Friday, November 13, 2015

अब मोदी का नमस्ते लन्दन

    26 मई, 2014 को नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने पहली विदेष यात्रा के रूप में पड़ोसी भूटान को चुना तब से अब तक लगभग दो दर्जन देषों की परिक्रमा करते हुए यह यात्रा बीते गुरूवार को ब्रिटेन पहुंची। एक जरूरी बैठक को छोड़कर ब्रिटिष प्रधानमंत्री डेविड कैमरन द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की जोष से भरी अगवानी करना जहां दिलचस्प रहा वहीं ‘नमस्ते लंदन‘ तत्पष्चात् गांधी प्रतिमा का नमन और ब्रिटिष संसद को सम्बोधित करना साथ ही कैमरन के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता आदि मोदी के पुराने अंदाज का ही आगाज़ था जिसके लिए वे जाने और समझे जाते हैं। यूरोप के इस षक्तिषाली देष में उपस्थिति दर्ज कराते ही मोदी ने ताबड़तोड़ वक्तव्य के साथ व्याख्यान भी दिया। कहा कि भारत बुद्ध और गांधी की धरती है और इसकी संस्कृति बुनियादी सामाजिक मूल्यों के खिलाफ किसी चीज को बर्दाष्त नहीं करती। यह वक्तव्य ऐसे समय में आया है जब भारत में असहिश्णुता को लेकर पिछले दो महीनों से माहौल गरम है। लंदन में मोदी ने साफ कहा है कि देष में असहिश्णुता बर्दाष्त नहीं की जाएगी चाहे इसकी एक घटना हो या दो-तीन। सवा अरब की आबादी वाले देष के लिए इस तरह की कोई घटना छोटी है या बड़ी, इसका कोई मतलब नहीं है। हमारे लिए हर घटना गम्भीर है और इसे बर्दाष्त नहीं करेंगे। भले ही प्रधानमंत्री का असहिश्णुता को लेकर विचार लंदन से प्रसारित हुआ हो पर इसका असर देष में कहीं अधिक प्रभावषाली हो सकता है। देर से ही सही मोदी ने असहिश्णुता को लेकर अपनी राय स्पश्ट कर दी है। यह कथन उन्हें भी चुप कराने के काम आ सकता है जो मोदी के न बोलने पर आपत्ति जता रहे थे। इसके अलावा आलोचकों की भी खुराक हो सकती है क्योंकि यह सवाल रहेगा कि वक्तव्य देने में इतनी देर क्यों की गयी? लंदन में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान बीबीसी के एक रिपोर्टर द्वारा 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े सवाल का दागना इस बात का भी संकेत है कि गोधरा कांड को लेकर मोदी से अभी भी विदेषी मीडिया स्पश्टता की दरकार रखती है जबकि उन्हें इस मामले से बरसों पहले बरी किया जा चुका है।
    भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और यहां का संविधान हर किसी को जीवन और उनके विचारों की सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे प्रतिक्रियाओं से युक्त मोदी की विचारधारा इस बात की पूरजोर कोषिष करने में लगी थी कि भारत की पहचान सहिश्णु और समतामूलक है न कि असहिश्णु और अंतर से भरी। विगत् दस वर्शों में ब्रिटेन जाने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि ब्रिटिष संसद को सम्बोधित करने वाले पहले प्रधानमंत्री का गौरव भी इन्हीं के हिस्से में जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि गुजरात दंगे के बाद ब्रिटेन विष्व का पहला देष है जिसने मोदी की वीजा पर रोक लगाया था। हालांकि तथ्यों को सही करते हुए मोदी ने कहा कि वे 2003 में ब्रिटेन गये थे और उन्हें कभी यहां आने से रोका नहीं गया। यह एक गलत धारणा है और इसे सही करना चाहता हूं। उन्होंने ब्रिटिष संसद के सम्बोधन के दौरान ‘सबका साथ, सबका विकास‘ और सरकार का विज़न क्या है इसे भी स्पश्ट किया। भारत में बदलाव आ रहा है और इसे देख सकते हैं जैसी तमाम बातों के साथ 25 मिनट चले सम्बोधन में मोदी ने ब्रिटेन की संसद को काफी हद तक यह भी एहसास दिलाया कि अब भारत की एहमियत तुलनात्मक भिन्न ही नहीं बल्कि कहीं अधिक भारयुक्त भी हुई है। पहले प्रधानमंत्री नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक की चर्चा करना और यह कहना कि आधुनिक भारत को बनाने वाले लोग यहीं से पढ़े थे आदि तमाम बातें ब्रिटिष नेताओं को बड़ी रास आई है। आतंकवाद के मामले में भी मोदी ने पाकिस्तान को घेरा और कहा कि आतंकियों को पनाह देने वालों को अलग-थलग करें, ब्रिटेन ने भी इस मसले पर भारत का साथ देने की बात कही है। हालांकि आतंकवाद को लेकर दोनों देषों के संयुक्त कार्यदल दिसम्बर 2008 में नई दिल्ली में पहले भी बैठक कर चुके हैं।
    सकारात्मक परिप्रेक्ष्य में देखें तो ब्रिटिष उपनिवेष के समय से ही भारत और ब्रिटेन में राजनीतिक संधियां होती रही। इस क्रम में भारत की प्रषासनिक संरचना, लोक सेवाएं, भारतीय रेल, आधुनिक प्रेस, टेलीग्राफ आदि षामिल रही हैं। भारत अपनी स्वतंत्रता के तुरंत बाद ब्रिटिष राश्ट्रमण्डल का सदस्य बना था। दोनों देषों में संसदीय लोकतंत्र, विधि का षासन तथा मानवाधिकारों का सम्मान जैसी अनेकों समानताएं विद्यमान हैं। ब्रिटेन में बड़ी संख्या में अनिवासी भारतीय हैं जो ब्रिटेन के आर्थिक और राजनीतिक परिवेष पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। भारतीय मूल के लार्ड स्वराज पाॅल, लार्ड मेघनाथ देसाई, नवनीत ढोलकिया आदि की प्रमुख भूमिका यहां रही है। भारत द्वारा सुरक्षा परिशद् में स्थाई सदस्यता प्राप्त करने के प्रयास पर ब्रिटेन पहले से ही समर्थन देता रहा है जिसे उसने एक बार पुनः दोहराया है। दोनों देषों के बीच आर्थिक समझौते भी तेजी से बढ़ रहे हैं। माॅरीषस, सिंगापुर के बाद ब्रिटेन तीसरा देष है जो भारत में सर्वाधिक निवेष करता है। लंदन के गिल्ड हाॅल में कारोबारियों के साथ मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें निवेष के लिए न केवल उकसाया बल्कि भारत को इस हेतु सबसे बेहतर स्थान भी बताया। उन्होंने कहा कि नई निवेष नीति के बाद भारत दुनिया में विदेषी निवेष के लिए सबसे खुले देषों में से एक हो गया है। संधियों के क्रम को आगे बढ़ाते हुए मोदी और कैमरन की अगुवाई में नौ अरब पौंड का नया समझौता किया गया जिसमें असैन्य परमाणु करार के साथ रक्षा और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में मिलकर काम करने के अलावा कई अन्य मसौदे देखे जा सकते हैं।
    तीन दिवसीय ब्रिटेन यात्रा पर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी को लंदन में जहां ब्रिटिष प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ‘गार्ड आॅफ आॅनर‘ के साथ स्वागत किया और ताज होटल पर मौजूद समर्थकों ने मोदी-मोदी के नारे लगाये वहीं कुछ संगठनों ने इनके खिलाफ प्र्रदर्षन भी किया जिसमें गुजराती, सिक्ख, कष्मीरी, तमिल, नेपाली आदि षामिल थे जो मोदी वापस जाओ के नारे लगा रहे थे और डेविड कैमरन को षेम-षेम कहा गया। इसके अलावा सलमान रूष्दी और नील मुखर्जी सहित दो सौ से अधिक जाने-माने लेखकों ने कैमरन को पत्र लिखकर कहा था कि वे मोदी के सामने असहिश्णुता का मुद्दा उठायें। हालांकि देखा जाए तो भारत-ब्रिटेन सम्बंधों को प्रगाढ़ बनाने में कई बातों के साथ आर्थिक और व्यापारिक नीतियां भी बरसों से महत्वपूर्ण रही हैं। दोनों पक्षों के बीच अनेक अन्तर्राश्ट्रीय मुद्दों पर दृश्टिकोणों में समानता रही है। ब्रिटिष संसद को सम्बोधित करते समय प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान को लेकर भी राय दी उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा अफगानिस्तान चाहता है जो वहां के महान लोगों के सपनों के अनुसार हो हालांकि इसके पूर्व दोनों देष आफगानिस्तान में स्थायित्व लाने और पुर्ननिर्माण की प्रतिबद्धता बरसों पहले मनमोहन काल में ही जता चुके हैं। द्विपक्षीय समझौते में भारत की कई खास बातें हैं जिसे ब्रिटेन अहमियत दे सकता है साथ ही डिजीटल इण्डिया, स्किल इण्डिया और मेक इन इण्डिया आदि में ब्रिटेन अच्छा सहभागी हो सकता है। मोदी ने कहा कि भारत-ब्रिटेन एक-साथ चलें तो कमाल हो जाएगा। पष्चिम के देषों और यूरोपीय संघ में जो साख ब्रिटेन की है उसे देखते हुए अंदाजा लगाना सहज है कि यह तीन दिवसीय यात्रा भारत को यूरोप में आर्थिक और व्यापारिक संतुलन के साथ कूटनीतिक सफलता अर्जित करने में भी मददगार सिद्ध होगा।


सुशील कुमार सिंह
लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल तथा रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं।
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