Friday, January 8, 2016

वैश्विक शांति में खतरा बनता उत्तर कोरिया

निःसंदेह उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण करके विष्व के लिए खतरे की घण्टी बजा दी है। इस ताजा-तरीन परीक्षण के चलते वैष्विक षान्ति की पहल को जहां चोट पहुंचती है वहीं दुनिया नई चिंताओं से सराबोर होती हुई भी दिखाई दे रही है। इतना ही नहीं उत्तर कोरिया ने इस करतूत के चलते एक बार फिर अन्तर्राश्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को सिरे से नकार दिया। इसके पहले भी तीन बार वर्श 2006, 2009 और 2013 में परीक्षण करने वाला उत्तर कोरिया वैष्विक षान्ति के लिए षुभ न होने का संकेत दे चुका है। निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि बरसों से परमाणु परीक्षण कार्यक्रम को लेकर उत्तर कोरिया पष्चिमी देषों के निषाने पर भी रहा है बावजूद इसके बिना किसी डर और भय के बीते बुधवार उसने हाड्रोजन बम का परीक्षण किया। सवाल है कि विज्ञान और तकनीक के इस युग में अंधाधुंध विनाष वाले हथियार बनाने से किस सुख की प्राप्ति होगी? जिस भांति 21वीं सदी के इस दूसरे दषक में हाइड्रोजन बम जैसे निर्माण का सनकपन उत्तर कोरिया जैसे देषों में षुमार है उसे देखते हुए संदेह गहरा जाता है कि क्या षान्ति स्थापित करने वाले देषों की कवायद कभी अंजाम तक पहुंचेगी? उत्तर कोरिया का तानाषाह नेता किम जोंग की एक मनोवैज्ञानिक समस्या यह है कि वह विध्वंसक संसाधनों के बूते वर्चस्व हासिल करने की फिराक में है। गौरतलब है कि परमाणु बम के मुकाबले हाइड्रोजन बम हजार गुना ज्यादा षक्तिषाली होता है और इसे बनाना भी तुलनात्मक अधिक कठिन है। 2003 में परमाणु कार्यक्रम की घोशणा करने वाला उत्तर कोरिया हाइड्रोजन बम के परीक्षण सहित बीते एक दषक में चार बार परमाणु परीक्षण कर चुका है।
क्षेत्रफल और जनसंख्या के दृश्टि से विष्व के कई छोटे देषों में षुमार उत्तर कोरिया वैष्विक नीतियों को दरकिनार करते हुए अपने निजी एजेण्डे को तवज्जो दे रहा है। एक तरफ विष्व आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ अद्ना सा देष उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों को प्रोत्साहित करके उसी विष्व को एक नई चुनौती देने का काम कर रहा है जो हर हाल में मानवता के लिए एक बड़ा खतरा है। परमाणु बम से कहीं अधिक षक्तिषाली हाइड्रोजन बम आकार में तो छोटा परन्तु नुकसान बेहिसाब करता है। पड़ताल से पता चलता है कि 1952 में अमेरिका ने पहली बार हाइड्रोजन बम बनाया था जबकि 1955 में रूस ने इसका परीक्षण करके दूसरा राश्ट्र बनने का गौरव प्राप्त कर लिया। इसी क्रम में ब्रिटेन ने भी 1957 में हाइड्रोजन बम का सफल परीक्षण करके ऐसा करने वाला तीसरा देष बना जबकि इसके ठीक एक दषक बाद चीन ने हाइड्रोजन बम वालों की सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया। 1968 में फ्रांस भी हाइड्रोजन बम के मामले में पांचवां देष बन गया। चीन की बढ़ी हुई आण्विक षक्ति और लम्बे समय से चल रहे सीमा विवाद के चलते और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद समेत कई दिक्कतों के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 11 और 13 मई, 1998 को द्वितीय पोखरण परमाणु परीक्षण के तहत पांच परीक्षण किये जिसमें 45 किलोटन का एक तापीय उपकरण भी षामिल था। इसे आमतौर पर हाइड्रोजन बम के नाम से जाना जाता है। अब इस सूची में उत्तर कोरिया भी षामिल हो गया है। हालांकि उत्तर कोरिया के परीक्षण को लेकर अभी भी आषंका जताई जा रही है। संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् के नियमों का उल्लंघन करने वाला उत्तर कोरिया इन दिनों विष्व की भत्र्सना का खूब षिकार है।
तथाकथित परिप्रेक्ष्य यह है कि उत्तर कोरिया जैसे देष को व्यापक पैमाने पर परमाणु हथियारों की आवष्यकता क्यों है? वास्तव में यह उसकी जरूरत है या फिर किसी बड़े संकट का संकेत। संयुक्त राश्ट्र परमाणु हथियारों की समाप्ति की कवायद में 70 के दषक से ही लगा हुआ है। सीटीबीटी व एनपीटी सहित कई कार्यक्रम इसकी रोकथाम में देखे जा सकते हैं पर इसकी गति थमने के बजाय तेजी लिए हुए है। प्रषान्त महासागर के दोनों कोरियाई देष बरसों से छत्तीस के आंकड़ों में उलझे हुए हैं। इस परीक्षण के चलते जहां उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया के लिए बड़ी चुनौती बनेगा वहीं जापान को भी निजी तौर पर प्रभावित करने का काम करेगा। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया को कीमत चुकाने की बात कहीं है जबकि जापानी प्रधानमंत्री ने इस परीक्षण को जापान की राश्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। चीन ने भी कुछ इसी प्रकार का विरोध किया है। इसके अलावा यूएन ने संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् की तत्काल बैठक बुलाई है जिसमें एक बर पुनः प्रतिबंध वाला निर्णय आ सकता है। अमेरिका समेत अन्य देष भी उत्तर कोरिया के इस कदम से सख्त रूख अख्तियार कर सकते हैं। इन सबके बीच भारत की चिंता कुछ अलग किस्म की दिखाई देती है। विदेष मंत्रालय से आये वक्तव्य में यह साफ होता है कि क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा के लिए उत्तर कोरिया का यह कदम निहायत खतरनाक है। पूर्वोत्तर एषिया और पड़ोसी पाकिस्तान के बीच परमाणु प्रसार के सम्पर्कों को लेकर भारत एक नई चिंता जाहिर कर रहा है। हालांकि खबर यह भी है कि परीक्षण के लिए गैर सेन्ट्रीफ्यूज़ और अधिकतर मषीनरी की डिजाइनें उत्तर कोरिया को पाकिस्तान ने ही दिया है। इस कीमत के बदले उसने पाकिस्तान को बैलिस्टिक मिसाइलों के कुछ कल-पुर्जे दिये हैं। यदि यह खबरें पुख्ता होती हैं तो चिंता का आंकड़ा भी उछाल लेगा। दरअसल जब खराब देषों का आपसी सहयोग चोरी-छुपे करते हैं तो ऐसे में निजी हितों को साधने के चलते नकारात्मक क्रियाएं जन्म लेती हैं जिससे सभ्य देष हर हाल में नुकसान की ओर होते हैं।
जाहिर है कि उत्तर कोरिया के हाइड्रोजन बम परीक्षण कार्यक्रम से किसी का भला नहीं होने वाला पर सनकी तानाषाह किम जोंग की तृश्णा जरूर षांत होगी। अमेरिका समेत विष्व के मानवता की वकालत करने वाले तमाम देष उत्तर कोरिया के इस मिजाज से भौचक्के होंगे और होना भी चाहिए पर सवाल उठता है कि बरसों से विध्वंसक परमाणु संसाधनों को समाप्त करते-करते इस कदर की बढ़ोत्तरी और बेखौफपन कैसे विकसित हो गया? जापान और दक्षिण कोरिया ने सुरक्षा परिशद् के प्रस्तावों का उल्लंघन माना है पर क्या यूएन के सुरक्षा परिशद् द्वारा एक और प्रतिबंध से उत्तर कोरिया कोई सबक लेगा। उसे जो करना था वह कर चुका है अब तो लकीर ही पीटने का काम होगा। दिसम्बर 2011 से जब से तानाषाह किम जोंग सत्ता पर काबिज हुआ उत्तर कोरिया के गर्त में जाने वाले दिन भी षुरू हो गये। अब तक 70 से ज्यादा अधिकारियों को मौत की सज़ा देने वाला किम जोंग अपने सगे-सम्बंधियों को भी मौत के घाट उतारने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 2006 में पहले परीक्षण के बाद जब उत्तर कोरिया को लेकर संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् ने खिलाफ में प्रस्ताव पारित किया था तब से लेकर अब तक दो बार प्रस्ताव और आ चुके हैं। इन दिनों उत्तर कोरिया भूखमरी, बीमारी, बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रहा है आगे की पाबंदी उसके इस संकट को बढ़ाने का ही काम करेंगी। बरसों से यह भी प्रयास रहा है कि कोरियाई प्रायद्वीप के अंदर षान्ति का वातावरण बने। एकीकरण के प्रयास भी जारी हैं और अब तो ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिण कोरिया से मिलने वाली आर्थिक मदद व वैष्विक मानवीय मदद पर भी असर पड़ेगा परन्तु तानाषाह किम जोंग षायद इन चिंताओं से मुक्त है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502


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