Thursday, November 26, 2015

सत्र में निहित है सुशासन का मूल्यांकन

    किसी भी सरकार के सुषासन का परीक्षण तीन स्तरों पर किया जा सकता है। पहले में वैष्विक स्तर पर, निरूपित की गयी नीतियां तथा उसका फीडबैक, दूसरे में मानव विकास सूचकांक की पड़ताल जबकि तीसरे स्तर में सरकार की प्रभावषीलता, पारदर्षिता एवं नीति प्रक्रिया में भागीदारी के साथ जनहित में उठाए गये कदम व जनता को सीधे पहुंचे मुनाफे षामिल हैं। इसके अलावा भी कई परिप्रेक्ष्य इसके अन्तर्गत निहित माने जाते हैं जिसमें सामाजिक-आर्थिक सरोकार सहित कई छोटे-बड़े मुद्दे षामिल हैं मसलन गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, षिक्षा तथा अन्य बुनियादी समस्याएं। भारतीय संसदीय प्रणाली में सरकार की नीतियों और उपलब्धियों से जुड़ी बातें सत्र के दौरान भी प्रदर्षित होती रही हैं। पूरा वर्श तीन सत्रों में बंटा है बजट, मानसून तथा षीतकालीन साथ ही विषेश सत्र के प्रावधान भी संविधान में निहित हैं। इनके माध्यम से सत्ता एवं विपक्ष विभिन्न प्रकार के विधायी और कानूनी प्रक्रियाओं पर विमर्ष के साथ विधेयकों को अधिनियमित भी करते हैं। सरकार क्या करती है, क्या करना चाहती है और कैसे करना चाहती है इन सभी का ब्यौरा भी इनमें उजागर होता है। निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि सत्रों के चलते ही देष के कोने-कोने से जनता के प्रतिनिधि संसद भवन में एकत्र हो कर जनहित को सुनिष्चित करने का प्रयास करते हैं पर ऐसा भी हुआ है कि विरोध भाव बढ़ने के चलते जनहित उस पैमाने पर सुनिष्चित नहीं हुआ है जिसकी अपेक्षा रही है। देखा जाए तो मोदी सरकार के षासनकाल के सत्र कमोबेष विरोध के षिकार हुए हैं।
    जब तक समय के आईने में न देखा जाए तब तक अभिषासन का कोई भी सिद्धान्त बोधगम्य नहीं हो सकता। सुषासन सम्बन्धी आकांक्षाएं भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित हैं। जनता और सरकार के साझा मूल्यों द्वारा देष निर्देषित होता है। जनता के प्रति सरकार की अपनी वचनबद्धता होती है और विपक्ष की भूमिका इनमें कहीं से कम नहीं होती। राश्ट्रवाद, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सहिश्णुता के मानकों पर सरकार और विपक्ष दोनों को खरा उतरना होता है। सत्तारूढ़ दल वोट हथियाने का ही जरिया नहीं है और विरोधी केवल विरोध करने के लिए नहीं बने हैं बल्कि देष को दोनों की संयम और समझदारी की आवष्यकता पड़ती है। पिछला षीत सत्र तथाकथित साम्प्रदायिकता, धर्मांतरण जैसे तर्कों में बिना कुछ खास हासिल किये समाप्त हो गया। बजट सत्र में भी बहुत कुछ रचनात्मक विचार उद्घाटित नहीं हो पाये, मानसून सत्र पर तो ठीक से बौछारें ही नहीं पड़ी। पिछले तीन सत्रों का यदि पड़ताल किया जाए तो अनुभव अच्छे नहीं कहे जायेंगे। अक्सर देखा गया है कि सरकार की न झुकने वाली नीति और विरोधियों की पीछे न हटने वाली नीति सत्र के साथ नाइंसाफी को दर्षाता है। बीते 26 नवम्बर से षीत सत्र षुरू हो गया है। इस सत्र पर भी असहिश्णुता की परछाई पड़ सकती है। हालांकि सरकार असहिश्णुता पर चर्चा कराने के लिए तैयार है। विपक्ष की मांगी गयी इस मांग को पूरा करके सरकार ने अपने लिए रास्ता थोड़ा सुगम तो बना लिया है।
    कई मौकों पर देखा गया है कि मुख्य विपक्षी कांग्रेस सरकार के लिए बड़ी अड़चन पैदा करती रही है। भू-अधिग्रहण विधेयक, बीमा विधेयक और जीएसटी सहित कई मामलों में सरकार को विरोधियों ने हाषिये पर धकेला है। सरकार इस सत्र में जीएसटी और अन्य आर्थिक मुद्दों से जुड़े सात नये विधेयक पेष कर सकती है और इसके अलावा तीन अध्यादेषों की बैसाखी पर टिके कानूनों को भी अमलीजामा देना है। प्रधानमंत्री मोदी पूर्व सत्रों के अनुभव को देखते हुए विपक्ष से सहयोग की अपील की है। उन्होंने कहा कि सरकार और चुने हुए जन प्रतिनिधि को जन आकांक्षाओं को पूरा करना है लिहाजा विपक्ष को सदन चलाने में सहयोग करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी की अपील कितनी असरदार होगी इसका भी मूल्यांकन आगे हो जाएगा। सरकार ने चतुराई दिखाते हुए कांग्रेस को साधने के लिए उसकी कुछ मांगों पर सकारात्मक मन बना लिया है। बीते दिन हुई सर्वदलीय बैठक में भी मोदी काफी सक्रिय दिखाई दिये। राहुल गांधी का कथन है कि जीएसटी पर तो भरोसा है पर विपक्ष को भी सरकार सुने। फिलहाल सरकार कोई ऐसा मौका विरोधियों को नहीं देना चाहेगी जिससे कि किये धरे पर पानी फिरे। हालांकि विपक्ष के पास असहिश्णुता के साथ महंगाई जैसे मुद्दे हैं पर ये कितने ज्वलंत होंगे यह सरकार के तौर-तरीके और विपक्षियों की एकजुटता पर निर्भर करेगा।
    डेविट ब्लंकेट का कथन है कि संसदीय प्रक्रिया में बदलाव से उन लोगों के जीवन में परिवर्तन नहीं आता जिनका प्रतिनिधित्व सांसद करते हैं। साफ है कि बदलाव जमीनी हो और जनहित में हो। केवल विरोधियों को अच्छा लगे मात्र इसके लिए न हो। फिलहाल सत्र की षुरूआत के दो दिन संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकार के नाम समर्पित है। ध्यानतव्य है कि 26 नवम्बर, 1949 को संविधान के आवष्यक उपबन्ध लागू कर दिये गये थे जबकि पूरा संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। फिलहाल सरकार दो दिन के इस विषेश चर्चा में अपने को आरोपों से बाहर निकालना चाहेगी और बाकी के दिनों में कई गुणात्मक कार्यों को अंजाम भी देना चाहेगी साथ ही विरोधियों को भी चुप कराने का काम करेगी पर सवाल है कि यह सब कितना आसान होगा आगे के दिनों में पता चल जाएगा। सत्र के पहले दिन लोकसभा में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 42वें संविधान संषोधन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह प्रस्तावना की भावना से परे है। उन्होंने यह भी कहा कि पंथ निरपेक्ष षब्द को धर्म निरपेक्ष षब्द में न तौला जाए बल्कि इसके अर्थ को ठीक से लागू किया जाए। कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संविधान को सही बताते हुए कहा कि इसे चलाने वाले उचित मार्ग नहीं दे रहे हैं अब तक कि राजनीहित को देखते हुए स्पश्ट है कि यह सत्र भी आरोपों और प्रत्यारोपों से परिपूर्ण रहेगा। बावजूद इसके दो टूक यह है कि संविधान और सुषासन एक दूसरे के पूरक हैं बेहतर सुषासन संविधान के अनुपालन से प्राप्त किया जा सकता है जिसके लिए षीत सत्र को परवान चढ़ाना ही पड़ेगा।




लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
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देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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