Tuesday, January 26, 2016

नागरिकता की बाट जोह रहे शरणार्थी

पाकिस्तान के गायक अदनान सामी को नव वर्श के साथ हिन्दुस्तानी नागरिकता का उपहार मिलना उन लोगों के लिए भी आशा की किरण रही होगी जो बरसों से इसकी प्रतीक्षा में है। हांलाकि अदनान सामी की नागरिकता में भी एक दशक की प्रतीक्षा निहित है साथ ही कई मानकों में अदनान सामी आम जन की भांति नहीं रहे हैं इसे भी नागरिकता प्राप्ति की वजह में जाना-समझा जाए तो वाजिब होगा। नागरिकता लोकतंत्रात्मक राजव्यवस्था को कानूनी स्वरूप प्रदान करती है। नागरिकता उस देश के निवासियों को कतिपय अधिकार, कत्र्तव्य और विषेशाधिकार प्रदान करती हैं जो विदेषियों को प्राप्त नहीं हैं पर बीते कई वर्शों से भारत में बेहिसाब षरणार्थी रह रहे हैं जो इस उम्मीद में हैं कि देर-सवेर उन्हें भी भारत अपनायेगा। पिछले पांच सालों के आंकड़ों को देखें तो वर्श 2011 में 435 लोगों को नागरिकता मिली थी जबकि 2012 में 637 और 2013 में यही आंकड़ा 1026 का था और वर्श 2014 एवं 2015 में क्रमषः 1482 एवं 998 षरणार्थी भारत की नागरिकता प्राप्त करने में सफल रहे। संयुक्त राश्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि 2014 में भारत में षरण चाहने वालों की संख्या 2 लाख थी इनमें पाकिस्तान और बंग्लादेष के अलावा अफगानिस्तान, ईराक, म्यांमार और अफ्रीकी देषों के लोग भी षामिल हैं जिसमें ज्यादातर अफगानिस्तान से आने वाले सिक्खों और हिन्दुओं की संख्या है। आंकड़े यह स्पश्ट करते हैं कि भारत की नागरिकता की चाह रखने वालों में पड़ोसी पाकिस्तान और बंग्लादेष के ही नहीं है वरन् अन्य महाद्वीपों के देष भी इसमें षामिल हैं। इसे देखते हुए यह विमर्ष पनपता है कि बड़ी संख्या में अलग-अलग देषों के बाषिन्दों का भारत में रचने-बसने की चाह रखने के पीछे असल वजह क्या है?
सरकार ने हिन्दू षरणार्थियों को भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 की विभिन्न धाराओं के तहत भारत की नागरिकता प्रदान करने की बात कही है पर यह कितना लागू होगा कहना मुष्किल है। अक्सर पनाह मांगने वालों को देष ने अपनाया है बावजूद इसके भारत में अवैध अप्रवासी भारी मात्रा में रह रहे हैं। गृह मंत्रालय के एक पुरानी 2012 की रिपोर्ट से पता चलता है कि ऐसे लोगों की संख्या 71 हजार से अधिक है। ज्यादातर इसमें वे हैं जिनका वीजा खत्म हो गया पर देष से वापस नहीं गये। इसमें भी बंग्लादेष और अफगानिस्तान के ही लोग अधिक हैं। साल 2009 और 2011 के बीच भारत ने करीब 2 हजार से अधिक बंग्लादेषियों को देष से निकाला भी था पर यह समस्या इतनी आसानी से खत्म होने वाली नहीं है। यह भी माना जा रहा है कि मोदी सरकार के बनने के बाद से भारत में पाकिस्तानी और बंग्लादेषी हिन्दूओं को मिलने वाली नागरिकता में लगातार कमी आ रही है। नागरिकता की इच्छा रखने वालों की स्थिति पर भी नजर डाली जाये तो पता चलता है कि पाकिस्तान में हिन्दू बरसों से दोयम स्तर की जिन्दगी जी रहे हैं। सिंध से दिल्ली आये कई हिन्दू परिवार दिल्ली में खुले आकाष के नीचे षरण लिए हुए हैं जो मोदी-मोदी करते रहते हैं इस उम्मीद में कि उन्हें सरकार की ओर से कोई मदद मिलेगी। जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और जयपुर जैसे षहरों में तकरीबन 4 सौ पाकिस्तानी हिन्दू षरणार्थियों की बस्तियां हैं। कुछ ऐसी ही बस्तियां पष्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में देखे जा सकते हैं। भाजपा सरकार भले ही इन लोगों का नागरिकता देने की वकालत करती आई हो लेकिन व्यवहार में ऐसा बहुत कम हुआ है।
हालांकि भारत सरकार पाकिस्तान से आये हिन्दू षरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का विचार करती रही परन्तु सरकार का यह भी कहना है कि ऐसा करने के लिए विचार राज्य के माध्यम से आयें। देखा जाए तो पाकिस्तान और बंग्लादेष समेत कुछ देषों में अल्पसंख्यक वर्ग वहां की पारिस्थितिकी के अनुपात में बरसों के बावजूद भी बेहतर नहीं हो पाये। ऐसे में दषकों के भेदभाव के चलते नागरिकों को पलायन का षिकार होना पड़ा। यहां पर हिन्दू अल्पसंख्यकों पर जुर्म ढ़ाए गये, भेदभाव किया गया और नागरिकों की श्रेणी में कभी भी पहली पंक्ति नहीं मिली। यहां तक कि बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने में वे सक्षम नहीं रहे। सरकारी सेवाएं हों, लोक उद्यम हों, योजनाएं एवं परियोजनाएं हो सभी में भेदभाव के षिकार होते रहे। कहीं-कहीं तो सामाजिक अन्याय के साथ-साथ जीवन सुरक्षा भी खतरे में रही है। इस सच से किसी को गुरेज नहीं होगा कि 1947 की आजादी के बाद भारत के तमाम अल्पसंख्यकों समेत मुसलमानों को जो सुविधाएं देष में मिली वैसी ही सुविधाएं पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दूओं ने षायद ही प्राप्त की हो। हांलाकि यह तुलना उतना समुचित नहीं है पर देष में हकदारी को लेकर वाजिब स्थान उन्हें मिलना चाहिए था। बरसों से कई समस्याओं से जूझते और मानवता के तार-तार होने के चलते इनका रूख उन्हीं देषों की ओर हुआ जहां से आषा और उम्मीद बंधी थी। इसी का नतीजा है कि आज भारत में ऐसे षरणार्थियों की संख्या में बेतहाषा वृद्धि हो रही है। भारत को लेकर उक्त देषों के हिन्दूओं का रूख हमेषा से चाहत भरा रहा है पर कई कानूनी कठिनाईयों और नियमों-विनियमों के चलते इनके लिए सरल मार्ग बना पाना भी आसान नहीं रहा। मई, 2014 में मोदी सरकार के आने से इनकी उम्मीदें और बढ़ गयी पर सरकार की भी अपनी मजबूरियां हैं। कई यह भी कह सकते हैं कि पाकिस्तानी मुसलमान अदनान सामी को इसलिए नागरिकता दी गयी क्योंकि उनकी पहुंच थी और देष को इनसे आर्थिक लाभ हो सकता है पर मोदी उन हिन्दू षरणार्थियों के बारे में क्यों सोचें जिनसे कोई फायदा नहीं है।
गृह मंत्रालय के एक बयान को देखें जिसमें केन्द्र सरकार ने 31 दिसम्बर, 2014 या उससे पहले भारत में दाखिल हुए पाकिस्तानी और बंग्लादेषी नागरिकों को बिना उचित दस्तावेज के यहां रूकने से सम्बन्धित एक निर्णय लिया है। इससे यह बात तो साफ होती है कि सरकार इनके मामले में कुछ उदार रवैया दिखा रही है पर यह स्पश्ट नहीं होता कि इन्हें नागरिकता भी मिलेगी। इन देषों के हिन्दू, सिक्ख, ईसाई, जैन, पारसी, बौद्ध समुदाय के लोगों ने धार्मिक अत्याचार के चलते भी भारत में षरण लिए हैं। हालांकि षरणार्थियों का यह मुद्दा केन्द्र सरकार के समक्ष विचाराधीन है। अवसर और परिस्थिति का देखते हुए सरकार कोई निर्णय समय के साथ जरूर लेगी पर क्या लेगी कहना कठिन है। भारतीय संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से 11 के तहत नागरिकता से सम्बन्धित पूरे प्रावधान को देखा जा सकता है। नागरिकता अधिनियम, 1955 तत्पष्चात् 1986 और 1992 में संषोधन करते हुए इसे और सषक्त बनाने का प्रयास किया जाता रहा है। वर्श 2003 में दोहरी नागरिकता को लेकर भी प्रावधान लाया गया। बेषक भारत सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाला देष है परन्तु जनसंख्या विस्फोट के चलते अतिरिक्त दबाव में भी है। भारत विभाजन के 69 साल के बाद भी भारतीय उपमहाद्वीप के कई घर-परिवार आज भी यहां-वहां धक्के खा रहे हैं जो कहीं से उचित करार नहीं दिया जा सकता।

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