Friday, October 2, 2015

वैश्विक कार्यक्रम बनता डिजिटल इंडिया

    सिलिकाॅन वैली की कम्पनियां प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल इण्डिया अभियान को जहां एक ओर गेमचेन्जर के रूप में देख रही हैं वहीं आत्मविष्वास से भरे मोदी ने जिस कूबत के साथ भारत का डिजिटल चित्र प्रस्तुत किया वह भी सभी की आंखों में कमोबेष उतरता प्रतीत होता है जिसे एक बड़ी सफलता के रूप में चिन्ह्ति किया जा सकता है। कैलिफोर्निया के सिलिकाॅन वैली में आधी से अधिक कम्पनियां बाहर से आये लोगों ने ही बनायी है जिसमें बहुतायत में भारतीय हैं। यहां का मात्र एक फाॅर्मूला कामयाबी है जो नये आइडिया, जोखिम और  रणनीति पर निर्भर है। डिजिटल इण्डिया नाम से महत्वकांक्षी परियोजना को धरातल पर उतारने की मुहिम मोदी षासनकाल का मानो सबसे चहेता कार्यक्रम हो। देष के आम जनजीवन को सूचना तकनीक के माध्यम से बेहतर बनाने और अमीर व गरीब के बीच की दूरी पाटने के अभियान के रूप में भी इसे समझा-बूझा जा रहा है। इसमें भी कोई षक नहीं है कि मोदी के सुषासन की अवधारणा डिजिटल इण्डिया से ही होकर गुजरती है। भारत सरकार की एक ऐसी पहल जिसके माध्यम से सरकारी विभागों को देष की जनता से जोड़ना है। ऐसा कार्यक्रम जिसके लिए सरकार ने 1,13,000 करोड़ का बजट रखा है। 2.5 लाख पंचायतों समेत छः लाख से अधिक गांवों को ब्राॅडबैंड से भी जोड़ने का लक्ष्य इसमें समाहित है। अब तक 55 हजार पंचायतें इससे जोड़ी भी जा चुकी हैं। इन पंचायतों को ब्राॅडबैण्ड से जोड़ने हेतु 70 हजार करोड़ रूपए के बजट का प्रस्ताव देखा जा सकता है। इतना ही नहीं 1.7 लाख आईटी पेषेवर तैयार करने का लक्ष्य भी इसमें षामिल है। डिजिटल इण्डिया की वजह से ही केन्द्र सरकार ने इलैक्ट्राॅनिक स्किल डवलेप्मेंट योजना की षुरूआत की है जो देष के लोगों को सरकार से सीधे जोड़ने का रोडमैप है।
    डिजिटल इण्डिया के माध्यम से इतिहास बदलने और देष की तस्वीर बदलने की जो धारणा प्रधानमंत्री में निहित है उसे देखते हुए इसकी वैष्विक गौरवगाथा होना लाजमी है। कैलिफोर्निया में जिस भांति डिजिटल इण्डिया का डंका बजा उसे देखते हुए इसे संदेह से परे भी कहा जा सकता है। सिलिकाॅन वैली में प्रौद्योगिक कम्पनियों द्वारा की गयी घोशणाएं इसे और पुख्ता बना देती हैं। गूगल द्वारा पांच सौ भारतीय रेलवे स्टेषनों को वाई-फाई के मामले में मदद करना, 5 लाख गांवों को ब्राॅडबैंड कनेक्टिविटी के लिए माइक्रोसाॅफ्ट का साझेदारी हेतु रजामंद होना साथ ही क्वालकाॅम और एप्पल जैसी कम्पनियों का मोदी मिषन के साथ होना इसकी सफलता की बढ़ी हुई दर ही है। प्रधानमंत्री मोदी विदेषी दौरों में ‘मेक इन इण्डिया‘, ‘स्किल इण्डिया‘ और ‘डिजिटल इण्डिया‘ की बयार बहाते रहे हैं। भारत में इसे नये आर्थिक सुधारों के संकेत के रूप में भी जांचा और परखा जा सकता है। कारोबारी दृश्टि से भी ऐसी योजनाएं देष की बेहतरी के लिए कारगर सिद्ध हो सकती है। भारत सरकार 21वीं सदी के नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वे सारे इंतजाम करना चाहती है जिससे सर्वोदय की अवधारणा का बाखूबी विस्तार हो सके। सकारात्मक प्रभाव की दिषा में डिजिटल इण्डिया एक बड़ी क्षमता से अभिभूत है। भारत को डिजिटल रूप से सषक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने की इसमें कूबत है।
    सषक्त समाज क्या होता है तथा ज्ञान की पूंजी और उसकी अर्थव्यवस्था क्या होती है इसे विस्तार से समझना हो तो डिजिटल इण्डिया में झांका जा सकता है। डिजिटल भाव को परियोजना युक्त करने की कवायद एक वर्श पुरानी है जिसकी बाकायदा 20 अगस्त, 2014 को षुरूआत हुई थी। जब कोई भी देष सषक्त होने की चाह रखने लगता है तो निहित उद्देष्य परिवर्तन की धारा ले लेते हैं तथा नई संभावनाएं उभरने लगती हैं। दरअसल वर्तमान में गवर्नेंस और डिजिटलाइजेषन सषक्त भारत की बेहतरीन आवष्यकता है। सभी को काम की सिंगल विंडो चाहिए, आॅनलाइन प्लेटफाॅर्म चाहिए, रियल टाईम में सेवा चाहिए। इसके अलावा डिजिटल साक्षरता साथ ही सभी भाशाओं में डिजिटल संसाधन आदि का उपलब्ध होना कहीं अधिक जरूरी है। दो टूक राय यह रही है कि डिजिटल इण्डिया के माध्यम से देष और देष के नागरिकों को मजबूती मिलेगी। इस योजना का एक उद्देष्य ग्रामीण इलाकों में हाई स्पीड इन्टरनेट के माध्यम से जुड़ाव भी है पर गांव में इंटरनेट की मकड़जाल षहरों की भांति नहीं फैला है। बीसीजी की रिपोर्ट के आंकड़े यह दर्षाते हैं कि भविश्य में भारत में इंटरनेट का प्रसार तेजी से बढ़ेगा वर्श 2018 तक 55 करोड़ भारतीयों की इंटरनेट तक पहुंच हो जाएगी जिसमें 30 करोड़ से ज्यादा षहरी होंगे। सवाल है कि ग्रामीण बदलाव के बगैर डिजिटल इण्डिया कैसे सम्भव होगा? हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की पहुंच 40 फीसदी की दर से बढ़ने की सम्भावना है।
    डिजिटल इण्डिया के तीन कोर हैं प्रथम डिजिटल आधारभूत ढांचे का निर्माण करना जिसमें बाकायदा समय लगेगा, दूसरा इलैक्ट्राॅनिक रूप से सेवाओं को जनता तक पहुंचाना जो वर्तमान संरचना में तो पूरी तरह सम्भव नहीं है पर यदि पहल जोर पकड़ती है तो दर में बढ़ोत्तरी हो जाएगी, तीसरे में डिजिटल साक्षरता षामिल है। वर्श 2011 की जनगणना के हिसाब से भारत में करीब 26 फीसदी लोग अषिक्षित हैं। जाहिर है कि तकनीकी ज्ञान से पहले अक्षर ज्ञान को व्यवस्थित और मजबूत करना होगा जिस हेतु वक्त लगेगा। इसका यह तात्पर्य नहीं कि डिजिटल इण्डिया का प्रारूप भारतीय इतिहास और भूगोल के अनुरूप नहीं है। दरअसल भारत की आधारभूत संरचना उस तुलना में बढ़ोत्तरी नहीं ले रही है जितना कि वर्तमान में चाहिए। जनसंख्या का गुणोत्तर में बढ़ना और संरचना का समानान्तर श्रेणी में बढ़त लेनो देष के लिए समस्या रही है। ऐसे में ई-क्रान्ति इसकी भरपाई भी है। विगत् कुछ वर्शों से ई-एजुकेषन, आॅनलाइन मेडिकल परामर्ष, ई-हैल्थ, ई-कोर्ट, ई-पुलिस, ई-जेल, ई-बैंकिंग और ई-बीमा आदि संरचनात्मक कमियों के बावजूद अच्छी सफलता की ओर हैं। इसे देखते हुए अंदाजा लगाना आसान है कि डिजिटल इण्डिया का समावेषी लक्षण भारत विकास और उसके इतिहास के बदलाव में बेहतरी के साथ कारगर होगा। भारत सम्भावनाओं का देष है युवा आबादी कहीं अधिक है ऐसे में कोर प्रष्न यह है कि डिजिटल इण्डिया क्या भारत की बड़ी जरूरत नहीं है। रोजगार, विकास, देष निर्माण और वैष्विक अर्थव्यवस्था में छलांग लगाने के लिए यह कहीं अधिक बेहतर उपाय भी है।
    फिलहाल डिजिटल इण्डिया मौजूदा स्थिति में भारत सरकार की आष्वासनात्मक योजना की भांति है। कम्पनियों की इसमें दिलचस्पी लेना षुभ संकेत है पर इसे क्रियान्वित करने में कई चुनौतियां और कानूनी बाधाएं भी हो सकती हैं। असल में निजता सुरक्षा, डाटा सुरक्षा, साइबर कानून, ई-षासन और ई-काॅमर्स आदि के क्षेत्र में भारत का नियंत्रण कमजोर माना जाता है। बिना साइबर सुरक्षा के ई-प्रषासन और डिजिटल इण्डिया जैसी योजनाएं समुचित नहीं मानी जा सकती। कहा जाए तो डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम का सबसे अहम् उद्देष्य भले ही तकनीक के माध्यम से आम लोगों का जीवन सरल बनाना हो पर सरकार के लिए यह काम इतना आसान होने वाला नहीं है। जानकारों की राय में चुनौतियों से निपटने के लिए अभी कई संरचनात्मक पहल की आवष्यकता है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने पहले भी अपील की है कि नकारात्मक छोड़ें और देष के विकास के लिए सकारात्मक और रचनात्मक उर्जा इस्तेमाल करें। सबके बावजूद इसकी लोकप्रियता और खपाई गयी उर्जा को देखते हुए इसके प्रति सकारात्मक होने से गुरेज करना भी तो सही नहीं कहा जाएगा पर देखने वाली बात यह होगी कि जब यह वास्तविक रूप लेगा तो कैसा भारत हेागा?

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502


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