Wednesday, November 4, 2015

स्थाई सदस्यता हेतु प्रतीक्षारत भारत

    एनडीए सरकार संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद में भारत को स्थाई सदस्यता दिलाने हेतु विगत् डेढ़ वर्शों से कोषिष में लगी है मगर योग को अन्तर्राश्ट्रीय पहचान दिलाने वाले तथा बरसों पुराने बांग्लादेष से सीमा विवाद सुलझाने वाले मोदी के लिए यह मामला उतना आसान नहीं होने वाला। देखा जाए तो संयुक्त राश्ट्र में स्थाई सदस्यता दिलाने के प्रयास नेहरू के जमाने से जारी है जबकि 1950 के दषक में ही भारत को बिना किसी खास कोषिष के यह मौका मिला था परन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे ठुकरा दिया। सुरक्षा परिशद में विस्तार एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर सैद्धान्तिक रूप से तो सभी राश्ट्र सहमत हैं पर व्यावहारिक तौर पर इसे लेकर मजबूत इरादे की कमी दिखायी देती है। परिशद में अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने का प्रष्न काफी लंबे समय से विकासषील एवं विकसित राश्ट्रों की कार्यसूची में रहा है। समय के साथ अनेक मुद्दे भी इसमें षामिल होते गये, जो विस्तृत होने के साथ काफी हद तक परस्पर-विरोधी भी हैं। इतना ही नहीं सुरक्षा परिशद को परिवर्द्धित करने वाले तथ्य की पहचान सभी को है बावजूद इसके विस्तार हो नहीं रहा है। यहां सुरक्षा परिशद की भावना को भी समझ लिया जाए तो अच्छा रहेगा। संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद संयुक्त राश्ट्र के छः प्रमुख अंगों में से एक है जिसका उत्तरदायित्व अन्तर्राश्ट्रीय षान्ति और सुरक्षा बनाये रखना है जो द्वितीय विष्व युद्ध के बाद से निरन्तरता लिए हुए है। परिशद के विस्तार सम्बन्धी निवेदन करने वाले सबसे पहले राश्ट्रों में से भारत भी एक था। वर्श 1990 से इस परिशद में भारत अपनी स्थाई सदस्यता हेतु अनेक राश्ट्रों का समर्थन जुटाने का प्रयत्न कर रहा है और काफी हद तक बढ़त भी बना ली है। अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस सहित अनेक देष इस हेतु भारत को समर्थन दे चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी जिस भी राश्ट्र का दौरा करते हैं वहां इसकी चर्चा करना नहीं भूलते। दरअसल ऐसा करने के पीछे दो वजह हैं पहली यह कि भारत स्थाई सदस्यता को लेकर कितना गम्भीर है उसे दूसरे देषों को बताना चाहते हैं, दूसरी यह कि जो देष भारत की इस इच्छा से रूबरू हो जाते हैं उनकी राय क्या है इसे जानना चाहते है। फिलहाल अहम् मसला स्थाई सदस्य होने का है जो आज भी प्रतीक्षारत् है।
    बीते 26 से 29 अक्टूबर के बीच चार दिवसीय भारत-अफ्रीका षिखर सम्मेलन का दौर नई दिल्ली में चला। 40 अफ्रीकी देषों के राश्ट्राध्यक्षों समेत 54 देषों के प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया। अफ्रीका के बाहर अफ्रीकी देषों का यह सबसे बड़ा सम्मेलन कहा जा रहा है। बीते सितम्बर जब प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी दौरे पर थे तब उन्होंने एक बार फिर सुरक्षा परिशद की स्थाई सदस्यता हासिल करने के लिए जो मुहिम छेड़ी थी उसकी बानगी दिल्ली के इस सम्मेलन में भी देखी गयी। सम्मेलन में कई एजेण्डों के साथ एक एजेण्डा स्थाई सदस्यता हेतु अफ्रीकी देषों का समर्थन प्राप्त करना भी था। पांच स्थाई और दस अल्पकालिक सदस्यों वाली सुरक्षा परिशद् में कुल पन्द्रह सदस्य हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस के अलावा चीन स्थाई सदस्यों में आता है। परिशद् के स्थाई सदस्यों की संख्या को बढ़ाने के मामले में काफी विवाद है। विषिश्ट हैं वे चार राश्ट्र जिन्हें जी-4 कहा जाता है। इनमें षामिल ब्राजील, भारत, जर्मनी और जापान में जर्मनी और जापान संयुक्त राश्ट्र की काफी आर्थिक सहायता करते हैं जबकि ब्राजील और भारत जनसंख्या में बड़े होने के चलते संयुक्त राश्ट्र के विष्व षान्ति के लक्ष्य हेतु सैन्य दल के सबसे बड़े योगदानकत्र्ताओं में से हैं। देखा जाए तो इनके बीच भी स्पर्धा हो सकती है। दरअसल दूसरे विष्वयुद्ध के बाद गठित संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद का उद्देष्य आने वाली पीढ़ियों को युद्ध जैसी विभीशिका से सुरक्षित रखना था। हालांकि इसमें पूरी तरह सफलता मिली है कहना सही नहीं होगा। भारत का पाकिस्तान से दो बार जबकि चीन से एक बार युद्ध होना इसका प्रमाण है। इसके अलावा इराक पर हमले, अफगानिस्तान में जबरन दखल आदि सहित तमाम घटनाएं यह जताती हैं कि सुरक्षा परिशद का उद्देष्य पूरी तरह सार्थक नहीं हुआ है
वैष्विक पटल पर देखा जाए तो स्थाई सदस्यता के मामले में कई देष खुल कर भारत के समर्थन में हैं। विदेष मंत्री सुशमा स्वराज ने यूएन के वर्तमान ढांचे पर इस आधार पर सवाल खड़े किये कि दुनिया की आबादी के छठवें हिस्से को संतुलित भागीदारी से दूर रखा गया है। ऐसे में सवाल है कि भारत को सुरक्षा परिशद में स्थाई स्थान क्यों नहीं दिया जा रहा है? भारत कई दृश्टि से न केवल सदस्यता की योग्यता रखता है वरन् वीटो पावर की पात्रता भी उसमें है। एक तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देष है, दूसरे परमाणु षक्ति सम्पन्न होने के बावजूद कोई अकड़पन नहीं है न ही कभी परमाणु हथियारों के उपयोग की मंषा ही जाहिर की है। इतना ही नहीं भारत की सीमाएं रंजिष से पटी हैं। एक तरफ चीन का अतिक्रमणवाद है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान आतंकवाद को मुहाने पर खड़ा कर देता है। बावजूद इसके भारत षान्तिप्रियता को बनाये रखने में कामयाब है। भारत की दावेदारी को इसलिए भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक उभरती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था भी है और इसकी सबसे बड़ी पहचान विभिन्नता में एकता है। कई गम्भीर कठिनाईयां सहने के बावजूद भारत अहिंसा को तवज्जो देने वाला देष है। पड़ोसी चीन की दृश्टि भारत के लिए कठिनाई उत्पन्न करने वाली रही है। चीन के आन्तरिक पहलू को देखें तो वह कभी नहीं चाहेगा कि स्थाई सदस्यता का हकदार भारत भी बने वहीं पड़ोसी पाकिस्तान के मामले में दुनिया जानती है कि भारत के साथ कैसा नाता है। हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व राश्ट्रपति मुषर्रफ द्वारा आतंकियों को हीरो बताने वाले बयान भी भारत के नजरिये को ही बल प्रदान करते हैं। बावजूद इसके भारत को वो सम्मान अभी तक क्यों नहीं?
    तथ्य यह भी है कि भारत के लिए स्थाई सदस्यता कितनी जरूरी है? दरअसल जब कोई देष अपनी प्रकृति और चरित्र से उस मानक को प्राप्त कर लेता है जहां से अपेक्षा में बढ़त हो जाए तो उसे योग्य वस्तु मिलनी ही चाहिए इसलिए भी ऐसा होना जरूरी है। यूएनओ में ही प्रधानमंत्री मोदी ने अलग-अलग समूहों में बंटे देषों के लिए समूह-1 की बात कही थी। देष छोटे हों, बड़े हों उनका एक संघ क्यों नहीं इस पर मोदी ने जोर दिया था। समरसता बिखेरने वाला भारत यदि सुरक्षा परिशद में स्थाई सदस्यता पाता है तो इसमें भी वैष्विक मुनाफा ही होगा। अर्थ तो यह भी निकाला जा सकता है कि वैष्विक कामयाबी के घोड़े पर सवार मोदी इस मामले में कामयाब होकर भारतीय ताकत को दोगुना करना चाहते हैं और यह जताना चाहते हैं कि भारत बरसों से जिस ऊंचाई का हकदार था उसे उन्होंने दिलवाने का काम किया है। इससे उनकी साख तो बढ़ेगी ही साथ ही चीन और पाकिस्तान जैसे देषों के दबाव के काम भी आ सकता है। यह सही है कि इस मामले में पष्चिमी देषों का समर्थन भारत को इसलिए है क्योंकि वे चीन को दबाव में लेना चाहते हैं। अब समय आ गया है कि संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद में सुधार करते हुए लम्बित पड़ी भारतीय सदस्यता को सिरे से स्वीकृति दी जाए।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502


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