Friday, October 2, 2015

सुशासन हेतु गाँधी विचारधारा की आवश्यकता

    राश्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में जानना एवं लिखना अपेक्षाकृत इसलिए सरल और तरल रहा है क्योंकि इनका साहित्य कहीं अधिक पारदर्षी तथा बौद्धिक अन्वेशण से परिपूर्ण है। इस बार की गांधी जयंती में उनके दर्षन के साथ सुषासन को संदर्भित करने का प्रयास है जिसकी प्राप्ति हेतु राजनीतिक, प्रषासनिक तथा सामाजिक पक्षों समेत कई विचारों की पगडण्डी से गुजरना होगा। राश्ट्रीयता और समाजवाद का समागम साथ ही क्षितिज पर गांधी दर्षन का होना बरसों से देष के निर्माण एवं विकास के काम आता रहा है। जन-जागृति और जन-सरोकार इनकी मूल चिंता रही है। गांधी और उनका प्रषासनिक दृश्टिकोण वर्तमान भारत में इसलिए प्रासंगिक नहीं कि गांधी राश्ट्रपिता हैं बल्कि इसलिए कि उनकी सोच और बोध में वे धाराएं समाहित हैं जिसमें देष का कल्याण छुपा है। गांधी दर्षन से न केवल भारतीय षासन-प्रषासन को समझने की कूबत बढ़ती है बल्कि विष्व की थाह लेने में भी ये बड़ा यंत्र है। प्रषासन की प्रवर्धित परिभाशा देखें तो इसमें जनता के हितों को सुनिष्चित करना निहित है जबकि गांधी विचारधारा में जन भलाई और षक्ति का जनता के हाथों में होना षामिल है। कुछ षब्दों की दोनों परिभाशाएं मिल कर एक ऐसी व्याख्या की ओर इंगित करती है जिससे भारतीय प्रषासन का पूरा चरित्र जांचा-परखा जा सकता है। यह महसूस किया गया है कि प्रषासन की 65 बरस की लम्बी यात्रा में गांधी विचारधारा अभी भी अनथके कदमों से निरन्तरता लिए हुए है।
    महात्मा गांधी ने भारत में राम राज्य की परिकल्पना की थी। एक ऐसा प्रषासन जिसमें लोक कल्याण की भावना प्रबल हो जिसमें सामाजिक विशमता, षोशण, हिंसा इत्यादि का नामोनिषान न हो। इतना ही नहीं गांधी न्यूनतम षासन के पक्षधर थे। उनका मानना था कि न्यूनतम षासन करने वाला षासन तंत्र ही सर्वोत्तम होता है। एक बार उन्होंने यह भी कहा कि मैं राज्य की षक्तियों में वृद्धि को षंका की दृश्टि से देखता हूं। गांधी का मत यह भी था कि बढ़ती हुई षक्ति ऊपर से तो जनता की भलाई करती हुई दिखाई देती है परन्तु असल में इससे समाज को बहुत हानि पहुंचती है। गांधी सुषासन के मामले में एक ऐसे कुषल विचारक थे जिनकी चिंता भी संतुलित थी। क्या व्यक्ति के विकास में प्रषासन की बढ़ती हुई षक्ति बाधक होती है। राश्ट्रपिता की राय यहां भी संदेह से परे नहीं है। गांधी की इन विचारधाराओं से संविधान निर्माता भली-भांति अवगत थे यही कारण था कि संविधान के लोक कल्याणकारी समेत कई हिस्सों पर गांधी दृश्टिकोण की छाप देखी जा सकती है। गांधी देष के विकास को गांव से प्रारम्भ करना चाहते थे जिसकी प्रारम्भिकी 1922 में देखी जा सकती है। ग्राम स्वषासन की प्रणाली को पूर्ण रूप से सक्षम बनाने को ‘गांधी स्वराज‘ कहते हैं। इसी परिकल्पना से ओत-प्रोत वर्श 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम ग्रामीण विकास हेतु लाया गया पर इसकी विफलता से मायूसी ही हाथ लगी। जब 2 अक्टूबर 1959 को गांधी जयन्ती के दिन राजस्थान के नागौर से पंचायती राज व्यवस्था का आगाज हुआ तो ग्रामीण विकास की आषा एक बार पुनः जीवित हो गयी। संविधान सभा के सदस्य पंचायतों को संविधान में रखने के मामले में एकमत नहीं थे पर यह गांधी का ही प्रभाव और दबाव था जिसके चलते पंचायतें न केवल संविधान का अंग बनीं बल्कि वर्तमान में ग्रामीण विकास हेतु स्थानीय प्रषासन का अच्छा विकल्प सिद्ध हुई।
    प्रषासन की दिलचस्पी और उसकी धारा समय के साथ उतार-चढ़ाव लिए हुए है। आजादी के षुरूआती दिनों में प्रषासन बुनियादी व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने में पूरी कूबत लगाये हुए था। इसी दौर में विकास की लम्बी चाल भी चलनी थी पर सामाजिक बिखराव और आर्थिक पिछड़ेपन जैसे संसाधन भी चाल को नाकाम करने के लिए मौजूद थे। गांधी सामाजिक समानता के हिमायती थे और बुनियादी षिक्षा के पक्षधर जिसे हासिल करने हेतु सामाजिक समरसता और आर्थिक सबलता की आवष्यकता थी जिसका मंत्र भी गांधी दर्षन में ही निहित था। भारी-भरकम उद्योगों के विरोधी गांधी लघु और कुटीर उद्योगों को न केवल रोजगार का जरिया मानते थे बल्कि इसे सभी के हाथों में काम का हथियार भी मानते थे। सत्तर के दषक में विकास का प्रषासन एड़ी चोटी का जोर लगाने के बावजूद उस सुगमता को हासिल नहीं कर पाया जिससे कि एक अच्छे देष का निर्माण हो सके। अस्सी के दषक में तो सत्ता कड़ी और कड़वेपन से ऐसे भर गयी कि मानो गांधी के सुषासन वाले मंत्र का लोप हो गया हो। न्यूनतम षासन के पक्षधर गांधी के दर्षन के पलट इस समय अधिकतम षासन का नेटवर्क फैला हुआ था। इसमें कोई अचरज वाली बात नहीं है कि जब-जब देष में अधिकतम षासन हुआ है तब-तब नागरिकों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है और देष भी पीछे गया है। उदारीकरण के बाद समावेषी विकास का दौर भी गांधी के सपनों का एक बेहतर रूप ही है। प्रषासन की उपादेयता इस सरोकार से है कि जनता कितनी सबल बनी न कि इसमें कि सरकार कितनी मजबूत है। सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और लोकतंत्रात्मक गणराज्य जैसे षब्दों को संविधान की प्रस्तावना में स्थान देकर गांधी के दर्षन को अपनाने का प्रयास तो किया गया पर अमीरी-गरीबी की चैड़ी खाई के चलते इस मामले में गांधी दर्षन को पीछे भी धकेला गया और जिसका क्रम अभी भी जारी है।
    कुछ मामलों में महात्मा गांधी और दीन दयाल उपाध्याय काफी समीप खड़े दिखाई देते हैं। इनका सबसे बड़ा एजेण्डा गरीबी और अन्त्योदय था। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाशण में सबसे बड़ी बात यह कही है कि मैं उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूं जहां धरती को मां कहा जाता है। जब बात इतनी बड़ी कह दी गयी हो तो इन दोनों महात्माओं के दृश्टिकोणों को काफी बल स्वयं मिल जाता है पर बात लागू कितनी होती है यह देखने वाली है। बीते दिनों जब सितम्बर में मोदी अमेरिका की यात्रा पर थे तब उन्होंने संयुक्त राश्ट्र संघ में सतत् विकास पर भाशण और गरीबी हटाने पर जोर दिया था। जिस सतत् विकास की चाह विष्व के देष रखते हैं उसे पाने के लिए गरीबी ही पहला अवरोध है। पांचवीं पंचवर्शीय योजना से भारत में इसके उन्मूलन का प्रयास जारी है पर आज भी 21 फीसदी से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। प्रधानमंत्री मोदी न्यूनतम षासन और अधिकतम सुषासन के स्लोगन को कई बार दोहरा चुके हैं जो गांधी विचारधारा से सरोकार रखती है पर उस खतरे को भी भांपने की आवष्यकता है जो विकास के नाम पर राश्ट्रपिता ने चेताया है। प्रषासन का होना मात्र ही सुषासन की गारण्टी नहीं है। समाजषास्त्री मैक्स वेबर ने नौकरषाही के अध्ययन के दौरान यह उजागर किया था कि प्रषासन प्रभुत्व का काम करता है जबकि असल में इसे सेवा के लिए होना चाहिए। मोदी सरकार सवा साल पुरानी है स्वच्छता अभियान, नारी उत्थान, सुषासन पर बल, कौषल विकास, ग्रामीण योजनाएं साथ ही उनके कई महत्वाकांक्षी प्रयोग गांधी मन से अटूट नाता जोड़ लेते हैं। कई मामलों में मोदी के मन की बात गांधी के मन की बात से संवेगात्मक सम्बन्ध ले लेता है। कई राज्यों में सेवा नियमावली भी गांधी के इर्द-गिर्द है। आचार संहिता से लेकर जीवन के नियम भी गांधी दर्षन से ओत-प्रोत पाये गये हैं। इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि सुषासन, सत्यनिश्ठा, जवाबदेहिता और जनता के प्रति उत्तरदायित्व को हर मौके पर सही ठहराना है तो गांधी के दर्षन से वास्ता रखना ही होगा।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं  प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502


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