Friday, October 9, 2015

सवाल तो व्यवस्था सुधारने का भी है

    संयुक्त राश्ट्र महासभा को बामुष्किल एक पखवाड़ा भी नहीं बीता था कि जी-4 की बैठक के बाद भारत के प्रधानमंत्री मोदी और जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल की दिल्ली में पुनः मुलाकात हुई। दो देषों के मुख्य कार्यकारियों का इतने कम समय में दूसरी बार मिलने का अवसर कम ही देखने को मिलता है। वैष्विक और क्षेत्रीय समीकरण के लिहाज से ऐसी मुलाकातें काफी अहम् साबित हो सकती हैं। यूरोप की सबसे ताकतवर और विष्व की चैथी अर्थव्यवस्था जर्मनी और बड़ी अर्थव्यवस्था में षुमार भारत के साथ द्विपक्षीय समझौते रिष्तों को आर्थिक तौर पर और सबल बनाने के काम जरूर आयेंगे। पिछले सवा बरस से भारत की राजनीतिक कार्यकारी इकाई में आये परिवर्तन में देष के वैष्विक और कूटनीतिक समीकरण भी बदलाव ला दिया है। भारत पष्चिमी देषों के साथ जहां सम्बन्ध प्रगाढ़ कर रहा है वहीं पूरब के साथ भी सकारात्मक रवैया अपनाए हुए है। आमतौर पर इसे ‘ऐक्ट-ईस्ट, लिंक-वेस्ट‘ की संज्ञा दी जाती है। भारत और जर्मनी का सम्बन्ध मोदीमय तब हुआ जब प्रधानमंत्री मोदी बीते अप्रैल जर्मन की यात्रा पर थे। इसी दौरे में उन्होंने इस बात की पूरजोर कोषिष की कि निवेष का उत्तम स्थल भारत है। मोदी अपने वैदेषिक यात्राओं में कुछ बातों का जिक्र करना नहीं भूलते जिसमें मेक इन इण्डिया, स्किल इण्डिया और डिजिटल इण्डिया षामिल है। जर्मन यात्रा के दौरान निवेषकों को लुभाने के लिए मोदी मिषन की झलकियां भी वहां के लोगों ने देखी थी।
    भारत के तीन दिवसीय यात्रा पर आई जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल और प्रधानमंत्री मोदी के बीच कौषल विकास, विज्ञान एवं तकनीक, षिक्षा, स्वच्छ उर्जा और कृशि समेत 18 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। दोनों नेताओं ने सुरक्षा परिशद् में सुधार पर भी सहमति जताई साथ ही आतंकवाद और उग्रवाद को लेकर साझा लड़ाई का एलान किया। रक्षा, सुरक्षा, खूफिया जानकारी, रेलवे, व्यापार, निवेष व स्वच्छ उर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में बनी सहमति काफी अहम् कही जायेगी। किसी भी देष के मजबूत सम्बन्ध का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बीच हुई संन्धियां किन आवष्यकताओं और अनिवार्यताओं पर टिकी हैं। भारत आईटी स्किल और जर्मन इंजीनियरिंग मिलकर कमाल कर सकते हैं। भारत में आर्थिक परिवर्तन में जर्मनी का स्वाभाविक साझेदार होना सम्बन्धों की प्रगाढ़ता दर्षाता है। मोदी ने यह आत्मविष्वास और भरोसा भी दिलाने की कोषिष की है कि पिछले कुछ वर्शों से हमारे सम्बन्ध मजबूत हुए हैं। एंजेला मार्केल भारत से आर्थिक रिष्तों को कहीं अधिक सकारात्मक और महत्वपूर्ण मानती हैं। ग्रामीण इलाकों के लिए उर्जा सहयोग अहमियत रखने वाला है। उनका मन्तव्य है कि ऐसे इलाकों को दरकिनार करके स्थाई विकास नहीं पाया जा सकता। भारत के डिजिटाइजेषन से मार्केल काफी उत्साहित नजर आईं। यहां बताना जरूरी है कि जर्मनी आॅटोमोबाइल, इंजीनियरिंग, अक्षय उर्जा, रेलवे और कौषल विकास जैसे तमाम क्षेत्रों में महाविकास को प्राप्त कर चुका है। ऐसे में जर्मन के साथ रिष्ता भारत विकास के लिए कहीं अधिक प्रभावषाली सिद्ध हो सकता है।
    भारत में निवेष को लेकर कारोबारियों में लम्बे अर्से तक संदेह रहा है। प्रधानमंत्री मोदी अपने अब तक कार्यकाल में इस बात को लेकर काफी कोषिष की है कि भारत के प्रति निवेषकों का विष्वास बढ़े पर कितने पैमाने पर सफलता मिली मामला पूरी तरह साफ नहीं है। मार्केल के साथ औद्योगिक प्रतिनिधि मण्डल के भीतर एक राय यह भी थी कि भारत में निवेष का आपेक्षित माहौल नहीं है। बरसों से यह कमी रही है कि निवेषक लाइसेंस और परमिट प्राप्ति हेतु दर-दर भटकने के लिए मजबूर रहे हैं। यदि आगे भी यह जारी रहा तो इसका असर मेक इन इण्डिया जैसे महत्वाकांक्षी परियोजना पर भी पड़ेगा। जर्मनी के साथ ‘फास्ट ट्रैक‘ सिस्टम सम्बन्धी समझौते के चलते इस क्षेत्र में उम्मीद जगती है। राय तो यह भी है कि केवल लालफीताषाही को खत्म करने मात्र से पूरी बात नहीं बनेगी बल्कि कर प्रणाली में सुधार करने की भी जरूरत है। असल में यदि भारत में ‘फास्ट ट्रैक‘ पटरी पर आ जाए तो निवेषकों के लिए भारत से बेहतर विष्व में कोई बाजार नहीं हो सकता। सिंगल विंडो व्यवस्था की भी यहां कमी है और नौकरषाही में जो परम्परागत खामियां हैं अभी उन पर जमी धूल को पूरी तरह साफ करने में वक्त लगेगा। विष्वसनीय साझीदार ढूंढना मोदी की कूटनीति का सबल पक्ष है पर देष में बेहतर वातावरण बनाना उनकी परीक्षा भी है।
    आधारभूत संरचना डिजिटाइजेषन और एनर्जी जैसे क्षेत्रों में व्यापक अवसर छुपे हैं। जब भारत और जर्मनी के बीच रिष्ते अत्यंत प्रगाढ़ हो चले हैं तो इस दिषा में बेहतर तरीकों का उपयोग करके दोनों बड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं। मोदी ने जीएसटी बिल की चर्चा करते हुए कहा कि 2016 में विधेयक पारित हो जाएगा। सवाल है कि जहां तेजी से कदम बढ़ना चाहिए क्या वहां चाल तेज है? जीएसटी का खटाई में पड़ना धीमी चाल का उदाहरण है जो वित्तीय संरचना के लिए अवरोध साबित हो सकता है। विदेषी निवेष में तेजी लाने के लिए उन कारकों को खोजना होगा जहां से भारत में बड़ा घरेलू बाजार का रास्ता खुलता हो और कारोबारियों और निवेषकों को आकर्शित करने का मार्ग प्रषस्त होता हो। प्रधानमंत्री मोदी जिस बोध और सोच से देष की समृद्धि को हासिल करना चाहते हैं उसमें संदेह नहीं कि इसे प्राप्त करने में ‘मेक इन इण्डिया‘ या निवेषकों की भागीदारी अहम भूमिका अदा करेगी पर जो हाल देष का है उसे देखते हुए कदम लड़खड़ाने लगते हैं। लालफीताषाही और भ्रश्टाचार ने कार्यषैली को ऐसे षिकंजे में जकड़ रखा है जिससे जल्द मुक्ति मिलनी ही चाहिए। व्यवस्था इतनी बीमार है कि कार्यकुषलता हाषिए पर है। बावजूद इसके यह सकून की बात है कि भारत के प्रति वैष्विक स्तर पर सकारात्मक राय बन रही है। यदि नीति और रणनीति के तहत भारत इसे भुनाने में कामयाब होता है तो हर हाल में देष बड़े मुनाफे में रहेगा। जिस प्रकार का वातावरण वैदेषिक स्तर पर भारत को लेकर बना है उसे देखते हुए भविश्य के प्रति कहीं अधिक आषान्वित होना तर्कसंगत प्रतीत होता है।



लेखक, वरिश्ठ स्तम्भकार एवं रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन के निदेषक हैं
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
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