पाकिस्तान के गायक अदनान सामी को नव वर्श की सौगात हिन्दुस्तानी नागरिकता के तौर पर मिली जिसके लिए वे बरसों से प्रयासरत् थे पर एक सच यह भी है कि इसका हर जगह स्वागत नहीं हो रहा है। नागरिकता सम्बंधी कागजात लेते समय अदनान सामी ने कहा कि इस बात की खुषी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने लाहौर में रूककर पाकिस्तान से दोस्ती गहरी करने की कोषिष की है। उन्होंने तिरंगे में रंगी अपनी फोटो फिट कर भारतीय होने का सबूत भी पुख्ता करने का प्रयास भी किया है साथ ही यह भी कहा कि भारत में असहिश्णुता जैसी कोई बात नहीं है। असल में नागरिकता लोकतंत्रात्मक राजव्यवस्था को कानूनी स्वरूप प्रदान करता है। देष विषेश के निवासियों को निहित अधिकार, कत्र्तव्य और अनेक विषेशाधिकार प्राप्त होते हैं जो विदेषियों पर लागू नहीं होते हैं। अब अदनान भी भारतीय होने के नाते इसी प्रकार के संदर्भ से जुड़ जायेंगे। वैसे भी अदनान सामी पाकिस्तानी के नागरिक होने के बावजूद भी गायकी का जलवा भारत में बिखेरते रहे हैं पर जो लोकप्रियता और कमाई उनके हुनर के चलते भारत से मिला वह कभी पाकिस्तान से षायद ही मिला हो। लाज़मी है कि उनका आकर्शण मात्र भारत प्रेम के साथ-साथ रूतबा और पैसा भी है। षिवसेना ने तो इस पर बाकायदा विरोध दर्ज कराया है और केन्द्र सरकार को याद दिलाया कि जब भाजपा विपक्ष में थी तो अदनान सामी को भारतीय नागरिकता देने का विरोध किया था। यदि षिवसेना के इस हठ को थोड़ी देर के लिए छोड़ दिया जाए तो कई लिहाज से अदनान सामी को दी गयी नागरिकता गैर वाजिब प्रतीत नहीं होती। पिछले एक दषक से ही अदनान अच्छी खासी व्यावसायिक सफलता के साथ भारत में रह रहे हैं साथ ही भारत के मनोरंजन जगत को समृद्ध करते हुए नागरिकता के लिए भी प्रयासरत् रहे हैं।
भारतीय संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से लेकर 11 के बीच नागरिकता से सम्बन्धित पूरे प्रावधान को देखा जा सकता है। संविधान में नागरिकता को लेकर हर प्रकार की स्पश्टता निर्माण के काल में सम्भव न थी ऐसे में अनुच्छेद 11 में यह प्रावधान किया गया है कि संसद इससे सम्बन्धित मसले पर समय-समय पर कानून बना सकती है। इसी के चलते नगारिकता अधिनियम 1955 पारित किया गया बाद में 1986 और 1992 में इसमें संषोधन भी किये गये। वर्श 2003 में दोहरी नागरिकता को लेकर भी नागरिकता संषोधन अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया। अधिनियम 1955 में नागरिकता प्राप्त करने के कई उपाय बताये गये हैं। 26 जनवरी, 1950 या उसके बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति जिसके माता-पिता या इनमें से कोई एक भारत का नागरिक हो वह जन्म से भारत का नागरिक कहलायेगा। हालांकि राजनयिक, षत्रु देष और विदेषियों के बच्चे इसके अपवाद हैं। वंष परम्परा द्वारा भी नागरिकता का संदर्भ संविधान में निहित है। विदेषी व्यक्ति पंजीकरण के चलते भी नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं अदनान सामी की नागरिकता को इसी श्रेणी में देखा जा सकता है। पंजीकरण के तहत आवेदन करने के लिए कई षर्तें हैं जिसमें पहली षर्त में कम से कम पांच वर्शों से भारत के राज्यक्षेत्र में निवास से सम्बन्धित है। इसके अतिरिक्त भी इस प्रकार की नागरिकता हेतु चार अन्य बिन्दुवर बातें भी हैं। अधिनियम 1955 में निहित प्रावधानों में देषीयकरण और भूमि विस्तार के चलते भी नागरिकता प्राप्ति का संदर्भ निहित है। हालांकि भारत सरकार आदेष द्वारा कुछ परिस्थितियों में किसी नागरिक को भारतीय नागरिकता से वंचित करने का अधिकार भी रखती है मसलन संविधान के प्रति अनिश्ठा दिखाना, युद्धकाल में षत्रु की सहायता करना, धोखे से नागरिकता हासिल करना या लगातार सात वर्श से भारत से बाहर आदि।
अदनान सामी के लिए नये वर्श में नये देष में भारत की नागरिकता का प्रमाणपत्र मिलना और जय हिन्द की अवधारणा से युक्त होना खासा रोचक और सकून से भरा होना चाहिए। भारत की संस्कृति में उनका पहले से ही रचे-बसे होना नागरिकता को कहीं अधिक पुख्ता बनाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तानी मूल के अदनान को भारतीय नागरिकता मिलने से कईयों के मन में कुछ सवाल भी जरूर उत्पन्न होंगे जिसमें एक सवाल यह कि आखिर भारत अदनान के मामले में इतना उदार क्यों हुआ? देखा जाए तो ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिनकी नागरिकता की अर्जी बरसों से धूल फांक रही है और जहां-तहां अटकी पड़ी है। पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारीक फतह को भी उम्मीद है कि उन्हें भी देर-सवेर देष की नागरिकता मिलेगी। बांग्लादेष की लेखिका तस्लीमा नसरीन करीब दो दषक से भारतीय नागरिकता के लिए जोड़-जुगाड़ के साथ जूझ रही हैं पर उनकी किस्मत अदनान सामी जैसी नहीं है ध्यानतव्य है कि ‘लज्जा‘ नामक उपन्यास से चर्चित होने वाली यह लेखिका अपने ही राश्ट्र बांग्लादेष से मौत के फतवे के कारण अस्थिर हो गयीं। वैसे लोगों को नागरिकता देना भारत की उसी अवधारणा को पुश्ट करता है जो आजादी की लड़ाई में स्थापित हुई थी। स्वतंत्रता के दिनों के मुहम्मद अली जिन्ना की भी यह सोच रही थी कि मुसलमान एक अलग राश्ट्रीयता है और वे भारत में कतई सुरक्षित नहीं रह सकते। बजाय इसके गांधी सहित उस दौर के बाकी स्वतंत्रता सेनानियों की धारणा इनसे बिल्कुल अलग थी। इनकी सोच थी कि भारत सभी धर्मों और सम्प्रदायों और समुदायों की साझा संस्कृति है। देखा जाए तो भारतीय उपमहाद्वीप में इस प्रकार का परायापन पहले भी नहीं था यदि ऐसी अवधारणाओं को जिन्ना जैसे लोगों ने सम्प्रदाय के नाम पर हवा दी थी तो उसके पीछे पाकिस्तान की सियासत ही षुमार थी क्योंकि जिन्ना जानते थे कि मुस्लिम कार्ड के तहत ही पाकिस्तान की मांग तार्किक होगी जिसमें वे सफल भी रहे।
बेषक भारत सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाला देष है बावजूद इसके भारत से भी प्रतिभाओं का पलायन हो रहा है। ऐसे में यदि दुनिया भर की प्रतिभाओं को भारत भी आकर्शित करने में आतुरता दिखाता है तो यह भी ‘मेक इन इण्डिया‘ का ही एक प्रारूप कहा जायेगा। भारतीय संसद ने दिसम्बर 2003 में नागरिकता संषोधन विधेयक पारित कर विदेषों में बसे भारतीय मूल के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया जिसे ‘ओवरसीज़ सिटीजनषिप आॅफ इण्डिया‘ का नाम दिया गया इसे दोहरी नागरिकता के नाम से भी जाना जाता है। इतना ही नहीं लोकप्रतिनिधित्व (संषोधन) अधिनियम, 2010 द्वारा अप्रवासीय भारतीयों को निर्वाचक नामावली में नाम दर्ज कराने व चुनाव के दौरान मत देने का अधिकार प्रदान किया गया। देखा जाए तो भारत भी चाहता है कि विदेषों में बसे भारतीय मूल के लोग अपनी कूबत के अनुपात में भारत को निर्मित करने में भूमिका अदा करें। अदनान सामी भारत विभाजन के 68 साल बाद यदि नागरिकता प्राप्त करने में सफल हो रहे हैं तो गांधी और उन स्वतंत्रता सेनानियों की सोच को ही बल मिल रहा है जो इस मामले में निहायत उदार थे जबकि पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू आज भी जिन्ना की सोच के षिकार ही कहे जायेंगे क्योंकि उनके अन्दर राश्ट्र गौरव भरने में पाकिस्तान काफी हद तक विफल रहा है। आर्थिक संसाधन और षक्ति के रूप में आज भी भारत में जो उभार है उसे देखते हुए अन्य भी आकर्शित हो सकते हैं। यूरोप, अमेरिका और कनाडा जैसे देषों के विकास में भारतीयों की बड़ी भूमिका रही है तो भारत के विकास में भी विदेषी भूमिका कमतर नहीं आंकी जा सकती। एक सच यह है कि नागरिकता को अपनाने और छोड़ने की परम्परा हमेषा से रही है उसी की एक कड़ी अदनान भी हैं।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
भारतीय संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से लेकर 11 के बीच नागरिकता से सम्बन्धित पूरे प्रावधान को देखा जा सकता है। संविधान में नागरिकता को लेकर हर प्रकार की स्पश्टता निर्माण के काल में सम्भव न थी ऐसे में अनुच्छेद 11 में यह प्रावधान किया गया है कि संसद इससे सम्बन्धित मसले पर समय-समय पर कानून बना सकती है। इसी के चलते नगारिकता अधिनियम 1955 पारित किया गया बाद में 1986 और 1992 में इसमें संषोधन भी किये गये। वर्श 2003 में दोहरी नागरिकता को लेकर भी नागरिकता संषोधन अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया। अधिनियम 1955 में नागरिकता प्राप्त करने के कई उपाय बताये गये हैं। 26 जनवरी, 1950 या उसके बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति जिसके माता-पिता या इनमें से कोई एक भारत का नागरिक हो वह जन्म से भारत का नागरिक कहलायेगा। हालांकि राजनयिक, षत्रु देष और विदेषियों के बच्चे इसके अपवाद हैं। वंष परम्परा द्वारा भी नागरिकता का संदर्भ संविधान में निहित है। विदेषी व्यक्ति पंजीकरण के चलते भी नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं अदनान सामी की नागरिकता को इसी श्रेणी में देखा जा सकता है। पंजीकरण के तहत आवेदन करने के लिए कई षर्तें हैं जिसमें पहली षर्त में कम से कम पांच वर्शों से भारत के राज्यक्षेत्र में निवास से सम्बन्धित है। इसके अतिरिक्त भी इस प्रकार की नागरिकता हेतु चार अन्य बिन्दुवर बातें भी हैं। अधिनियम 1955 में निहित प्रावधानों में देषीयकरण और भूमि विस्तार के चलते भी नागरिकता प्राप्ति का संदर्भ निहित है। हालांकि भारत सरकार आदेष द्वारा कुछ परिस्थितियों में किसी नागरिक को भारतीय नागरिकता से वंचित करने का अधिकार भी रखती है मसलन संविधान के प्रति अनिश्ठा दिखाना, युद्धकाल में षत्रु की सहायता करना, धोखे से नागरिकता हासिल करना या लगातार सात वर्श से भारत से बाहर आदि।
अदनान सामी के लिए नये वर्श में नये देष में भारत की नागरिकता का प्रमाणपत्र मिलना और जय हिन्द की अवधारणा से युक्त होना खासा रोचक और सकून से भरा होना चाहिए। भारत की संस्कृति में उनका पहले से ही रचे-बसे होना नागरिकता को कहीं अधिक पुख्ता बनाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तानी मूल के अदनान को भारतीय नागरिकता मिलने से कईयों के मन में कुछ सवाल भी जरूर उत्पन्न होंगे जिसमें एक सवाल यह कि आखिर भारत अदनान के मामले में इतना उदार क्यों हुआ? देखा जाए तो ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिनकी नागरिकता की अर्जी बरसों से धूल फांक रही है और जहां-तहां अटकी पड़ी है। पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारीक फतह को भी उम्मीद है कि उन्हें भी देर-सवेर देष की नागरिकता मिलेगी। बांग्लादेष की लेखिका तस्लीमा नसरीन करीब दो दषक से भारतीय नागरिकता के लिए जोड़-जुगाड़ के साथ जूझ रही हैं पर उनकी किस्मत अदनान सामी जैसी नहीं है ध्यानतव्य है कि ‘लज्जा‘ नामक उपन्यास से चर्चित होने वाली यह लेखिका अपने ही राश्ट्र बांग्लादेष से मौत के फतवे के कारण अस्थिर हो गयीं। वैसे लोगों को नागरिकता देना भारत की उसी अवधारणा को पुश्ट करता है जो आजादी की लड़ाई में स्थापित हुई थी। स्वतंत्रता के दिनों के मुहम्मद अली जिन्ना की भी यह सोच रही थी कि मुसलमान एक अलग राश्ट्रीयता है और वे भारत में कतई सुरक्षित नहीं रह सकते। बजाय इसके गांधी सहित उस दौर के बाकी स्वतंत्रता सेनानियों की धारणा इनसे बिल्कुल अलग थी। इनकी सोच थी कि भारत सभी धर्मों और सम्प्रदायों और समुदायों की साझा संस्कृति है। देखा जाए तो भारतीय उपमहाद्वीप में इस प्रकार का परायापन पहले भी नहीं था यदि ऐसी अवधारणाओं को जिन्ना जैसे लोगों ने सम्प्रदाय के नाम पर हवा दी थी तो उसके पीछे पाकिस्तान की सियासत ही षुमार थी क्योंकि जिन्ना जानते थे कि मुस्लिम कार्ड के तहत ही पाकिस्तान की मांग तार्किक होगी जिसमें वे सफल भी रहे।
बेषक भारत सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाला देष है बावजूद इसके भारत से भी प्रतिभाओं का पलायन हो रहा है। ऐसे में यदि दुनिया भर की प्रतिभाओं को भारत भी आकर्शित करने में आतुरता दिखाता है तो यह भी ‘मेक इन इण्डिया‘ का ही एक प्रारूप कहा जायेगा। भारतीय संसद ने दिसम्बर 2003 में नागरिकता संषोधन विधेयक पारित कर विदेषों में बसे भारतीय मूल के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया जिसे ‘ओवरसीज़ सिटीजनषिप आॅफ इण्डिया‘ का नाम दिया गया इसे दोहरी नागरिकता के नाम से भी जाना जाता है। इतना ही नहीं लोकप्रतिनिधित्व (संषोधन) अधिनियम, 2010 द्वारा अप्रवासीय भारतीयों को निर्वाचक नामावली में नाम दर्ज कराने व चुनाव के दौरान मत देने का अधिकार प्रदान किया गया। देखा जाए तो भारत भी चाहता है कि विदेषों में बसे भारतीय मूल के लोग अपनी कूबत के अनुपात में भारत को निर्मित करने में भूमिका अदा करें। अदनान सामी भारत विभाजन के 68 साल बाद यदि नागरिकता प्राप्त करने में सफल हो रहे हैं तो गांधी और उन स्वतंत्रता सेनानियों की सोच को ही बल मिल रहा है जो इस मामले में निहायत उदार थे जबकि पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू आज भी जिन्ना की सोच के षिकार ही कहे जायेंगे क्योंकि उनके अन्दर राश्ट्र गौरव भरने में पाकिस्तान काफी हद तक विफल रहा है। आर्थिक संसाधन और षक्ति के रूप में आज भी भारत में जो उभार है उसे देखते हुए अन्य भी आकर्शित हो सकते हैं। यूरोप, अमेरिका और कनाडा जैसे देषों के विकास में भारतीयों की बड़ी भूमिका रही है तो भारत के विकास में भी विदेषी भूमिका कमतर नहीं आंकी जा सकती। एक सच यह है कि नागरिकता को अपनाने और छोड़ने की परम्परा हमेषा से रही है उसी की एक कड़ी अदनान भी हैं।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
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सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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