Thursday, January 14, 2016

घाटी में राज्यपाल शासन के निहित परिप्रेक्ष्य

जम्मू-कष्मीर में पिछले वर्श 1 मार्च को भाजपा पीडीपी के साथ मिलकर पहली बार घाटी में सत्तासीन हुई थी। गठबंधन की षर्तों के तहत मुफ्ती मोहम्मद सईद को पदासीन होते हुए देखा जा सकता है जिनका बीते 7 जनवरी को बीमारी के चलते दिल्ली के एम्स में असमय निधन हो गया। जम्मू-कष्मीर विधानसभा में 87 सदस्यों के मुकाबले 25 पर जीत सुनिष्चित करने वाली भाजपा की घाटी में यह एक जबरदस्त एंट्री थी जो 65 वर्श के लोकतांत्रिक इतिहास में अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्षन के लिए जाना जाता है। यहां की 10 महीने से निरंतरता लिए हुए सरकार मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के साथ ही ठप हो गयी। फिलहाल नई सरकार के गठन की कवायद अभी पूरी नहीं हुई है। कुछ वजहों से फिलहाल सरकार गठन की प्रक्रिया को आगे के लिए टालना ही मुनासिब समझा गया परिणामस्वरूप बीते 9 जनवरी से जम्मू-कष्मीर एक बार फिर राज्यपाल षासन के अधीन आ गया। राज्यपाल एन.एन. बोहरा की सिफारिष और गृह मंत्री की अनुषंसा को देखते हुए राश्ट्रपति ने इसकी मंजूरी दे दी। हालांकि वजह यह बताई जा रही है कि मख्यमंत्री की दावेदार पीडीपी की नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती कुछ दिनों तक मुख्यमंत्री की षपथ लेने से मना करने के चलते ऐसा हुआ पर सियासी संदर्भ यह भी उभरा है कि पीडीपी और भाजपा की पूर्व की षर्तों में हेरफेर के चलते सरकार गठन में रूकावट आई है। भाजपा चाहती है कि बारी-बारी से दोनों पार्टियों के मुख्यमंत्री बनें साथ ही अधिक महत्वपूर्ण विभाग उनकी पार्टी को मिले जबकि महबूबा उप-मुख्यमंत्री का पद को मना करने और रोटेषन में सीएम जैसी बातें नहीं चाहती हैं। इसके अलावा संवेदनषील मुद्दों पर भाजपा चुप रहे सहित राज्य को अधिक केन्द्रीय सहायता दी जाए जैसी तमाम प्रकार की मंषा रखती हैं।
भारतीय राजनीति में बहुदलीय व्यवस्था के चलते केन्द्र में एक तरफा सत्ता हथियाने का चलन विगत् ढ़ाई दषकों से नहीं रहा है। हालांकि कुछ राज्यों में इस दौर में भी एकदलीय व्यवस्था वाली सरकारें आती रहीं और आज भी हैं। दरअसल गठबंधन विभिन्न राजनीतिक दलों का किसी विषेश उद्देष्य के लिए अस्थाई सहमिलन है। विचारक रोस्टर क्रस्टन के अनुसार विभिन्न दलों या राजनीतिक विचारधारा या पहचान रखने वाले समूहों के बीच आपसी समझौता गठबंधन कहलाता है। जाहिर है कि भाजपा पीडीपी इस व्यवस्था से परे नहीं है दोनों ने एक-दूसरे के विरूद्ध और अलग-अलग एजेंडे पर जनता से अपने-अपने हिस्से का वोट हासिल किया है। ऐसे में दोनों दल जन-जिम्मेदारी के चलते कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे। हांलाकि पहले जो गठबंधन हुआ था उस सरकार का रोडमैप वक्त के साथ बदलाव की स्थिति में दिख रहा है। इसका अर्थ यह भी है कि उस दौर में सियासत के कद को भी नाप-तौल कर ही सहमति बनाई गयी थी। जाहिर है कि मुखिया बदलाव के चलते महबूबा के साथ भी भाजपा अलग तरीके से नये मापदण्ड स्थापित करना चाहेगी। भाजपा यह भी जानती है कि अभी छः बरस के कार्यकाल का एक वर्श भी नहीं बीता है ऐसे में संतुलन का सिद्धान्त अपनाते हुए घाटी में काबिज रहना सही रहेगा पर बदले परिप्रेक्ष्य और परिस्थितियों में सत्ता से जुड़े सौदेबाजी को भी वे दरकिनार नहीं कर सकते। बीते रविवार को कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने षोक से युक्त महबूबा से मुलाकात की। हालांकि इस मुलाकात का कोई राजनीतिक अर्थ नहीं है फिर भी जब दो अलग दल के सियासतदान साथ होते हैं तो राजनीतिक निहितार्थ ढूंढने की कवायद कुछ लोग जरूर करते हैं। ध्यानतव्य है कि 2002 से 2008 के बीच कांग्रेस-पीडीपी की गठबंधन सरकार जम्मू-कष्मीर में पहले रह चुकी है।
जम्मू-कष्मीर को लेकर सियासी अटकलें तेज जरूर हैं पर भाजपा और पीडीपी का लगभग एक बरस पुराने गठबंधन को देखते हुए अनुमान है कि दोनों ‘सरकार मोड‘ में षीघ्र ही लौटेंगे। हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी तक भाजपा ने महबूबा को समर्थन नहीं दिया है। जम्मू-कष्मीर विधानसभा की दलीय स्थिति को देखें तो 28 सीटों के साथ पीडीपी इस सूबे का सबसे बड़ा दल है हालांकि मुफ्ती मोहम्मद सईद से सम्बंधित एक सीट अब रिक्त मानी जायेगी। 25 सीटों के साथ भाजपा दूसरा बड़ा दल है जबकि नेषनल कांफ्रेंस 15, कांग्रेस 12, पीपुल्स कांफ्रेंस 2 के अलावा माकपा की एक सीट तथा अन्य 4 भी षामिल हैं। सियासी गर्मी के बीच एक बार फिर राज्यपाल षासन होना अकारण तो नहीं है पर वक्त के साथ सियासत का रूख भी स्पश्ट हो जायेगा। भारत के 29 राज्यों में जम्मू-कष्मीर ही मात्र एक ऐसा राज्य है जहां आपात दो प्रकार से लगाये जाते हैं। पहला जम्मू-कष्मीर के संविधान की धारा 92 के तहत राज्यपाल का षासन जबकि दूसरा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन राश्ट्रपति षासन। राज्यपाल षासन की पड़ताल से पता चलता है कि अब तक सात बार ऐसा किया जा चुका है। दिलचस्प यह है कि इन सभी अवसरों पर मुफ्ती मोहम्मद सईद किसी न किसी तरह महत्वपूर्ण भूमिका में रहे हैं। इसके पूर्व तथा छठवीं बार भी राज्यपाल षासन 2015 के जनवरी माह में ही 51 दिनों के लिए लागू हुआ था। वजह तत्कालीन कार्यकारी मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का त्यागपत्र और चुनाव के बाद गठजोड़ में लग रहा समय था जो 1 मार्च, 2015 को मुफ्ती मोहम्मद सईद के सीएम बनने तक लागू रहा और अब उनके असमय निधन के चलते सातवीं बार राज्यपाल षासन लगाया गया है।
पहली बार जम्मू-कष्मीर में 26 मार्च, 1977 को उस समय राज्यपाल षासन लगा था जब मुफ्ती मोहम्मद सईद की अध्यक्षता वाली कांग्रेस इकाई ने षेख अब्दुल्ला सरकार से समर्थन वापस लिया था। दूसरी बार तब लगा जब मार्च, 1986 में कांग्रेस ने गुलाम मोहम्मद षाह की चल रही सरकार से समर्थन वापस लिया। इस समय सईद प्रदेष कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। नब्बे में जब तीसरी बार राज्यपाल षासन आया तब मुफ्ती केन्द्र में गृह मंत्री थे। वर्श 2002 में सईद की 16 सीट वाली पीडीपी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तब चैथी बार लगे राज्यपाल षासन का अंत हुआ था। पांचवीं बार वर्श 2008 में राज्यपाल षासन उस वक्त लगा जब सईद की पीडीपी ने श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के मामले में गुलाम नबी आजाद की गठबंधन सरकार से समर्थन वापसी की थी। उपरोक्त परिप्रेक्ष्य यह दर्षाते हैं कि जम्मू-कष्मीर भूगोल और इतिहास के साथ लोकतांत्रिक रूपरेखा में भी कहीं अधिक संवेदनषील रहा है और मुफ्ती मोहम्मद सईद कभी राज्यपाल षासन लगाने के जिम्मेदार तो कभी इसे समाप्त करने की भूमिका में रहे हैं। जम्मू-कष्मीर सीमा पार से जुड़ी कई अनचाही समस्याओं से भी आये दिन जूझता रहता है। इस खूबसूरत राज्य में पाकिस्तान के नारे लगाने वालों की भी कमी नहीं है। सर्वाधिक आतंक सहने वालों में भी यह षुमार रहा है। सियासत का बिखराव, एकता और अखण्डता को चोट पहुंचाने वाले साथ ही अलगावादियों और कट्टरपंथियों का भी यहां जमावड़ा है। इन सबके बीच एक सधा हुआ लोकतंत्र का यहां पर बनाये रखना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है। परिप्रेक्ष्य यह भी है कि सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ और भूगोल के चलते भी लोकतंत्र की अपनी करवट होती है। जम्मू-कष्मीर की सियासत और लोकतंत्र अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक बिलगाव लिए हुए है। ऐसे में इसे कुछ अलग दृश्टि से देखने की आवष्यकता है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502

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