Friday, October 30, 2015

एकता के प्रतीक सरदार पटेल

इतिहास में रचे बसे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी विभूतियों को याद करने में प्रधानमंत्री मोदी कोई कोताही नहीं बरतते हैं। सरदार पटेल की जयंती को एकता दिवस के रूप में प्रतिस्थापित करने का विचार पिछले वर्ष इसी सोच का परिणाम था। 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड गांव में जन्में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आजादी की लड़ाई में न केवल सक्रिय भूमिका निभाई बल्कि वे किसानों के भी मसीहा थे। पटेल स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री थे। भारत में फैली सैकड़ों रियासतों को एक सूत्र में पिरोने के लिए जाने जाते हैं। किसानों के हित में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले वल्लभ भाई पटेल को जहां बरदौली की महिलाओं ने सरदार की उपाधि दी वहीं रियासतों के एकीकरण में निभाई गयी भूमिका के लिए उन्हें लौह पुरुष की संज्ञा दी गई। सरदार पटेल को भारत का विस्मार्क भी कहा जाता है।
भारतीय रियासतें छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटी थी। जिनकी संख्या 565 थी। स्वतंत्रता के समय ब्रिटिष षासन ने घोशणा की थी कि रजवाड़े या तो भारत में या पाकिस्तान में षामिल हो सकते हैं। चाहें तो स्वतंत्र अस्तित्व भी बनाये रख सकते हैं। भारतीय इतिहास का यह समय अतिरिक्त जटिलता एवं संवेदनषीलता लिए हुए था। रियासतें कहां जायंगी इसका निर्णय राजाओं को करना था, न कि प्रजा को। साथ ही अधिकांष रियासतें स्वतंत्र अस्तित्व चाहती थी। ऐसे में देषी रियासतों का भारत में विलय तथा अखण्ड भारत का निर्माण अपने-आप में एक बड़ी चुनौती थी। इन सब के बावजूद अखण्ड भारत की परिकल्पना को भी मुरझाने नहीं देना था। ऐसे में कठोर निर्णय लेने की आवष्यकता आन पड़ी। फलस्वरूप अन्तरिम सरकार के प्रधानमंत्री नेहरू ने सरदार पटेल की नेतृत्व प्रतिभा को देखते हुए उन्हें रियासत मंत्रालय का जिम्मा दिया। चट्टानी इरादों वाले सरदार पटेल 22 जून से 15 अगस्त 1947 के बीच अल्प समय में ही 562 रियासतों को भारत में विलय करके नेहरू के विष्वास पर पूरी तरह खरे उतरे। इस दौर में वल्लभ भाई पटेल ने वाकई में सरदार की भूमिका निभाई थी। जूनागढ़, हैदराबाद एवं जम्मू-कष्मीर अभी भी भारत विलय से अछूते थे। विलय के दौर में जहां एक ओर सामाजिक-सांस्कृतिक समस्यायें चुनौती दे रहीं थी वहीं दूसरी ओर धार्मिक कठिनाईयाँ भी थीं परन्तु इससे कहीं अधिक दृढ़ सरदार पटेल के इरादे थे।
जूनागढ़ में मुस्लिम नवाब और हिन्दू बाहुल्य प्रजा थी। नवाब पाकिस्तान में षामिल होना चाहता था। यहां स्थानीय जनता ने विरोध किया। अन्ततः फरवरी 1948 में जूनागढ़ का भारत में विलय हुआ। हैदराबाद एक बड़ी देषी रियासत थी। पाकिस्तान की सहायता से यहां का नवाब स्वतंत्र राश्ट्र बनाने की योजना में था। सितम्बर, 1948 में भारतीय सैन्य कार्यवाही के चलते हैदराबाद का विलय सम्भव हुआ। जहां तक सवाल जम्मू-कष्मीर का है यहां के षासक हिन्दू और प्रजा मुस्लिम थी। षुरूआती दिनों में षासक हरि सिंह स्वतंत्र अस्तित्व चाहते जरूर थे परन्तु जब अक्टूबर, 1947 में पाकिस्तानी सेना ने कबिलाइयों के भेश में कष्मीर पर आक्रमण किया तब हरि सिंह ने भारत से मदद की अपील की। सरदार पटेल ने कूटनीतिक कदम उठाते हुए पहले विलय पत्र पर हस्ताक्षर कराये तत्पष्चात् भारतीय सेना ने कष्मीर में हस्तक्षेप किया। ऐसे में अखण्ड भारत निर्माण के चलते इतिहास में सरदार पटेल एकता के प्रतीक माने गये।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लोकसभा के चुनावी अभियानों के दौरान सरदार पटेल को महत्व देते हुए अमेरिका के ‘स्टैचू आॅफ लिबर्टी‘ से भी ऊँची सरदार पटेल की मूर्ति ‘स्टैचू आॅफ यूनिटी‘ के रूप में निर्माण करने की बात कही थी। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि मूर्ति निर्माण हेतु देष के किसानों से लोहा इकट्ठा किया जाएगा। दरअसल मोदी, सरदार पटेल द्वारा किए गए ऐतिहासिक कृत्यों को नए रूप में यादगार बनाना चाहते हैंे। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरदार पटेल जमीनी नेता थे। किसानों के षोशण के प्रति अंग्रेजों से लोहा लेते थे। साथ ही उनकी छवि सख्त नेतृत्व के तौर पर पहचानी जाती थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी गुजरात के वल्लभ भाई पटेल को जो देष के सरदार है उन्हें सम्मान देना नहीं भूले और पिछले वर्श 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती को एकता दिवस के रूप में मनाने की घोशणा की। इससे यह परिलक्षित होता है कि मोदी सरकार उन इतिहास पुरूशों को कहीं अधिक तवज्जो देने की कोषिष में है जिनके बगैर भारत की परिकल्पना संभव नहीं थी। इससे पहले वे सर्वपल्ली राधाकृश्णन जयन्ती को टीवी एवं रेडियो के माध्यम से षिक्षक दिवस को अतिरिक्त प्रभावषाली बना चुके हैं। 2 अक्टूबर गांधी जयन्ती के दिन को स्वच्छता अभियान कार्यक्रम के नाम कर चुके हैं। इसके अलावा 14 नवम्बर नेहरू जयन्ती जो बाल दिवस के रूप में प्रतिश्ठित है उसे भी नया रूप देने की भी कोषिष कर चुके हैं।
इतिहास में पटेल की भूमिका अत्यंत अद्वितीय है परन्तु इसके अनुपात में कांग्रेस सहित अन्य सरकारों ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जो लौह पुरूश को मिलना चाहिए था। बड़ा सवाल यह है कि पिछले 65 वर्शों में पटेल को सम्मान के मामले में पीछे क्यों रखा गया जबकि समकालीन नेता नेहरू सम्मान को लेकर अतिरिक्त प्रभावषाली स्थान रखते हैं। 1992 में जब सरदार पटेल को भारत रत्न की उपाधि दी गयी तो ठीक उसी समय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी यही सम्मान प्रदान किया गया था। यहां यह मुद्दा उठाना लाजमी है कि नेहरू के समकालीन पटेल को चार दषकों तक ‘भारत रत्न‘ देने से क्यों वंचित रखा गया? जबकि नेहरू सहित कई समकालीन महापुरूशों को यह सम्मान षुरूआती वर्शों में ही प्राप्त हो गया था। समय के साथ कई महापुरूश इतिहास में धुंधले पड़ गये। ऐसे में छूटे हुए महापुरूशों को मोदी ने महत्व देने का जो काज किया है वह वाकई सराहनीय है। सरदार पटेल इतिहास के छुपे हुए पन्नों की तस्वीर नहीं हैं, न ही कोई रहस्य हैं बल्कि भारत के एकीकरण के वे दूत हैं जहां पर वर्तमान भारत बसता है। इस सच को भी पूरे मन से मान लेना चाहिए कि ऐसे इतिहास पुरूशों को यदि सम्मान दे दिया जाय तो इससे देष का ही गौरव बढ़ता है। 31 अक्टूबर को पटेल जयन्ती के परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री का एकता के प्रतीक का यह दिवस भारत में असीम ताकत को जन्म दे सकता है। इतना ही नहीं ऐसे लोगों की गौरवगाथा से आने वाली पीढ़ियाँ भी अनभिज्ञ नहीं रह सकेंगी। देष के किसानों में भी ऐसी विभूतियों को लेकर एक अलग विमर्ष तैयार होगा साथ ही देष निर्माण को लेकर युवाओं में एक सकारात्मक अवधारणा का विकास भी संभव होगा। इन सभी के अलावा देष को इतिहास में समायी उन विभूतियों को समझने तथा जानने का अवसर मिलेगा जिससे समाज आज भी आंषिक रूप में वंचित है।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502



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