इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए यह कहना तनिक मात्र भी गलत नहीं है कि एक बार फिर एक्ज़िट पोल गलत सिद्ध हुए हैं। इतना ही नहीं चुनाव को लेकर किया गया इनका सर्वे और एनाॅलिसिस डायलिसिस पर है। नतीजे से पहले दो लड़ाई स्पश्ट रूप से देखी जा सकती है एक एनडीए और महागठबंधन के बीच दूसरे इस बात की कि कौन सा एक्ज़िट पोल सत्यता के अधिक समीप है और कौन अनुपात से अधिक भ्रमित है। एक्ज़िट पोल के सही-गलत होने का इतिहास पुराना हो गया है। ये सभी जानते हैं कि इस बार टुडे-चाणक्य ने एनडीए को 243 के मुकाबले 155 सीट आने की संभावना व्यक्त की थी जबकि महागठबंधन को मात्र 83 स्थानों पर जीत की बात कही थी पर परिणाम इससे न केवल उलट हैं बल्कि कयास से भी बाहर हैं। नतीजे बताते हैं कि महागठबंधन ने 178 के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया और एनडीए 58 स्थानों पर सिमट कर रह गयी। इस बार के सभी एक्ज़िट पोलों में टुडे-चाणक्य सबसे ज्यादा बेतुका सिद्ध हुआ है। हालांकि इनके द्वारा माफी मांगी जा चुकी है। देखा जाए तो अधिकतर एक्ज़िट पोल कांटे की टक्कर की बात कर रहे थे। आज तक सीसेरो के सर्वे किसी को भी बहुमत नहीं दे रहा था जबकि एबीपी न्यूज़ नीलसन सहित बाकी महागठबंधन को कम मार्जिन के साथ बहुमत दिखा रहे थे। यह सही है कि बहुमत महागठबंधन के ही हक में गया है पर 178 सीटों के साथ बहुमत मिलेगा इस वास्तविकता से सभी सर्वे कोसो दूर थे। एक्ज़िट पोल में जताई गयी संभावनायें और वास्तविक नतीजों में इतना व्यापक अंतर होना एक्ज़िट पोलों पर कई सवाल खड़े करता है।
5 नवम्बर को षाम पांच बजे जब बिहार में आखरी और पांचवें दौर का मतदान समाप्त हुआ तत्पष्चात् न्यूज़ चैनलों पर आये एक्ज़िट पोल कम-ज्यादा हैरत वाले भले ही रहे हों पर नतीजों ने तो सभी को आष्चर्यचकित कर दिया। महागठबंधन के लालू प्रसाद एक्ज़िट पोल पर इसलिए तिलमिलाये क्योंकि वे ऐतिहासिक जीत की अपेक्षा रखते थे और सर्वे उन्हें हार की राह पर खड़ा कर रहे थे। लालू प्रसाद ने कहा था कि महागठबंधन 190 सीटों पर जीत दर्ज करेगा। समझने वाली बात यह है कि लालू द्वारा बिहार में बिछाई गयी चुनावी बिसात को लालू के अलावा किसी को भनक तक नहीं लगी। 178 सीट पाने वाली महागठबंधन के नेता लालू का अंदाजा सबसे अधिक सटीक था। इस मामले में लालू प्रसाद का तिलमिलाना सही प्रतीत होता है। जिस नतीजे की दरकार और जिस अंदाज से बिहार में महागठबंधन की हुंकार देखने को मिली साफ है कि विरोधी इसे ताड़ नहीं पाये जबकि आत्मंथन कर बिहार के गणित को न समझने की दुहाई देने वाली भाजपा बिहार के मतदाताओं के मन को पढ़ने में पूरी तरह नाकाम रही। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद 26 रैली करने के बावजूद वे बिहार के मतदाताओं का मूड नहीं समझ पाये। इतना ही नहीं अन्य भाजपाई और सहयोगी दल के नेता भी इसी मुगालते में रहे जबकि मतदाता महागठबंधन की झोली में निरंतर गिर रहा था। लालू ने तो यहां तक कहा था कि जनता को गुमराह करने की कोषिष कामयाब नहीं होगी। तब षायद एक्ज़िट पोल दिखाने वाले और देखने वालों ने भी नहीं सोचा होगा कि लालू सच बोल रहे हैं।
जिस तर्ज पर एक्ज़िट पोल सम्पादित किये जाते हैं और वास्तविक परिणामों से जिस प्रकार काफी अन्तर लिए हुए होते हैं उसे देखते हुए यह कहना लाज़मी है कि इन पर भी कोई नियंत्रक संस्था होनी चाहिए और सटीक अनुमान देने का दबाव भी होना चाहिए। एनडीटीवी के संस्थापक प्रणय राॅय ने भी बिहार चुनाव के नतीजे को लेकर पैदा हुए भ्रम के लिए माफी मांगी है। बीजेपी व एनडीए की पराजय की कई वजह हो सकती हैं परन्तु इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि हार तो एक्ज़िट पोल के अनुमानों की भी हुई है। विमर्ष तो यह भी है कि मतदाता इन्हें कैसे गच्चा दे रहे हैं, इन्हें इस पर भी मंथन करने की आवष्यकता है। ध्यान दिलाना सही होगा कि 2004 के लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली सरकार को लेकर एक्ज़िट पोल जीत का दावा कर रहे थे और कांग्रेस का सत्ता से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है का अनुमान लगा रहे थे पर नतीजों ने सभी को हैरत में भी डाला और एक्ज़िट पोल गलत सिद्ध हुए जैसा कि सब जानते हैं कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी। वर्श 2009 के जब लोकसभा चुनाव आये और लाल कृश्ण आडवाणी जैसी छवि वाले नेता एनडीए का चुनावी चेहरा बने तब भी एक्ज़िट पोल यूपीए की हार के खूब दावे कर रहे थे मगर जब परिणाम आया तो नतीजे फिर उलट थे। यूपीए-2 केन्द्र पर फिर काबिज हुई और एक बार फिर एक्ज़िट पोल गलत सिद्ध हुए। वर्श 2014 के लोकसभा चुनाव में भी अनुमानों से परे एनडीए तो छोड़िए भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था। यहां भी अनुमान वास्तविकता से दूर ही थे। स्थिति को देखते हुए कहना गलत न होगा कि एक्ज़िट पोल चुनावी नतीजे आने से पहले जहां कुछ के सपनों के साथ खिलवाड़ करते हैं वहीं कुछ को करिष्माई सपना भी दिखाते हैं जबकि सच यह है कि मतदाता के अन्दर क्या पकता है, कितना पकता है और किसको कितना देता है का अंदाजा लगाना निहायत कठिन है।
हालांकि एक्ज़िट पोल में जताई गयी सम्भावनाएं और वास्तविक नतीजों में असमानता हो सकती है पर कई मौकों पर कुछ एक्ज़िट पोल सटीक तो नहीं पर वास्तविकता के आस-पास तो रहे हैं। प्रजातांत्रिक परिप्रेक्ष्य में चुनाव एक बड़ा महोत्सव है जिसमें षामिल मतदाताओं की संख्या करोड़ों की तादाद में होती है। इतने व्यापक पैमाने में षामिल मतदाताओं में से चन्द मतदाताओं की राय के आधार पर तैयार किया गया सर्वे क्या पूरी तरह सटीक हो सकता है? इसका जवाब षायद नहीं में ही दिया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एक्ज़िट पोल समग्र होते हुए भी चुनावी परिणाम की बानगी मात्र ही होते हैं। ऐसे में यह कहना मुष्किल है कि सर्वे वास्तविक नतीजों के पूरे आंकलन हैं। विगत् लोकसभा और कई विधानसभा के चुनाव को देखें तो विभिन्न प्रकार के परिणाम यह दर्षाते हैं कि एक्ज़िट पोल की यांत्रिकी पूरी तरह सटीक नहीं है और षायद हो भी नहीं सकती। इसकी मुख्य वजह सर्वे में चन्द मतदाताओं का होना है। एक्ज़िट पोल कितना भी वैज्ञानिक और सटीक दावे से युक्त हो उसे लेकर हमेषा दो खेमे बन जाते हैं। जब एक्ज़िट पोल किसी दल विषेश को अधिक सीटे दे रहे होते हैं तो विरोधी कम सीट पाने के चलते सर्वे की सत्यता पर सीधे-सीधे सवाल खड़ा कर देते हैं। जैसे कि बिहार विधानसभा चुनाव के मामले में टुडे-चाणक्य के सर्वे ने एनडीए को 155 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत दिया तब भाजपा के नेता इसका समर्थन कर रहे थे और अन्य एक्ज़िट पोल से असहमति जता रहे थे। यही हाल महागठबंधन के लालू प्रसाद का भी था। देखा जाए तो एक्ज़िट पोल एक प्रकार से रूझान को दर्षाते हैं न कि परिणाम को परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि इनके अनुमान वास्तविकता से हमेषा ही परे रहें।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
5 नवम्बर को षाम पांच बजे जब बिहार में आखरी और पांचवें दौर का मतदान समाप्त हुआ तत्पष्चात् न्यूज़ चैनलों पर आये एक्ज़िट पोल कम-ज्यादा हैरत वाले भले ही रहे हों पर नतीजों ने तो सभी को आष्चर्यचकित कर दिया। महागठबंधन के लालू प्रसाद एक्ज़िट पोल पर इसलिए तिलमिलाये क्योंकि वे ऐतिहासिक जीत की अपेक्षा रखते थे और सर्वे उन्हें हार की राह पर खड़ा कर रहे थे। लालू प्रसाद ने कहा था कि महागठबंधन 190 सीटों पर जीत दर्ज करेगा। समझने वाली बात यह है कि लालू द्वारा बिहार में बिछाई गयी चुनावी बिसात को लालू के अलावा किसी को भनक तक नहीं लगी। 178 सीट पाने वाली महागठबंधन के नेता लालू का अंदाजा सबसे अधिक सटीक था। इस मामले में लालू प्रसाद का तिलमिलाना सही प्रतीत होता है। जिस नतीजे की दरकार और जिस अंदाज से बिहार में महागठबंधन की हुंकार देखने को मिली साफ है कि विरोधी इसे ताड़ नहीं पाये जबकि आत्मंथन कर बिहार के गणित को न समझने की दुहाई देने वाली भाजपा बिहार के मतदाताओं के मन को पढ़ने में पूरी तरह नाकाम रही। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद 26 रैली करने के बावजूद वे बिहार के मतदाताओं का मूड नहीं समझ पाये। इतना ही नहीं अन्य भाजपाई और सहयोगी दल के नेता भी इसी मुगालते में रहे जबकि मतदाता महागठबंधन की झोली में निरंतर गिर रहा था। लालू ने तो यहां तक कहा था कि जनता को गुमराह करने की कोषिष कामयाब नहीं होगी। तब षायद एक्ज़िट पोल दिखाने वाले और देखने वालों ने भी नहीं सोचा होगा कि लालू सच बोल रहे हैं।
जिस तर्ज पर एक्ज़िट पोल सम्पादित किये जाते हैं और वास्तविक परिणामों से जिस प्रकार काफी अन्तर लिए हुए होते हैं उसे देखते हुए यह कहना लाज़मी है कि इन पर भी कोई नियंत्रक संस्था होनी चाहिए और सटीक अनुमान देने का दबाव भी होना चाहिए। एनडीटीवी के संस्थापक प्रणय राॅय ने भी बिहार चुनाव के नतीजे को लेकर पैदा हुए भ्रम के लिए माफी मांगी है। बीजेपी व एनडीए की पराजय की कई वजह हो सकती हैं परन्तु इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि हार तो एक्ज़िट पोल के अनुमानों की भी हुई है। विमर्ष तो यह भी है कि मतदाता इन्हें कैसे गच्चा दे रहे हैं, इन्हें इस पर भी मंथन करने की आवष्यकता है। ध्यान दिलाना सही होगा कि 2004 के लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली सरकार को लेकर एक्ज़िट पोल जीत का दावा कर रहे थे और कांग्रेस का सत्ता से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है का अनुमान लगा रहे थे पर नतीजों ने सभी को हैरत में भी डाला और एक्ज़िट पोल गलत सिद्ध हुए जैसा कि सब जानते हैं कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी। वर्श 2009 के जब लोकसभा चुनाव आये और लाल कृश्ण आडवाणी जैसी छवि वाले नेता एनडीए का चुनावी चेहरा बने तब भी एक्ज़िट पोल यूपीए की हार के खूब दावे कर रहे थे मगर जब परिणाम आया तो नतीजे फिर उलट थे। यूपीए-2 केन्द्र पर फिर काबिज हुई और एक बार फिर एक्ज़िट पोल गलत सिद्ध हुए। वर्श 2014 के लोकसभा चुनाव में भी अनुमानों से परे एनडीए तो छोड़िए भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था। यहां भी अनुमान वास्तविकता से दूर ही थे। स्थिति को देखते हुए कहना गलत न होगा कि एक्ज़िट पोल चुनावी नतीजे आने से पहले जहां कुछ के सपनों के साथ खिलवाड़ करते हैं वहीं कुछ को करिष्माई सपना भी दिखाते हैं जबकि सच यह है कि मतदाता के अन्दर क्या पकता है, कितना पकता है और किसको कितना देता है का अंदाजा लगाना निहायत कठिन है।
हालांकि एक्ज़िट पोल में जताई गयी सम्भावनाएं और वास्तविक नतीजों में असमानता हो सकती है पर कई मौकों पर कुछ एक्ज़िट पोल सटीक तो नहीं पर वास्तविकता के आस-पास तो रहे हैं। प्रजातांत्रिक परिप्रेक्ष्य में चुनाव एक बड़ा महोत्सव है जिसमें षामिल मतदाताओं की संख्या करोड़ों की तादाद में होती है। इतने व्यापक पैमाने में षामिल मतदाताओं में से चन्द मतदाताओं की राय के आधार पर तैयार किया गया सर्वे क्या पूरी तरह सटीक हो सकता है? इसका जवाब षायद नहीं में ही दिया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एक्ज़िट पोल समग्र होते हुए भी चुनावी परिणाम की बानगी मात्र ही होते हैं। ऐसे में यह कहना मुष्किल है कि सर्वे वास्तविक नतीजों के पूरे आंकलन हैं। विगत् लोकसभा और कई विधानसभा के चुनाव को देखें तो विभिन्न प्रकार के परिणाम यह दर्षाते हैं कि एक्ज़िट पोल की यांत्रिकी पूरी तरह सटीक नहीं है और षायद हो भी नहीं सकती। इसकी मुख्य वजह सर्वे में चन्द मतदाताओं का होना है। एक्ज़िट पोल कितना भी वैज्ञानिक और सटीक दावे से युक्त हो उसे लेकर हमेषा दो खेमे बन जाते हैं। जब एक्ज़िट पोल किसी दल विषेश को अधिक सीटे दे रहे होते हैं तो विरोधी कम सीट पाने के चलते सर्वे की सत्यता पर सीधे-सीधे सवाल खड़ा कर देते हैं। जैसे कि बिहार विधानसभा चुनाव के मामले में टुडे-चाणक्य के सर्वे ने एनडीए को 155 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत दिया तब भाजपा के नेता इसका समर्थन कर रहे थे और अन्य एक्ज़िट पोल से असहमति जता रहे थे। यही हाल महागठबंधन के लालू प्रसाद का भी था। देखा जाए तो एक्ज़िट पोल एक प्रकार से रूझान को दर्षाते हैं न कि परिणाम को परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि इनके अनुमान वास्तविकता से हमेषा ही परे रहें।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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