Tuesday, October 20, 2015

विरोध की संस्कृति में गैर मर्यादित न हो लोकतंत्र

    वैसे तो लोकतंत्र में सभी को समान और समुचित अधिकार के साथ विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है मगर लोकतंत्र की अपनी सीमा और मर्यादा है। इसके उल्लंघन की स्थिति में विरोध ही अपना असर खो देता है। विरोध और दबाव की राजनीति लोकतंत्र के ही दो असरदार आयाम हैं परन्तु यदि इनकी दिषा और दषा पर काबू न रखा जाए तो यही लोकतंत्र गैरमर्यादित भी हो सकता है। असल में इन दिनों देष में षिवसेना और हिन्दू सेना इसी प्रकार के विरोध पर उतारू हैं पर यह मर्यादा के अन्दर है या बाहर इस पर विमर्ष होना जरूरी है। विरोध की मुख्य वजहों में कुछ आन्तरिक मसलें हैं तो कुछ पाकिस्तान से सम्बन्धित हैं। बीते दिन षिवसेना का विरोध षषांक मनोहर की मेज तक पहुंचा। वजह थी भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट बहाली को लेकर बैठक करना। विरोध के चलते न केवल बैठक रद्द की गयी बल्कि पाकिस्तान के क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष षहरयार के विरूद्ध नारे भी लगाये गये। ‘षहरयार वापस जाओ‘ के खूब नारे लगे यह घटना भारतीय राश्ट्रीय आंदोलन के उन दिनों को ताजा कर देती है जब 1928 में भारतीयों द्वारा ‘साइमन वापस जाओ‘ के नारे लगाये जा रहे थे। फिलहाल भविश्य में दोनों देषों के बीच क्रिकेट सीरीज़ नहीं होगी ऐसा वातावरण तो बन गया है। असल में सभी के विरोध के अपने तरीके हैं प्रजातंत्र में विरोध की कोई संविदा नहीं है पर असहमति की स्थिति में क्या कदम उठेंगे इसकी सीमा भी तय नहीं है। ऐसे में यह संगठन या व्यक्ति पर निर्भर करता है कि विरोध कितने ऊँचे स्वर में करेगा। हालांकि षिवसेना का पाकिस्तान के मामले में अड़ियल रवैया हमेषा से रहा है बरसों पहले मुम्बई के वानखेड़े स्टेडियम को इन्हीं षिवसैनिकों ने रातों रात पिच खोद दिया था क्योंकि यहां पर भारत-पाकिस्तान का मैच होना था। ऐसी और भी तमाम घटनाओं का उल्लेख किया जा सकता है।
वर्तमान में जिस भांति विरोध की संस्कृति उत्तर से दक्षिण में धमाल मचाये हुए है उसे देखते हुए यह समझना आसान है। एक षिवसैनिकों का विरोध जो पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक कदम के चलते हो रहा है जबकि दूसरा हिन्दू सेना का विरोध जिसके इर्द-गिर्द गाय और गौमांस है। हिन्दू सेना देष में गौवंष की रक्षा-सेवा और अविरल गंगा, निर्मल गंगा और गीता को राश्ट्रीय ग्रन्थ घोशित करने की मांग के साथ बरसों से कार्य करती रही है। इन संगठनों की प्रकृति ऐसे मामलों में तनिक मात्र भी पीछे हटने के लिए नहीं जानी जाती है। लिहाजा इनका विरोध और दबाव इनका स्वाभाविक काज बन जाता है। जाहिर है इन दिनों पाकिस्तान से भारत सरकार भी खार खाए हुए है और प्रधानमंत्री मोदी भी पाकिस्तान से बातचीत बंद किए हुए है। सितम्बर में संयुक्त राश्ट्र संघ में भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से हाय-हैलो से आगे बात नहीं बढ़ी। दरअसल पाकिस्तान अपनी आदतों से न तो ऊपर उठना चाहता है और न ही सीमा पर हमारी चिंता करता है। ऐसे में सरकारी स्तर पर बातचीत का अमल में न होना समझा जा सकता है। इसके अलावा गाय और गौमांस का मामला भी इन दिनों देष को आन्तरिक झंझवातों में उलझा दिया है। कोई बीफ पार्टी दे रहा है तो कोई गौमांस को लेकर अनाप-षनाप बयान दे रहा है। समझने वाली बात यह है कि गाय और गौमांस पर राजनीति हिन्दू संगठनों को नागवार गुजरती है। जो सियासतदान इन मामले में कहीं अधिक कट्टर हैं उनके बयानों से भी मामला तपिष में है। बावजूद इसके सुधींद्र कुलकर्णी और बीसीसीआई जैसों ने पाकिस्तान को लेकर सकारात्मक होने की कोषिष की तो अब्दुल राषिद जैसे जम्मू कष्मीर के निर्दलीय विधायक लोगों को गौमांस का स्वाद चखा रहे हैं। ये तमाम कारण षिवसेना एवं हिन्दू सेना के विरोध के लिए पर्याप्त थे। यदि इनके जैसे संगठनों का आधारभूत प्रसंग न समझा जाए तो पूरी बात स्पश्ट करना सम्भव नहीं होगा। असल में ऐसे मसलों पर इन संगठनों का विरोध होना लाजमी है क्योंकि ये इनकी आधारभूत संरचना में ही षामिल है। बावजूद इसके यदि इसे तफ़सील से समझे बगैर किसी नतीजे पर पहुंचा गया तो ऐसे संगठनों के प्रति पूरा न्याय भी सम्भव नहीं होगा।
    सुधींद्र कुलकर्णी ने पाकिस्तान के पूर्व विदेष मंत्री अहमद कसूरी की पुस्तक ‘नीदर ए हाॅक, नाॅर ए डव‘ के विमोचन के लिए एक समारोह आयोजित किया। यह कार्यक्रम षिवसैनिकों के लिए तिलमिलाने वाला था लिहाजा कुलकर्णी के चेहरे को गाढ़ी स्याही से पोत दिया गया। हालांकि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के साथ समारोह सम्पन्न हुआ और कुलकर्णी कालिख ने पुते चेहरे के साथ किताब विमोचन करने में फतह हासिल कर ली। असल में समस्या यह है कि लोकतंत्र प्रत्येक के लिए भिन्न रूप ले लेता है। ऐसे में विरोध करने वाली नीति कहीं न कहीं लोकतंत्र का उपहास उड़ा देती है पर इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी था कि देष का माहौल पाकिस्तान को लेकर समुचित था या नहीं। हालात के मद्देनजर देखा जाए तो माहौल अनुकूल नहीं था पर इसका यह तात्पर्य नहीं कि विरोध में मर्यादा का ध्यान ही न रखा जाए। भाजपा के वरिश्ठ नेता लाल कृश्ण आडवाणी ने भी इस घटना की निन्दा की थी। सुधींद्र कुलकर्णी को आडवाणी के नजदीकियों में गिना जाता है। रही बात हिन्दू सेना के कार्यकत्र्ताओं की तो इन्होंने भी जम्मू-कष्मीर के निर्दलीय विधायक राषिद पर कालिमा बिखेर दी। प्रेस वार्ता के दौरान घटी इस घटना में एक बार पुनः राषिद को यह चेता दिया कि बीफ पार्टी उनके लिए कितनी बड़ी मुसीबत थी। यहां भी नारे लगे गौमाता का अपमान नहीं सहेंगे। देखा जाए तो कुछ ने ज्यादती भी की है। विधायक को देष के हालात को ध्यान में रखते हुए बीफ पार्टी वाला कदम नहीं उठाना चाहिए था। कुछ मुस्लिम संगठनों का भी मानना है कि जिस कार्य से हिन्दू धर्म को ठेंस पहुंचती है उसे किया ही क्यों जाए? कुछ मुस्लिम वर्ग की भी गाय और गौमांस को लेकर सकारात्मक राय देखी जा सकती है।
    सवाल तो यह भी है कि जब देष में पाकिस्तान को लेकर अच्छी राय नहीं है तो क्रिकेट बहाल करने की क्या जरूरत है? यदि ऐसा होता है तो एक लिहाज से भारत पाकिस्तान की ही मदद कर देगा जबकि भारत पाकिस्तान के द्वारा की जाने वाली सीमा पर गोलाबारी और वहां से भेजे गये आतंकियों से प्रताड़ना झेल रहा है। पाकिस्तान के पूर्व राश्ट्रपति मुषर्रफ भी कई बार टेलीविजन पर भारत को चुनौती देने की घटिया हरकत कर चुके हैं। नवाज षरीफ रूस के उफा में भारत से किये गये वायदे से इस्लामाबाद में पलट गये। पाकिस्तान जम्मू-कष्मीर के मामले में संयुक्त राश्ट्र संघ में जाने से तनिक मात्र भी नहीं हिचकिचाता। हद तो तब हो गयी जब इस बार उसने झूठी षिकायत की कि भारत ही उससे बातचीत नहीं करना चाहता। इसके अलावा भारत की सीमा में पकड़े गये आतंकवादियों को अपना नागरिक मानने से भी इंकार करता है। लाख टके का सवाल यह है कि आतंक की पाठषाला चलाने वाले झूठे पाकिस्तान और देष में फैली असहिश्णुता से क्या भारत कराह नहीं रहा है ऐसे में व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तथाकथित विरोध और दबाव अहिंसा के दायरे में हो तो इसे लोकतंत्र के साथ किया गया संवाद ही कहेंगे पर इसके गैरमर्यादित होने की स्थिति में लोकतंत्र को ही हाषिये पर फेंकने की कवायद हो जाएगी।



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502


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