सतत् विकास की अवधारणा दषकों से देष में विकेन्द्रित रूप लिए हुए है। यह एक ऐसी आर्थिक अवधारणा है जिसकी चाह विष्व के सभी देष रखते हैं। 25 सितम्बर को संयुक्त राश्ट्र महासचिव बान की मून द्वारा आयोजित सतत् विकास सम्मेलन को प्रधानमंत्री मोदी ने हिन्दी में सम्बोधित किया। इस सम्बोधन के माध्यम से कई प्रक्रियागत् अवधारणाओं को उजागर होते हुए देखा जा सकता है। संयुक्त राश्ट्र के सम्मेलनों में हिन्दी में भाशण देने की षुरूआत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा अस्सी के दषक में षुरू हुई थी। हालांकि ऐसे सम्मेलनों में अब हिन्दी में सम्बोधन आम चलन में आ चुका है। इसे हिन्दी के प्रति ताकत भरने के लिए भी आवष्यक कहा जा सकता है। दुनिया की षीर्श पंचायत संयुक्त राश्ट्र संघ में भी समय के साथ बड़े बदलाव की दरकार है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी विष्वसनीयता के लिए सुरक्षा परिशद् में सुधार किया जाना जरूरी बताया। अक्सर देखा गया है कि ऐसे मंचों पर भारत अधिक उदार और सहभागी रवैया रखने से गुरेज नहीं करता। इसके अलावा आलोचनात्मक परिपे्रक्ष्य को नजरअंदाज करते हुए समरसता से भरे दृश्टिकोण का आदान-प्रदान करने के इच्छुक रहता है। जिस प्रकार भारत वैष्विक पटल पर बोध और सोच के मामले में खरा उतरता है ठीक इसके उलट पाकिस्तान को कई छटपटाहट के साथ ऐसे मंचों पर देखा जाता रहा है। ताजे घटनाक्रम में पाकिस्तान ने संयुक्त राश्ट्र संघ में यह षिकायत करने की कोषिष की है कि भारत बातचीत का इच्छुक नहीं है, और नियंत्रण रेखा पर दीवार बनाने का भी आरोप लगाया। ये दोनों बातें पाकिस्तान की विक्षिप्त मानसिकता की ही परिचायक कही जाएंगी। यहां पाकिस्तान का उद्देष्य संयुक्त राश्ट्र में भारत के पक्ष को कमजोर करना मात्र है।
प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा को यदि सितम्बर यात्रा की संज्ञा दी जाए तो समुचित होगा। पिछले वर्श अमेरिका के बुलावे पर अपने पांच दिन की यात्रा पर मोदी 25 सितम्बर को रवाना हुए थे। तब अवसर नवरात्रि का था और मोदी का उपवास भी चल रहा था जबकि इस वर्श 24 सितम्बर को वाया आयरलैंड उनकी लैंडिंग अमेरिका में हुई। यह महज संयोग है कि अमेरिका की लगातार दोनों यात्राएं सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में कार्यक्रमित हो रही हैं और इस बार की भी यात्रा पांच दिवसीय ही है। पहली यात्रा की तरह ही दूसरी यात्रा में भी मोदी का भरपूर स्वागत हुआ। उस यात्रा में 50 से ज्यादा कार्यक्रमों में मोदी ने भाग लिया था। संयुक्त राश्ट्र महासभा में सम्बोधन से लेकर ‘मेडिसिन स्क्वायर‘ में लच्छेदार भाशण तक इसमें षामिल थे। उस समय भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बातचीत का कोई निर्धारित कार्यक्रम नहीं था कमोबेष इस बार भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। भारत-पाकिस्तान जब भी अमेरिका की धरती पर होते हैं तो ये अटकलें तेज हो जाती हैं कि विदेष के धरातल पर क्या गुल खिलेगा पर चिंतन से भरा दृश्टिकोण यह है कि भारत जिस विकास और विचार से युक्त होता है पाकिस्तान ठीक इसके उलट धोखे और अविष्वास से परिपूर्ण रहता है। ऐसे में उसे हासिल तो कुछ नहीं होता पर द्विपक्षीय मसले को बहुपक्षीय बनाने में अपनी पूरी कूबत झोंक देता है। जिस भांति मोदी को वैष्विक समर्थन मिल चुका है और मिल रहा है उसे देखते हुए अंदाजा लगाना आसान है कि पाकिस्तान की गलत नीयत कहीं भी कारगर सिद्ध नहीं होने वाली।
अमेरिका की धरती पर भारत-अमेरिका सम्बन्ध या दूसरे षब्दों में कहें तो मोदी-ओबामा का मिलन नये मुकाम को गढ़ने में कामयाबी पायेगा साथ ही दोनों के बीच आर्थिक रिष्तों में और भी मजबूती आएगी। एषिया समेत दुनिया भर में राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने में इनकी मुलाकात अहम् भूमिका अदा करेगी। हर कोई मानता है कि भारत और अमेरिका रिष्तों की मजबूती और आर्थिक एवं व्यापारिक समझौते के लिए प्रतिबद्ध हैं। अमेरिकी उद्यमियों ने भी मोदी को न केवल हाथों-हाथ लिया बल्कि भारत के प्रति उनका नजरिया संतोश से परिपूर्ण है। गूगल के भारतीय मूल के सीईओ सुन्दर पिचाई ने डिजिटल इण्डिया का जहां समर्थन किया वहीं अन्य उद्यमियों ने मोदी की अलग-अलग तरीके से व्याख्या की। जब बात इतने बड़े देषों और मंच की हो तो एक-दो मसलों तक ही बात नहीं रहती। मोदी जब संयुक्त राश्ट्र सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे तब राश्ट्रपिता को याद करते हुए कहा कि दुनिया भर में आज भी एक अरब तीस करोड़ लोग गरीबी में जीवन जी रहे हैं। संयुक्त राश्ट्र के गरीबी हटाने के लक्ष्य को भारत ने समर्थन दिया है। इसी सम्मेलन में मोदी ने ‘क्लाइमेट चेंज‘ के स्थान पर ‘क्लाइमेट जस्टिस‘ की बात कही। दीगर बात है कि आज विष्व का हर देष जलवायुवीय समस्याओं से जूझ रहा है और भारत इस समाधान में भी बहुत कुछ करने के लिए आतुर रहता है। जिस भांति प्रधानमंत्री मोदी विदेष में अपने ढंग को बदल लेते हैं और सभी में षामिल होने की बड़ी कोषिष करते हैं इससे यह विष्वास बढ़ने लगता है कि देष की कई समस्याएं इन प्रयासों से हल की ओर होंगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति की तस्वीर को उद्यमियों के सामने रख कर भारत में निवेष हेतु प्रेरित करना और कूटनीतिक क्षमता का परिचय देना और प्रतिउत्तर में अतिरिक्त सकारात्मक वातावरण का बनना इस बात का सबूत है कि विष्व समुदाय भारत को बड़ी गम्भीरता से लेता है पर देखने वाली बात यह है कि आर्थिक सुधार को प्राथमिकता में रखने वाले मोदी अमेरिकी उद्यमियों को निवेष हेतु आकर्शित करने में कितने सफल होते हैं।
प्रधानमंत्री ने अमेरिका की करीब पचास कम्पनियों के सीईओ से मुलाकात की। गूगल के रूपर्ट मर्डोक ने मोदी को आजाद भारत का सबसे अच्छा प्रधानमंत्री करार दिया, कहा कि इनके पास बेहतरीन नीतियां हैं जबकि फाॅच्र्यून पत्रिका के सम्पादक एलन मूरै के विचार में भारत को लेकर कुछ असमंजस सा देखने को मिला जिसके चलते उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से भारत में कारोबार संचालित करने वाले जटिल कानून, अत्यधिक परमिट और भ्रमजाल फैलाने वाली नौकरषाही, खराब आधारभूत संरचना और बोझिल कर प्रणाली को बदलने की दिषा में गति की बात कही। यह काफी हद तक सही कहा जा सकता है कि भारत में संरचनात्मक-प्रकार्यवाद उस रवैये में नहीं है जैसा कि एक विकासात्मक दृश्टिकोण वाले देष को चाहिए। ऐसे तमाम कारक भारत की विष्वसनीयता पर संदेह करने वाले रहे हैं। ध्यानतव्य है कि जापान की यात्रा पर मोदी ने कहा था कि अब भारत ‘रेड टैप‘ नहीं बल्कि ‘रेड कारपेट‘ वाला देष है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वैष्विक पटल पर भारत ऐसे सवालों से घिरा रहा है पर दो टूक यह भी सही है कि काफी हद तक इन दिनों की विदेष नीति के चलते भारत के प्रति विदेषी षासकों और निवेषकों की राय बदली है। कूटनीति का सबब भी यही होता है कि दुनिया में अपनी बात इस प्रकार प्रस्तुत करो और उसका पूरा कराने के लिए ऐसी कोषिष करो जिससे कि न केवल हमारी नीतियां सराही जाएं बल्कि उपलब्ध आर्थिक विकल्प से भी मुनाफा मिले। इसी तर्ज पर मोदी ‘मेक इन इण्डिया‘, ‘डिजिटल इण्डिया‘ और ‘स्किल इण्डिया‘ को एक मारक हथियार के रूप में प्रयोग करते रहे हैं और अमेरिका में भी यह क्रम जारी है। हालांकि अभी यात्रा बाकी है जाहिर है कि समाप्ति के पष्चात् और बेहतर मूल्यांकन हो सकेगा।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502
प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा को यदि सितम्बर यात्रा की संज्ञा दी जाए तो समुचित होगा। पिछले वर्श अमेरिका के बुलावे पर अपने पांच दिन की यात्रा पर मोदी 25 सितम्बर को रवाना हुए थे। तब अवसर नवरात्रि का था और मोदी का उपवास भी चल रहा था जबकि इस वर्श 24 सितम्बर को वाया आयरलैंड उनकी लैंडिंग अमेरिका में हुई। यह महज संयोग है कि अमेरिका की लगातार दोनों यात्राएं सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में कार्यक्रमित हो रही हैं और इस बार की भी यात्रा पांच दिवसीय ही है। पहली यात्रा की तरह ही दूसरी यात्रा में भी मोदी का भरपूर स्वागत हुआ। उस यात्रा में 50 से ज्यादा कार्यक्रमों में मोदी ने भाग लिया था। संयुक्त राश्ट्र महासभा में सम्बोधन से लेकर ‘मेडिसिन स्क्वायर‘ में लच्छेदार भाशण तक इसमें षामिल थे। उस समय भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बातचीत का कोई निर्धारित कार्यक्रम नहीं था कमोबेष इस बार भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। भारत-पाकिस्तान जब भी अमेरिका की धरती पर होते हैं तो ये अटकलें तेज हो जाती हैं कि विदेष के धरातल पर क्या गुल खिलेगा पर चिंतन से भरा दृश्टिकोण यह है कि भारत जिस विकास और विचार से युक्त होता है पाकिस्तान ठीक इसके उलट धोखे और अविष्वास से परिपूर्ण रहता है। ऐसे में उसे हासिल तो कुछ नहीं होता पर द्विपक्षीय मसले को बहुपक्षीय बनाने में अपनी पूरी कूबत झोंक देता है। जिस भांति मोदी को वैष्विक समर्थन मिल चुका है और मिल रहा है उसे देखते हुए अंदाजा लगाना आसान है कि पाकिस्तान की गलत नीयत कहीं भी कारगर सिद्ध नहीं होने वाली।
अमेरिका की धरती पर भारत-अमेरिका सम्बन्ध या दूसरे षब्दों में कहें तो मोदी-ओबामा का मिलन नये मुकाम को गढ़ने में कामयाबी पायेगा साथ ही दोनों के बीच आर्थिक रिष्तों में और भी मजबूती आएगी। एषिया समेत दुनिया भर में राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने में इनकी मुलाकात अहम् भूमिका अदा करेगी। हर कोई मानता है कि भारत और अमेरिका रिष्तों की मजबूती और आर्थिक एवं व्यापारिक समझौते के लिए प्रतिबद्ध हैं। अमेरिकी उद्यमियों ने भी मोदी को न केवल हाथों-हाथ लिया बल्कि भारत के प्रति उनका नजरिया संतोश से परिपूर्ण है। गूगल के भारतीय मूल के सीईओ सुन्दर पिचाई ने डिजिटल इण्डिया का जहां समर्थन किया वहीं अन्य उद्यमियों ने मोदी की अलग-अलग तरीके से व्याख्या की। जब बात इतने बड़े देषों और मंच की हो तो एक-दो मसलों तक ही बात नहीं रहती। मोदी जब संयुक्त राश्ट्र सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे तब राश्ट्रपिता को याद करते हुए कहा कि दुनिया भर में आज भी एक अरब तीस करोड़ लोग गरीबी में जीवन जी रहे हैं। संयुक्त राश्ट्र के गरीबी हटाने के लक्ष्य को भारत ने समर्थन दिया है। इसी सम्मेलन में मोदी ने ‘क्लाइमेट चेंज‘ के स्थान पर ‘क्लाइमेट जस्टिस‘ की बात कही। दीगर बात है कि आज विष्व का हर देष जलवायुवीय समस्याओं से जूझ रहा है और भारत इस समाधान में भी बहुत कुछ करने के लिए आतुर रहता है। जिस भांति प्रधानमंत्री मोदी विदेष में अपने ढंग को बदल लेते हैं और सभी में षामिल होने की बड़ी कोषिष करते हैं इससे यह विष्वास बढ़ने लगता है कि देष की कई समस्याएं इन प्रयासों से हल की ओर होंगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति की तस्वीर को उद्यमियों के सामने रख कर भारत में निवेष हेतु प्रेरित करना और कूटनीतिक क्षमता का परिचय देना और प्रतिउत्तर में अतिरिक्त सकारात्मक वातावरण का बनना इस बात का सबूत है कि विष्व समुदाय भारत को बड़ी गम्भीरता से लेता है पर देखने वाली बात यह है कि आर्थिक सुधार को प्राथमिकता में रखने वाले मोदी अमेरिकी उद्यमियों को निवेष हेतु आकर्शित करने में कितने सफल होते हैं।
प्रधानमंत्री ने अमेरिका की करीब पचास कम्पनियों के सीईओ से मुलाकात की। गूगल के रूपर्ट मर्डोक ने मोदी को आजाद भारत का सबसे अच्छा प्रधानमंत्री करार दिया, कहा कि इनके पास बेहतरीन नीतियां हैं जबकि फाॅच्र्यून पत्रिका के सम्पादक एलन मूरै के विचार में भारत को लेकर कुछ असमंजस सा देखने को मिला जिसके चलते उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से भारत में कारोबार संचालित करने वाले जटिल कानून, अत्यधिक परमिट और भ्रमजाल फैलाने वाली नौकरषाही, खराब आधारभूत संरचना और बोझिल कर प्रणाली को बदलने की दिषा में गति की बात कही। यह काफी हद तक सही कहा जा सकता है कि भारत में संरचनात्मक-प्रकार्यवाद उस रवैये में नहीं है जैसा कि एक विकासात्मक दृश्टिकोण वाले देष को चाहिए। ऐसे तमाम कारक भारत की विष्वसनीयता पर संदेह करने वाले रहे हैं। ध्यानतव्य है कि जापान की यात्रा पर मोदी ने कहा था कि अब भारत ‘रेड टैप‘ नहीं बल्कि ‘रेड कारपेट‘ वाला देष है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वैष्विक पटल पर भारत ऐसे सवालों से घिरा रहा है पर दो टूक यह भी सही है कि काफी हद तक इन दिनों की विदेष नीति के चलते भारत के प्रति विदेषी षासकों और निवेषकों की राय बदली है। कूटनीति का सबब भी यही होता है कि दुनिया में अपनी बात इस प्रकार प्रस्तुत करो और उसका पूरा कराने के लिए ऐसी कोषिष करो जिससे कि न केवल हमारी नीतियां सराही जाएं बल्कि उपलब्ध आर्थिक विकल्प से भी मुनाफा मिले। इसी तर्ज पर मोदी ‘मेक इन इण्डिया‘, ‘डिजिटल इण्डिया‘ और ‘स्किल इण्डिया‘ को एक मारक हथियार के रूप में प्रयोग करते रहे हैं और अमेरिका में भी यह क्रम जारी है। हालांकि अभी यात्रा बाकी है जाहिर है कि समाप्ति के पष्चात् और बेहतर मूल्यांकन हो सकेगा।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन
एवं प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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फोन: 0135-2710900, मो0: 9456120502
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