Tuesday, October 6, 2015

एक गांव जो सियासत के केंद्र में

    इन दिनों देष के फलक पर दादरी का एक गांव बिसाहड़ा को देखा जा सकता है जिसके अर्ष पर आने का मूल कारण गौमांस है पर घटना की रचना सवालों के घेरे में है। इस घटना ने गांव की तस्वीर बदल कर रख दी है। किसी-न-किसी नेता की रोजाना यहां हाजिरी लग रही है। राहुल गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक बिसाहड़ा जा चुके हैं। उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री अखिलेष यादव ने चतुराई दिखाते हुए मुआवजे और नौकरी का एलान कर लखनऊ में ही रहना और वहीं मिलना मुनासिब समझा जबकि इन्हीं के मंत्री आजम खां  इस गांव को भारत के फलक से बाहर ले जा कर संयुक्त राश्ट्र के दीर्घा तक पहुंचाना चाहते हैं। मीडिया के जमावड़े और नेताओं के दौरे से ऐसा नहीं है कि सब कुछ सही है परेषानी का सबब यह है कि एकतरफा रिपोर्टिंग का आरोप लगाते हुए गांव के लोग मीडिया को खदेड़ने जैसी समस्याओं से  भी जूझ रहे है। जिस तरह से मामला प्रकाष में आया अभी वह छानबीन और धर पकड़ का विशय है। इलाका धारा 144 का सामना कर रहा है, दहषत में लोग गांव भी छोड़ रहे हैं। एक हत्या के बाद हिंसा तो थम गयी है लेकिन मन का डर अभी बना हुआ संवेदनषील मुद्दा यह है कि इस गांव में जो घटित हुआ वह अत्यंत अफसोसजनक है पर इसको लेकर जो तुश्टीकरण की राजनीति हो रही है वह वाकई में कहीं अधिक अफसोसजनक है।
ग्रेटर नोएडा के दादरी में लाउडस्पीकर से अनाउन्समेंट के बाद जिस तरह अखलाख की हत्या हुई उसने कई गम्भीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बातें यह आ रही हैं कि बीते माह की 28 तारीख को मोहम्मद अखलाख ने कथित तौर पर एक बछड़ा काटा था और उसके घर में बीफ पाये जाने के चलते सैकड़ों लोगों ने उसकी हत्या कर दी। अब आरोप यह भी है कि मन्दिर के लाउडस्पीकर से गौमांस पकाने की अफवाह उड़ी थी जबकि गांव के लोगों का कहना है कि सोषल मीडिया के चलते ऐसी अफवाह आई थी। अब क्या सच है समझना कठिन तो है पर यह साफ है कि मामला साम्प्रदायिक रंग ले लिया। देष की एक बड़ी समस्या यह रही है कि धर्म की खींचातानी में कई लोग बेवजह षिकार हुए हैं। हत्या का संदर्भ का एक ओर संदेहास्पद होना और दूसरी ओर बिना सोचे-समझे अंजाम तक पहुंचना निहायत संकुचित दृश्टिकोण का उजागर होना कहा जा सकता है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेष की इस घटना ने बिहार की राजनीति में भी काफी तूफान लाया है। लालू प्रसाद यादव का बयान मुस्लिम तुश्टिकरण की राजनीति की परिचायक प्रतीत होती है। गाय के मांस पर हो रही राजनीति पर कई सियासतदानों को इस प्रकार की सियासत करने का भरपूर अवसर मिल गया है। लालू प्रसाद का बयान है कि कोई भी सभ्य आदमी बीमारी की वजह से गाय का मांस नहीं खाता। गाय का मांस मुस्लिम भी खा रहे हैं और हिन्दू भी विदेषों में जाकर खा रहे हैं। इस बयान से हिन्दू और मुसलमान दोनों हैरान होंगे। मुसलमान सोचता होगा लालू ने उन्हें अप्रत्यक्ष ही सही असभ्य कहा है और हिन्दू की हैरानी यह है कि उसे भी इस मामले में नहीं बक्षा गया। बिहार के ही नेता सुषील मोदी ने कहा कि वोट के लिए लालू गौमांस भी खा सकते हैं।
    उपरोक्त राजनीति आरोप-प्रत्यारोप से है। एक प्रकार से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का डर भी इसमें समाया हुआ है। उत्तर प्रदेष में समाजवादी पार्टी की सरकार है जाहिर है अखिलेष यादव भले ही कानूनी दायित्व न संभाल पा रहे हों पर नैतिक दायित्व में पीछे क्यों रहें। उन्होंने मृतक परिवार को 45 लाख रूपए और एक नौकरी देने को भी कहा है साथ ही यह भी कहा कि पीड़ित परिवार को इंसाफ मिलेगा। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह बिसाहड़ा गांव की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए इसे राजनीतिक रंग न देने की अपील की। उत्तर प्रदेष सरकार में ही षहरी विकास मंत्री आजम खां ने मामले को संयुक्त राश्ट्र में उठाने की बात कही। अन्तर्राश्ट्रीय सियासत का जो मन आजम खां का है उससे क्या हासिल होगा समझ के परे है। गाय और गौमांस पर की जाने वाली सियासत कहीं अधिक पुरानी है। भारत में गाय, बछड़ा, बछिया, बैल और सांड के मांस पर निर्यात प्रतिबंधित है। निर्यात किये जाने वाले बीफ में भैंस और भैंसा का मांस होता है। 1956 में गौ हत्या निरोधक अधिनियम विनोबा भावे की पहल पर अस्तित्व में आया था। कुछ राज्यों में गौ हत्या पूरी तरह प्रतिबंधित है। जम्मू-कष्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखण्ड, यूपी, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेष, महाराश्ट्र, चण्डीगढ़ और दिल्ली प्रतिबंधित प्रदेषों में आते हैं। हरियाणा में तो गौ हत्या पर एक लाख का जुर्माना व पांच साल की सजा का प्रावधान है पर कई राज्यों में अभी भी इस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है जिसमें पूर्वोत्तर सहित केरल, पष्चिम बंगाल, सिक्किम और लक्ष्यद्वीप षामिल हैं।
    गौ हत्या एक ऐसा धार्मिक संदर्भ है जिसे लेकर साम्प्रदायिक संदर्भ का विकसित होना स्वाभाविक है। देष भर में प्रतिवर्श दो करोड़ गाय बेमौत मारी जाती हैं। स्वाद लेने वाले यह भूल जाते हैं कि जीवन एक सहचर्य व्यवस्था है एक के न होने पर दूसरे का अस्तित्व खतरे में होता है। कुल मिलाकर जिस प्रकार मनुश्यों की कुरीतियों की षिकार ये बेजुबान गाय हो रही हैं उसे लेकर सरकार की ओर से भी संवेदना दिखाने की आवष्यकता है। मामला सिर्फ स्वाद का नहीं है जब एक मांस का टुकड़ा सैकड़ों का दिमाग फेर सकता है और मामला हत्या तक पहुंच सकता है तो इसकी संवेदना को बारीकी से समझा जा सकता है। जस्टिस काटजू भी बनारस हिन्दू विष्वविद्यालय में एक व्याख्यान के दौरान गैर संवेदनषील बयान देकर अपनी मनःस्थिति का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि गौमांस खाता हूं और खाता रहूंगा कौन रोकेगा। सवाल है कि ऐसे वक्तव्य की क्या जरूरत है। क्या गाय और गौमांस को लेकर बात सियासत तक ही रहेगी या सभ्यता बचाने के लिए इनकी सुरक्षा भी की जाएगी।

लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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