Wednesday, November 11, 2015

उत्सव, महोत्सव और तथाकथित असहिष्णुता

    जमाने पहले राजनीतिक विचारक रूसो ने प्रजातंत्र को काफी व्यापक बनाया और जन सहमति के आधार पर सरकार चलाने का एक नमूना पेष किया। आधुनिक भारत में प्रत्येक पांच वर्श में एक बार चुनावी महोत्सव देखने को मिलता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तीन मुखर पक्ष समुच्चय रूप से परिलक्षित होते हैं पहला पक्ष महीने भर चले बिहार प्रजातांत्रिक महोत्सव से सम्बन्धित है जिसके नतीजे घोशित हो चुके हैं और नवनिर्मित सरकार के रूप में महागठबंधन सत्ता धारक बन चुकी है। दूसरे पक्ष में प्रकाष का उत्सव दिपावली है जो अन्धेरे पर प्रकाष की सत्ता के लिए जाना जाता है, तीसरा और अन्तिम पक्ष यह है कि बीते एक-डेढ़ महीने से देष में तथाकथित असहिश्णुता को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। जब इस प्रकार के तमाम संदर्भ एक साथ एकाकीपन लेते हैं तो विमर्षीय परिप्रेक्ष्य अनुपात से अधिक हो जाते हैं साथ ही संयमित दृश्टिकोण को लेकर जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने नीतीष, लालू और कांग्रेस के महागठबंधन को प्रकाष के उत्सव में रौषनी से भर दिया तो भाजपा को करारी षिकस्त के साथ अगले चुनावी महोत्सव की बाट जोहने के लिए मजबूर कर दिया। इस बार के चुनाव में देखने वाली बात यह जरूर थी कि नेताओं के एड़ी-चोटी के जोर के बीच जनता क्या निर्णय लेती है? फिलहाल कयास पर विराम लग चुका है, नतीजे प्रत्यक्ष हो चुके हैं नीतीष के  हिस्से में सूरज सरीखी चमक वाली सत्ता तो बिहार के मामले में मोदी की झोली में अमावस्या की रात आई है। इतना ही नहीं नतीजे भाजपाईयों की आषा के विपरीत होने के साथ-साथ उनके दावों और इरादों की भी पोल खोलते हैं।
चुनावी तिथि घोशित होने के पष्चात् से बिहार बीते 3 नवम्बर तक रैलियों से अटा रहा। प्रजातंत्र के इस महोत्सव में प्रधानमंत्री से लेकर हर दल का नेता यहां जमा रहा। रैलियों के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी की स्वयं की 26 चुनावी रैलियां हैं जबकि भाजपा के अध्यक्ष अमित षाह 85, सुषील मोदी 180 तथा अन्य भाजपाई एवं सहयोगी दलों द्वारा सैकड़ों की तादाद में रैलियां की गयी। इसके अलावा महागठबंधन भी इस मामले में तनिक मात्र कमतर नहीं रहा। राजनीति से बेदखल हो चुके लालू प्रसाद की 243 चुनावी रैलियां हुई। निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीष कुमार 210 सहित महागठबंधन भी रैलियों का अम्बार लगाने में पीछे नहीं रहा। जन अधिकार मोर्चा के अध्यक्ष पप्पू यादव ने तो 250 चुनावी रिकाॅर्ड रैली की। रोचक यह है कि जब चुनाव आता है तो बड़े से बड़े नेता भी गली-गली के नेतृत्व संभालने लगते हैं और मतदाताओं को रिझाने के लिए कूबत से अधिक करने की बात करते हैं पर जब चुनावी महोत्सव बीत जाता है तब मतदाता नेताओं के पगफेरे के लिए तरसते रहते हैं। असल में जो सुषासन और विकास की धारा को चिन्ह्ति करने के साथ सियासत की जोड़-तोड़ में अनुकूलन बिठा ले वही सत्ता की हकदारी प्राप्त कर लेता है पर इस बार के बिहार चुनाव में बात इससे भी ऊपर गयी थी। देखा जाए तो चुनावी महोत्सव केवल सरकार मात्र की ताजपोषी के लिए नहीं होते बल्कि प्रजातांत्रिक संस्कृति को दिषागत् करने के लिए भी होते हैं। सामाजिक कल्याण प्रषासन में यह मापदण्ड निहित है, कि सामाजिक सुरक्षा की गारन्टी सरकार की प्राथमिकी होती है। ऐसी ही गारंटी से बिहार की जनता भी ओत-प्रोत है और वह चाहेगी कि नवगठित महागठबंधन की सरकार उनके हिस्से की सामाजिक सुरक्षा एवं न्याय के साथ विकास और बुनियादी जरूरतों को पूरा करे जो नीतीष सरकार के लिए बड़ा अवसर भी है और बड़ी चुनौती भी।
अधिक जीवन और जीवन से अधिक का द्वन्द समाज में हमेषा से बरकरार रहा है। सामाजिक और सांस्कृतिक संरचनाओं के बीच कई आधुनिक संस्कृतियां और संस्कारों ने दिन-प्रतिदिन नये आयामों को भी जन्म दिया है। देखा जाए तो सनातन और पुरातन व्यवस्थाएं भी आज उसी उल्लास के साथ कायम हैं। भले ही प्रकाष से भरी दीपावली का उत्सव इन दिनों मुहाने पर हो पर तथाकथित असहिश्णुता को लेकर विमर्ष अभी इत् िको प्राप्त नहीं कर पाया है। बीते कुछ महीनों से मोदी सरकार पर असहिश्णुता फैलाने का आरोप है जिसके चलते सिलसिलेवार तरीके से विषिश्टजन सम्मान वापसी को अनवरत् बनाये हुए है। पुरस्कार लौटाने वाले लगातार यह कहते चले आ रहे हैं कि असहिश्णुता के चलते बोलने की आजादी खतरे में है। इसके अलावा विरोधी भी सरकार को इस मामले में घेरे हुए है। तथाकथित असहिश्णुता के सहारे हर किसी को केन्द्र सरकार पर उंगली उठाने का इन दिनों पूरा मौका मिला हुआ है। दुर्भाग्य यह है कि ऐसा करने वाले यह तनिक मात्र भी परवाह नहीं कर रहे हैं कि उनके इस कदम से देष के अन्दर तो माहौल खराब हो ही रहा है साथ ही अन्तर्राश्ट्रीय साख भी खतरे में है। दरअसल जब वैचारिक उथल-पुथल में वार और पलटवार होते हैं तब न तो देष का और न ही समाज का भला होता है बल्कि उलटे यह संदेष प्रचारित होता है कि देष समरसता की समस्या से जूझ रहा है।
तथाकथित असहिश्णुता के संदर्भ में बुद्धिजीवी भी वर्गों में बंट चुके हैं। सम्मान वापसी के खिलाफ बिहार चुनाव परिणाम के ठीक एक दिन पहले इण्डिया गेट के पास नेषनल म्यूजियम से राश्ट्रपति भवन तक मार्च किया गया जिसमें फिल्म अभिनेता अनुपम खेर सहित कई साहित्यकार व हस्तियां षामिल थी। हालांकि इसके पूर्व असहिश्णुता को लेकर सोनिया गांधी के नेतृत्व में संसद भवन से राश्ट्रपति भवन तक मार्च किया जा चुका है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इसे लेकर अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं। बिहार में मिली करारी षिकस्त से यह संकेत मिलता है कि असहिश्णुता का माहौल भी भाजपा पर भारी पड़ा है साथ ही कईयों का यह भी मानना है कि असहिश्णुता जैसी कोई चीज देष में नहीं है बल्कि इसके बहाने प्रधानमंत्री मोदी के बढ़ते कद को बौना किया जा रहा है। सवाल है कि बिहार में सब कुछ दांव पर लगाने के बाद मिली षिकस्त से क्या मोदी का कद नहीं घटेगा? अन्दर और बाहर यह खलबली है कि मोदी का जादू अब सिर चढ़ कर नहीं बोलता। दिल्ली विधानसभा से लेकर बिहार तक के सफर में मोदी चुनाव जिताने की गारंटी तो नहीं सिद्ध हुए जिससे साफ है कि उनके डेढ़ साल के कार्यकाल के दौर में ही उनकी अस्वीकार्यता देष में बढ़ रही है और विरोधियों की हौसला अफज़ाई हो रही है। आरोप यह भी है कि यह सीधे मोदी की हार है पर कई कहते हैं कि यह नीतीष की जीत है। भले ही भाजपा या मोदी की हार हुई हो पर इसका यह तात्पर्य नहीं कि असहिश्णुता को बढ़ावा देना मोदी के नियोजन का हिस्सा है। आरोप तो यह भी है कि देष में असहिश्णुता बढ़ रही है और मोदी चुप हैं यहां याद दिलाना जरूरी है कि मोदी इसी वर्श के बजट सत्र के पूर्व ही यह कह चुके हैं कि देष में साम्प्रदायिक माहौल को बर्दाष्त नहीं किया जाएगा। सवाल है कि देष में समरसता कैसे विकसित हो? क्या सभी की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि दीप उत्सव और चुनावी महोत्सव के इन दिनों में तथाकथित असहिश्णुता को महिमामण्डित करने के बजाय सहिश्णुता को बनाये रखने पर जोर लगायें। ऐसे में क्या लेखकों, फिल्मकारों एवं अन्य बुद्धिजीवियों को नहीं चाहिए कि कलम, कला और विचार के जरिये लड़ाई को आगे बढ़ाये जिससे देष नकारात्मक षक्तियों के बोझ से न दबे?



लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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