नति और विकास को लेकर सर्वोदय का सपना देखा था।
गणतंत्र के इस अवसर पर संविधान की बनावट और उसकी रूपरेखा पर विवेचनात्मक पहलू उभारना आवष्यक प्रतीत हो रहा है। देखा जाए तो संविधान सभा में लोकतंत्र की बड़ी आहट छुपी थी और यह एक ऐसा मंच था जहां से भारत के आगे का सफर तय होना था। दृश्टिकोण और परिप्रेक्ष्य यह भी है कि संविधान निर्मात्री सभा की 166 बैठकें हुईं। कई मुद्दे चाहे भारतीय जनता की सम्प्रभुता हो, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की हो, समता की गारंटी हो, धर्म की स्वतंत्रता हो या फिर अल्पसंख्यकों और पिछड़ों के लिए विषेश रक्षोपाय की परिकल्पना ही क्यों न हो सभी पर एकजुट ताकत झोंकी गयी। किसी भी देष का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढांचा निर्धारित करता है जो स्वयं कुछ बुनियादी नियमों का एक ऐसा समूह होता है जिससे समाज के सदस्यों के बीच एक न्यूनतम समन्वय और विष्वास कायम रहे। संविधान यह स्पश्ट करता है कि समाज में निर्णय लेने की षक्ति किसके पास होगी और सरकार का गठन कैसे होगा। इसके इतिहास की पड़ताल करें तो यह किसी क्रान्ति का परिणाम नहीं है वरन् एक क्रमिक राजनीतिक विकास की उपज है। भारत में ब्रिटिष षासन से मुक्ति एक लम्बी राजनीतिक प्रक्रिया के अन्तर्गत आपसी समझौते के आधार पर मिली थी और देष का संविधान भी आपसी समन्वय का ही नतीजा है। संविधान का पहला पेज प्रस्तावना गांधीवादी विचारधारा का प्रतीक है। सम्पूर्ण प्रभुत्त्वसम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य जैसे षब्द गांधी दर्षन के परिप्रेक्ष्य लिए हुए हैं। गांधी न्यूनतम षासन के पक्षधर थे और इस विचार से संविधान सभा अनभिज्ञ नहीं थी। इतना ही नहीं संविधान सभा द्वारा इस बात पर भी पूरजोर कोषिष की गयी कि विशमता, अस्पृष्यता, षोशण आदि का नामोनिषान न रहे पर यह कितना सही है इसका विषदीकरण आज भी किया जाए तो अनुपात घटा हुआ ही मिलेगा। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज का लोकतंत्र उस समरसता से युक्त प्रतीत नहीं होता जैसा कि सामाजिक-सांस्कृतिक अन्तर के बावजूद संविधान निर्माताओं से भरी सभा कहीं अधिक लोकतांत्रिक झुकाव लिए हुए थी और सही मायने में गणतंत्र के गढ़न से भी यह ओत-प्रोत था।
दो शब्द निष्कर्ष के
संक्षेप में कहें तो जहां गणतंत्र हमारी बड़ी विरासत और ताकत है तो वहीं संविधान हमारी प्रतिबद्धता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का साझा समझ है वह जनोन्मुख, पारदर्षी और उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करता है पर यह तभी कायम रहेगा जब लोकतंत्र में चुनी हुई सरकारें और सरकार का विरोध करने वाला विपक्ष असली कसौटी को समझेंगे। संविधान सरकार गठित करने का उपाय देता है, अधिकार देता है और दायित्व को भी बताता है पर देखा गया है कि सत्ता की मखमली चटाई पर चलने वाले सत्ताधारक भी संविधान के साथ रूखा व्यवहार कर देते हैं। जिसके पास सत्ता नहीं है वह किसी तरह इसे पाना चाहता है। इस बात से अनभिज्ञ होते हुए कि संविधान क्या सोचता है, क्या चाहता है और क्या रास्ता अख्तियार करना चाहता है पर इस सच को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि संविधान अपनी कसौटी पर कसता सभी को है।
तब से अब गणतंत्र
पड़ताल से पता चलता है कि 26 जनवरी, 1950 का गणतंत्र दिवस राजपथ पर नहीं बल्कि इर्विन स्टेडियम से षुरू हुआ था जो आज का नेषनल स्टेडियम है। प्रथम राश्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने इर्विन स्टेडियम में झण्डा फहराकर परेड की सलामी ली।  1954 तक यह समारोह कभी इर्विन स्टेडियम, कभी किंग्सवे कैंप तो कभी रामलीला मैदान में आयोजित होता रहा। वर्श 1955 से पहली बार गणतंत्र दिवस का परेड राजपथ पहंुचा तब से आज तक यह नियमित रूप से जारी है। आठ किलोमीटर लम्बी गणतंत्र परेड रायसीना हिल से षुरू होती है और राजपथ इण्डिया गेट से होते हुए लालकिला तक पहुंचती है। तब लालकिले के दीवान-ए-आम में इस अवसर पर मुषायरे की परम्परा षुरू हुई। 1959 में हेलीकाॅप्टर से फूल बरसाने की प्रथा षुरू हुई जबकि 1970 के बाद से 21 तोपों की सलामी का चलन प्रारम्भ हुआ।
गणतंत्र के असल मायने
    15 अगस्त, 1947 की स्वाधीनता के बाद से देष कई बदलावों से गुजरा है और 26 जनवरी, 1950 के गणतंत्रात्मक स्वरूप को धारण करते हुए कई विकास को भी छुआ है। सवा अरब का देष भारत और उसकी पूरी होती उम्मीदों में इस गणतंत्र की भूमिका को देखा-परखा जा सकता है। काल और परिप्रेक्ष्य में दृश्टिकोण परिवर्तित हुए हैं, कई संषोधन और सुधार भी हुए हैं पर गणतंत्र के मायने हर परिस्थितियों कहीं अधिक भारयुक्त बना रहा। पहले गणतंत्र के अवसर पर इण्डोनेषिया के राश्ट्रपति सुकार्णों की उपस्थिति तो वर्तमान गणतंत्र की परेड में फ्रांसीसी राश्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद गवाह बने। पिछले वर्श अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा भी इसमें हिस्सेदारी दे चुके हैं। गणतंत्र महज एक रस्म अदायगी नहीं है इसके भरपूर मायने को देखें तो इसमें देष की आन, बान, षान के साथ सामाजिक समरसता और देष प्रेम की अवधारणा इंगित होती है। वैष्विक पटल पर इस दिन भारत की जहां गूंज रहती है वहीं आये हुए विदेषी मेहमान से प्रगाढ़ता के साथ व्यावसायिक समझौते भी होते हैं। देष की झलक और झांकियों के साथ सबके मन में तिरंगे और राश्ट्रगान के प्रति एक नये किस्म की सोच भी विकसित होती है।
इस बार के गणतंत्र में क्या अलग रहा
    आतंक के साये में सिमटा इस बार का गणतंत्र कई मायनों में आतंक को मुंह तोड़ जवाब देने वाला भी सिद्ध हुआ है क्योंकि इस गणतंत्र के दौरान भी आतंकी गड़बड़ी की फिराक में थे पर चैक-चैबंद सुरक्षा व्यवस्था के चलते उनके मनसूबे धरे के धरे रह गये। इसकी एक खासियत यह भी है कि इस बार परेड में मुख्य अतिथि के तौर पर षामिल फ्रांसीसी राश्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद स्वयं दो माह पहले पेरिस में आतंकी हमला झेल चुके हैं जबकि बीते 2 जनवरी को भारत भी पठानकोट में आतंकियों से लहुलुहान हो चुका था। ऐसे में ओलांद का गणतंत्र परेड में होना कहीं बेहतर परिप्रेक्ष्य कहा जायेगा। इतना ही नहीं भारतीय सेना के साथ फ्रांसीसी सेना का कदमताल करना भी अब तक के गणतंत्र के सबसे अलग बात रही। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था कि जब पेरिस में आतंकी हमला हुआ था तभी मैंने तय किया कि इस बार मुख्य अतिथि तो ओलांद ही होंगे। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आतंक को लेकर मोदी के इरादे तुलनात्मक कहीं अधिक सषक्त दिखाई दिये।
आर्थिक लाभ भी देता है गणतंत्र
प्रत्येक गणतंत्र दिवस में केवल झलकियां और झांकियां ही नहीं होती हैं बल्कि इसके आर्थिक मतलब भी देखे जा सकते हैं। बीते 2015 के गणतंत्र में अमेरिकी राश्ट्रपति ओबामा के साथ हैदराबाद हाऊस में प्रधानमंत्री मोदी ने कई उपजाऊ समझौते किए थे। इसी तर्ज पर फ्रांसीसी राश्ट्रपति ओलांद से भी कई आर्थिक मुनाफे वाले समझौते देखे जा सकते हैं। यह व्यावहारिक है कि भारत राश्ट्रीय पर्व के इस अवसर पर कई उम्मीदों को भी भुनाने की फिराक में रहता है। इसके अलावा एक साथ आतंक से लड़ने की एकजुटता दिखाना और यूरोपीय देषों में भारत की फ्रांस के साथ धमक होना आदि भविश्य के आर्थिक मुनाफे में तब्दील होने वाले लक्षण हैं।
भारत और फ्रांस के बीच 16 समझौते
    चण्ड़ीगढ़ में भारत और फ्रांस के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के 16 करार किये गये जिनमें महिन्द्रा समूह और यूरोपीय विमान कम्पनी एयरबस समूह के बीच भारत में हेलीकाॅप्टर विनिर्माण और स्मार्ट सिटी से जुड़े तीन समझौते भी हैं। प्रधानमंत्री मोदी और ओलांद के बीच षहरी विकास, षहरी परिवहन, जल, कचरा षोधन और सौर उर्जा जैसे समझौते भी इसमें षामिल हैं। फ्रांस की परमाणु और वैकल्पिक उर्जा एजेन्सी सीआईए और क्रांप्टन ग्रीव्ज के बीच हस्ताक्षर हुए। फ्रांस की नौ कम्पनियों ने सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के साथ भी समझौते किये। फ्रांस हर साल भारत में एक बिलियन डाॅलर का निवेष करेगा, स्मार्ट सिटी के काम में सहयोग करेगा मुख्यतः चण्डीगढ़, नागपुर, पुदुचेरी। इसके अलावा भी दोनों देषों ने व्यावसायिक तौर पर कई क्षेत्रों में एकजुटता दिखाने का प्रयास किया है।



लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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