Tuesday, November 24, 2015

पूर्व की ओर देखो नीति के ढ़ाई दशक

भारत की विदेश नीति, देश की बुनियादी सुरक्षा और विकास सम्बन्धी प्राथमिकताओं को समेटे हुए है। एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था की इच्छा हमेशा से भारत के मन में रही है जिसमें देश के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी सदाचार का वातावरण कायम होता हो। किसी भी अक्षांश या देशांतर पर स्थित देश प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकता में शुमार देखे जा सकते हैं इसकी एक वजह वैदेशिक नीति को कहीं अधिक पुख्ता करना है। इसी क्रम में बीते 21 नवम्बर से मोदी पूरब के देषों की यात्रा पर थे। चार दिनी मलेषिया और सिंगापुर की यात्रा, भारत की ‘पूर्व की ओर देखो नीति‘ को एक बार पुनः नयापन प्रदान करती है। प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘मेक इन इण्डिया‘ और ‘स्मार्ट सिटी‘ का संदर्भ मलेषिया में भी काफी प्रसार लेते हुए देखा गया। इस मामले में दोनों देषों ने आपसी सहयोग का आह्वान किया। भारत के नीति आयोग और मलेषिया के परफार्मेंस मैनेजमेंट डिलीवरी यूनिट के बीच लोक प्रषासन और गवर्नेंस पर सहयोग को लेकर भी समझौता हुआ साथ ही षैक्षणिक स्तर पर आदान-प्रदान की बात की गयी। मोदी ने मलेषिया में 21 नवम्बर को आसियान-भारत षिखर सम्मेलन में भाग लेने के अलावा 10वें पूर्वी एषियाई षिखर सम्मेलन में भी षिरकत की और कई राश्ट्रहित के मुद्दें मसलन रक्षा, साइबर सुरक्षा, संस्कृति तथा लोक प्रषासन के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने वाले समझौते किये।
षीत युद्ध के बाद भारतीय विदेष नीति की एक विषेशता ‘पूर्व की ओर देखो नीति‘ भी रही है। इस नीति के तहत दक्षिण-पूर्वी एषिया और पूर्वी एषिया विषेशतः इनके क्षेत्रीय संगठनों पर ध्यान दिया गया। एषिया में आसियान को भारतीय नीति का केन्द्रीय बिन्दु माना गया है। देखा जाए तो भारत ‘पूर्व की ओर देखो नीति‘ में तीन सूत्रीय कार्यक्रम पर कायम रहा है पहला आसियान के सदस्यों के साथ राजनीतिक सम्बन्धों का नवीनीकरण, दूसरे पूर्वी एषिया के देषों से आर्थिक सम्पर्क बढ़ाना मसलन व्यापार, निवेष, पर्यटन, विज्ञान और तकनीकी आदि, तीसरे राजनीतिक समझ बढ़ाने के लिए अनेक देषों से मजबूत रक्षा सम्बन्धों की स्थापना करना। मलेषिया में प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षिण चीन सागर को लेकर टकराव के मोड़ पर खड़े चीन और कुछ पूर्वी एषियाई देषों को एक बार फिर आगाह करते हुए कहा है कि समुद्र, अंतरिक्ष और साइबर जगत संघर्श के बजाय साझा समृद्धि का मंच बनना चाहिए। आर्थिक प्रगति के लिए सुनिष्चित मानकों पर अभिव्यक्ति देते हुए मोदी मलेषिया में विकासात्मक मुद्दों को तूल देने में सफल कहे जा सकते हैं। चिर-परिचित अंदाज में एक बार पुनः विदेषी जमीन पर भारतीय जमात को सम्बोधित करने का काम किया जाना इस दौरे की प्रभावषीलता रही है। मलेषिया में भारतीय मूल के बीस लाख से अधिक लोग रहते हैं। मान्यता तो यह भी है कि बीते वर्शों में आसियान देषों के साथ भारत की साझेदारी की रफ्तार में बहुत तेजी आई है। व्यावसायिक स्तर पर सम्बन्ध पहले से बेहतरी की ओर गये हैं। ‘मेक इन इण्डिया‘ जैसी योजना पूर्वी देषों में भी काफी लोकप्रियता के साथ निवेष का जरिया बन रही है पर पूरा परिणाम आने वाले वर्शों में ही देखा जा सकेगा।
पूर्वोन्मुख नीति की भारत में ऐतिहासिक पृश्ठभूमि रही है। ईसा पूर्व काल में जब भारत से बौद्ध और ब्राह्यण धर्म का प्रचार देष की सीमा से बाहर हुआ तो यह सबसे पहले पूर्वी एषिया में ही पहुंचा था। प्राचीन काल से ही भारतीय व्यापारियों, धर्म प्रचारकों एवं सत्ता स्थापित करने के इच्छुक व्यक्तियों के ये लोकप्रिय स्थल रहे हैं। बोरोबुदूर का बौद्ध मन्दिर इस तथ्य का गवाह है। नरसिंह राव सरकार के दौरान भी पूर्वोन्मुख नीति के तहत यहां से कई संदर्भों को समायोजित करने का प्रयास किया गया था। उस समय भी सम्पूर्ण विष्व की तरह दक्षिण-पूर्व एषियाई व सुदूर पूर्व एषियाई राश्ट्र भी नये बाजार, नये व्यापार, सहयोगी व सस्ती तकनीक की तलाष में थे। तब भारत उनके लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण बन गया था। हिमतक्षेस और बिमस्टेक जैसे संगठनों के अस्तित्व में आने और भारत तथा अन्य पूर्वी एषियाई देषों के इसमें सदस्य होने के चलते इन देषों के साथ भारत के मधुर सम्बन्ध हो गये तभी से कई सकारात्मक उतार-चढ़ाव के साथ भारत की पैठ यहां मजबूती के साथ कायम रही। भारत और पूर्वी देषों के साथ मजबूत सम्बन्धों के आधार को ढाई दषक पूरे हो चुके हैं। मलेषिया दौरे के आखिरी दिन मोदी ने इसे और पुख्ता तब किया जब उन्होंने हिन्दू और बौद्ध मन्दिरों के लिए एक पारम्परिक द्वार ‘तोरण द्वार‘ का उद्घाटन किया। दरअसल जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2010 में मलेषिया की यात्रा पर गये थे तब उन्होंने मलेषिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक से जो कि वर्तमान में भी प्रधानमंत्री हैं से वायदा किया था कि वह एक ‘तोरण द्वार‘ मलेषिया को भेंट करेंगे हालांकि इसे बनाने में पूरे तीन साल लगे और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वायदे को वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी ने पूरा किया।
यह भी सही है कि भारत की नजरें अक्सर अमेरिका और पष्चिमी देषों पर रही हैं। 21वीं सदी की सम्भावनाओं को देखते हुए भारत को एषिया महाद्वीप के सभी पड़ोसी देषों के साथ घनिश्ठ और अच्छे पड़ोसी सम्बन्धों के प्रति वचनबद्धता कुछ वर्श पूर्व महसूस हुई। परिवर्तनषील अन्तर्राश्ट्रीय वातारण में अन्तर्राश्ट्रीय समुदाय में सहयोग एवं आपसी समझ-बूझ विकसित करने में भारत से बेहतर षायद ही कोई देष रहा हो। वैष्विक चुनौतियों से निपटने में भी भारत ने बेषुमार कोषिष की है। इन दिनों विष्व जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसी समस्याओं से दो-चार हो रहा है। यहां भी भारत के कदम सकारात्मक आवृत्ति से परिपूर्ण हैं। वर्तमान विष्व की पड़ताल की जाए तो षायद ही कोई देष हो जहां भारत के नागरिक बाषिंदे न हों इतना ही नहीं भारतीयों की विदेषों में मजबूत साख होना विदेष नीति के पक्ष में है। प्रधानमंत्री मोदी विदेष में बसे भारतीयों को सम्बोधित करने में कोई चूक नहीं करते जिसकी दो वजह हैं एक पुरखों की मातृभूमि को लेकर उनके अन्दर भारत प्रेम जगाना, दूसरे देष की बदली परिस्थितियों से उन्हें अवगत कराना इसके अलावा सम्पन्न अप्रवासी को भारत में निवेष के लिए उकसाना।
जिस भांति भारत की विदेष नीति को ऊंचाई देने का प्रयास किया जा रहा है संकेत साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी एक तो वैष्विक पटल पर भारत की ताकत को बताना चाहते है, दूसरे विदेष पर निर्भर विकास और निवेष को अपनी ओर आकर्शित भी करना चाहते हैं। मोदी की चार दिवसीय यात्रा में सिंगापुर भी षामिल है। सिंगापुर उनकी पहली आधिकारिक यात्रा है। सिंगापुर के एक इलाके को ‘लिटिल इण्डिया‘ के नाम से भी जाना जाता है। यहां तमिल मूल के लोग काफी तादाद में रहते हैं। असल में यह क्षेत्र चर्चे में तब आया जब एक दुर्घटना के दौरान यहां हिंसा भड़क गयी थी। सिंगापुर भारत में बड़ा निवेषक है और कई भारतीय कम्पनियां यहां अपना विस्तार कर रही हैं। षहरी विकास, षहरी परिवहन, कचरा प्रबन्धन, बन्दरगाह विकास और कौषल विकास में इसकी उपलब्धियों को भलि-भांति समझा जा सकता है। भारत में कौषल विकास सहित कई बुनियादी समस्याएं हैं। इस मामले में सिंगापुर भारत के लिए बेहतर पड़ोसी और उपाय दोनों हो सकता है जिसे देखते हुए कई मुद्दों पर द्विपक्षीय सहमति बनी है। एक लिहाज से देखा जाए तो पूर्व में ‘मेक इन इण्डिया‘ सहित कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं वहां न केवल बड़ी पहचान कायम करेंगी बल्कि जरूरी पूंजी भी जुटाने के काम आयेंगी साथ ही दक्षिण एषिया में धाक रखने वाले भारत का सम्बन्ध पूर्वी देषों से कहीं अधिक मिठास वाले भी होंगे।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502



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