Thursday, January 14, 2016

फिलहाल सरकार मोड में दिखी घाटी

सियासत और सत्ता के धु्रवीकरण में व्यक्ति विषेश का बड़ा महत्व होता है और यह तब अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब दो अलग-अलग विचारधारा के दल आपस में एक होकर सरकार चलाने की मंषा रखते हैं। जम्मू-कष्मीर में पीडीपी और भाजपा गठबंधन की पिछले दस माह से सरकार चल रही थी जो बीते 7 जनवरी को मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के असमय निधन के चलते ठप हो गयी। तभी से यहां की सियासत भी कुछ हद तक सुर्खियों में रही और इसी बीच यह सस्पेंस भी स्थान लेने लगा कि दोनों दलों के बीच पूर्ववत् षर्तों के आधार पर गठबंधन को आगे बढ़ाना सम्भव होगा या नहीं। फिलहाल बीते मंगलवार को यह अटकलें खारिज हो गईं और अब यह तय हो गया कि दोनों दल गठबंधन को जारी रखेंगे और सरकार निर्विवाद रूप से आगे बढ़ेगी। इन तमाम स्वीकार्य पक्षों के बावजूद बीते एक सप्ताह में जो प्रष्न उभरे उसमें एक यह भी है कि क्या भाजपा जो मात्र तीन सीटों से पीडीपी से पीछे है फिलहाल मुफ्ती मोहम्मद सईद की सीट हटाने के बाद यह आंकड़ा दो का है वो पूर्ववत् षर्तों के अनुरूप ही मुख्यमंत्री की दावेदार महबूबा मुफ्ती का साथ देगी। अक्सर सियासत में गठबंधन अपना कद अख्तियार करता है साथ ही व्यापक पैमाने पर सौदेबाजी भी होती है। मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ जो विचारधारा भाजपा की थी क्या वैसी ही महबूबा मुफ्ती के साथ रहेगी? जाहिर है कि भाजपा भी इस पेषोपेष में होगी पर विकल्प अत्यंत सीमित हैं। ऐसे में कद के बजाय सरकार को तवज्जो देना भाजपा की मजबूरी कही जायेगी।
फिलहाल नई सरकार के गठन की कवायद अभी पूरी नहीं हुई है। संकेत मिला है कि एक सप्ताह के षोक के बाद कभी भी षपथ हो सकता है जिसका समय बीत चुका है। बीते दिनों को देखें तो सईद के असमय निधन से जो सरकार में खालीपन आया उसकी भरपाई तत्काल न हो पाने के चलते 9 जनवरी से जम्मू-कष्मीर एक बार फिर राज्यपाल षासन के अधीन आ गया। राज्यपाल एन.एन. बोहरा की सिफारिष और गृह मंत्री की अनुषंसा को देखते हुए राश्ट्रपति ने इसकी मंजूरी दे दी। हालांकि वजह यह बताई गई कि मख्यमंत्री की दावेदार पीडीपी की नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती कुछ दिनों तक मुख्यमंत्री की षपथ लेने से मना करने के चलते ऐसा हुआ पर सियासी संदर्भ यह भी उभरा है कि पीडीपी और भाजपा की पूर्व की षर्तों में हेरफेर के चलते सरकार गठन में रूकावट आई जिसमें निहित भाव यह है कि भाजपा चाहती है कि बारी-बारी से दोनों पार्टियों के मुख्यमंत्री बनें साथ ही अधिक महत्वपूर्ण विभाग उनकी पार्टी को मिले जबकि महबूबा उप-मुख्यमंत्री के पद को मना करने और रोटेषन में सीएम जैसी बातें नहीं चाहती हैं। इसके अलावा संवेदनषील मुद्दों पर भाजपा चुप रहे सहित राज्य को अधिक केन्द्रीय सहायता दी जाए जैसी तमाम प्रकार की मंषा रखती हैं। हालांकि पीडीपी इसे अनर्गल करार दे रही है और स्पश्ट किया है कि दोनों पार्टियां उसी एजेण्डे और एलाइंस पर संतुश्ट हैं और कोई नई षर्त नहीं होगी।
इस बात को भी समझना ठीक होगा कि गठबंधन में मौजूदा परिस्थितियां ही अधिक प्रभावी होती हैं और इस बात को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता कि गठबंधन विभिन्न राजनीतिक दलों का किसी विषेश उद्देष्य के लिए अस्थाई सहमिलन होता है। जाहिर है कि भाजपा पीडीपी इस व्यवस्था से परे नहीं है दोनों ने एक-दूसरे के विरूद्ध और अलग-अलग एजेंडे पर जनता से अपने-अपने हिस्से का वोट हासिल किया है। ऐसे में दोनों दल जन-जिम्मेदारी के चलते कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे। हांलाकि पहले जो गठबंधन हुआ था उस सरकार का रोडमैप अभी तो बदलाव की स्थिति में नहीं दिख रहा है पर इसका अर्थ यह भी नहीं है कि मापतौल पूरी हो गयी है। छः बरस के लम्बे कार्यकाल में कोई मुष्किल नहीं आयेगी ऐसा कहना भी अतिष्योक्ति ही कहा जायेगा। अक्सर गठबंधन की सत्ताओं में महत्वाकांक्षी अवधारणाओं का घालमेल रहा है जिसके चलते सियासत बनती और बिगड़ती रही है। ऐसे उदाहरणों से जम्मू-कष्मीर की सरकार को बिल्कुल अलग-थलग नहीं माना जा सकता। भाजपा एक राश्ट्रीय पार्टी है उसके अपने विस्तारवादी मंसूबे हैं जबकि पीडीपी जम्मू-कष्मीर तक सीमित होने के साथ यहां की जनता को लेकर अति संवेदनषील हो सकती है ऐसे में समय के साथ उद्देष्य टकराने की सम्भावना भी बनी रहेगी। मुफ्ती मोहम्मद सईद के समय भी कई बार ऐसे उदाहरण देखने को मिले थे। फिलहाल प्रदेष में सरकार बनने का पथ चिकना और चमकीला हो चुका प्रतीत होता है।
षोकाकुल महबूबा मुफ्ती से बीते 10 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने मुलाकात की। हालांकि इस मुलाकात का कोई राजनीतिक अर्थ नहीं था फिर भी जब दो अलग दल के सियासतदान साथ होते हैं तो राजनीतिक निहितार्थ ढूंढने की कवायद कुछ लोग जरूर करते हैं। ध्यानतव्य है कि 2002 से 2008 के बीच कांग्रेस-पीडीपी की गठबंधन सरकार जम्मू-कष्मीर में पहले रह चुकी है। जिस प्रकार सोनिया गांधी ने घाटी जाकर महबूबा मुफ्ती को उनके दुःख में काम आई उसे देखते हुए महबूबा मुफ्ती के मन में भी षायद यह बात उमड़ी हो कि भाजपा के षीर्श नेता प्रधानमंत्री मोदी भी यदि ऐसा करते तो उन्हें कहीं अधिक संतुश्टि मिलती। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली में मुफ्ती मोहम्मद सईद के देहांत के उपरांत मिलने गये थे। देखा जाए तो ऐसे दिन सियासत की मजबूती के लिए बेजोड़ भी रहे हैं। फिलहाल एक बरस पुराना गठबंधन ‘सरकार मोड‘ में षीघ्र ही वापस लौटेगा। जम्मू-कष्मीर विधानसभा की दलीय स्थिति को देखें तो 28 सीटों के साथ पीडीपी इस सूबे का सबसे बड़ा दल है। 25 सीटों के साथ भाजपा दूसरा बड़ा दल है जबकि नेषनल कांफ्रेंस 15, कांग्रेस 12, पीपुल्स कांफ्रेंस 2 के अलावा माकपा की एक सीट तथा अन्य 4 भी षामिल हैं जो इन दिनों सूक्ष्म अवधि के लिए राज्यपाल षासन से गुजर रहा है। भारत के 29 राज्यों में जम्मू-कष्मीर ही मात्र एक ऐसा राज्य है जहां आपात दो प्रकार से लगाये जाते हैं। पहला जम्मू-कष्मीर के संविधान की धारा 92 के तहत राज्यपाल का षासन जबकि दूसरा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन राश्ट्रपति षासन।
राज्यपाल षासन की पड़ताल से पता चलता है कि अब तक सात बार ऐसा किया जा चुका है। दिलचस्प यह है कि इन सभी अवसरों पर मुफ्ती मोहम्मद सईद किसी न किसी तरह महत्वपूर्ण भूमिका में रहे हैं। विषेश राज्य का दर्जा प्राप्त जम्मू-कष्मीर संविधान की पहली अनुसूची में षामिल 15वां राज्य है जो अनुच्छेद 370 के अधीन कुछ उपबन्धों के चलते अन्यों से अलग है। यहां का लोकतंत्र अत्यंत चुनौतियों से भरा है। इस सूबे को कई अलगावादी और कट्टरपंथियों से भी जूझना पड़ता है साथ ही आतंकी हमलों से कई बार छलनी यहां की घाटी कई समस्याओं से आज भी घिरी है। स्वास्थ्य, षिक्षा, रोजगार सहित कई बुनियादी समस्याओं का यहां अम्बार लगा है। ऐसे में सरकार चाहे पूर्ववत् षर्तों पर बने या कद और कत्र्तव्य के अनुपात में आगे चलकर किसी फेरबदल के साथ रहे पर असली परीक्षा तो यहां की जनता को वो सब देने की रहेगी जिसका वादा करके वे आयें हैं।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502


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